What is Islam ?

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इस्लाम

इस्लाम क्या है?

इस्लाम अरबी ज़ुबान का लफ़्ज़ है| इस लफ़्ज़ को खोलने(सन्धि विच्छेद) पर इसका लफ़्ज़ “स ल म” जिसके माने अमन, पाकिज़गी, अपने आप को हवाले करना है| मज़हब के लिहाज़ से इस्लाम का मतलब अपने आप को पूरी तौर पर अल्लाह के हवाले कर देना है|

अल्लाह लफ़्ज़ भी अरबी ज़ुबान का ही लफ़्ज़ है जिसके माने “खुदा” या “भगवान” या “रब” के है| जिसके मतलब- एक और अकेला खुदा जिसने पुरी कायनात को बनाया, वो बडा रह्म करने वाला और रहीम(दयालु) है|

इस्लाम कोई नया दीन नही बल्कि ये तब से है जब अल्लाह ने इस दुनिया मै सबसे पहले इन्सान आदम अं (जो इस दुनिया मे अल्लाह के सब से पहले नबी थे) उन को भेजा| आदम अं के बाद जितने भी नबी या रसूल आये सबने सिर्फ़ इस्लाम की ही दावत या तालीम दी| दर हक़ीक़त इस्लाम किसी एक इन्सान या कौम या शहर या देश के लिये नही बल्कि तमाम दुनिया मे रहने वाले इन्सानो का दीन है जो इन्सान अपने आप को अल्लाह के सुपुर्द कर दे|

अमन व सलामती इस्लाम का एक बुनयादी तसव्वुर हैं जो के इस्लाम से गहरा ताल्लुक रखता हैं| इस्लाम का पूरा निज़ाम ए हयात, कानून, इस के अह्काम, इसके रस्म सब के सब इसकी तस्वीर अमन के साथ जोड्ते हैं| इस्लाम इस अज़ीम कायनात मे अज़ीम वहदत का दीन हैं| जिसका पहला कदम तौहीद ए इलाही से शुरु होता हैं| यानि इस ज़ात से जिससे ज़िन्दगी का सदूर होता हैं और इसी की तरफ़ रुजु होगा| रब्बुल आलामीन का इर्शाद हैं –
(ऐ मेरे नबी) आप कह दिजिए के वो अल्लाह एक हैं, अल्लाह बेनियाज़ हैं, इसने किसी को पैदा नही किया और ना वो किसी से पैदा किया गया हैं, और न उसका कोई शरीक हैं|(सूरह इख्लास)

सब की ज़रुरते वही पूरी करने वाला हैं| इस के दर के सिवा कोई दर नही सब इसी के मोहताज हैं वो किसी का मोहताज नही क्योकि वो अपनी सिफ़ात मे मुकम्मल हैं| इसके इल्म मे हर चीज़ हैं| इसकी रहमत इसके गज़ब से ज़्यादा हैं| इसकी रहमत हर किसी के लिये आम हैं| इसी तरह वो अपनी इस सिफ़ात मे भी मुकम्मल हैं| उसमे कोई ऐब नही न कोई उस जैसा हैं| इसलिये सिर्फ़ वो ही इबादत के लायक हैं उसके सिवा कोई नही| इन्ही सिफ़ात के तहत वो कायनात मे इबादत के तमाम इख्तलाफ़ात को यही खत्म कर देता हैं| इर्शाद बारी तालाह हैं –
अगर आसमान व ज़मीन मे अल्लाह के सिवा कई खुदा होते तो दोनो तबाह हो जाते|(सूरह अम्बिया-22)

एक और जगह अल्लाह ने क़ुरान मे फ़र्माया –
अल्लाह ने अपनी कोई औलाद नही पैदा करी और न ही इसके साथ कोई दूसरा माबूद हैं, वरना हर माबूद अपनी मख्लूक को लेकर अलग हो जाता और इन मे हर एक दूसरे पर चढ बैठता|(सूरह अल मोमिनून-91)

