Pavitra Qur’an aur Antarikch Vigyan

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QURAN AUR VIGYAN

पवित्र क़ुरआन और अंतरिक्ष विज्ञान

जब से इस पृथ्वी ग्रह पर मानवजाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य ने हमेशा यह समझने की कोशिश की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, रचनाओं और प्राणियों के ताने-बाने में इसका अपना क्या स्थान है और यह कि आखि़र खु़द जीवन की अपनी उपयोगिता और उद्देश्य क्या है ? सच्चाई की इसी तलाश में, जो सदियों की मुद्दत और धीर – गम्भीर संस्कृतियों पर फैली हुई है संगठित धर्मो ने मानवीय जीवन शैली की संरचना की है और एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक धारे का निर्धारण भी किया है ।

कुछ धर्मो की बुनियाद लिखित पंक्तियों व आदेशों पर आधारित है जिन के बारे में उनके अनुयायियों का दावा है कि वह खुदाई या ईश्वरीय साधनों से मिलने वाली शिक्षा का सारतत्व है जब कि अन्य धर्म की निर्भरता केवल मानवीय अनुभवों पर रही है ।

क़ुरआन पाक, जो इस्लामी आस्था का केंद्रीय स्रोत है एक ऐसी किताब है जिसे इस्लाम के अनुयायी मुसलमान, पूरे तौर पर खु़दाई या आसमानी साधनों से आया हुआ मानते हैं। इसके अलावा क़ुरआन -ए पाक के बारे में मुसलमानों का यह विश्वास, कि इसमें रहती दुनिया तक मानवजाति के लिये निर्देश मौजूद है, चूंकि क़ुरआन का पैग़ाम हर ज़माने, हर दौर के लोगों के लिये है, अत: इसे हर युगीन समानता के अनुसार होना चाहिये, तो क्या क़ुरआन इस कसौटी पर पूरा उतरता है ?

सृष्टि की संरचना:

‘‘बिग बैंग ‘‘अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञों ने सृष्टि की व्याख्या एक ऐसे सूचक(phenomenon) के माध्यम से करते हैं और जिसे व्यापक रूप ‘‘से बिग बैंग‘‘(big bang) के रूप में स्वीकार किया जाता है। बिग बैंग के प्रमाण में पिछले कई दशकों की अवधि में शोध एवं प्रयोगों के माध्यम से अंतरिक्ष विशेषज्ञों की इकटठा की हुई जानकारियां मौजूद है ‘बिग बैंग‘ दृष्टिकोण के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्ठि प्राथमिक रसायन (primary nebula) के रूप में थी फिर एक महान विस्फ़ोट यानि बिग बैंग (secondry separation) हुआ जिस का नतीजा आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाश गंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, ग्र्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि के अस्तित्व में परिवर्तित हो गए कायनात, प्रारम्भ में इतनी पृथक और अछूती थी कि संयोग (chance) के आधार पर उसके अस्तित्व में आने की ‘‘सम्भावना: (probability) शून्य थी । पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्नलिखित आयतों में बताता है:

‘‘क्या वह लोग जिन्होंने ( नबी स.अ.व. की पुष्टि ) से इन्कार कर दिया है ध्यान नहीं करते कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर हम ने उन्हें अलग किया‘‘(अल – क़ुरआन: सुर: 21, आयत 30 )

इस क़ुरआनी वचन और ‘‘बिग बैंग‘‘ के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं! यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से 1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई अपने अन्दर ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?

आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन:

वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (gas) की अवस्था में था, संक्षिप्त यह कि आकाशगंगा निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था. सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द ‘‘धुंआ‘‘ है।

निम्नांकित आयतें क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था को धुंआ शब्द से रेखांकित किया है।

‘‘फिर वे आसमान की ओर ध्यान आकर्षित हुए जो उस समय सिर्फ़ धुआं था उस (अल्लाह) ने आसमान और ज़मीन से कहा:अस्तित्व में आजाओ चाहे तुम चाहो या न चाहो‘‘ दोनों ने कहा: हम आ गये फ़र्मांबरदारों (आज्ञाकारी लोगों) की तरह‘‘(अल ..कु़रआन: सूर: 41 ,,आयत 11)

एक बार फिर, यह यथार्थ भी ‘‘बिग बैंग‘‘ के अनुकूल है जिसके बारे में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा़ (स.अ.व. )की पैग़मबरी से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था (बिग बैंग दृष्टिकोण बीसवीं सदी यानी पैग़मबर काल के 1300 वर्ष बाद की  पैदावार है )

अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?

