सूद की तबाह्कारिया
दुनिया की तड़क-भड़क, दौलत की लालच ने और बेबुनियाद ज़िन्दगी जैसे – टीवी, म्यूज़िक, गाना बजाना फ़हश लिट्रेचर से दिल्चस्पी ने मुसलमान को आज दीन ए इस्लाम से इतना बेगाना कर दिया के उसे इस बात कि फ़िक्र ही न रही जिस दीन के नाम से उसकी पहचान हैं वो क्या हैं बल्कि दुनिया की मोहब्बत ने उसे एक जाहिल, काहिल, बेहकीकत और निकम्मी कौम बना दिया हैं| इसका फ़ायदा उठाते हुए मुखालिफ़ीन इस्लाम ने अपनी खबासत, मक्कारी और फ़रेब के ज़रिये आलमे दुनिया के सामने सही को गलत और गलत को सही बताते हुए इसे ऐसे पेश किया के आज दूसरी कौम के साथ-साथ मुसलमान वो तमाम हराम काम कर फ़ख्र महसूस करता हैं जिसे शरीयत इस्लामिया ने हराम करार दिया जैसे शराब, सूद, औरतो का बेपर्दा होना वगैराह| सूद एक ऐसी लानत हैं जिसके बारे मे अल्लाह ने सूद लेने वालो को खुली धमकी देते हुए कुरान मे फ़रमाया के अगर वो ऐसा करते हैं तो अल्लाह से ऐलान ए जंग के लिये तैयार हो जाये| सूद के बारे मे अल्लाह के रसूल जनाब मुहम्मद रसूलल्लाह ने फ़रमाया के सूद खाने वाले को ऐसा बताया के जो अपनी मां से 70 बार ज़िना(बलात्कार) करें| आऊज़ोबिल्लाह
अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं– जो लोग सूद खाते हैं वो लोग कभी खड़े होगें मगर इसी तरह जिस वो खड़ा होता हैं जिसे शैतान ने छू कर पागल बना दिया हो| ये इसलिये के ये कहा करते थे के तिजारत भी तो सूद ही की तरह हैं, हांलाकि अल्लाह ने तिजारत को हलाल किया और सूद को हराम किया| जो शख्स अपने पास अल्लाह की आई हुई नसीहत सुन कर रुक गया इसके लिये वो हैं जो गुज़रा और इस का मामला अल्लाह की तरफ़ हैं, और जो फ़िर दोबारा (हराम) की तरफ़ लौटा वो जहन्नमी हैं, ऐसे लोग हमेशा इसमे रहेंगे| अल्लाह सूद को मिटाता हैं और सदका को बढ़ाता हैं और अल्लाह किसी नाशुक्रे और गुनाह्गार से मोहब्बत नही करता|( सूरह अल बकरा 2/275, 276)
ऐ ईमानवालो अल्लाह से डरो और जो सूद बाकी रह गया हैं वो छोड़ दो अगर तुम सचमुच ईमानवाले हो| और अगर तुम ऐसा नही करते तो अल्लाह और रसूल से लड़ने के लिये तैयार हो जाओ हां अगर तौबा कर लो तो तुम्हारा असल माल तुम्हारा हैं न तुम ज़ुल्म करो न तुम पर ज़ुल्म किया जाये| (सूरह अल बकरा 2/278, 279)
ये वो कलाम हैं जो कयामत तक बाकि रहेगा हर उसके लिये जो सूद लेता और देता हो या किसी और तरह से सूद के मामले मे मुलव्विश हो| सूद एक ऐसा निज़ाम वजूद मे लाता हैं जो इंसानियत को तबाह कर देता हैं| चंद सूदखोरो की वजह से पूरा मुल्क, पूरी कौम और बेशुमार लोगो की ज़िन्दगी तबाह हो जाति हैं, ये इन्हें इख्लाकी, नफ़्सयाती तौर पर कमज़ोर कर देता हैं| सूद का असल फ़ायदा चन्द मुठठी भर लोग उठाते हैं जो इख्लाक के लिहाज़ से बदतरीन इन्सान होते हैं इनके इस अमल क असर आम इन्सानो पर होता हैं जिनकी मेहनत का फ़ल और खून पसीने