What is Qur’an ?

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क़ुरान क्या हैं?

क़ुरान दीन ए इस्लाम कि एक बुनियाद, एक उसूल, एक किताब हैं| जिसे अल्लाह ने अपने नबी और रसूल जनाब मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम पर उतारा| वक्त और हालात के मुताबिक क़ुरान थोड़ा-थोड़ा करके 23 सालो मे अल्लाह के हुक्म के मुताबिक जिब्राईल अलैहिस्सलाम इसे मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के पास लेकर आये|

क़ुरान अरबी ज़ुबान क लफ़्ज़ हैं| जिसका मतलब पढ़ना हैं| खुद क़ुरान मे ये लफ़्ज़ तकरीबन 70 बार आया हैं| इसके अलावा क़ुरान के और भी कयी नाम हैं जैसे अल फ़ुर्कान, अल ज़िक्र वगैराह|

इस्लामी अकीदे के मुताबिक क़ुरान एक बार मे पूरा नही उतरा बल्कि हालात और वक्ति ज़रुरत के मुताबिक जिब्राईल अलैहिस्सलाम इसे मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के पास थोड़ा-थोड़ा करके लेकर आते| क़ुरान का नज़ूल सन 610 ईसवी से लेकर सन 632 ईसवी तक हुआ जिसे मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबी अकसर करके याद कर लेते और अल्लाह के रसूल के हुक्म पर हड्डियो और खाल(चमड़े) वगैराह पर लिख लेते क्योकि उस वक्त तक कागज़ का अविष्कार नही हुआ था| अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की वफ़ात(मौत) के बाद जब चीन मे कागज़ का अविष्कार हुआ तो पहली बार क़ुरान को कागज़ पर लिखा गया|

इस्लामी अक़ीदे के मुताबिक क़ुरान अल्लाह का हुक्म, एक कानून, एक शरीयत हैं जो अल्लाह ने तमाम इन्सानो के लिये उतारा ताकि इन्सान अल्लाह के हुक्म के मुताबिक एक इन्सानी निज़ाम बनाये जिसमे तमाम इन्सान एक कानून के पाबन्द हो| क़ुरान अल्लाह की पहली किताब नही बल्कि इससे पहले अल्लाह ने अपने दूसरे रसूलो पर भी किताब जैसे इन्जील(जो के ईसाईयो कि किताब हैं जिसे ईसा अलैहिस्सलाम पर उतारा (नाज़ील) गया), तौरेत(जो के यहुदीयो कि किताब हैं जिसे मूसा अलैहिस्सलाम पर उतारा (नाज़ील) गया), ज़बूर(जो के यहुदीयो कि किताब हैं जिसे दाऊद अलैहिस्सलाम पर उतारा (नाज़ील) गया)| गौरतलब बात ये है ईसाई यहुदीयो कि किताब को नही मानते और यहूदी ईसाईयो की किताब को नही मानते| जबकि क़ुरान खुद इस बात को कह्ता हैं कि ये किताबे भी अल्लाह हे की किताब हैं और इस्लाम के मानने वालो के लिये ये लाज़िम हैं के जिस तरह वो क़ुरान को अल्लाह कि किताब मानते हैं उसी तरह तौरेत, ज़बूर और इन्जील को भी अल्लाह कि किताब मानते हैं और ये इस्लामी अक़ीदे मे शामील हैं|

क़ुरान इस दुनिया कि एक अकेली अल्लाह कि किताब हैं जो 1400 सालो से वैसी ही आज भी मौजूद हैं जैसी अल्लाह ने उतारी जबकि तौरेत, ज़बूर और इन्जील आज अपनी उस हालत मे मौजूद नही जैसी अल्लाह ने उतारी थी| तारीख के लिहाज़ से भी ये साबित हो चुका है कि जो क़ुरान आज मुसलमान पढ़ते हैं वो उसी कुरान की एक कापी हैं जो मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम पर उतारी गयी थी| जिसे इस बात पर यक़ीन ना हो वो इसकी जान्च कर सकता हैं| इस दुनिया मे मौजूद क़ुरान कि किसी भी कापी को ले लिया जाये और उसे 1400 साल पहले की कुरान से मिला लिया जाये जो आज तक सुरक्षित हैं| इस्लाम के तीसरे खलीफ़ा हज़रत उस्मान रज़िल्लाहो ताला अन्हो की इस्लामी हुकुमत के दौरान हज़रत अबुबक्र सिद्दीक रज़िल्लाहो ताला अन्हो के ज़रिये लिखी 9 क़ुरान की कापीया जो कई देशो मे भेजी गयी थी उनमे से 2 कापीया आज भी मौजूद हैं जिनमे से एक तश्कन्द में दूसरी तुर्की में हैं| इन कुरान की कापीयो मै भी आज जो कुरान मौजूद हैं मिलाने पर एक भी मात्रा का फ़र्क नही हैं| 1400 साल पहले कुरान को जब अल्लाह ने उतारा तो इस चैंलेन्ज के साथ उतारा के वो खुद इसकी हिफ़ाज़त करेगा| तब से लेकर आज तक कुरान की मुखालिफ़त करने वालो की अनगिनत कोशिशो के बावजूद आज तक कोई इन्सान कुरान की किसी एक मात्रा मे भी तब्दीली नही कर पाया| इसके साथ कुरान का ये चैंलेन्ज भी आज तक ऐसा ही के कुरान के ना मानने वाले कुरान के सबसे छोटी सूरत(अध्याय) के जैसी एक सूरत ही बनाकर ले आये|

जिस तरह यहूदी और ईसाई आदम अलैहिस्सलाम से लेकर जितने भी अल्लाह ने नबी और रसूल भेजे उन सब पर यकीन रखते हैं ठीक उसी तरह मुसलमान भी तमाम नबीयो और रसूलो पर यकीन रखते हैं और ये इस्लाम की बुनियाद मे शामील हैं| अल्लाह कि पहली किताबे इस बात का खुद सबूत देती हैं कि एक आखरी रसूल आयेगा और उस पर भी एक किताब उतारी जायेगी बावजूद इसके यहूदी और ईसाई क़ुरान पर यकीन नही रखते|

क़ुरान मे कुल 114 अध्याय हैं जिसे सूरह कहते हैं| हर सूरह मे अलग-अलग वाक्य हैं जिसे आयत कह्ते है| क़ुरान मे 114 सूरतो मे कुल 6666 आयते हैं| क़ुरान अकेली ऐसी किताब है जिसमे इन्सान के पैदा होने से लेकर मरने तक, अल्लाह की इबादत किस तरह से करनी हैं और गुमराही के रास्ते से किस तरह बचना ये तमाम बाते के उसे किस तरह इस दुनिया मे रहना हैं और अपनी और अपने समाज की व्य्वस्था किस तरह बनानी हैं के बारे मे तफ़्सील से बताया गया हैं|

क़ुरान को समझने के लिये उसकी आयतो का हालात ए नुज़ूल (कब किस वक्त आयते उतारी गयी) का जानना बहुत ज़रूरी हैं| क्योकि क़ुरान को अल्लाह ने एक बार मे पूरा उतार कर नही दे दिया बल्कि जब किसी के साथ कोई मामला होता या वक्त और हालात के मद्देनज़र ज़रुरत के हिसाब से उतारा| कुच लोग कुरान की आयतो का शाने नज़ूल के जाने बिना पढ़ते हैं और ये कहते हैं कि कुरान समझ नही आया| जबकि कुरान के उतरने के दो पहलू हैं एक मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की मक्की(13 साल लगभग) ज़िन्दगी का दूसरा मदनी(10 साल लगभग)|