इस्लाम के बुनयादी अकायद

इस्लाम की बुनियाद जिन चीज़ो पर हैं उसके मुताबिक इन्सान को इन तमाम अकीदो पर अमल करना लाज़िमी हैं बिना इन बुनियादी अकीदो पर अमल किये और ईमान लाये एक इन्सान कतई मुसल्मान नही हो सकता| इस्लाम के बुनयादी अकीदे के मुताबिक जिन चीज़ो पर बन्दो को अमल करना और ईमान लाना हैं वो इस तरह हैं-

1. अल्लाह पर ईमान लाना

अल्लाह पर ईमान लाना इस्लाम का पहला बुनयादी उसूल हैं| ईमान लाने से मतलब इस बात से हैं अल्लाह मौजूद हैं और वही हर चीज़ का मालिक हैं, वही सबका पालनेवाला हैं, वही हर चीज़ को अकेला पैदा करने वाला हैं, वो अकेला हैं और सारी कायनात को वही चला रहा हैं| इबादत का खालिस हकदार सिर्फ़ अल्लाह हैं न उसका कोई शरीक हैं न ही उसकी इबादत मे कोई शरीक हैं| उसका कोई शरीक और हिस्सेदार नही| और उसमे हर तरह की सिफ़ात हैं और वो हर ऐब से पाक और बरी हैं| इस्लाम का ये पहला बुनयादी अकायद हर इन्सान की फ़ितरत मे मौजूद हैं और अल्लाह ने हर इन्सान को इसी फ़ितरत पर पैदा किया हैं और इन्सान की ये फ़ितरत तब बदलती हैं जब उसके अकिदे को बदलने वाले दुनयावी मामलात उसके सामने होते हैं| इन्सान चाहे कैसा भी क्यो न हो लेकिन जब वो किसी परेशानी मे घिरता हैं तो सिर्फ़ अपने रब को को याद करता हैं और उसी की तरफ़ पलटता हैं ताकि उसका रब उसकी इस परेशानी को दूर कर दें| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का इरशाद हैं-

हर बच्चा फ़ितरते इस्लाम पर पैदा होता हैं और उसके मां-बाप या उसके अपने उसे बाद मे यहूदी या ईसाई या दूसरे दीन की तरफ़ फ़ेर देते हैं|

इन्सान की अक्ल इस बात की तरफ़ इशारा करती हैं और उसे अल्लाह पर ईमान लाने की रहनुमाई करती हैं लिहाज़ा अगर कोई इन्सान इस दुनिया और इसके अन्दर आसमान, ज़मीन, पहाड़, दरिया, जानवर और दिगर चीज़ो पर गौर करे तो उसे इस बात पर यकीन होगा की इस कायनात को पैदा करने वाला कोई अकेली ही कोई ज़ात हैं जिसने इस तमाम चीज़ो को बनाया और उसी के हाथ मे सब कुछ हैं|

इस ताल्लुक से अल्लाह ही सारी कायनात का पैदा करने वाला हैं इन्कार करने वालो की अक्ल से अगर ये सवाल किया जाये-

या तो ये कायनात किसी पैदा करने वाले के बिना ही वजूद मे आ गयी – इस सवाल पर अगर गौर किया जाये तो ये बात नामुमकिन सी लगती हैं और अक्ल भी हर ऐतबार से नकारती हैं क्योकि हर अक्ल वाला चाहे वो अल्लाह का इन्कार करे या न करे ये समझता हैं के कोई चीज़ बिना किसी पैदा करने वाले के बिना नही बन सकती|

या फ़िर इन्सानो और दूसरी मख्लूक ने खुद को पैदा कर लिया – ये बात भी काबिले गौर हैं अक्ल के ऐतबार से नामुमकिन हैं और कोई भी इन्सान इस पर यकीन नही करेगा के कोई चीज़ ने खुद को पैदा कर लिया क्योकि जब किसी चीज़ का वजूद ही नही तो वो खुद को कैसे पैदा कर सकती हैं और जब ये नही हैं तो आखिर इन्सान कैसे पैदा हुआ|