की कमाई बिना खून पसीना बहाये इन बदतरीन इन्सानो के खज़ाने मे सूद की शक्ल मे जमा होती हैं जो तादाद मे थोड़े होते हैं| इस तरह ये लोग दौलत के मुल्क बनते है बल्कि दूसरे मुल्को का कारोबारी निज़ाम भी इनके हाथो मे होते हैं क्योकि ना ये अल्लाह से डरते हैं न ईमान रखते है न किसी इख्लाक के पांबद होते हैं इसलिये सूद के जमा माल की कूवत पर ये और सूदी मुनाफ़ो मे तब्दील करते रहते हैं और अपने इसी हराम माल को दूसरे गंदे कामो और नापाक मंसूबो पर खर्च करते हैं
ये सूदखोर जो पहले अपना कारोबार चंद इन्सानो के साथ मिल कर चलाते थे आज बैंको और दूसरी अलग किस्म की शक्ल मे सारी दुनिया मे फ़ैंले हैं इन्हे किसी भी मुल्क मे वो सारे इख्तयार हासिल हैं जिसकी बिना पर ये पूरे मुल्क मे मौजूद अखबारात, मैगज़ीन, मीडिया, स्कूल, सिनेमा सब पर काबिज़ हैं| जिसपे ये सूद के कारोबार को इतना आसान करके बताते हैं हैं के आम इन्सान इससे मुतास्सिर हुए बिना नही रह पाता| इन अखबारात, मैगज़ीन, मीडिया के ज़रिये ये सूद को इतना आसान और इन्सान का फ़ितरी तकाज़ा बताते हैं और यकीन दिलाते रहते हैं के सूद का फ़ितरी निज़ाम सिर्फ़ इन्सान को फ़ायदा पहुँचने के लिये हैं जो इन्सानी तरक्की की सही बुनियाद हैं| जिसकी बिना पर मगरीबी तहज़ीब तरक्की पर हैं लिहाज़ा हर इन्सान के लिये इसमे फ़ायदा हैं|
आज दुनिया के तमाम दौलत के मालिक हकीकतन सिर्फ़ चंद हज़ार लोग ही हैं| इनके अलावा वो तमाम लोग जो ताजिर, फ़ैकटरी के मालिक, दस्तकार मुलाज़िम, और आम आवाम जो सूद पर सामान खरीदते हैं सिवाये मजदूर के कुछ नही जिनके मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा इन सूद्खोर दौलतमंदो को सूद अदा करने मे चला जाता हैं|
सूद के निज़ाम की यही एक खराबी नही हैं बल्कि सूदी करोबार को करने वाले(ताजिर और फ़ैकट्रिया) के दौरान जुएबाज़ी का ताल्लुक भी होता हैं जिसके सबब कभी करोबारी माल को रोक दिया जाता हैं जिसके सबब आवाम मे किल्लत के सबब माल अपनी असल कीमत से कई गुना ज़्यादा कीमत पर बाज़ार मे बिकता हैं जिसकी कीमत आम आवाम की ही जेब से जाती हैं और इन सूद्खोरो के खज़ाने मे दौलत का इज़ाफ़ा होता हैं| इसकी मौजूदा मिसाल खाना बनाने मे इस्तेमाल होने वाली आम गैस या दूसरी इन्सानो की ज़रुरीयात की चीज़ो से लिया जा सकता जिनकी कीमत कुछ अर्से मे कयी गुना ज़्यादा बढ़ गयी हैं| इस जुयेबाज़ी के तहत अकसर इन्सानी ज़रुरीयात को बनाने वाली फ़ैक्ट्री जो सूद लेकर अपनी फ़ैक्ट्री को चलाती हैं अकसर क्वालीटी के लिहाज़ से माल को सही नही बनाती लेकिन उसकी कीमत को उतना ही रखती हैं या बढ़ा देती हैं क्योकि फ़ैक्ट्री चलाने के लिये उसने जो रकम सूद पर ली थी उसे सूद के साथ लौटाना होता हैं| इस जुएबाज़ी के तहत फ़र्क सिर्फ़ आम जिन्दगी पर पड़ता हैं| दूसरे लफ़्ज़ो मे इन फ़ैक्ट्री के ज़रिये लिय गया सूद पर कर्ज़ आम आवाम को अदा करना पड़ता हैं और इस तरह आवाम का हर अफ़राद इस सूद की ज़द मे आ जाता हैं|
