What is Hadeeth?

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HADEETH

हदीस क्या हैं?

हदीस अरबी ज़ुबान का लफ़्ज़ हैं जिसके माने “बात” या “ब्यान” के हैं| इस्लाम के मुताबिक हदीस अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम कि वो बात या अमल(सुन्नत) हैं जिसे अल्लाह के रसूल ने या तो खुद किया हो या किसी को करने का हुक्म दिया हो या किसी दूसरे के किसी अमल पर खमोशी इख्तयार करी हो हदीस कहलाती हैं|

इस्लामी शरीयत के मुताबिक क़ुरान जो के अल्लाह की बात हैं, हदीस अल्लाह कि बात का दूसरा रूप हैं| इसकी मिसाल ऐसे ली जा सकती हैं के क़ुरान मे अल्लाह ने नमाज़ को पढ़ने का हुक्म दिया लेकिन नमाज़ किस-किस वक्त मे पढ़नी हैं कितनी पढ़नी हैं ये अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने बताया जो के हदीस कहलाती हैं| अल्लाह ने क़ुरान मे फ़रमाया-
और न वो अपनी तरफ़ से कोई बात कहता हैं| वो तो वह्यी हैं जो उतारी जाती है|(सूरह नज्म 53/3, 4)

क़ुरान की इस आयत से साबित हैं के रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम का हर अमल खुद ज़ाती तौर पर खुद की तरफ़ से नही होता बल्कि इसका हुक्म अल्लाह की तरफ़ से वह्यी के ज़रिये से होता|

हदीस के दो हिस्से होते हैं| पहला हिस्सा “मतन” कहलाता हैं जो के मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम या उनके सहाबी की बात या अमल होता हैं| दूसरा हिस्सा “सनद” होता हैं| जो की उस हदीस के बताने वालो का नाम(रावी)होता हैं| ये सारी कड़ीया (रावी)आखिर मे आकर या तो सीधे नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के सहाबी से या नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम से जुड़ती हैं| जब ये कड़िया(रावी) या बताने वाले सही होते हैं तो हदीस को सही माना जाता हैं|
हदीस के आलीमो(विद्वान) ने हदीस को उसके सही या गलत(हदीस के बताने वाले रावी) होने के हिसाब से हदीसो को अलग-अलग हिस्सो तक्सीम किया जो के नीचे दिये हैं-

hadees

मोतावातिर – जिस हदीस के रावी हर ज़माने मे इतने हो के जिन पर झूठ पर इकठ्ठे होना मुमकिन ना हो|

आहाद – जिस हदीस के रावी तादाद मे मोतावातिर हदीस के रावीयो से कम हो| इसकी तीन किस्मे होती हैं-
• मशहूर – जिस हदीस के रावी हर ज़माने मे दो से ज़्यादा हो|
• अज़ीज़ – जिस हदीस के रावी किसी ज़माने मे कम से कम दो रहे हो|
• गरीब – जिस हदीस क रावी किसी ज़माने मे एक रहा हो|

गैर मकबूल या ज़ईफ़ – जिस हदीस मे न तो सही हदीस की सिफ़ात हो और न हसन हदीस की सिफ़ात हो|
• मोअल्लिक – जिस हदीस का एक या सारे रावी इब्तेदाए सनद से साकित हो|
• मुनकताअ – जिस हदीस के एक या एक से ज़्यादा रावी मुख्तलिफ़ मुकामात से साकित हो|
• मुरसल – जिस हदीस क कोई एक रावी आखिर मसनद से साकता हो यानि ताबई के बाद सहाबी का नाम न हो|
• मुअज़्ज़ल – जिस हदीस के दो या दो ज़्यादा रावी इकठ्ठे मसनद के दरम्यान से साकित हो|
• मोअज़ू – जिस हदीस के मामले मे रावी का झूठ बोलना साबित हो|
• मुतरुक – जिस हदीस के रावी पर सिर्फ़ झूठ की तोहमत हो|
• शाज़ – एक शकह रावी अपने से ज़्यादा शकह रावी और ज़ाज़लाह की मुखालफ़त करे|
• मुनकर – जिस हदीस का रावी दाहिमी या फ़ासिक या बिदअती हो|

मौकूफ़ – जिस हदीस मे सहाबी रसूलल्लाह का नाम लेकर हदीस ब्यान करे या अपना ख्याल ज़ाहिर करें|

