Islam & Hindutva

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ISLAM AND HINDUTVA

इस्लाम और हिन्दुत्व

Islam–The Truth मनुष्य जाति की भलाई को समर्पित हैं| हमारा ये प्रयास दुनिया के उन तमाम लोगो के लिये हैं जो इस्लाम धर्म को जानना और समझना चाहते हैं| हमारा एकमात्र उद्देश्य हैं के सारे विश्व मे सुख-शान्ति हो तथा सब उस एक ईश्वर के आज्ञाकारी हो जिसने सारे ब्रह्माण्ड की रचना की| सब उसी के बताये रास्ते पर चले| अत: हम आपको सच्चे धर्म इस्लाम(शाश्वत धर्म) की दावत देते हैं और उस बात की तरफ़ बुलाते हैं जो हमारे और आपके बीच एक हैं|

“ला इलाहा इल्ल लल्लाह मुहम्मदुर्र रसूलल्लाह|” अल्लाह(ईश्वर) के सिवा कोई पूज्य प्रभू नही और मुहम्मद सं0 अल्लाह(ईश्वर) के संदेष्टा हैं|

“एकम ब्रहम द्वीतीय नास्तेः नहे ता नास्ते किंचन।” ईश्वर एक ही है दूसरा नहीं है, नही है, तनिक भी नहीं है।

ऐसी इन्साफ़ वाली बात की तरफ़ आओ जो हममे और तुममे बराबर हैं के हम अल्लाह(ईश्वर) के सिवा किसी की इबादत न करे न इसके समकक्ष किसी और को पूज्य प्रभू बनाये, न इसको छोड़कर आपस मे से किसी दूसरे को ही ईश्वर (समान) बनाये| बस अगर कोई(वो) मुंह फ़ेर ले तो तुम(मुहम्मद सं0) कह दो के गवाह रहो हम तो मुस्लिम(आज्ञाकारी) हैं| (कुरान सूरह अल इमरान सूरह नं0 3 आयत नं0 64)

पवित्र कुरान मे अल्लाह(ईश्वर) कहता हैं-

हमने हर जाति मे ईशदूत भेजा ताकि एकमात्र अल्लाह(ईश्वर) की स्तुति करो| (सूरह नहल सूरह नं0 16 आयत नं0 36)

ऊपर की पंक्तियो से ये स्पष्ट हैं कि अल्लाह(ईश्वर) ने मनुष्य जाति को पैदा करने के बाद यूं ही नही छोड़ दिया बल्कि समय-समय पर मनुष्य जाति के मार्गदर्शन के लिये ईशदूत भेजे और उसके ईशदूत मनुष्य जाति मे उनकी भलाई के लिये आते रहे और मनुष्य जाति ईश्वर के नियमो का पालन करती रही| परन्तु मनुष्य के निजि स्वार्थी होने के कारण कुछ समय पश्चात अज्ञानाता का मार्ग अपना लेते, तो अल्लाह(ईश्वर) उनकी तरफ़ दूसरा ईशदूत भेज देता| परन्तु फ़िर वही होता बल्कि स्वंय उस ईशदूत को इतना सम्मान दिया जाता के उसी की पूजा-पाठ शुरु हो जाती और उसे ही ईश्वर समझा जाता|

क्योकि अल्लाह (ईश्वर) स्रष्टि का रचयिता हैं और उसी का आदेश सम्पूर्ण ब्रह्ममाण्ड मे, बल्कि सम्पूर्ण मनुष्य जाति सब के लिये समान हैं तो अनिवार्य हैं के उसके आदेश का पालन सम्पूर्ण मनुष्य जाति के सभी वर्गो पर – धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक रूप मे सब पर मान्य हैं के सब उस पर चले| चूंकि स्वंय ईश्वर अपने दिव्य प्रकाश से मनुष्य जाति का मार्ग दर्शन कराता हैं और ये मार्ग दर्शन उसने अपने ग्रन्थो और ईशदूतो के माध्यम से कराया भी हैं| निर्विरोध रूप से ईश्वर एक हैं और उसी सत्य को मनुष्य अपनी जाति, भाषा और सभ्यता के अनुसार अलग-अलग नामो जैसे – भगवान, खुदा, अल्लाह, ईश्वर, गॉड आदि नामो से जानते हैं अत: ये असम्भव हैं के वो एक से ज़्यादा धर्म मनुष्य जाति को दे और इनमे बहुत से धर्म तो स्वंय मनुष्य जाति ने ही बनाये हैं जोकि निराधार हैं| उसने तो एक ही धर्म की स्थापना की थी जो शाशवत धर्म हैं और जिसकी अन्तिम वाणी कुरान हैं|