इन सवालो से ये बात समझ आती हैं के कोई चीज़ बिना किसी के पैदा किया खुद नही हो सकती और न ही किसी मखलूक को ये ताकत के उसने खुद को पैदा कर लिया लिहाज़ा ये बात गौर करने वाली हैं के इन तमाम चीज़ो का कोई पैदा करने वाला हैं, जिसने इन्हे पैदा किया और ये सब चीज़े वजूद मे आई| और ये बात सिर्फ़ खालिस एक खुदा की तरफ़ इशारा करती हैं वही अल्लाह हैं जो हमेशा से हैं और हमेशा रहेगा|

ब्रिटिश किंग इन्स्टिटयूट और अमेरिकन इन्स्टीटयूट न्यूयार्क के प्रेसिडेंट क्रेसी मोरेसन ने अपनी किताब मे लिखा – पैदायशी रूप से इन्सान की बढ़ोत्तरी और जिम्मेदारी का अहसास अल्लाह पर ईमान लाने की निशानियो मे से एक निशानी हैं|

दूसरी जगह लिखते हैं – इन्सान की दीनदारी उसकी रूह का पता देती हैं और उसे धीरे-धीरे बुलन्द करती हैं यहा तक कि इन्सान अल्लाह से रिश्ते और जुड़ने का अहसास करने लगता हैं और अल्लाह से इन्सान की दुआ “के अल्लाह उसकी मदद करे एक फ़ितरती चीज़ हैं| आगे लिखते हैं – इन्सान को रुतबा, इज़्ज़त, इन्सानियत किसी इन्सान को अल्लाह के इन्कार करने से नही मिलता| हमारी अक्ल और दायरे की हद हैं लिहाज़ा हम अक्ल की हद के आगे की सच्चाई तन नही जा सकते ना जान सकते और इसी बुनियाद पर हमारे लिये उस अल्लाह जिसने तमाम कायनात, हर चीज़, ज़र्रे, सितारो, सूरज और इन्सानो को पैदा किया ईमान लाना लाज़िमी हैं|

अल्लाह के अकेला होने की अक्ली दलील

इस बारे मे अनगिनत अक्ली दलीले मौजूद हैं जिनमे से एक दलील दुआओ का कबूल होना हैं| इस दुनिया मे हर ज़रुरतमंद अल्लाह से दुआ करता हैं तो अल्लाह उनकी दुआ को कबूल करता हैं उनकी मुसीबत और परेशानी कू उनसे दूर करता हैं| कुरान मे अल्लाह ने फ़रमाया-

मुझे पुकारो मैं तुम्हारी दुआ करता हूं| (अल कुरान)

और वो कौन हैं जो परेशानी और मुसीबत के मारे की दुआ कबूल करता हैं और उसकी परेशानी दूर करता हैं| (अल कुरान)

और नूह को हमने निजात दी जब उसने हमको पुकारा तो हमने उसकी दुआ कबूल कर ली| (अल कुरान)

