हुकुक निकाह:
निकाह भी एक किस्म की अल्लाह की इबादत हैं जिसके अमली तहत इन्सान ज़िना जैसे बदतरीन गुनाह से बचता हैं| साथ ही निकाह सिर्फ़ जिस्मानी तौर पर नफ़स का फ़ायदा उठाने का नाम नहि बल्कि मआशरे को तहज़ीब मे ढालने का नाम भी हैं जिसके सबब इन्सान अपनी नस्ल को बढाने के साथ साथ अपनी औलाद को दीनी तालिम दे कर मआशरे के निज़ाम को बेहतर कर सकता हैं| अमूमन लोग निकाह तो जानते हैं लेकिन निकाह के हुकुक से नावाकिफ़ हैं| इसके साथ ही निकाह करने वाले ईमान की पाकिज़गी का भी अहसास होता हैं जिससे उसकी आंख, कान, हाथ ज़िना जैसे गुनाह से बचती हैं|
अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का इरशाद हैं, हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जब एक शख्स निकाह करत तो उसए आधा ईमान मिल जाता हैं तो उसे चाहिए के आधे के लिये अल्लाह से डरता रहें|”
(सिलसिलातुल अहदीस असहीह)
लिहाज़ा निकाह करना ईमान मे भी शामिल हैं|
हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत हैं-
“तीन हज़रात (अली बिन तालिब, अबदुल्लाह बिन उमरो और उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि0) नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की अज़वाज मुताहरात के घरो की तरफ़ आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इबादत के मुताल्लिक पूछने गये| जब इनको आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के अमल के बारे मे बताया गया तो जिसे इन्होने कम समझा और कहा के हमारा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से क्या मुकाबला आप के तो तमाम अगली पिछली लगज़िशे माफ़ कर दी गयी हैं| इनमे से एक ने कहा के आज से मैं हमेशा रात मे नमाज़ पढा करुंगा| दूसरे ने कहा के मैं हमेशा रोज़े रखा करुंगा और कभी नागा नही करुंगा| तीसरे ने कहा के मैं औरतो से जुदाई इख्तयार कर लूगा और कभी निकाह नही करुंगा| फ़िर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तशरीफ़ लाये और इनसे पूछा – क्या तुमने ही ये बाते कही थी| सुन लो अल्लाह की कसम अल्लाह रब्बुल आलामीन से मैं तुम सब से ज़्यादा डरने वाला हूं| मैं तुम सबसे ज़्यादा परहेज़गार हूं लेकिन मैं अगर रोज़े रखता हूं तो इफ़तार भी करता हूं, नमाज़ भी पढता हूं और सोता भी हूं, और औरतो से निकाह भी करता हूं| मेरे तरिके से जिसने बेरगबती करी वो मुझ से नही हैं|”
(सहीह बुखारी)
हदीस नबवी से साबित हैं के निकाह करना रसूल का तरीका और इन्सान की फ़ितरत हैं जिसको न करना रसूल से अलग होना हैं| जैसा के दिगर कौमो मे लोग रहबानियत या सन्यास वगैराह ले लेते हैं और दुनिया से कट जाते हैं ताकि ऊपरवाले से मिल जाये| जबकि शरियते इस्लाम मे रहबानियत या सन्यास गुनाह हैं बल्कि हर इन्सान जो निकाह की ताकत रकता हैं उस पर लाज़िमी हैं के वो निकाह भी करे और इसके साथ-साथ इस्लाम के दूसरे अरकान को अदा करे जैसा के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने किया और निकाह न करने वाला नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की सुन्नत का मुखालिफ़िन हैं|
जबकि अल्लाह से डर कर निकाह न करना कही से भी साबित नही बल्कि खुद अल्लाह ने क़ुरआन मे हुक्म दिया-
“ऐ ईमानवालो अल्लाह से डरो जैसा के उससे डरने का हक हैं और इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर तुम्हे मौत न आये|”
क़ुरआन (सूरह अल इमरान सूरह नं 2 आयत नं 102)
लिहाज़ा हर इन्सान को इस्लाम की हद के अन्दर रहते हुये अल्लाह से डर रखना चाहिये|
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