निकाह कैसे हो?
“तुम मे से जो मर्द और औरत बेनिकाह हो उनका निकाह कर दो और अपने गुलाम और लौंडियो का भी| अगर वो मुफ़लिस भी होगे तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से गनी बना देगा| अल्लाह तालाह कुशादगी वाला और इल्म वाला हैं|”
क़ुरआन (सूरह नूर सूरह नं 24 आयत नं 32)
क़ुरआन की आयत से साबित हैं के निकाह करना/कराना अल्लाह का हुक्म है जिसके लिये अमीर या गरीब होना शर्त नही|
निकाह के माने:
लुगत मे निकाह के माने मिलाना या जुड़ने के हैं| निकाह दरअसल एक किस्म की हद हैं जो के मर्द और औरत पर इसलिये जारी करी जाती हैं के दोनो एक दूसरे से जायज़ तरीके से जिस्मानी तस्कीन का फ़ायदा उठा सके| शरियते इस्लामिया ने औरत और मर्द के मिलने के लिये जो दरवाज़ा खोला हैं वो निकाह हैं ताकि मर्द और औरत चोरी छिपे या खुलेआम बेहयाई न करे बल्कि जायज़ तरीके से मिल सके या हमबिस्तर हो सके|
इस जायज़ दरवाज़े के खोलते ही इस्लाम ने जिन औरतो को मर्द के निकाह के लिये हलाल किये उस अल्लाह ने क़ुरआन मे इस तरह ब्यान किया-
“हराम की गयी तुम पर तुम्हारी मांए और तुम्हारी लड़किया और तुम्हारी बहन, तुम्हारी फ़ूफ़ीया और तुम्हारी खालाए और भाई की लड़कीया और बहन की लड़किया और तुम्हारी मांए जिन्होने तुम्हे दूध पिलाया हो और तुम्हारी दूध शरीक बहन बहने और तुम्हारी सास और तुम्हारी परवरिश की हुई लड़किया जो तुम्हारी गोद मे हैं, तुम्हारी इन औरतो से जिन से तुम हमबिस्तरी कर चुके हो, हा अगर तुम इन से हमबिस्तरी न किया हो तो तुम पर कोई गुनाह नही और तुम्हारे नवा्सो-पोतो की बीवीया और तुम्हारा दो बहनो को एक साथ निकाह करना| मगर जो हो चुका सो हो चुका, बेशक अल्लाह तालाह बख्शने वाला मेहरबान हैं|”
क़ुरआन (सूरह अन निसा सूरह नं 4 आयत नं 24)
इस्लाम के इन हुदूद के जारी करने का मकसद सिर्फ़ एक अच्छे मआशरे को बनाना हैं ताकि निकाह करने वाली औरतो और आम औरतो मे फ़र्क नज़र आये जैसा के आज मगरिबी तहज़ीब मे देखने को मिलता हैं के बेटा मां से निकाह करता हैं बेटी बाप से हामला हैं वगैराह|
निकाह दरहकीकत एक ऐसा ताल्लुक हैं जो औरत मर्द के दरम्यान एक पाकदामन रिश्ता हैं जो मरने के बाद भी ज़िन्दा रहता हैं बल्कि निकाह हैं ही इसलिये के लोगो के दरम्यान मोहब्बत कायम रह सके|
जैसा के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया-
“आपस मे मोहब्बत रखने वालो के लिये निकाह जैसी कोई दूसरी चीज़ नही देखी गयी|”
(इब्ने माजा)
हदीस नबवी से साबित हैं के निकाह औरत मर्द के साथ-साथ दरअसल दो खानदान का भी रिश्ता होता हैं जो निकाह के बाद कायम होता हैं| इसका अव्वल तो ये फ़ायदा होता हैं के अगर एक मर्द और औरत की निकाह से पहले मोहब्बत मे हो तो गुनाह के इमकान हैं लेकिन अगर उनका निकाह कर दिया जाये तो गुनाह का इमकान नही रहता दूसरे उनकी मोहब्बत हमेशा के लिये निकाह मे तबदील हो जाती हैं जो जायज़ हैं साथ ही दो अलग-अलग खानदान आपस मे एक-दूसरे से वाकिफ़ होते हैं और एक नया रिश्ता कायम होता हैं|
मोहब्बत के साथ-साथ निकाह नफ़्स इन्सानी के सुकुन का भी ज़रिय हैं जिससे इन्सान सुकुन और फ़ायदा हासिल करता हैं|
अल्लाह क़ुरआन मे फ़रमाता हैं-
“और उसी की निशानियो मे से एक ये हैं की उसने तुम्हारे लिये तुम्ही मे से बीवीया पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करे और तुम लोगो के दरम्यान प्यार और उलफ़त पैदा कर दी| इसमे शक नही गौर करने वालो के लिये यकिनन बहुत सी निशानिया हैं|”
क़ुरआन (सूरह रूम सूरह नं 30 आयत नं 21)
क़ुरआन की इस आयत से साबित हैं के निकाह मर्द और औरत के लिये एक सुकून हासिल करने का भी तरीका हैं जिससे मर्द और औरत दोनो फ़ायदा उठाते हैं जैसा के अमूमन देखने मे आता हैं के औरत और मर्द दोनो अपनी अज़वाजी ज़िन्दगी मे अपने होने वाली परेशनी के लम्हो मे एक दूसरो को फ़ायदा देते हैं और एक दूसरे के साथी कहलाते हैं और ये सुकून का ताल्लुक बिना निकाह के मुम्किन नही जैसा आदम अलै0 से लेकर आज तक हैं के नस्ल इन्सानी निकाह करती हैं और एक दूसरे को फ़ायदा देती हैं|
इसके साथ ही अल्लाह ने एक जगह क़ुरआन मे फ़रमाया-
“औरते तुम्हारी लिबास हैं तुम औरतो के|”
क़ुरआन (सूरह अल बकरा सूरह नं 2 आयत नं 187)
क़ुरआन के इस फ़रमान से ये साबित होता हैं के मर्द और औरत एक दूसरे के लिबास हैं और लिबास सिर्फ़ सतर ढापने और ज़ीनत इख्तयार किया जाता हैं लिहाज़ा मर्द और औरत जब तक निकाह मे नही होते उनका ज़ाहीरी बेज़ीनत हैं लिहाज़ा हर मर्द और औरत को जो शादी के अहल हैं निकाह करना लाज़िमी हैं|
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