Nikah Kaise Ho?

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निकाह से पहले लड़की देखना:

अकसर लोगो मे शादी से पहले लड़की देखना बुरा समझा जाता हैं अलबत्ता उसकी फ़ोटो को देने मे कोई ऐतराज़ नही किया जाता| सवाल ये हैं के जिस फ़ोटो को लड़के को देखने के लिये दिया जाता हैं उस फ़ोटो के खीचने वाला मर्द क्या उस लड़की का महरम होता हैं| अकसरियत ऐसी हैं जो खासतौर से शादी के दिखाने के लिये लड़की का फ़ोटो किसी स्टूडियो मे खिचवाते हैं| जिस लड़के को उससे निकाह करना हैं उसके देखने पर तो पाबन्दी लगाई जाती हैं लेकिन जो गैर महरम हैं उसके सामने जाकर फ़ोटो खिचवाने मे कोई बुराई नही समझी जाती बल्कि लड़की को सजा सल्लललाहो अलेहे वसल्लमवार के खड़ा कर दिया जाता हैं|

शरियत ने इस ताल्लुक से जो हुक्म दिया वो नीचे मौजूद हैं-

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया –

“जब तुम मे से कोई शख्स किसी औरत को निकाह का पैगाम भेजे, अगर मुमकिन हो तो इसकी वो चीज़ देख लो जो इसके निकाह की दाई हैं(कद, कामत और हुस्न व जमाल वगैराह)| हज़रत जाबिर रज़ि0 कहते हैं के मैने एक लड़की के लिये निकाह का पैगाम भेजा तो मैं इसके लिया छिपा करता था हत्ता के मैने इसे देख लिया जिस से मुझे इसके के साथ निकाह करने की रगबत हुई चुनांचे मैने इससे निकाह कर लिया|”
(अबू दाऊद)

हज़रत मुगीराह बिन शैबाह रज़ि0 से रिवायत हैं के इन्होने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया –

“मैने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर होकर एक खातून का ज़िक्र किया के मै इससे निकाह के लिये पैगाम भेजने वाला हूं|
आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – जाकर इसे देख लो उम्मीद हैं तुम्हारे दरम्यान मुहब्बत पैदा हो जायेगी|
लिहाज़ा मैने एक खातून अन्सारी के मां-बाप के यहा गया और इसके वालिदैन से इसका रिश्ता तलब किया और इन्हे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का इरशाद भी सुनाया| यू महसूस हुआ के इसके वालिदैन ने इस चीज़ को पसन्द नही किया|(के ये मर्द इनकी लड़की को देखे) लड़की पर्दे मे थी इसने ये बात चीत सुन ली चुनांचे इसने कहा – अगर तुझे अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने देखने का हुक्म दिया हैं तो देख वरना मैं तुझे कसम देती हूं (के झूठा बहाना करके मुझे न देखना) इसने गोया इस बात को बहुत बड़ा समझा(सुनते ही ऐतबार न आया के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया होगा)|
हज़रत मुगीराह रज़ि0 फ़रमाते हैं – (मै सच कह रहा था इसलिये) मैने इसे देख लिया| फ़िर मैने इससे निकाह कर लिया| फ़िर हज़रत मुगीरह ने इससे आहन्गी पैदा हो जाने का ज़िक्र फ़रमाया|”
(इब्ने माजा)

इन तमाम ह्दीस की रोशनी मे ये साबित होता हैं के निकाह से कब्ल लड़की देखना दुरुस्त हैं और लड़की के वालिदैन को भी इसे बुरा नही जानना चाहिये|

निकाह कैसे करें:

इस हकीकत से इन्कार नही किया जा सकता के इन्सान अपनी फ़ितरत और दीन से दूरी के सबब इस हद तक इस्लाम से दूर हो चुका हैं और बुराई को इस तरह अपना रहा हैं के जैसे बुराई बुराई न होकर फ़रमान नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम हैं और दीन का एक अहम रुक्न हैं जिसके बिना कोई काम मुकम्मल नही हैं| इन्ही बुराईयो मे बुराई की एक ज़िन्दा मिसाल मौजूदा मआशरे मे होने वाली शादीया हैं जो नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के तरीके से हटकर होती हैं|

निकाह के मौके पर फ़हश गानो का या फ़िल्मी गानो का बजाना, आतिशाबाज़ी का शोर-शराबा, औरतो-मर्दो का एक साथ जमा होकर नाचना, बेपर्दगी का माहोल ये तमाम बदतरीन काम आज निकाह के मौके पर निकाह का एक अहम रुक्न समझ कर किये जाते हैं और इस दिलेरी और खुलूस व मोहब्बत के साथ होते हैं जैसे खुद नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने ये सब करने का हुक्म दिया हो नाऊज़ोबिल्लाह! गौर फ़िक्र की बात ये हैं के क्या नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के ज़माने मे भी इसी तरह निकाह होते थे|