पवित्र कुरान मे अल्लाह(ईश्वर) कहता हैं-

उस ईश्वर ने तुम्हारे लिये वही धर्म नियुक्त किया हैं जो उसने नूह अलै0 (मनू ॠषि) पर अवतरित किया था और (ऐ मुहम्मद सं0) तुम पर अवतरित किया और वही इब्राहिम व मूसा पर यह कहते हुए उतारा की (इसी) धर्म को स्थापित करना तथा इसमे परस्पर टुकड़े-टुकड़े ना हो जाना| (सूरह शूरा सूरह नं0 42 आयत नं0 13)

तो इस एक सदा से चले आ रहे धर्म अर्थात सनातन धर्म का नाम कुरान ने अरबी भाषा मे “इस्लाम” बताया जिसको कुरान ने दूसरी जगह दीन ए कय्यूम अर्थात शाश्वत धर्म से परिभाषित किया हैं| मालूम हुआ कि सिर्फ़ भाषा का अन्तर हैं अन्यथा सत्यता एक ही हैं|

1. मतभेद क्यो हुआ?

2. एक से अधिक धर्म की अलग-अलग मान्यताए ऐसा क्यो?

इसका उत्तर केवल एक हैं वो ये के सबका अपने-अपने मान्य धर्म व धर्म ग्रन्थो से धर्म के असली रूप को ना समझ पाना|

कुरान के अवतरण को अभी मात्र 1400 और कुछ बरस ही हुए हैं और उसके मानने वालो मे बहुत से लोगो मे ये बिगाड़ पैदा हुआ की कुरान पढ़ते तो हैं परन्तु उसका अर्थ नही समझते और ना ही समझने की कोशिश करते हैं जिस से कुरीतीयो ने जन्म लिया जैसे गाना बजाना, कव्वाली, जुलूस, कब्रो पर मेला, मोहर्रम, पीरी मुरीदी इत्यादी| असल धर्म से इसका कोई सम्बन्ध नही हैं| हिन्दू सबसे पुरानी धार्मिक कौम हैं इसमे भी बिगाड़ आया| वह वेद तो पढ़ते होगे परन्तु उसका अर्थ नही समझते होगे और न समझने की कोशीश करते होगे जिसके कारण आज वेद हिन्दू धर्म की पवित्र पुस्तक तो हैं लेकिन इसे पढ़ने वाले न के बराबर हैं और ये आज घर-घर की शोभा बढ़ाने के योग्य रह गयी हैं जिसको सम्मान तो दिया जाता हैं परन्तु इसको पढ़ कर इसके अनुसार जीवन व्यतीत नही किया जाता| आज हजारो साल के बाद वेदो की ये स्तिथि हैं के करोड़ो हिन्दू संसार मे आते हैं और बिना वेद के दर्शन किये इस संसार से चले जाते हैं| जबकि प्रत्येक हिन्दू वेद को ईश्वर की सच्ची वाणी मानता हैं|

वास्तविकता ये हैं के एक ईश्वर के गुणनात्मक नामो को अलग-अलग देवी-देवताओ के नाम देकर विभिन्न प्रकार की आक्रतिया बनायी गयी और इनका व्यक्तिगत स्वरूप और स्वतन्त्र आस्तित्व मानकर इन्हे पूजना शुरु कर दिया| जबकि वेद स्वंय कहता हैं-

इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निअमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान| एकं सदिप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु|| (ॠग्वेद 1:164:46)
इश्वर को ही इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, यम और मातरिश्वा कहते हैं| वही दिव्य सुन्दर और गरुत्मान हैं| उस एक सत्य को ही विद्वानजन अनेक नामो से पुकारते हैं|

मालूम हुआ के ईशवर तो एक ही हैं| परन्तु उसके गुणो के अनुसार उसके नाम कई हैं| परन्तु मूर्ख लोग उसके गुणो के अनुसार उस ईश्वर के गुण को ही वास्तविक ईश्वर समझकर अलग-अलग नाम रख कर एकेश्वरवाद की जगह बहुदेववाद के पग पर चल पड़े| यकिनन पहले की पुस्तको मे उसके मानने वालो ने बहुत कुछ बदल डाला जिस कारण उन पुस्तको मे बहुत विरोधाभास पाया जाता हैं|(इसकी समस्त जानकारी के लिये हमारी दी हुई पुस्तको का अध्यन करे) परन्तु पूरी तरह किसी भी ईश्वरीय पुस्तको नही बदला जा सका और हर पुस्तक मे अब भी कुछ न कुछ अंश ईश्वरीय वाणी के मौजूद हैं| इसी प्रकार वेद मे भी एक ईश्वर की तथा एकेश्वरवाद की झलक पाई जाती हैं|

य एक इत्तमुष्टुहि| (ॠग्वेद 6:45:16) अर्थात जो एक ही हैं| उसी की स्तुति करो|
मा चिद्न्यत विशंसत| (ॠग्वेद 8:1:1) अर्थात (उसके अतिरिक्त)किसी अन्य की उपासना ना करो|
एक एव नमस्यो विक्ष्वीडय: | (अथर्ववेद 2:2:1) अर्थात एक(ईश्वर) ही पूजा के योग्य और सभी प्रजाओ मे स्तुति योग्य हैं|

अत: वेद एक ईशवर की उपासना का ही समर्थन करते हैं| इसके साथ ही मूर्ति पूजा का सख्ती से खण्डन करते हैं-

ना तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महधश:| (यजुर्वेद 32:3) अर्थात उसकी कोई प्रतिमा नही हैं| उसका नाम ही अत्यन्त यश वाला हैं|
स पय्य्रगाच्छुक्रमकायम्व्रणम| (यजुर्वेद 40:7) अर्थात वह सर्वव्यापी हैं| सर्व शक्तिमान हैं| अकाय अर्थात शरीर रहीत हैं और छिद्ररहित हैं|

अन्धन्तम: प्रविशन्ति येSसम्भूतिमुपासते| ततो भूयSइव ते तमो यSउ सम्भूत्यां रता:|| (यजुर्वेद 40:9)
अर्थात जो असम्भूति अर्थात प्रक्रति रूप (अग्नि, मिटटी, वायु आदि) की उपासना करते हैं वे अंधकार मे प्रविष्ट होते हैं| जो सम्भूति अर्थात स्रष्टि रूप(पेड़, पौधे, मूर्तिया आदि) मे रमण करते हैं वे उससे भी अधिक अंधकार को प्राप्त होते हैं|

वेदो के अलावा उपनिषद मे भी साकार या प्रतीक उपासना का उल्लेख नही हैं| पुराणो मे हैं-
न काष्ठे विधते देवा न पाषाणे न म्रणमये| भावे हि विधते देवस्तस्माद भावो हि कारणम|| (गरुण पुराण – धर्मकाण्ड – प्रेतखण्ड 38:13)
वह देव ना तो लकड़ी मे, न पत्थर मे, ना मिट्टी मे हैं| वे तो भाव मे विधमान हैं| जहा भाव करे वहा ही ईशवर सिद्ध होता हैं|