अक्ल की दलिलो मे नबीयो के वे निशानिया हैं जिनको चमत्कार कहा जाता हैं और ये वो चीज़े हैं जो इन्सान की आदत से अलग और उसकी ताकत से बाहर होती हैं जिसे अल्लाह नबियो के हाथो कराता हैं ताकि लोग नबी के ज़रिये बताये गये हक़ को पहचाने| लिहाज़ा ये मोजज़े (चमत्कार) रसूलो के भेजने वाले के वजूद की दलील हैं| इसकी मिसाल के तौर पे ये के जब मूसा अलै0 अपने मानने वालो को लेकर चले तो फ़िरऔन और उसके लश्कर ने उनका पीछा किया और जब मूसा और उनके मानने वाले दरिया नील के करीब पहुंचे तो अल्लाह के हुक्म से मूसा अलै0 ने दरिया मे अपनी लाठी मारी तो दरिया नील मे बीच से पैदल चलने के लिया रास्ता बन गया| (पूरा वाकिया कुरान मे देखे) और मूसा अलै0 और उनकी कौम ने दरिया पार कर ली लेकिन जब फ़िरऔन और उसके लश्कर ने दरिया के बीच मे पहुचा तो दरिया वापस मिल गयी और फ़िरऔन और उसका लश्कर उसमे डूब गया| इसी तरह ईसा अलै0 भी अल्लाह के हुक्म पर मुर्दो को ज़िन्दा करते थे| इसी तरह नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अल्लाह के हुक्म पर अपनी ऊंगली के इशारे से चांद के दो टुकड़े कर दियए और फ़िर से मिला दिये| ये वो मोजज़े(चमत्कार) हैं जो अल्लाह नबीयो के ज़रिये इस लिये कराता हैं के लोग अल्लाह को पहचान ले के उसके सिवा कोई दूसरा खुदा नही| क्योकि नबी भी इन्सानो मे से होता हैं और किसी इन्सान के बस मे नही के वो ऐसे मोजज़े अपनी ताकत से दिखाये| इसके अलावा किसी पैदा हुए बच्चे का मां की छाती से दूध पीना भी इस बात की दलील हैं के कोई ताकत उस बच्चे दूध पीने के लिये रहनुमाई कर रही हैं क्योकी किसी पैदा हुए बच्चे से बात कर उसे ये समझा पाना नामुम्किन हैं के उसे ये बताया जाये के उसकी भूख के लिये उसकी मां की छाती मे उसके लिये दूध का इन्तेज़ाम हैं| ये और इस तरह बहुत सी अक्ल की निशानिया इस दुनिया मे मौजूद हैं जो अकेले अल्लाह के होना का सबूत हैं|

2. फ़रिश्तो पर ईमान लाना

फ़रिश्ते अल्लाह की मख्लूक हैं जिन्हे अल्लाह ने खालिस अपनी इबादत के लिये पैदा किया हैं| फ़रिश्तो पर ईमान लाना हर मुसलमान के लिये लाज़िमी हैं और अल्लाह की इस मख्लूक से इन्कार करने वाला कतई मुसल्मान नही हो सकता| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया –

हमारे नबी (मुहम्मद सल्लललाहो अलैहे वसल्लम) जो कुछ उनपर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया हैं उस पर ईमान लाये और उनके (साथ) मुसलमान भी और सब अल्लाह और उसके फ़रिश्तो और किताबो और रसूलो पर ईमान लाये| (सूरह अल बकरा 2/285)

इसके अलावा हर फ़रीश्ते के ज़िम्मे अल्लाह ने अलग-अलग कामो को तय होना किया हैं जैसे जिब्रील अलै0 के ज़रिये अल्लाह अपने नबियो से कलाम करता हैं और अपने अहकाम बताता हैं| फ़रिश्तो की तादाद कितनी हैं इसका कोई इल्म किसी इन्सान को नही सिवाये अल्लाह के अलबत्ता हर फ़रिश्ता अल्लाह के हुक्म पर किसी न किसी काम को अन्जाम दे रहा हैं| अल्लाह की इस मख्लूक पर ईमान लाने के लिये जिन बातो को जानना ज़रुरी हैं वो ये है-

फ़रिश्तो का वजूद हैं बल्कि फ़रिश्तो को अल्लाह ने फ़रिश्तो को इन्सान से पहले पैदा किया| जैसा के कुरान से साबित हैं-

और जब हमने फ़रिश्तो को हुक्म दिया के आदम को सजदा करो तो इब्लीस के सिवा सबने सजदा किया वो जिन्नात मे से था| (सूरह कहफ़ 18/50)

