Paighamber Muhammad (saw) ki Sikshayen

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सूद (ब्याज):

‘‘लानत है सूद (ब्याज) खानेवाले पर, सूद खिलानेवाले पर, सूदी लेन–देन के गवाहों पर और सूदी लेन–देन की दस्तावेज़ लिखनेवाले पर!’’
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘सूद (से हासिल किया हुआ माल) चाहे कितना ही अधिक हो जाए, मगर उसका नतीजा अभाव और कमी है।“  
(मुसनद अहमद, इब्ने–माजा)
‘‘सूदख़ोरी के सत्तर हिस्से हैं, उनमें सबसे कम और हल्का हिस्सा ऐसा है जैसे कोई अपनी माँ के साथ व्यभिचार करे।“  
(इब्ने–माजा)
‘‘सूद का एक दिरहम (सिक्का) भी जिसको आदमी जान–बूझकर खाए छत्तीस बार ज़िना (व्यभिचार) करने से बढ़कर जघन्य अपराध है।“  
(अहमद)
‘‘जब तुममें से कोई व्यक्ति किसी को क़र्ज़ दे तो अगर वह क़र्ज़ लेनेवाला उसे कोई हदिया (गिफ्ट, भेंट) दे या उसे सवारी के लिए अपना जानवर पेश करे तो न वह उसपर सवार हो और न उस हदिये (तोहफ़े) को क़बूल करे, सिवाय इसके कि दोनों के बीच पहले से इस तरह का मामला होता रहा हो (यानी तोहफ़ों का लेन–देन चलता रहा हो)।“
(इब्ने–माजा)
‘‘जिसने किसी के लिए सिफ़ारिश की फिर (सिफ़ारिश करानेवाले ने) उसे हदिया (तोहफ़ा) दिया और उसने उसको क़बूल कर लिया तो यक़ीनन वह सूद (ब्याज) के दरवाज़ों में से एक बड़े दरवाज़े में दाख़िल हो गया।“
(अबू–दाऊद)

शराब :

‘‘अल्लाह ने लानत की है शराब पर और उसके पीनेवाले पर और पिलानेवाले पर, बेचनेवाले पर और ख़रीदनेवाले पर, निचोड़ने वाले (तैयार करनेवाले) पर और तैयार करानेवाले पर और ढोकर ले जानेवाले पर और उस व्यक्ति पर जिसके लिए वह ढोई गई हो।“  
(अबू–दाऊद)
‘‘जो अल्लाह पर ईमान और आख़िरत पर विश्वास रखता है वह उस दस्तरख़ान पर न बैठे जिसपर शराब पी जा रही हो।“  
(बुख़ारी)
अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने उस दस्तरख़ान पर खाना खाने से मना किया है जिसपर शराब पी जा रही हो।
(दारमी)
‘‘हर नशीली चीज़ शराब है और हर नशा हराम है।“  
(अहमद)
‘‘शराब दवा नहीं है बल्कि वह तो ख़ुद बीमारी है।“
(मुस्लिम)
‘‘जिस (चीज़) की अधिक मात्रा नशा लाती हो उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम (अवैध) है।“
(अबू–दाऊद)

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व्यभिचार और दुष्कर्म:

‘‘क़ुरैश के जवानों, तुम अपनी शर्मगाहों (गुप्ताँगों) की हिफ़ाज़त करना, व्यभिचार मत कर बैठना! जो लोग पाकदामनी (पवित्रता) के साथ जीवन व्यतीत करेंगे वे स्वर्ग के हक़दार होंगे।“ 
(अल–मुंज़िरी)
‘‘जिस क़ौम में ज़िना (व्यभिचार) बहुत फैल जाता है वह (क़ौम) अकालग्रस्त हो जाती है और जिस क़ौम में रिश्वतों की महामारी फैल जाती है उसपर रोब (डर) हावी कर दिया जाता है।“
(अहमद)
एक व्यक्ति ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से पूछा, “कौन–सा गुनाह ज़्यादा बड़ा है ?”  उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू किसी को अल्लाह का समकक्ष ठहराए जब कि तुझे अल्लाह ने पैदा किया है।“  उसने कहा, ‘‘फिर कौन–सा गुनाह बड़ा है?’’  पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘तू अपनी सन्तान को क़त्ल करे इस डर से कि वह तेरे साथ खाएगी। “ उसने फिर पूछा, ‘‘(इसके बाद) कौन–सा गुनाह ज़्यादा बड़ा है?’’ उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू अपने पड़ोसी की पत्नी से ज़िना (व्यभिचार) करे।“  
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘इस्लाम में (औरतों की) इज़्ज़त के ख़रीदने–बेचने का कारोबार वैध नहीं है।“
(अबू–दाऊद)
‘‘आँखों का ज़िना (व्यभिचार) देखना है, कानों का ज़िना (ज़िना की बातें) सुनना है, और ज़बान का ज़िना (ज़िना की) बात करना है, और हाथ का ज़िना (शर्मगाह से) छेड़छाड़ करना है और पैरों का ज़िना (ज़िना की तरफ़) चलकर जाना है । दिल (दुष्कर्म की) इच्छा करता है, उसके बाद गुप्तांग उस योजना को व्यावहारिक रूप देते हैं या छोड– देते हैं।“  
(मुस्लिम)
‘‘हर बुरी आँख चाहे वह मर्द की हो या औरत की ज़िना करनेवाली (व्यभिचारी) है।“
(तिरमिज़ी)