इसी प्रकार महाभारत/गीता मे देखे-
अवजानन्ति मां मूढ़ा मानुषी तनुमाश्रितम| परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम|| (महाभारत 6:31:11) (गीता 9:11)
मेरे परम भावो को न जानने वाले मूर्ख लोग मुझे प्राणियो मे महान ईश्वर को मनुष्य शरीरधारी समझकर मेरा अपमान करते हैं|

इसके अलावा अगर कही पुराण, महाभारत आदि मे प्रतिक पूजा की पुष्टि हैं तो मानना पड़ेगा की इनमे मिलावट हैं|

अवतारवाद
अवतारवाद की धारणा हिन्दू धर्म मे कल्पना मात्र हैं वास्तविकता से इसका कोई सम्बन्ध नही हैं इशवाणी कहलाने वाले वेद इसको मान्यता देते हैं| बल्कि वेद कहता हैं की ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं| धर्म की स्थापना के लिये मनुष्य रूप धारण करने की कोई आवश्यकता नही हैं जैसा ऊपर गुज़री| बल्कि वेद तो ये कहता हैं वह किसी के अधीन नही रहता सब उसके अधीन रहते हैं-

विश्वस्य मिषतो वशी| (ॠग्वेद 10:190:2) अर्थात वह विश्व के सभी प्राणियो को वश मे रखता हैं|

वेद कहता हैं उसकी म्रृत्यु की कल्पना तक ना करो-

भूयानिन्द्रो नमुराद भूयानिन्द्रसि म्रृत्युभ्य:| (अथर्ववेद 13:4:46) अर्थात वह ईश्वर श्रेष्ठ हैं कि उसकी मौत आये|

जब हम ईशवर को अवतार के रूप मे मानते हैं तो वह जन्म भी लेता हैं उसका शरीर भी होता हैं सुख दुख भी भोगता हैं और अन्त मे मरता भी हैं| ईश्वर के बारे मे ऐसी धारणा रखना वेदो के नियम के अनुकूल नही हैं| बल्कि जिनको हम ईश्वर का अवतार मानते हैं जैसे राम, क्रष्ण इत्यादि उनका जन्म और मरण सर्वविदित हैं| अत: वे निश्चित ही ईश्वर के अवतार नही हो सकते हैं बल्कि उन्हें महापुरुष एवमं आदर्श पुरुष कि संज्ञा अवश्य दी जा सकती हैं| इसके बहुत से उदाहरण हैं-

अग्निम दूतम व्रणीमहे| (ॠग्वेद 1:12:1) अर्थात हम अग्नि को दूत चुनते हैं|

ईशदूत तो बहुत से आये परन्तु सभी ने एक अन्तिम ईशदूत के आने की बात कही जो सबसे उत्तम एवम प्रलय के दिन तक के लिये मान्य होगा| विश्व के तमाम लोगो ने इस अन्तिम ईशदूत को मुहम्मद सं0 ही बताया और वेद पुराण आदि पुस्तके भी मुहम्मद सं0 को ही अन्तिम ईशदूत बताती हैं|

अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि ध्त्ता| इल्लल्ले वरुणो राजा पुन्रदुर्द:| हयामित्रो इल्लां इल्लल्ले इल्लां वरूणे ज्येष्ठ परम ब्रह्म्ण अल्लाम| मित्रस्तेजस्काम: (1) होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्रा: अल्लो ज्येष्ठ परमं ब्रहमणं अल्लाम(2) अल्लो रसूल महामद रकाबस्य अल्लो अल्लाम: (3) (अल्लोपनिषद1,2,3)

उस देवता का नाम अल्लाह हैं वह एक हैं मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषता हैं| वास्तव मे अला वरुण हैं, जो तमाम स्रष्टि का सम्राट हैं| मित्रो, उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो| वह वरुण हैं और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगो का कार्य संवारता हैं| वह इन्द्र हैं, श्रेष्ठ इन्द्र| अल्लाह सबसे बेहतर हैं| सबसे ज़्यादा पूर्ण सबसे ज़्यादा पवित्र मुहम्मद सं0 अल्लाह के श्रेष्ठ रसूल हैं|