इस आयत से साबित हैं के फ़रिश्ते का वजूद इन्सान की पैदाईश से पहले था|

जिन फ़रिश्तो का नाम मालूम हैं उनके नाम पर पर भी यकीन करना जैसे के जिब्रील अलै0

फ़रिश्तो के खसलत पर यकीन करना जैसे के अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया –

हज़रत ज़र बिन हबीश रज़ि0 से रिवायत हैं के हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद ने फ़रमाया के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने जिब्रील अलै0 को देखा इनके छै सौ पंख हैं| (बुखारी)

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – मुझे कहा गया के मैं तुम्हे हामीलीन अर्श के एक फ़रिश्ते के बारे मे बताऊँ| बिलाशक व शुबहा इसके एक कानो से दूसरे कानो की दूरी सात सौ साल के बराबर हैं|(अबू दाऊद)

फ़रिश्तो के काम और इबादत पर यकीन करना जैसे तमाम फ़रिश्तो को अल्लाह ने सिर्फ़ अपनी इबादत के लिये पैदा किया और हर फ़रिश्ता इस काम को बिना रुके, थके कर रहा हैं जैसे के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया –

आसमान और ज़मीन मे जो हैं वो इस अल्लाह का हैं और जो इसके पास हैं वह इसकी इबादत से न सरकशी करते हैं और न थकते हैं| रात दिन उसकी तस्बीह करते हैं कभी काहिली नही करते| (सूरह अंबिया 21/,20)

फ़रिश्तो को देख पाना किसी इन्सान के बस की बात नही सिवाये नबियो को अल्लाह के हुक्म से जैसा के उपर हदीस गुज़री के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने जिब्रील अलै0 को उनकी असल शक्ल मे देखा और उनके छ सौ पंख थे इसके अलावा जिब्रील अलै0 जब भी अल्लाह के हुक्म से अल्लाह का अहकाम लेकर नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम के पास आते तो इन्सानी शक्ल मे आते हैं जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया –

फ़िर हमने इस के पास अपनी रूह(जिब्रील अलै0) को भेजा| पस वो इसके सामने पूरा आदमी बन कर ज़ाहिर हुआ| (सूरह मरियम 19/17)

इसके अलावा जिब्रील अलै0 जब भी अल्लाह का अहकाम नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम के पास लेकर आते तो इन्सान की ही शक्ल मे लेकर आते जैसा के कई हदीसो से साबित हैं|

3. रसूलो पर ईमान लाना

रसूल हर उस इन्सान को कहा जाता हैं जिसे कोई शरीयत अल्लाह की तरफ़ से दी जाती हैं और उसे उस शरीयत की (तब्लीग) प्रचार का हुक्म भी मिलता हैं| इसके उल्टे नबी हर उस इन्सान को कहते हैं जो पहले किसी और नबी की लाई हुई शरीयत को जारी रखता हैं या मुर्दा हो चुकी हुई शरीयत को ज़िन्दा करने के लिये भेजा जाता हैं| अल्लाह ने हर कौम मे अपना रसूल भेजा जैसा के कुरान से साबित हैं|

और ऐसी कोई उम्मत नही गुज़री जिसमे हमारा डराने वाला नबी न आया हो| (सूरह फ़ातिर 35/24)

रसूल इन्सानो से कोई अलग नही होता बल्कि इन्सानो मे से ही होता हैं ताकि वो शरीयत को सबसे पहले अपने ऊपर अमल करके दिखाये और आम इन्सान उसे अपने लिये नामुमकिन न समझे| रसूल भी आम इन्सानो की तरह होता हैं और उसे भी हर तरह से दुख बीमारी परेशानी का सामना करना पड़ता हैं| फ़र्क सिर्फ़ इतना हैं किसी रसूल का इन्तेखाब अल्लाह के ज़रिये होता हैं इन्सानो के ज़रिये नही क्योकि रिसालत का इन्तेखाब अल्लाह का हक हैं न के इन्सानो का| रसूल इन्सानो मे सबसे बेहतर होता हैं और हर गुनाह से पाक होता हैं|