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कन्या-वध: 

‘‘जिस व्यक्ति के यहाँ बेटी पैदा हो और वह उसे जीवित दफ़न न करे और उसका अपमान न करे और अपने बेटे को उससे बढ़कर न समझे, तो अल्लाह उसे स्वर्ग में दाख़िल करेगा।“  
(अबू–दाऊद)
‘‘जिसने तीन बेटियों का पालन–पोषण किया, उन्हें अच्छे संस्कार सिखाए, उनकी शादी की और उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह स्वर्ग में जाएगा।“
(अबू–दाऊद)
‘‘जिसने दो लड़कियों का भार उठाया यहाँ तक कि वे बालिग़ (व्यस्क) हो गर्इं, तो क़ियामत (प्रलय) के दिन मैं और वे इस तरह आएँगे।  यह कहकर अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने अपनी दो उँगलियाँ एक साथ कर लीं।”  
(मुस्लिम)
‘‘जिसने तीन बेटियों या बहनों का पालन–पोषण किया, उनको अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) सिखाए और उनपर मेहरबानी की, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें बेनियाज़ (निस्पृह) कर दे, अल्लाह ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग वाजिब (अनिवार्य) कर देगा।“  एक आदमी ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर दो के साथ अच्छा बरताव करने पर क्या यही बदला है?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘हाँ।“  इस हदीस को बयान करनेवाले हज़रत इब्ने–अब्बास (रज़ि॰) कहते हैं कि अगर एक लड़की के साथ अच्छा बरताव करने के बारे में सवाल करते तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) यही फ़रमाते कि वह भी इसी इनाम का हक़दार है।”
(मिशकात)
‘‘जब किसी के यहाँ लड़की पैदा होती है तो अल्लाह उसके यहाँ फ़रिश्ते भेजता है जो कहते हैं: ‘ऐ घरवालो, तुमपर सलामती हो।‘  वे लड़की को अपने परों की छाया में ले लेते हैं और उसके सिरपर हाथ फेरते हुए कहते हैं कि यह एक कमज़ोर जान है जो एक कमज़ोर जान से पैदा हुई है। जो इस बच्ची की परवरिश करेगा, क़ियामत तक अल्लाह की मदद उसके साथ रहेगी।“  
(तबरानी)
‘‘जो कोई इन लड़कियों के बारे में आज़माया जाए (यानी उसके यहाँ लड़कियाँ पैदा हों) और फिर वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे तो ये लड़कियाँ उसको जहन्नम की आग से बचाएँगी।“  
(बुख़ारी, मुस्लिम)

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रिश्ते-नाते तोड़ना: 

‘‘रिश्तों को तोड़ने वाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।“  
(मुस्लिम)
‘‘उस क़ौम पर अल्लाह की रहमत (कृपा) नहीं होती जिस (क़ौम) में रिश्ते–नाते तोड़ने वाला मौजूद हो।“  
(बैहक़ी)
‘‘जो कोई चाहता है कि उसकी रोज़ी (आजीविका) में बढ़ोत्तरी पैदा हो और उसकी उम्र लम्बी हो, वह रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करे।“  
(बुख़ारी)
‘‘तीन तरह के लोग स्वर्ग में नहीं जा सक़गे।
(1) हमेशा शराब पीने वाला
(2) रिश्ते–नाते तोड़ने वाला
(3) जादू पर यक़ीन करने वाला।”
(अहमद)
‘‘जु़ल्म (अत्याचार) और रिश्ते–नाते तोड़ने के सिवा कोई गुनाह ऐसा नहीं है जिसके करनेवाले को अल्लाह दुनिया में जल्द सज़ा दे, ऐसा करनेवाले के लिए क़ियामत के दिन भी (उसके लिए) सज़ा तैयार रखी है।“  
(अबू–दाऊद)
‘‘एक दूसरे के साथ कपट न रखो और न हसद (ईर्ष्या), न एक दूसरे के साथ दुश्मनी करो और न रिश्तों को तोड़ो! और ऐ अल्लाह के बन्दों, आपस में भाई–भाई बन जाओ!’’
(बुख़ारी, मुस्लिम)

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