कु़रआन: ईश्वरीय संदेश, आपके लिए! (भाग-2)
इस्लाम के मूल ग्रंथ ‘क़ुरआन’ का सरल व संक्षिप्त परिचय यह है कि यह ग्रंथ ईश्वर की ओर से उसके सारे बन्दों के लिए एक पैग़ाम, एक संदेश है। ऐसा पैग़ाम जो हर काल और युग के लिए; हर जाति, क़ौम, रंग, नस्ल, वर्ग, क्षेत्र और राष्ट्रीयता के इन्सानों के लिए समान व स्थायी रूप से महत्वपूर्ण व लाभकारक है। यह संदेश, संदेशवाहक (पैग़ामबर) हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) पर ईशवाणी के रूप में सन् 610 ई॰ से सन् 632 ई॰ तक 22 वर्षों की मुद्दत में इतिहास के पूरे प्रकाश में अवतरित हुआ और उसी मूल-लिपि में पूरी शुद्धता व विश्वसनीयता के साथ आज हर जगह उपलब्ध है।
- ईश्वर का बन्दों के नाम यह पैग़ाम उनके सांसारिक जीवन और मौत के बाद पारलौकिक जीवन की सफलता तथा दुखों व समस्याओं से मुक्ति से संबंधित है। इसी के अनुकूल क़ुरआन में उसने इन्सानों को मार्गदर्शन, शिक्षाएं, नियम, आदेश व निर्देश दिए हैं।
- क़ुरआन में ईश्वर की वास्तविकता और बन्दों से उसके यथोचित संबंध तथा इस संबंध के तक़ाजे़ आदि विस्तार से बयान करके उन्हें पैग़ाम दिया गया है कि इन्सानों को पूजा-उपासना केवल उसी की करनी चाहिए और इसमें किसी को भी उसका शरीक-साझी नहीं बनाना चाहिए।
- क़ुरआन का पैग़ाम है कि मनुष्य को अपनी वास्तविकता और सारे प्राणियों से श्रेष्ठ अपनी हैसियत को समझना चाहिए। अपने पैदा किए जाने का ईश्वरीय उद्देश्य जानना चाहिए। अपने तथा अन्य मनुष्यों, अन्य जीवधारियों और इस विशाल सृष्टि के बीच संबंध का सही बोध करना चाहिए। और इन सबके तक़ाजे़ पूरे करने चाहिएं। ताकि यह संसार सुख, शांति और अम्न व इन्साफ़ का एक विशाल स्थल बन सके और यह सब कुछ ईशाज्ञापालन द्वारा ही संभव है।
- इस नश्वर जीवन के बाद परलोक के शाश्वत जीवन में सफलता और मुक्ति (निजात) तथा स्वर्ग-प्राप्ति की मनोकामना पूरी हो, इसके लिए क़ुरआन में यह पैग़ाम दिया गया है कि ईश्वर ने तुम्हारे जीवन के हर क्षेत्र, हर गतिविधि, हर क्रिया-कलाप से संबंधित जो पथ-प्रदर्शन अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के माध्यम से किया है और जो क़ुरआन तथा पैग़म्बर (सल्ल॰) के जीवन-आदर्श में बहुत विस्तार से उल्लिखित है, उसका अनुपालन करो। क़ुरआन का पैग़ाम इस दृष्टिकोण से बड़ा अद्भुत, आकर्षक और प्रभावकारी है कि पाठक की सोई हुई शिथिल अंतरात्मा, मन-मस्तिष्क और चेतना व विवेक को झंझोड़ कर जागृत व सक्रिय कर देता है और उसे यह विश्वास हो उठता है कि यह सचमुच ईशवाणी ही है। किसी मनुष्य का कलाम ऐसा हो ही नहीं सकता।
- क़ुरआन में आध्यात्मिक व नैतिक शिक्षाएं भी हैं और भौतिक व सांसारिक शिक्षाएं भी। बेहतर से बेहतर दाम्पत्य जीवन, पारिवारिक जीवन तथा सामाजिक जीवन से संबंधित नियम भी है; और अच्छी से अच्छी आर्थिक, व्यावसायिक व राजनीतिक व्यवस्था के प्रारूपण के आदेश व निर्देश भी। यहां तक कि दूसरी क़ौमों से शांति-संधि, युद्ध व सुलह से संबंधित मार्गदर्शन, नियम और क़ानून भी हैं।
- आधी मानवजाति—‘नारी’—को जो कुछ अधिकार मिले (उसमें से भी प्रायः नारी की गरिमा-गौरव, शील, मर्यादा एवं उसके बहुमूल्य नारीत्व को ख़तरों में डालकर या आघात पहुंचाकर या तबाह-बरबाद करके), उस उपलब्धि का इतिहास सौ-डेढ़ सौ वर्ष से ज़्यादा पुराना नहीं है। लेकिन क़ुरआन के द्वारा 1450 वर्ष पहले ही मानवता को जो पैग़ाम ईश्वर ने दिया था उसके अंतर्गत नारी को अनेक अधिकार भी मिले और नारी-अपमान, बालिका-वध, नारी-प्रताड़ना, पुरुष-नारी-असमानता तथा नारी के शारीरिक तथा यौन-शोषण (Sexual exploitation) का उन्मूलन भी हो गया। क़ुरआन के अध्ययन से, इतनी बड़ी क्रांति की यथार्थता और वास्तविकता का ज्ञान होता है, और पता चलता है कि इस संबंध में क़ुरआनी शिक्षाएं तथा नियम व क़ानून क्या और कैसे हैं एवं कितने प्रभावी व क्रांतिकारी हैं।