गीता प्रेस(गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के अधिकतर प्रामाणिक प्रकाशन के रूप मे मान्य हैं| यहा से प्रकाशित ‘कल्याण’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यन्त प्रमाणिक माने जाते हैं| इसकी विशेष प्रस्तुति ‘उपनिषद अंक’ मे 220 उपनिषद की सूची दी गयी हैं जिसमे अलोपनिषद का उल्लेख 15 नम्बर पर किया गया हैं| (देखिये वैदिक साहित्य एक विवेचना, डा0 एम0 ए0 श्रीवास्तव, प्रदीप प्रकाशन संस्करण 1989 पेज 101)

भक्तिकाल के कवियो का गुणगान
हिन्दी कवियो तथा देश विदेश के तमाम नामवर लोगो ने मुहम्मद सं0 ही अन्तिम ॠषि माना तथा गुणगान किया हैं| सबसे भाव और शलोक यहां नही लिखे जा सकते किन्तु कुछ के दिये जा रहे हैं| वेदव्यास जी ने 18 पुराणो मे से एक पुराण मे काकभशुण्ड जी और गरुण जी की बातचीत संस्कृत मे लेखबद्ध किया हैं जिसे तुलसीदास जी ने हिन्दी मे अनुवाद किया हैं-

देश अरब भरत लला सो होई| सोथल भूमि गत सूनो धधराई||
अर्थात अरब भू-भाग जो भारत लला अर्थात शुक्र ग्रह की तरह चमक रहा हैं उसी भूमि मे वह उत्पन्न होगे|

तबलक जो सुन्दरम चहे कोई| बिना मुहम्मद सं0 पार ना कोई||
अर्थात यदि कोई कामयाब होना चाहता हैं तो मुहम्मद सं0 को स्वीकार करे अन्यथा कोई बेड़ा उनके बिना पार न होगा|

पंडित धर्मवीर उपाध्याय ने अपनी पुस्तक अन्तिम ईश्वर दूत मे लिखा हैं जिसका वर्णन तुलसीदास जी ने सन्ग्राम पुराण मे अपने अनुवाद मे किया-

तब तक सुन्दर माददिकोया| बिना महामद पार ना होय|| (सन्ग्राम पुराण स्कन्द 12 काण्ड 6)

बहुत सारे सन्तो एव कवियो एवम इतिहासकारो तथा वैज्ञानिको ने तर्क दिया कि मुहम्मद सं0 अन्तिम ॠषि हैं आप खुद उनकी पुस्तके पढ़ सकते हैं-

1. चन्द्रप्रकाश जौहर बिजनौरी 2. जगन्नाथ प्रसाद 3. योगेन्द्र पाल साबिर, 4. पंडित देवी प्रसाद, 5. पंडित हरिचन्द्र अखतर, 6. त्रिलोक चन्द्र महरुम, 7. लक्ष्मी नारायण श्रीवास्तव, 8. मुन्शी शन्कर लाल साकी, 9. महाराजा सर किशन प्रसाद, 10. कबीर दास, 11. सन्त प्राणनाथ, 12. तुलसीदास, 13. चौधरी दल्लू राम कौसरी 14. धर्मवीर उपाध्याय, 15. वेद व्यास, 16. मंझन मधुमालती, 17. गुरु नानक, 18. महात्मा गांधी, 19. डी0 डब्ल्यू लाइट्ज़, 20. आर डब्ल्यू स्टूअर्ट, 21. लुमार्टिन, 22. गिबन, 23. जी0 हिगिन्स, 24. स्टेनले लेनपूल, 25. डा0 गेस्टोव लीवान, 26. जान डेविन पोर्ट

अत: इस्लाम(शाश्वत) जो के ईश्वरीय धर्म हैं| जिसकी पुष्टि विश्व के प्रसिद्ध लोगो ने की और जिसमे असत्यता का अंश भी नही, ये धर्म सम्पूर्ण मनुष्य जाति के लिये हैं|