इस्लामिक बैंकिंग :
अर्थथास्त्रियों के अनुमानों को सही माना जाए तो अगले पांच बरसों में दुनिया का इकॉनमिक सिस्टम इस्लामी और गैर इस्लामी में पूरी तरह बंट जाएगा। इस्लामी बैंकिंग का न सिर्फ तेजी से विस्तार हो रहा है, बल्कि उसे गैर मुस्लिमों का समर्थन भी बढ़ता जा रहा है। आज जब इस्लामी कट्टरता ने बहुत से लोगों की नींद उड़ा रखी है, तो यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या इस्लामी बैंकिंग किसी खतरे को जन्म देगी? इस बारे में कोई अंदाजा लगाना और इस्लामी बैंकिंग को इस्लामी जेहाद से जोड़ना गलत होगा, लेकिन तो भी इस परिघटना के असर दुनिया के भावी स्वरूप पर बेहद गहरे पड़ेंगे, जिनका आकलन अभी होना बाकी है। अर्थ पर धर्म का असर पहले भी रहा है, लेकिन यह पहली बार है, जब ग्लोबल पैमाने पर एक मजहबी वित्तीय सिस्टम विकल्प के तौर पर उभर रहा है। पूंजीवादी अर्थशास्त्र से इसकी जबर्दस्त टक्कर होगी और नतीजे चौंकाने वाले होंगे।
फिलहाल तो इस्लामी बैंकिंग एक बड़ी लहर की तरह उठ रहा है। अमेरिका और यूरोप के लगभग सभी बैंक और वित्तीय संस्थान इसे अपना रहे हैं। भारत में भी इसकी शुरुआत हो गई है। दिल्ली की एक एसेट मैनेजमेंट कम्पनी ने सेबी से इस्लामी म्यूचुअल फंड लॉन्च करने के लिए संपर्क किया है। इस कम्पनी का दावा है कि मुसलमानों से ज्यादा गैर मुसलमानों में यह फंड पॉपुलर होगा। यह कम्पनी उन्हीं धंधों में पैसा निवेश करेगी, जिनकी शरीयत में इजाजत दी गई है।
कम्पनी के मुताबिक बीएसई-100 में 71 और बीएसई-500 में 366 शेयर ऐसे हैं जो इस्लामी बैंकिंग में बताए गए कायदों पर खरे उतरते हैं। इस्लामी बैंकिंग को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, यूरोप के कुछ देशों और थाइलैंड में भी उत्साह है। ब्याज रहित लोन तो सभी के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। कुवैत में एक मलयेशियाई बैंक में 40 फीसदी जमाकर्ता और 60 फीसदी कर्ज लेने वाले गैर मुस्लिम हैं।
दरअसल हुआ यह है कि 9/11 के बाद से मिडल ईस्ट के सभी मुस्लिम देशों ने अमेरिका ओर यूरोप के बैंकों में अपना पैसा जमा करना लगभग बंद कर दिया। यही नहीं, अमेरिका और यूरोप के बैंकों से मुस्लिम देशों की लगभग 800 अरब डॉलर की रकम निकाल ली गई। तेल के लगातार बढ़ते दामों से मिडल ईस्ट के खजाने भरते जा रहे हैं। अब मुस्लिम देशों ने अपनी रकम अपनी पहुंच के देशों यानी मुस्लिम देशों में ही जमा करनी शुरू कर दी है। इसी का नतीजा है कि हर साल दस फीसदी की दर से बढ़ते करीब पांच सौ अरब डॉलर के एसेट्स के साथ तीन सौ से ज्यादा इस्लामी वित्तीय संस्थान पनप चुके हैं।
इस्लामी बैंकिंग और गैर इस्लामी बैंकिंग में बुनियादी फर्क यह है कि इस्लामी वित्तीय संस्थान अपना पैसा ऐसी किसी फर्म में नहीं लगाते, जो अल्कोहल, जुआ, तम्बाकू, हथियार, सूअर या पोर्नोग्राफी का कारोबार करती हों। इसके अलावा ब्याज रहित कारोबार उसका सबसे बड़ा आकर्षण है ही। इस्लामी वित्तीय व्यवस्था में बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे ‘फंड मैनेजमेन्ट कंसेप्ट‘ के जरिए धन जमा करें, पैसे पर ब्याज बटोर कर नहीं। मसलन, चार साल तक कुछ लोगों का पैसा एक पूल में जमा किया जाए, उससे कोई निर्माण किया जाए, फिर उस प्रॉपर्टी को बेचकर पैसा सभी जमाकर्ताओं में बांट दिया जाए। जाहिर है यह काम बैंक का नहीं कारोबारी का है, बैंक उन्हें बिना व्याज कर्ज देता है, पूरा मुनाफा लेता है, बिल्डर्स को मेहनताना देता है।