धरती की अवस्था:

गोल या चपटी ?

प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयाक्रांति करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़! सर फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने 1597 ई0 में धरती के गिर्द ( समुद्र मार्ग से ) चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार ) है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है:

‘‘ क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में ‘‘(अल-.क़ुरआन: सूर: 31 आयत 29 )

यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अल्लाह ताला ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन के रात में ढलने (परिवर्तित होने )की चर्चा की है ,यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार ) हो। अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता ।

निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है:

उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ (यथार्थ रूप से )उत्पन्न किया है ,, वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है।,,(अल.-क़ुरआन: सूर:39 आयत 5)

यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द ‘‘कव्वर‘‘ का अर्थ है किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या overlap करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर ( तार की तरह ) बांधना। दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है जब ज़मीन की बनावट गोल हो ।

ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह (geo-spherical) है यानि ध्रुव (poles) पर से थोडी सी चपटी है। निम्न आयत में ज़मीन के बनावट की व्याख्या यूं की गई हैः ‘‘और फिर ज़मीन को उसने बिछाया ‘‘(अल क़ुरआन: सूर 79 आयत 30)

यहां अरबी शब्द ‘‘दहाहा‘‘ प्रयुक्त है, जिसका आशय ‘‘शुतुरमुर्ग़‘‘ के अंडे के रूप, में धरती की वृत्ताकार बनावट की उपमा ही हो सकता है। इस प्रकार यह माणित हुआ कि पवित्र क़ुरआन में ज़मीन के बनावट की सटीक परिभाषा बता दी गई है, यद्यपि पवित्र कुरआन के अवतरण काल में आम विचार यही था कि ज़मीन चपटी है।

चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है:

प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।

,,बड़ा पवित्र है वह जिसने आसमान में बुर्ज ( दुर्ग ) बनाए और उसमें एक चिराग़ और चमकता हुआ चांद आलोकित किया ।( अल. क़ुरआन ,सूर: 25 आयत 61)

पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द ‘‘शम्स‘‘ प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को ‘सिराज‘ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है मशाल (torch) जबकि अन्य अवसरों

पर उसे ‘वहाज‘ अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ ‘‘प्रदीप्त‘ तेज और महानता‘‘ है। सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन combustion का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है।

चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द क़मर प्रयुक्त किया गया है और इसे बतौर‘ मुनीर प्रकाशमान बताया गया है ऐसा शरीर जो ‘नूर‘ (ज्योति) प्रदान करता हो। अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो। एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है और हमें जलता हुआ दिखाई देता है। पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये‘, सिराज वहाज, या दीपक जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है और न ही सूरज को , नूर या मुनीर‘,, कहा गया है। इस से स्पष्ट होता है कि पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।

निम्नलिखित आयात में सूरज और चांद की रोशनी के बीच अंतर इस तरह स्पष्ट किया गया है:

वही है जिस ने सूरज को उजालेदार बनाया और चांद को चमक दी ।,,( अल-क़ुरआन: सूरः 10,, आयत 5 ,,)

क्या देखते नहीं हो कि अल्लाह ने किस प्रकार सात आसमान एक के ऊपर एक बनाए और उनमें चांद को नूर ( ज्योति ) और सूरज को चिराग़ (दीपक) बनाया ।( अल- क़ुरआन: सूर:71 आयत 15 से 16 )

इन पवित्र आयतों के अध्य्यन से प्रमाणित होता है कि महान पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान में धूप और चाँदनी की वास्तविकता के बारे में सम्पूर्ण सहमति है ।

सूरज घूमता है:

एक लम्बी अवधि तक यूरोपीय दार्शिनिकों और वैज्ञानिकों का विश्वास रहा है कि धरती सृष्टि के केंद्र में चुप खड़ी है और सूरज सहित सृष्टि की प्रत्येक वस्तु उसकी परिक्रमा कर रही है। इसे धरती का केंद्रीय दृष्टिकोण‘ भूकेन्द्रीय सिद्धांत geo-centric-theory भी कहा जाता है जो बतलीमूस- काल, दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर 16 वीं सदी ई. तक सर्वमान्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है, पुन:

1512 ई0 में निकोलस कॉपरनिकस ने ‘‘अंतरिक्ष में ग्रहों की गति के सौर-..केंद्रित ग्रह- गति सिद्धांत heliocentric theory of planetary motion का प्रतिपादन किया जिसमें कहा गया था कि सूरज सौरमण्डल के केंद्र में यथावत है और अन्य तमाम ग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे है: 1609 ई0 में एक जर्मन वैज्ञानिक जोहानस कैप्लर ने astronomia nova (खगोलीय तंत्र) नामक एक किताब प्रकाशित कराई। जिसमें विद्वान लेखक ने, न केवल यह सिद्ध किया कि सौरमण्डल के ग्रह दीर्ध वृत्तीय:elliptical अण्डाकार धुरी पर सूरज की परिक्रमा करते हैं बल्कि उसमें यह प्रमाणिकता भी अविष्कृत है कि सारे ग्रह अपनी धुरियों (axis) पर अस्थाई गति से घूमते हैं। इस अविष्कृत ज्ञान के आधार पर यूरोपीय वैज्ञानिकों के लिये सौरमण्डल की अनेक व्यवस्थाओं की सटीक व्याख्या करना सम्भव हो गया। रात और दिन के परिवर्तन की निरंतरता के इन अविष्कारों के बाद यह समझा जाने लगा कि सूरज यथावत है और धरती की तरह अपनी धुरी पर परिक्रमा नहीं करता। मुझे याद है कि मेरे स्कूल के दिनों में भूगोल की कई किताबों में इसी ग़लतफ़हमी का प्रचार किया गया था। अब ज़रा पवित्र क़ुरआन की निम्न आयतों को ध्यान से देखें:

”और वह अल्लाह ही है, जिसने रात और दिन की रचना की और सूर्य और चांद को उत्पन्न किया,, सब एक. एक फ़लक (आकाश ) में तैर रहे हैं।“( अल-क़ुरआन: सूर: 21 आयत 33 )

ध्यान दीजिए कि उपरोक्त आयत में अरबी शब्द ‘‘यस्बहून‘‘ प्रयुक्त किया गया है जो सब्हा से उत्पन्न है जिसके साथ एक ऐसी हरकत की वैचारिक संकल्पना जुडी़ हुई है जो किसी शरीर की सक्रियता से उत्पन्न हुई हो। अगर आप धरती पर किसी व्यक्ति के लिये इस शब्द का उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह लुढक रहा है बल्कि इसका आशय होगा कि अमुक व्यक्ति दौड़ रहा है अथवा चल रहा है अगर यह शब्द पानी में किसी व्यक्ति के लिये उपयोग किया जाए तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह पानी पर तैर रहा है बल्कि इसका अर्थ होगा कि,अमुक व्यक्ति पानी में तैराकी (swimming) कर रहा है।

इस प्रकार जब इस शब्द ’यसबह’ का किसी आकाशीय शरीर (नक्षत्र) सूर्य के लिये उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ केवल यही नहीं होगा कि वह शरीर अंतरिक्ष में गतिशील है बल्कि इसका वास्तविक अर्थ कोई ऐसा साकार शरीर होगा जो अंतरिक्ष में गति करने के साथ साथ अपने धु्रव पर भी घूम रहा हो। आज स्कूली पाठयक्रमों में अपनी जानकारी ठीक करते हुए यह वास्तविक्ता शामिल कर ली गई है कि सूर्य की ध्रुवीकृत परिक्रमा की जांच किसी ऐसे यंत्र से की जानी चाहिये जो सूर्य की परछाई को फैला कर दिखा सके इसी प्रकार अंधेपन के ख़तरे से दो चार हुए बिना सूर्य की परछाई का शोध सम्भव नहीं। यह देखा गया है कि सूर्य के धरातल पर धब्बे हैं जो अपना एक चक्कर लगभग 25 दिन में पूरा कर लेते है । मतलब यह की सूर्य को अपने ध्रुव के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 25 दिन लग जाते है। इसके अलावा सूर्य अपनी कुल गति 240 किलो मीटर प्रति सेकेण्ड की रफ़तार से अंतिरक्ष की यात्रा कर रहा है। इस प्रकार सूरज समान गति से हमारे देशज मार्ग आकाशगंगा की परिक्रमा बीस करोड़ वर्ष में पूरी करता है।