इन्सानो पर इस बात की पाबन्दी लाज़िम हैं के तमाम रसूलो पर जिसके बारे मे कुरान और हदीस से जानकारी मिलती हैं उस पर ईमान लाये| जिस किसी ने किसी रसूल का इन्कार किया उसका ईमान मुकम्मल नही अल्बत्ता नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के बाद से कयामत तक जो सिर्फ़ नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की लाई हुई शरियत की ही पाबन्दी हर इन्सान के लिये हैं लेकिन इस शरियत मे अल्लाह के तमाम रसूलो का इकरार लाज़िम हैं| लिहाज़ा किसी इन्सान ने अगर किसी रसूल को जानने के बाद भी उसका इन्कार किया तो वो मुसल्मान नही हो सकता| इन्सानो को जिन रसूलो के नाम मालूम हैं उन रसूलो के नाम के साथ उनकी रिसालत का यकीन करना लाज़िम हैं जिनका नाम नही मालूम उनके बारे मे बस इतना ही काफ़ी हैं के अल्लाह ने हर कौम मे अपना नबी भेजा हैं और कोई कौम बिना नबी के नही गुज़री| इसके साथ ही ये भी लाज़िम हैं के हर नबी ने सिर्फ़ अल्लाह ही की बात को लोगो तक पहुँचाया और उनकी ये खबर सच्ची हैं|

अल्लाह ने अपने आखरी रसूल जनाब मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को दुनिया मे भेज कर अपनी रिसालत के सिलसिले को खत्म कर दिया लिहाज़ा अब हर इन्सान के लिये ये लाज़िम हैं के वो मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम और उनकी लाई हुई शरीयत यानि दीन ए इस्लाम को अपनाये क्योकि मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तमाम दुनिया के लिये नबी बना कर भेजे गये न के किसी एक मुल्क या बस्ती के लिये|

रसूल पर ईमान लाने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये हैं के बन्दे को अल्लाह से कुरबत और उसकी रहमत और उसके डर का अहसास होता हैं साथ ही अल्लाह को किस तरह जानना हैं और पूजना हैं इसका इल्म होता हैं|

4. आखिरत पर ईमान लाना

आखिरत का दिन कयामत का दिन हैं जिस दिन दुनिया खत्म कर दी जायेगी और शुरु दुनिया से लेअक्र कयामत तक पैदा होने वाले तमाम लोग दुबारा ज़िन्दा करके उठाये जायेगे| उसे आखिरत का दिन इसलिये कहा जाता हैं के क्योकि सिर्फ़ उसी दिन हर इन्सान के दुनिया मे किये गये अमल का हिसाब होगा और उसके अमल के मुताबिक उसे जहन्नम या जन्नत मे रहने को दिया जायेगा| आखिरत के दिन पर ईमान लाने से मुराद इस बात से हैं के हर इन्सान जान ले के एक दिन उसे अल्लाह के सामने पेश होना हैं और उसके दुनिया मे किये गये अमल-दखल का हिसाब देना होगा| लिहाज़ा हर इन्सान ये जान ले के उसे उसके किये के मुताबिक ही बदला दिया जायेगा जहन्नम या जन्नत के तौर पर लिहाज़ा हर इन्सान को चाहिये के दुनिया मे रहते हुए अल्लाह के हुक्म पर चले ताकि उसे आखिरत मे अच्छा सिला मिले| आखिरत पर ईमान रखने के साथ तमाम इन्सान को इस बात पर भी गौर करना हैं जिसका बिना यकीन के आखिरत का ईमान मुकम्मल नही हो सकता|

दुबारा कब्र से उठाये जाने पर ईमान – हर इन्सान जो कयामत होने से पहले दुनिया मे पैदा होगा उसे अल्लाह दुबारा ज़िन्दा करेगा| जब फ़रिश्ता सूर फ़ूकेगा और तब सारे लोग अल्लाह के सामने बिना कपड़ो के पेश होगे| सबसे पहले नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की कब्र फ़टेगी इसके बाद दूसरे लोगो कि|