- क़ुरआन ने इन्सानों को ईश्वर का यह पैग़ाम पहुंचाया कि शराब, जुआ, सट्टा आदि तुम्हारे शारीरिक, नैतिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक और घातक हैं इसलिए ईश्वर ने इन सबको तुम्हारे लिए वर्जित व अवैध (Prohibitted, हराम), ठहराया है। जिन व्यक्तियों ने यह पैग़ाम स्वीकार कर लिया, जिस क़ौम ने और जिस समाज ने इस पैग़ाम पर अमल किया वह तबाही से तथा अनेक शारीरिक, नैतिक, चारित्रिक एवं सामाजिक रोगों व बीमारियों से सुरक्षित हो गया।
- क़ुरआन का पैग़ाम है कि यह धरती और जो कुछ इसकी सतह पर या इसके भीतर है; ये आकाश व ब्रह्माण्ड और जो कुछ इनके बीच है, सब हम मनुष्यों के लिए बनाया गया है और हम मनुष्य, ईश्वर के लिए बनाए गए हैं। इसी पैग़ाम से ही हमें बहैसियत इन्सान अपनी महत्ता, महानता, श्रेष्ठता तथा उत्कृष्टता का बोध होता है।
- क़ुरआन में ईश्वर का यह पैग़ाम भी है कि ऐ मेरे बन्दो, तुम सब एक ही ‘प्रथम पिता’ (आदम) की संतान हो अतः इन्सान की हैसियत में सब बराबर हो। तुम्हारे रंग, चेहरे, शरीर (डील-डौल), भाषा, जातियां-प्रजातियां, क़बीले आदि अलग-अलग इसलिए हैं कि एक-दूसरे की पहचान की जा सके। ये अन्तर व विभेद प्राकृतिक हैं। इनके आधार पर न कोई श्रेष्ठ, उच्च व सम्माननीय है न कोई तुच्छ, नीच व अपमाननीय। श्रेष्ठ और तुच्छ का मानदंड रंग, वर्ण, राष्ट्रीयता, धन-संपन्नता आदि नहीं, बल्कि नेकी, सदाचरण, सत्यनिष्ठा और ईशपरायणता है और ये सद्गुण ऐसे किसी भी व्यक्ति में हो सकते हैं जो अपने और ईश्वर तथा ईश्वर के अन्य बन्दों के बीच वह और वैसा संबंध निभाए जिसे ईश्वर ने निर्धारित किया है। यह पैग़ाम दरअस्ल वैश्वीय भाईचारे का आधार भी है। ऐसी बुनियाद, जिससे ज़्यादा मज़बूत बुनियाद हो नहीं सकती।
- क़ुरआन के माध्यम से ईश्वर ने सारे इन्सानों को यह पैग़ाम दिया है कि मेरे बन्दो तुम सबके, एक-दूसरे पर ये और ये अधिकार तथा सबके एक-दूसरे के प्रति ये-ये कर्तव्य हैं। ये अधिकार दो और ये कर्तव्य पूरे करो। मां-बाप व संतान, पति व पत्नी, पड़ोसी व पड़ोसी, रिश्तेदार, अनाथ, निर्धन व दरिद्र, बीमार, मोहताज व ज़रूरतमंद, विधवा व असहाय, मालिक व नौकर, स्वामी व सेवक, शासक व शासित इत्यादि…सबके अधिकार देने या सबके प्रति अपने कर्तव्य अदा करने के बारे में उस वक़्त तुम से पूछा जाएगा, तुम्हारी पकड़ होगी जब तुम (महाप्रलय यानी क़यामत के बाद) परलोक जीवन में ईश्वरीय अदालत में खड़े किए जाओगे और तुम्हारे कर्मों के अनुसार या तो तुम को स्वर्ग प्रदान किया जाएगा या नरक की यातनाएं भोगनी होंगी।
- मौजूदा दुनिया, जो अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तरों पर, मानवाधिकार-संस्थाओं व संगठनों से भरी होने के बावजूद मानव-अधिकार हनन की असंख्य और भीषण घटनाओं से भी भरी हुई है और इसका कोई समाधान संभव नज़र नहीं आता; उसके समक्ष यह विकल्प खुला हुआ है कि उसमें रहने-बसने वाले लोग अपने नाम ईश्वर के पैग़ाम को गंभीरता व निष्ठा से सुनें, उस पर विचार करें, उसे स्वीकार करें और उसके तक़ाजे़ पूरे करने के लिए और उस पर अमल करने का आत्म-बल पैदा करें, संकल्प करें। क्रान्तिकारी फ़ैसला लें।
- क़ुरआन, उसके संदेश तथा इस संदेश की कल्याण-कारिता पर, और इसका पाठ व अध्ययन करने पर किसी भी जाति-विशेष, क़ौम और समुदाय का एकाधिकार नहीं है। यह हवा, पानी, सूरज व चांद की रोशनी की तरह सब की संपत्ति है। इसका पैग़ाम सबके नाम है, अतः आपके नाम भी!