नीचे हदीस पर गौर फ़रमाये-

“हज़रत खालिद बिन ज़कवान से रिवायत हैं के – हज़रत रबिया बिन्ते मऊज़ रज़ि0 ने फ़रमाया – नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तशरीफ़ लाये और जब मैं दुल्हन बना कर बैठाई गयी| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तशरीफ़ लाये और मेरे बिस्तर पर बैठे इसी तरह जैसे तुम इस वक्त मेरे पास बैठे हो| फ़्र हमारे यहा की कुछ लड़किया दफ़ बजाने लगी अय्र मेरे बाप और चचा जो जंगे बद्र मे शहीद हुए थे इनका मरसयाह पढ़ने लगी| इतने मे इनमे से एक लड़की ने पढ़ा – “और हम मे एक नबी हैं जो इन बातो की खबर रखता हैं जो कुछ कल होने वाला हैं”| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – ये छोड़ दो| इसके सिवा जो कुछ तुम पढ़ रही थी वो पढ़ो|”
(बुखारी)
हज़रत मुहम्मद बिन हातिब रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – हलाल और हराम मे फ़र्क निकाह के मौके पर दफ़ बजाने और आवाज़ का हैं|
(इब्ने माजा)

इन हदीस की रोशनी मे ये साबित हैं के निकाह के मौके पर अच्छे अशआर पढ़ना और दफ़ बजाना दुरुस्त हैं जो की मौजूदा गाने बजाने से कोसो दूर की बात हैं| क्योकी आजकल गाना बजाने मे सिवाये के शोर शराबे और फ़हश भरे फ़िल्मी गानो के अलावा कुछ नही होता हैं जबकि दफ़ बजाने से इसकी आवाज़ सिवाये महफ़िल के और बाहर नही जाती जिससे किसी को कोई परेशानी नही होती और जो के सुन्नत नबी के मुताबिक भी हैं|

गानो गा बजाना जैसा के आज निकाह के मौके पर होता हैं ये सुन्नत की रूह से सरासर हराम हैं (आगे हदीस देखे)| इसके अलावा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने नेचर निकाह खुद किये और दिगर दूसरे सहाबी ने भी कई-कई निकाह किये लेकिन सिवाये इस दफ़ बजाने की हदीस के (जैसे ऊपर गुज़री) और कही से ये साबित नही के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के खुद के निकाह के मौके पर किसी किस्म का गाना बजाना या दफ़ ही बजाई गयी हो| जो लोग दफ़ की मिसाल ढोलक से या मौजूदा दौर के फ़िल्मी गानो से देते हैं और इसे दुरुस्त करार देते हैं वो सुन्नत नबी की मुखालिफ़त करते हैं क्योकि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अगर दफ़ बजाने से मना नही किया तो ये भी कही नही फ़रमाया के निकाह मे मौजूद मर्द या औरत दफ़ को बजा कर इज़हारे खुशी करे| क्योकि ऐसा करने से सिवाये महफ़िल मे शोर शराबा होगा जैसा का आजकल होता हैं|

हज़रत मुजाहिद रह0 से रिवायत हैं के इन्होने फ़रमाया –

“हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 के साथ थे के इन्हे ढोल की आवाज सुनाई दी| इन्होने फ़ोरन कानो मे उंगलिया दे ली और रास्ते से हट गये ताकि आवाज़ से दूर हो जाये| इन्होने तीन बार ऐसा किया फ़िर फ़रमाया – नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने भी इसी तरह किया था|”
(इब्ने माजा, ये हदीस ज़ैइफ़ हैं ताहम हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 का ये अमल और इनका ये कहना के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ऐसा करते थे, जनाब नाफ़े के हवाले से सही और हसन सनद के साथ मुसनद अहमद, अबू दाऊद, इब्ने हबान, तिबरानी सगीरा और बैहीकी मे मरवी हैं जिसे दिगर मुहककिकीन ने भी सही और हसन करार दिया हैं लेकिन इन रिवायतो मे ढोल के बजाये बांसुरी की आवाज़ का ज़िक्र हैं| बहरहाल बांसुरी की ये सनद दूसरे मुहददिसो की तहकीक की बिना पर साज़ (बांसुरी) की आवाज़ को खुशी के मौके पर बजाने की कोई दलील नही मिलती जैसा के आजकल के दौर मे फ़िल्मी गानो को बजा कर लोग करते हैं)

मौजूदा निकाह मे सिवाये फ़िल्मी गानो के कुछ और नही सुनाया और बजाया जाता जिसकी आवाज़ इस हद तक तेज़ कर दी जाती हैं के 200-300 मीटर के दायरे मे रहने वाला भी सुन लेता हैं या सुनने के लिये मजबूर हो जाता हैं| इस लिहाज़ से खुद भी गुनाह करते हैं और दूसरो को गुनाह करने पर मजबूर करते हैं| इसके अलावा अकसर निकाह के मौके पर लोग हिजड़ो को भी बुला कर नाच-गाना और तफ़रीह करते हैं जो की सिवाये गुनाह के और कुछ नही|

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