सूदी निज़ाम चलाने वाले बैंक और दूसरी कंपनी का मालिकान अपने दफ़तरो मे बैठकर रोज़ाना नयी स्कीमे बनाते हैं की उनका सूदी कारोबार किस तरह आवाम के बीच सरगर्म रहे और इस सरगर्मी को रोज़ नयी स्कीमो की शक्ल मे टीवी, मैगज़ीन और मीडीया के अलग-अलग तरीको के ज़रीये आवाम मे पहुँचाते हैं जिसके लिये बाकायदा सर्वे होते हैं और इसके मुलाज़िम भी मुन्तखिब होते हैं जो आवाम को अलग-अलग तरिको से ये बताते हैं के किस तरह उनके सूदी निज़ाम से जुड़कर वो ज़िन्दगी भर फ़ायदा उठायेगें| आज बच्चे की पैदाईश से लेकर(उसकी पढ़ाई, शादी, नौकरी, कारोबार) उसके मरने तक के सारे इन्तेज़ाम सूदी स्कीमो के तहत किये जाते हैं जिसे आम आवाम अपना फ़ायदा समझ कर उससे जुड़ जाती हैं| अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया-
सूद का एक दरहम जिस आदमी ने जानते हुए खा लिया तो अल्लाह के नज़दीक ये 36 बार ज़िना से ज़्यादा सख्त हैं| (अहमद व तिबरानी)
हज़रत अबदुल्लाह बिन मसूद से रिवायत हैं के नबी सल्ललाहो अलेहे व सल्लम ने फ़रमाया – सूद की 73 किस्मे हैं, इसमे सबसे मामूली वो हैं जैसे कोई अपनी मां से हरामकारी करें और सबसे बड़ी वो हैं जैसे मुसलमान आदमी की आबरूरेज़ी करे| (मुसतदरक हकीम)
सूदखोर सिर्फ़ वो नही जो सूद लेता या देता हैं बल्कि इसमे पूरी सोसाईटी शामिल हैं|
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत है के नबी सल्ललाहो अलेहे व सल्लम ने फ़रमाया – सूद खाने वाले, खिलाने वाले, लिखने वाले, और गवाही देने वाले पर लानत भेजी और फ़रमाया ये सभी बराबर हैं| (मुस्लिम व अबू दाऊद)
जब सूरत ये हो के पूरा मआशरा सूदी निज़ाम पर खड़ा हो तो इस के तमाम अफ़राद खुदा की लानत के शिकार और रहमते खुदावन्दी से धुत्कारे हुए होते हैं| इन के हालात ऐसे होते हैं जैसे इन्हें शैतान छू गया हो इन्हें किसी पहलू करार नही मिलता और ना ही राहत व इतमीनान|
आज जिस दुनिया मे हम जी रहे हैं वो भले ही तरक्की और सहूलियत के लिहाज़ से भले ही बहुत आगे हो मगर ये बेचैनी और खौफ़ की दुनिया हैं, जंग और जदल की दुनिया हैं, लूटमार और डकैती की दुनिया हैं और मुसलसल हंगामो की दुनिया हैं| जहा दिल मुतमईन नही| ये वो बदबख्ती हैं जिसे आज मौजूदा ज़रूरते खुशहाली और आसानी तो पैदा कर सकती मगर दिल का सुकून और इत्मीनान नही मिल सकता| तो फ़िर खुशहाली की क्या कीमत रह जाती हैं| जैसा के अल्लाह ने फ़रमाया – जो लोग सूद खाते हैं वो इस तरह हैं जिसे शैतान ने छू कर पागल कर दिया हो| (सूरह अल बकरा 2/275)
लिहाज़ा आज हर इन्सान मे बेचैनी और लाइत्मीनानी आज देखी जा सकती हैं के आज दुनिया भर की ज़रुरीयात मुहैया होने के बावजूद भी इन्सान ज़हनी तौर पर मुतमयीन नही हैं|