बदला और हिसाब पर ईमान – हर इन्सान जो इस दुनिया मे भेजा गया उसका हर अमल जो दुनिया मे किया चाहे अच्छा या बुरा उसका हिसाब होगा और उसके अमाल के मुताबिक उसे जन्नत और जहन्नम मे जगह दी जायेगी| किसी पर भी ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म न होगा| इसके बाद जन्नती जन्नत मे जहन्नमी जहन्नम मे हमेशा हमेशा रहेगे फ़िर न किसी को मौत आयेगी न किसी को दुबारा दुनिया मे वापस आकर नेक काम करके अपनी आखिरत सवारने का मौका दिया जायेगा|

जन्नत और जहन्नम पर ईमान लाना – जन्नत और जहन्नम इन्सान का आखिरी ठिकाना हैं जिसे अल्लान ने अपने बन्दो के लिये तैयार किया हैं| जन्नत मोमिन और अल्लह से डरने वाले नेक बन्दो के लिये और जहन्नम काफ़िर और सरकश बन्दो के लियए जिन्होने अल्लाह के साथ शिर्क किया और हमेशा अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी करी| ये दोनो जगहे ऐसी हैं जिसे ना किसी इन्सान ने अभी तक देखा ना किसी इन्सान ने इसके बारे अभी तक अहसास किया| जन्नत मे लोग अपने दुनिया मे किये गये अमल के मुताबिक अलग-अलग दर्जो के हिसाब से जगह पायेगे|

अकसर लोग ये गुमान करते हैं के वो दुबारा कैसे ज़िन्दा किये जायेगे| इस बारे मे कुरान एक खुली चुनौती देता हैं उन इन्कार करने वालो के लिये जो दुबारा जी उठने पर यकीन नही करते| कुरान मे अल्लाह ने अलग-अलग कई जगहो इन्सान के दुबारा जी उठने के बारे मे बताया हैं ताकि इन्सान इस बात पर गौर फ़िक्र करले के इन्सान को जिस तरह अल्लाह ने अभी पैदा किया ठीक उसी तरह दुबारा पैदा करना अल्लाह के लिये कोई मुश्किल काम नही|

5. आसमानी किताब(अल्लाह की किताब) पर ईमान लाना

किताबो पर लाने से मतलब वो किताबे हैं जिसे अल्लाह ने अपने रसूलो को दिया ताकि वो अल्लाह के बन्दो को एक कानून के तहत जोड़ सके और उस किताब मे लिखे अल्लाह के कानून पर अमल कर अपनी ज़िन्दगी को अल्लाह के बताये तरीके पर गुज़ार सके जिससे बन्दे कि दुनिया और आखिरत संवर सके|

किताबो को उतारने का मकसद सिर्फ़ ये के इन्सान को जब भी कोई परेशानी हो या किसे मसले का हल तलाशना हो तो वो सीधे अल्लाह की तरफ़ रुजू करे और अपने मसले को हल करे न के अपने आप से ही बिना सोचे समझे किसी मसले पर खुद का मालिक बन के फ़ैसला करे| हकीकतन मालिक सिर्फ़ एक हैं और वो हैं अल्लाह लिहाज़ा बन्दो के तमाम ज़िन्दगी के आने वालो मसले का हल सिर्फ़ अल्लाह की किताब मे हैं| किताबो पर ईमान लाने से मतलब ये भी हैं के जो किताबे अल्लाह ने अपने रसूलो को दी हैं उन्हे अल्लाह की ही बात समझा जाये क्योकि अल्लाह ने खुद किताब नही लिखी बल्कि अपने रसूल को दी जिसके ज़रिये अल्लाह की बात एक से दूसरे इन्सान तक पहुची| इसलिये किताबो पर बिना चू-चरा के इस बात पर यकीन करना ईमान का हिस्सा हैं|