मकबूल – इसकी दो किस्मे होती हैं| सहीह और हसन –
सहीह – जिस हदीस की सनद मुतसल हो और इसके तमाम रावी शकह, दियानतदारी और कूवत हिफ़्ज़ के मालिक हो| इसकी सात किस्मे होती हैं-
जिसे बुखारी और मुस्लिम दोनो ने रिवायत किया हो|
जिसे सिर्फ़ बुखारी ने रिवायत किया हो|
• जिसे सिर्फ़ मुस्लिम ने रिवायत किया हो|
जिसे बुखारी और मुस्लिम दोनो कि शर्त पर किसी दूसरे मुहद्दिस ने रिवायत किया हो|
जिसे सिर्फ़ बुखारी कि शर्त पर किसी दूसरे मुहद्दिस ने रिवायत किया हो|
जिसे सिर्फ़ मुस्लिम कि शर्त पर किसी दूसरे मुहद्दिस ने रिवायत किया हो|
जिसे बुखारी और मुस्लिम के अलावा किसी दूसरे मुहद्दिस ने सही समझा हो

हसन – जिस हदीस के रावी हाफ़िज़े के ऐतबार से सही हदीस के रावी से कम दर्जे के हो|

मरफ़ूअ – जिस हदीस मे सहाबी रसूलल्लाह का नाम लेकर हदीस ब्यान करे|

हदीस को लिखने कि ज़रुरत और तारीख हदीसो को जमा करके एक किताब कि शक्ल मे लिखने का किताबी सिलसिला इस्लामी तारिख मे मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम कि वफ़ात के तकरिबन 100 सालो के बाद शुरु हुआ| हांलाकि मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के ज़माने मे हदीस को लोग याद रखते थे और कुछ सहाबी इसको लिख भी लेते थे पर हदीस को किताब कि शक्ल मे देने का सिलसिला मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम कि वफ़ात के लगभग 100 साल के बाद दिया गया|

मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम और उनके सहाबी के दौर मे हदीस (जैसे आज हदीस की किताब मौजूद हैं) लिखने का चलन का कोई सही तरीका ना था| जो बाते मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम अपने सहाबी को बताते सहाबी उन्हें याद कर लेते और बाज़ सहाबी उसे लिख भी लेते| हदीस के मामले मे कोई खास हुक्म ना था के इसे भी कुरान कि तरह लिख कर एक जगह जमा कर दिया जाये या इसे किताब कि तरह लिख कर बना लिया जाये|

हदीस की किताब लिखने कि असल ज़रुरत जो थी वो ये के मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम और उनके सारे सहाबीयो की वफ़ात के बाद इस्लाम के मुखाल्फ़िन ने उस ज़माने मे हदीसो मे जालसाज़ी शुरु कर दी थी यानि जिन मुसलमानो को हदीस नही पता थी उनको अल्लाह के रसूल और सहबियो के नाम लेकर गलत हदीस बताई जाती| जालसाज़ी का ये मामला इतना आगे बढ़ चुका था के गलत हदीसो की तादाद सही हदीसो से कयी गुना ज़्यादा हो गयी थी जिसके सबब उस ज़माने के मुसलिम हुक्मरानो और उल्माओ को हदीसो को जमा करके एक किताब की शक्ल मे देने की ज़रुरत मह्सूस हुई| आज जो हदीसो की किताब मौजूद हैं वो सभी किताबे पहली सदी हिजरी के आखीर मे लिखना शुरु हुई और तीसरी सदी हिजरी तक मुहद्दिसो और उल्माओ की मेहनत के सबब आज हमारे सामने मौजूद हैं| हदीस को तलाश कर लिखने का सिलसिला इसके बाद भी जारी रहा पर हदीस के मामले मे पहली तीन सदी ज़्यादा मशहूर हैं|

नीचे कुछ हदीस की किताबो के नाम दिये गये हैं-
मुअत्ता इमाम मालिक, मुसनद अहमद, सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम, सुनन अबू दाऊद, सुनन निसाई, जामिय तिर्मज़ी, सुनन इब्ने माजा, सुनन दार्मी, बालूगुल मराम, मुसतदरक हकीम, मिशकातुल मसाबीह, मिशकात शरीफ़ वगैराह|


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