नबी सल्ललाहो अलेहे व सल्लम के ज़माने मे सूदी कारोबार करने वालो का ऐतराज़ था के आखिर क्यो सूद को हराम और तिजारत को हलाल ठहराया गया| जबकि दोनो ही कारोबार की तरह हैं|
इनके ऐतराज़ कि बुनियाद जिस शुबहा पर थी वो ये के जिस तरह तिजारत से फ़ायदा होता हैं इसी तरह सूद से भी फ़ायदा होता हैं मगर ये एक लगवी शुबहा था, क्योकि तिजारत मे फ़ायदा और नुकसान दोनो होते हैं इसके उल्टे सूद मे सिर्फ़ और सिर्फ़ फ़ायदा होता हैं नुकसान नही और यही वो असल वजह थी जो सूद को हराम और तिजारत को हलाल करती थी और फ़र्क साफ़ तौर पर ब्यान करती थी|
इसी के सबब अल्लाह ने हुक्म दिया के “और अल्लाह ने तिजारत को हलाल और सूद को हराम किया हैं|” क्योकि माल से माल पैदा हो सकता बल्कि आदमी की मेहनत और अमल इज़ाफ़ा का सबब बनती हैं जबकि माल दरअसल अल्लाह का हैं और अल्लाह जिसे माल का मालिक बनाता हैं इसका फ़र्ज़ हैं की इससे फ़ायदा उठाये| लिहाज़ा अगर मआशरे से किसी फ़र्द को अगर कुछ माल की ज़रूरत हो जिससे वो अपनी किसी ज़रूरत को पूरा करना चाहे इस माल के मालिक पर वाजिब हो जाता हैं के इस्लामी निज़ाम पर अमल करते हुए बिना सूदी कर्ज़ के उस ज़रूरत मंद को दे दे| लेन-देन की हर वो सूरत जिसमे फ़ायदे की गारंटी और नुकसान का कोई खतरा ना हो इस्लामी हदबंदी के तहत हराम हैं| अल्लाह फ़रमाता हैं- ऐ ईमानवालो अल्लाह से डरो और जो सूद बाकी रह गया हैं वो छोड़ दो अगर तुम सचमुच ईमानवाले हो| और अगर तुम ऐसा नही करते तो अल्लाह और रसूल से लड़ने के लिये तैयार हो जाओ हां अगर तौबा कर लो तो तुम्हारा असल माल तुम्हारा हैं न तुम ज़ुल्म करो न तुम पर ज़ुल्म किया जाये| (सूरह अल बकरा 2/278, 279)
ये वारानिंग उस इन्सान के लिये हैं जो एह्काम ए इलाही सुनने के बाद भी सूदी करोबार करें|
अल्लाह सूद को मिटाता हैं और सदके को बढ़ाता हैं| और अल्लाह किसी नाशुक्रे और गुनाहगार से मोहब्बत नही करता| (सूरह अल बकरा 2/276)
आज हम अपनी आंखों से देख रहे हैं के जिस समाज मे सूदी लेन-देन होता हैं इसमे बरकत और राहत बाकी नही रहती क्योकि खुदा सूद को मिटा देता हैं| ज़ाहिरी तौर पर आंख पैदावार मे इज़ाफ़ा और ज़रिये आमदनी मे ज़्यादती तो देखती हैं लेकिन बरकत वसायल की ज़्यादती के बावजूद भी नही दिखाई देती जितनी इन वसायल से होनी चाहिए|
यही वजह हैं के तमाम इन्सानियत आज बेचैन नज़र आति हैं और इसे खौफ़ ने घेर रखा हैं| हर इन्सान अन्दर से बेकरार हैं और बज़ाहिर उकताह्ट महसूस करता हैंऔर अपनी इस उकताहट को कभी आवारगी के ज़रिये, कभी शराब के ज़रिये, कभी ज़िनाकारी के ज़रिये, कभी जुए के ज़रिये, कभी हमजिंसी के ज़रिये दूर करने की कोशिश कर रहा हैं यही नही कभी अपने आप से अपने समाज से भाग कर सुकून चाहता हैं कभी खुद्कुशी के ज़रिये|