जिस तरह अल्लाह ने मुहमम्द सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को कुरान मजीद दी उसी तरह पिछली कौमो मे भी अपने रसूल के ज़रिये किताबे(शरियत या कानून) भेजी जैसे ईसा अलै0 को इंजील, मूसा अलै0 को तौरेत और दाऊद अलै0 को ज़बूर दी| आज ये किताबे अपनी असल हालत मे मौजूद नही और न ही इन किताबो की शरियत पर अमल करना हैं लेकिन फ़िर भी मुसलमान के लिये ये लाज़िम हैं बल्कि ईमान क एक हिस्सा हैं के इन किताबो पर ईमान लाये के ये अल्लाह की ही किताब हैं| इसके अलावा पिछली किताबे जैसे इंजील, तौरेत और ज़बूर इस बात की शहादत देती हैं के कुरान अल्लाह की आखिरी किताब हैं जो के मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम पर उतारी गयी और यही आखिरी शरियत हैं जिसे अल्लाह ने कयामत तक के लिये बाकि छोड़ा लिहाज़ा हर इन्सान चाहे वो किसी मुल्क का हो या किसी कौम का सबके लिये लाज़िम हैं के वो कुरान पर ईमान लाये और मुसलमान हो जाये|

पिछ्ली शरियत मे अल्लाह की किताबे आज अपनी असल हालत मे मौजूद नही न ही अब वो शरियत मक्बूल हैं इसमे सबसे अहम बात ये हैं के पिछ्ली किताबे किसी को याद नही लेकिन कुरान की खासियत ये हैं के अल्लाह ने इसे इतना आसान कर दिया के 1400 सालो से आज तक लातादाद ऐसे लोग गुज़रे जिन्होने कुरान को याद(हिफ़्ज़) किया उसके अलावा खुद अल्लाह ने कुरान की ज़िम्मेदारी ली के इसे कयामत तक कोई नही बदल पायेगा बल्कि कुरान खुद इस बात का खुला चैलेन्ज करती हैं| 1400 सालो से आज तक कुरान वैसा ही मौजूद हैं जैसा अल्लाह ने इसे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम पर उतारा था|

6. अच्छी बुरी तकदीर पर ईमान लाना

तकदीर पर ईमान लाने से मतलब ये के जो कुछ ह चुका या जो कुछ हो रहा हैं या जो कुछ होगा सब अल्लाह के इल्म मे हैं| अल्लाह ने हर इन्सान की तकदीर उसके पैदा होने से पहले लिख दी| क्योकि अल्लाह को हर चीज़ का इल्म हैं और कोई चीज़ उसके इल्म से बाहर नही| न कोई चीज़ उसकी मर्ज़ी के बिना हो सकती हैं न कोई अल्लाह की मर्ज़ी के बिना कुछ कर सकता हैं|

तकदीर पर ईमान लाना इन्सान को कल्बी सुकून व आराम देता हैं और न मिलने वाली चीज़े या न हो पाने वाले काम पर वो सब्र करता हैं और ये कहता हैं कि ये उसके रब की मर्ज़ी थी जबकि तकदीर पर ईमान न ला पाने के सबब इन्सान दुखी और परेशान रहता और और न मिलने वाली चीज़ो पर सब्र नही कर पाता| तकदीर पर ईमान लाना इन्सान के अन्दर बहादुरी और सब्र की ताकत पैदा करता हैं और बन्दा अपने आप को अपने रब यानि अल्लाह के हवाले कर देता हैं| तकदीर पर ईमान न लाने की ज़िन्दा मिसाल इन्सान का खुदकुशी करना हैं जो पशचमी देशो मे बहुत ज़्यादा हैं जहा गैर मुस्लिम कसरत से खुदकुशी करते हैं और इसका आकड़ा पूर्वी मुस्लिम देशो से बहुत ज़्यादा हैं|