ब्याज को बाइबल ने भी प्रतिबंधित किया है। अरस्तू ने ब्याज की निंदा की थी। रोमन साम्राज्य ने ब्याज को सीमित किया था। शुरुआत में कई ईसाई राज्यों ने ब्याज पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन 1875 में जब मिस विदेशी कर्ज के बोझ से दब गया तो इसी का फायदा ब्रिटेन ने उठाया। उसने मिस पर कब्जा कर लिया और स्वेज कैनाल में लगे उसके शेयर हथिया लिए। इस घटना से पूरी इस्लामी दुनिया में कोहराम मच गया। मुस्लिम देशों के लिए यह वह मोड़ था जिसने ब्याज रहित इस्लामी बैंकिंग को लगभग ध्वस्त कर दिया। पूरी दुनिया में ब्याज सिस्टम ने अपनी जड़ें जमा लीं।
लेकिन अब वक्त पलट रहा है। विश्व पूंजीवाद के लीडर अमेरिका की ताकत घट रही है। 9/11 के बाद से उसकी लगातार गिरती इकॉनमी को बड़ा झटका इस साल तब लगा जब सब प्राइम संकट से उसका हाउसिंग मार्केट धराशायी हो गया। ऐसे में अमेरिका और यूरोप के अग्रणी वित्तीय संस्थानों ने हवा के रुख के साथ चलने का फैसला किया। बदलते अर्थतंत्र में अपनी जगह सभी को बचानी है। मुस्लिम देशों के पैसे से अमेरिका धीरे-धीरे महरूम हो रहा है। उसके पास और विकल्प ही क्या बचता है कि वह उन्हीं के तौर-तरीकों को अपनाए। यह बात यूरोप पर भी लागू होती है। इसीलिए इन लोगों ने इस्लामी बैंकिंग को फिलहाल मुनाफे का काम मानकर इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। इसीलिए सिटी बैंक ग्रुप ने बाकायदा एक अलग विभाग ‘इस्लामिक बैंकिंग इन एशिया फॉर सिटीग्रुप‘ बना दिया है। सबसे पहले सिटी गुप की इसी ब्रांच ने प्राइवेट इक्विटी को इस्लामी कंसेप्ट बताया और पूरी दुनिया के इस्लामी देशों में अपना कारोबार बढ़ा लिया। सिटी बैंक ग्रुप और एचएसबीसी के बोर्ड में इस्लामी बैंकिंग के जानकारों को शामिल किया जा रहा है। लंदन, तोक्यो और हांगकांग के संस्थान भी इस्लामी बैंकिंग अपनाने को मजबूर दिख रहे हैं। मलयेशिया और कुवैत के अलावा अब तुर्की भी इस्लामी बैंकिंग के अग्रणी देशों में शुमार हो रहा है। माना जा रहा है कि जल्दी ही ऑस्ट्रेलिया, चीन सेंट्रल एशिया के देशों में भी इस्लामी बैंकिंग का विस्तार हो जाएगा।
इस्लामी बैंकिंग को मजबूत आधार देने के लिए मलयेशिया में काफी बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। इसके लिए स्कॉलरशिप और ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। मलयेशिया में 1962 में ही आधुनिक इस्लामी बैंक की स्थापना हो गई थी। बाद में मलयेशिया सरकार ने पूरे देश में इस्लामी बैंक खोले। सन् 2001 में सरकार ने टैक्स छूट देने की स्कीम शुरू की। इसका मकसद 2010 तक देश के कुल एसटे्स के कम से कम पांचवें हिस्से को इस्लामी वित्त व्यवस्था का अंग बनाना है। इस साल सऊदी अरब के नैशनल कमर्शल बैंक ने तूनीशिया और मोरक्को में अपनी इस्लामी बैंकिंग की शुरुआत कर दी।
साभार: नवभारत टाइम्स
by : सुहेल वहीद, जर्मन रेडियो डाउचे वैले
Courtesy:
www.ieroworld.net
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