इस्लाम सिर्फ़ कल्मा तैयबा के पढ़ने का नाम नही बल्कि ये एक निज़ाम ए हयात और तरीका अमल हैं| इस के किसी हिस्से का इनकार अल्लाह का इनकार हैं| सूद की हुरमत मे कुछ शुबहा नही, इसे हलाल समझना और ज़िन्दगी को इसकी बुनियाद पर कायम करना कुफ़्र हैं इसके सिवा कुछ नही|
सूदखोर आराम से अपनी कुर्सी पर बैठा होता हैं और इनके ज़ेरे एहतमाम पुलिस, कानून और अदालते इनकी खिदमत गुज़ारी करती हैं ताकि अगर सूद देने वाला अगर सूद देने से कतराये तो इसे गिरफ़तार करके जेल की सलाखो के पीछे डाल दिया जाये| अल्लाह फ़रमाता हैं-
ऐ ईमानवालो अल्लाह से डरो और जो सूद बाकी रह गया हैं वो छोड़ दो अगर तुम सचमुच ईमानवाले हो| और अगर तुम ऐसा नही करते तो अल्लाह और रसूल से लड़ने के लिये तैयार हो जाओ हां अगर तौबा कर लो तो तुम्हारा असल माल तुम्हारा हैं न तुम ज़ुल्म करो न तुम पर ज़ुल्म किया जाये| (सूरह अल बकरा 2/278, 279)
कोई शख्स इस वक्त तक सच्चा मुसल्मान नही हो सकता जब तक के इस के दिल मे खौफ़ ए इलाही की शमा रौशन न हो जाये और वो सूद को छोड़ न दे|अगर ऐसा नही करता तो वो मुसल्मान नही हैं चाहे वो अपने मुसल्मान होने का कितना भी दावा करें क्योकि एहकाम इलाही पे बिना अमल किये सच्चा ईमान हासिल नही किया जा सकता|
और अगर तुम ऐसा नही करते तो अल्लाह और रसूल से लड़ने के लिये तैयार हो जाओ| (सूरह अल बकरा 2/278)
अल्लाह और इसके रसूल से जंग्…… ऐसी जंग जिस का सामना इंसानियत आज कर रही हैं और ये जंग आज अपने पूरे ज़ोर पर हैं| ये जंग हैं बरकत और खुशहाली की, इतमिनान और सुकून की| ये ऐसी जंग हैं जिसमे अल्लाह सरकशो और अपने कानून के नाफ़रमानो को एक दूसरे पर मुसल्लत कर देता हैं| जिसमे हर मुल्क एक दूसरे को तबाह और उस पर हुकुमत करने पर, उसे बरबाद कर देने और उसे लूटने मे भी गुरेज़ नही करता| इन जंगो को ईंधन फ़राहम करने वाले सूदखोर हैं जो बिला वास्ते मुल्को के हुकुमरानो को कठपुतली की तरह नचाते हैं जिसके सबब ये सूद खोर इन्हे जंगी मदद के लिये रकम फ़राहम करते हैं और इन सूदखोरो के ज़ेरे नज़र मुल्क की कंपनीया, बैंक, मीडिया होते हैं जो इन्हे सूद देते हैं| ये अल्लाह की इन सूद लेने-देने वालो के खिलाफ़ ऐसी जंग हैं जो आज भी जारी हैं| जो इन्सानी दिमाग से परे हैं|
इस्लाम की फ़राख दिली
और अगर कोई तन्गी वाला हो तो इसे आसानी तक मोहलत देनी चाहिए और सदका करो तो तुम्हारे लिये बहुत ही बेहतर हैं अगर तुम मे इल्म हो| (सूरह अल बकरा 2/280)
इस्लाम मे तन्गदस्त इन्सान कर्ज़ा लेने वाले की तरफ़ से धुत्कार नही सुनता और न इसे कानून और अदालतो की फ़टकार सहनी पड़ती हैं जैसा के आज के सेकुलर निज़ाम मे होता हैं बल्कि कर्ज़दार को तन्गदस्ती दूर होने तक की मोहलत दी जाती हैं न के इसे इसलामी निज़ाम इसे कर्ज़ के बोझ मे दबा हुआ छोड़ दें बल्कि अल्लाह कर्ज़ देने वाले को इस बात का मुतालबा करता हैं कि वो इस उधार की रकम को सदका समझ कर छोड़ दें और कर्ज़ देने वाले और लेने वाले दोनो के लिये बेहतर हैं| क्योकि