क़ुरआन का संक्षिप्त परिचय
क़ुरआन—ईशग्रंथ—शृंखला की अंतिम कड़ी—ईशवाणी के रूप में इस्लाम के अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) पर फ़रिश्ता (देवदूत) हज़रत जिबरील के माध्यम से अवतरित हुआ। क़ुरआन के अवतरण की मुद्दत 7,959 दिन है। (सौर्य वर्ष 21 साल, 9 महीने, 15 दिन…17.8.610-31.5.632 ई॰)
- क़ुरआन की लिपि व भाषा अरबी है। अरबी प्राचीन होने के बावजूद आज भी एक जीवंत भाषा है। पूरे विश्व में क़ुरआन असंख्य इन्सानों द्वारा अरबी में ही पढ़ा, कण्ठस्थ (Memorise) किया जाता और समझा जाता है तथा इसकी तमाम शिक्षाओं पर अमल का क्रम हमेशा जारी है।
- क़ुरआन के अर्थ का अनुवाद हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू और भारत की 14 राज्यीय भाषाओं समेत दुनिया की सैकड़ों भाषाओं में उपलब्ध है, तथा इस पर टीका और भाष्य (तफ़्सीर) भी।
- क़ुरआन में कुल 114 अध्याय (सूरः) हैं। कुछ बहुत छोटे, कुछ काफ़ी लंबे। मानव-लिखित पुस्तकों की तरह इसके अध्याय किसी विशेष विषय या उपविषय पर नहीं हैं बल्कि अधिकतर अध्यायों में से हर एक में अलग-अलग विषयों पर चर्चा हुई है क्योंकि इसका थोड़ा-थोड़ा अंश विभिन्न अवसरों पर, अलग-अलग आवश्यकता व परिस्थिति के अनुसार अवतरित होता था।
- क़ुरआन का बयान ‘लेखनशैली’ में नहीं बल्कि ‘भाषणशैली’ में है। अतः अक्सर ऐसा हुआ है कि संबोधक और संबोधित कौन है, प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट नहीं होता। इसका ज्ञान अवतरण की पृष्ठभूमि, और संदर्भ से होता है या ‘क़ुरआन-विज्ञान’ के अन्य माध्यमों से। एक ही बात, कई बार दोहराई भी गई है ताकि इन्सान का विवेक ईश्वरीय शिक्षा ग्रहण करने के लिए हर समय, हर परिस्थिति में जागृत रहे।
- क़ुरआन का पहला अध्याय (सूरः) बन्दों को ईश्वर द्वारा सिखाई गई (बन्दों की ज़बान में) एक याचना, प्रार्थना (दुआ) है, कि हे ईश्वर हमें वह सीधा मार्ग दिखा जिस पर चलने वाले लोग तेरे कृपा-पात्र हुए और पथ-भ्रष्ट न हुए, न तेरे प्रकोप के भागी हुए। इस प्रार्थना के जवाब में ईश्वर ने अपनी कृपा व अनुकम्पा से क़ुरआन के रूप में वह पैग़ाम अपने बन्दों को दिया जो अगले 113 अध्यायों में सविस्तार समाहित है।
- क़ुरआन में ईश्वर ने फ़रमाया है कि उसने मानवजाति के आरंभ से ही हर क़ौम में पथ-प्रदर्शक (हादी) अर्थात् रसूल, पैग़म्बर, नबी, Prophets भेजे हैं। इस्लामी विद्वानों के अनुसार उनकी संख्या लगभग सवा लाख है। सब पर ईमान लाना, इस्लाम में अनिवार्य है। अलबत्ता उनमें से सिर्फ़ लगभग 25-26 रसूलों के नाम क़ुरआन में उल्लिखित हैं। इनके अलावा बाक़ी रसूलों का ब्यौरा, उनका जीवन-आदर्श, उनकी शिक्षाएं आदि कालचक्र में खोकर रह गईं। क़ुरआन कहता है कि सबका मूल-आह्नान और अस्ल मिशन एक ही था…एकेश्वरवाद पर आधारित सत्य-धर्म। यह ‘सत्य-धर्म’ सदा एक ही रहा है।