तमाम चीज़ो का मालिक अल्लाह ही हैं वो जिसे चाहता हैं देता हैं जिसे चाहता है तन्ग करता हैं| बल्कि इन्सान की पैदाईश से लेकर उस के मरने तक का सारा मामला सिर्फ़ अल्लाह के सुपुर्द हैं लिहाज़ा कोई अमीर इन्सान अपनी दौलत पर ये मत सोचे के ये उसकी ज़ाती हैं बल्कि ये तमाम चीज़े उसे अल्लाह की तरफ़ से मुहय्या की गयी हैं| अल्लाह ने मालदारो को इस बात पर आमादा किया के वो अपने मोहताज और ज़रूरतमन्द भाईयो के साथ ऐसा ताल्लुक पैदा करे किसी इन्सान मे कोई फ़र्क बाकी न रहे क्योकि तमाम इन्सान एक ही जिस्म के मुख्तलिफ़ हिस्से हैं और जब एक हिस्से को तकलीफ़ होती हैं जिस्म के दूसरे हिस्से इस तकलीफ़ से मुतास्सिर होता हैं| अल्लाह फ़रमाता हैं- और इस माल मे से खर्च करो जिसमे तुम्हे जांनशीन बनाया| (सूरह अल हदीद 57/7)
अल्लाह ने लोगो को अपने माल मे जांनशीन इसलिये बनाया ताकि इस मे अल्लाह के हुक्म के मुताबिक ज़रूरतमंदो की मदद की जाये| ताकि लोगो के दरम्यान मोहब्बत और उलफ़त कायम हो न के खलफ़शार हो| अल्लाह फ़रमाता हैं- जो अल्लाह की राह मे छुपा के और ऐलानिया खर्च करते हैं वो ऐसी तिजारत की उम्मीद रखते हैं जो कभी नुकसान मे ना होगा| (सूरह फ़ातिर 35/29)
अल्लाह का वादा सच्चा हैं और इस बात का ज़ामिन हैं के अल्लाह की राह मे खर्च की हुई दौलत के बदले अल्लाह उसे कई गुना बढ़ा कर अपने खर्च करने वाले बन्दे को अता करता हैं लिहाज़ा खर्च करने वाले को कोई नुकसान नही| ये अल्लाह का वादा हैं ताकि लोग समझे और अल्लाह की राह मे दिल खोल कर खर्च करे और कोई कोताही न करें| अल्लाह ने माल को ज़ाया करने और बिला वजह खर्च करने से मना किया ना ही इसकी तरगीब दी| बल्कि माल को छुपे और ज़ाहिर तौर पर गरीबो और ज़रूरतमंदो की मदद करने को बताया|
अल्लाह ही ने इस ज़िन्दगी को पैदा किया हैं और इसी ने इन्सानो को तरक्की और बुलन्दी अता करी और वही सारे मामलात को चलाता हैं| ये सिर्फ़ एक गलतफ़हमी हैं और सदीयो से चली आ रही हैं के सूद से इन्सान को भलाई मिलती हैं और उसकी कुछ कीमत अदा करके इन्सान फ़ायदा उठाता हैं और इस निज़ाम को एक फ़ितरी और इन्सान की ज़रूरत समझा जा रहा हैं| ये एक फ़रेब हैं जो आज हर चीज़ की खरीद फ़रोख्त, पढ़ाई-लिखाई, शादी-ब्याह से जोड़ दिया गया हैं और हर इन्सान इसकी ज़द मे हैं और इस जाल मे इस तरह उलझा हैं के निकलना मुश्किल हैं| लिहाज़ा सूद की इस हुरमत कुरान और हदीस से साबित होने के बाद हर इन्सान को चाहिये की इससे बचे ना की इसमे अपनी ज़रुरत के तहत मुलव्विश होता चला जाये| ज़रुरत कैसी भी हो लेकिन हर ज़रुरत का रास्ता सिर्फ़ अल्लाह के कलाम और नबी के फ़र्मान हैं लिहाज़ा हर इन्सान को चाहिये के कुरान और हदीस को मज़बूती से थामे रहे और सूद कि इन फ़रेबकारियो से बचे जो हमारे घर, करोबार, हमारी ज़रुरियत के नाम पर अल्लाह की रहमत को हमसे दूर कर रही हैं|