- क़ुरआन का जो अंश अवतरित होता, ईश्वर के विशेष प्रयोजन से हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को याद हो जाता (क़ुरआन, 75:16)। आप उसे अपने साथियों को सुनाकर लिखवा भी देते। बहुत से साथी उन अंशों को कण्ठस्थ (Memorise) भी कर लेते। अवतरण पूरा हो जाने के बाद आप (सल्ल॰) की निगरानी में ही संपूर्ण क़ुरआन (ईशादेशानुसार) क्रमबद्ध और संकलित कर लिया गया। अल्लाह ने फ़रमाया था, ‘‘हम इसे अवतरित कर रहे हैं और हम ही इसकी हिफ़ाज़त भी करेंगे’’ (क़ुरआन, 15:9); अर्थात् पहले के ईश-ग्रंथों में मानवीय हस्तक्षेप या लापरवाही से जो परिवर्तन, कमीबेशी आदि हुई, उससे हिफ़ाज़त। फिर सुरक्षित, संरक्षित, शुद्ध व संपूर्ण क़ुरआन की प्रतियां तैयार कराके, अगले दशकों में इस्लामी राज्य के सात प्रमुख स्थानों पर भिजवा दी गईं। उनमें से एक-एक प्रति आज भी ताशक़न्द व इस्तंबोल के संग्रहालयों में सुरक्षित है। आज विश्व भर में मौजूद अरबों प्रतियां शब्द-शब्द उसी मूल-प्रतिलिपि की नक़ल हैं।
- ब्रह्माण्ड के सृजन व संचालन और स्वयं मनुष्य के (शारीरिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक व मनोवैज्ञानिक) अस्तित्व की रचना में जो तत्वदर्शिता, पूर्णता (Perfection), संतुलन, नियमबद्धता, सूक्ष्मदर्शिता, अनुशासन तथा अद्भुत्तता पाई जाती है उसे क़ुरआन में ईश्वर ने भूगोल (Geography), भूगर्भशास्त्र (Geology), जीव-विज्ञान (Biology), खगोल-विद्या (Astronomy), समुद्र-विज्ञान (Oceanology), जल-विज्ञान (Hydrology), ब्रह्माण्डकी (Cosmology), भ्रूण-विज्ञान (Embryology) और मानव-शरीर-विज्ञान (Antonomy) आदि की संक्षिप्त व सांकेतिक शैली में तर्क व प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करके ‘एकेश्वरवाद’ का आह्नान किया गया है कि ऐसे सर्वसक्षम, सर्वसमर्थ, सर्वतत्वदर्शी, सर्वशक्ति-संपन्न स्रष्टा, संयोजक, पालक-पोषक ईश्वर के बन्दों को चाहिए कि उसके स्वामित्व, सत्ता और प्रभुत्व में किसी को शरीक न करें, उसके पूज्य-उपास्य होने में, और अपना शीश नवाने, स्वयं को समर्पित कर देने में किसी दूसरे को उसका साझीदार न बनाएं। मात्र उसी के दास, मात्र उसी के आज्ञापालक बनकर जीवन बिताएं।
- क़ुरआन में, पृथ्वी पर मानवजाति के आरंभ से लेकर, इसके अवतरण-काल तक की विभिन्न क़ौमों, व्यक्तियों, समृद्ध व उन्नतशील जातियों एवं शक्तिशाली सम्राटों आदि के उत्थान व पतन और विनाश का इतिहास (History) बार-बार बयान करके लोगों को सचेत किया गया है कि ईश्वर के प्रति उद्दंडता व सरकशी, शिर्क, ईश्वर व बन्दों के अधिकार-हनन, अन्याय, अत्याचार तथा अनैतिकता आदि का बहुत ही बुरा अंजाम सामने आना है। ईश्वर ऐसे लोगों को वर्षों तक और ऐसी क़ौमों को सदियों तक सुधरने का अवसर और ढील देता है, लेकिन फिर पकड़ता है तो उसकी पकड़ बड़ी सख़्त होती है। यह क्षण आने से पहले जो लोग मृत्यु पा जाते हैं वे सज़ा पाने के लिए मृत्योपरांत (पारलौकिक) जीवन में पकड़ लिए तथा ईश्वरीय प्रकोप के भोगी बना दिए जाएंगे।
Source: islamdharma
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