न सूर्य के बस में है कि वह चांद को जाकर पकड़े और न ‘रात,‘‘, ‘दिन पर वर्चस्व ले जा सकती है ,, यह सब एक एक आकाश में तैर रहे हैं।,,(अल-क़ुरआन: सूर: 36 आयत 40 )

यह पवित्र आयत एक ऐसे आधारभूत यथार्थ की तरफ़ इशारा करती है जिसे आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान ने बीती सदियों में खोज निकाला है यानि चांद और सूरज की मौलिक ‘‘परिक्रमा orbits का अस्तित्व अंतिरक्ष में सक्रिय यात्रा करते रहना है।

‘वह निश्चित स्थल fixed place जिसकी ओर सूरज अपनी सम्पूर्ण मण्डलीय व्यवस्था सहित यात्रा पर है। आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान द्वारा सही-सही पहचान ली गई है।

इसे सौर ,कथा solar epics का नाम दिया गया है। पूरी सौर व्यवस्था वास्तव में अंतरिक्ष के उस स्थल की ओर गतिशील है जो हरक्यूलिस नामक ग्रह Elphalerie area में अवस्थित है और उसका वास्तविक स्थल हमें ज्ञात हो चुका है।

चांद अपनी धुरी पर उतनी ही अवधि में अपना चक्कर पूरा करता जितने समय में वह धरती की एक परिक्रमा पूरी करता है। चांद को अपनी एक ध्रुवीय परिक्रमा पूरी करने में 29.5 दिन लग जाते हैं । पवित्र क़ुरआन की आयत में वैज्ञानिक वास्तविकताओं की पुष्टि पर आश्चर्य किये बिना कोई चारा नहीं है। क्या हमारे विवेक में यह सवाल नहीं उठता कि आखिर ‘‘क़ुरआन में प्रस्तुत ज्ञान का स्रोत और ज्ञान का वास्तविक आधार क्या है?‘‘

सूरज बुझ जाएगा?

सूरज का प्रकाश एक रसायनिक क्रिया का मुहताज है जो उसके धरातल पर विगत पांच अरब वर्षों से जारी है भविष्य में किसी अवसर पर यह कृत रूक जाएगा और तब सूरज पूर्णतया बुझ जाएगा जिसके कारण धरती पर जीवन की समाप्ति हो जाए पवित्र क़ुरआन सूरज के अस्तित्व की पुष्टि इस प्रकार करता है:

‘‘और सूरज वह अपने ठिकाने की तरफ़ चला जा रहा है यह ब्रहम्ज्ञान के स्रोत महाज्ञानी का बांधा हुआ गणित है‘‘ (अल-क़ुरआन: सुर: 36 आयत 38 )

विशेष: इसी प्रकार की बातें पवित्र क़ुरआन के सूर: 13 आयत 2,,सूर: 35, आयत 13, सूर: 39 आयत 5 एवं 21 में भी बताई गई हैं

यहां अरबी शब्द‘‘ मुस्तकिर: ठिकाना का प्रयुक्त हुआ है जिस का अर्थ है पूर्व से संस्थापित ‘समय‘ या ‘स्थल‘ यानी इस आयत में अल्लाह ताला कहता है कि सूरज पूर्वतः निश्चित स्थ्ल की ओर जा रहा है ऐसा पूर्व निश्चित समय के अनुसार ही करेगा अर्थात् यह कि सूरज भी समाप्त हो जाएगा या बुझ जाएगा।

अन्तर तारकीय द्रव:

पिछले ज़माने में संगठित अंतरिक्ष व्यवस्थओं से बाहर वाहृय अंतरिक्ष: वायुमण्डल को सम्पूर्ण रूप से ‘ख़ाली:vacum माना जाता था इसके बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इस अंतरिक्ष्य प्लाविक के द्रव्यात्मक पुलों (bridge) की खोज की जिसे प्लाविक plasma कहा जाता है जो सम्पूर्ण रूप से लोनाइज़्ड गैस lonized-gas पर आधारित होते हैं और जिसमें सकारात्मक प्रभाव वाले,, अकेले:loni और स्वतंन्न इलैक्ट्रनों की समान संख्या होती है। द्रव की तीन जानी पहचानी अवस्थाओं यानी ठोस ,तरल और ज्वलनशील तत्वों के अतिरिक्त प्लाविक को चौथी अवस्था भी कहा जाता है निम्नलिखित आयत में पवित्र क़ुरआन अंतरिक्ष के प्लाविक द्रव या अन्त: इस्पात द्रव्य:intra steels material की ओर संकेत करता है ।

‘‘वह जिस ने छह दिनों में ज़मीन और आसमानों और उन सारी वस्तुओं का निर्माण पूरा कर दिया जो आसमान और ज़मीन के बीच में हैं।( अल-क़ुरआन ,,सूर: 25 आयत 59 )

किसी के लिये यह विचार भी हास्यास्पद होगा कि वायुमण्डल अंतरिक्ष एवं आकाशगंगा के द्रव्यों का अस्तित्व 1400 वर्ष पहले से ही हमारे ज्ञान में था।

सृष्टि का फैलाव:

1925 ई0 में अमरीका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक एडोन हबल adone hubble ने इस संदर्भ में एक प्रामाणिक खोज उपलब्ध कराया था कि सभी आकाशगंगा एक दूसरे से दूर हट रहे हैं अर्थात सृष्टि फैल रही है सृष्टि व्यापक हो रही है। यह एक वैज्ञानिक यथार्थ है इस बारे में पवित्र क़ुरआन में सृष्टि की संरचना के संदर्भ से अल्लाह फ़रमाता है:

‘‘आसमान को हम ने अपने ज़ोर से बनाया है और हम इसकी कुदरत: प्रभुत्व रखे है (या इसे फैलाव दे रहे हैं) (अल-क़ुरआन: सूर: 51 आयत 47 )

अरबी शब्द वासिऊन का सही अनुवाद इसे फैला रहे हैं बनता है तो यह आयत सृष्टि के ऐसे निर्माण की ओर संकेत करती है जिसका फैलाव निरंतर जारी है ।

वर्तमान युग का प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिगं अपने शोधपत्र: समय का संक्षिप्त इतिहास: a brief history of time में लिखता हैः यह ‘‘खोज ! कि सृष्टि फैल रही है बीसवी सदी के महान बौद्धिक और चिंतन क्रांतियों में से एक है,, अब ध्यान दीजिये कि पवित्र क़ुरआन नें सृष्टि के फैलाव की कथा उसी समय बता दी थी जब मनुष्य ने दूरबीन तक का अविष्कार नहीं किया था। इसके बावजूद संदिग्ध विवेक रखने वाले कुछ लोग, यह कह सकते हैं कि पवित्र क़ुरआन में आंतरिक्ष यथार्थ का मौजूद होना आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि अरबवासी इस ज्ञान के प्रारम्भिक विशेषज्ञ थे।

अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के प्राधिकरण की सीमा तक तो उनका विचार ठीक है लेकिन इस बिंदु को समझने में वे नाकाम हो चुके हैं कि अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के उत्थान से भी सदियों पहले ही पवित्र क़ुरआन का अवतरण हो चुका था इसके अतिरिक्त ऊपर वर्णित बहुत से वैज्ञानिक यथार्थ जैसे बिग बैंग से सृष्टि के प्रारम्भन आदि की जानकारी से तो अरब उस समय भी अनभिज्ञ ही थे जब वह विज्ञान और तकनीक के विकास और उन्नति की सर्वोत्तम ऊंचाई पर थे अत: पवित्र क़ुरआन में वर्णित वैज्ञानिक यथार्थ को अरबवासियों की विशेषज्ञता नहीं मान जा सकता। दरअस्ल इसके प्रतिकूल सच्चाई यह है कि अरबों ने अंतरिक्ष विज्ञान में इसलिये उन्नति की क्योंकि अंतरिक्ष और सृष्टि के निर्माण विषयक जानकारियां पवित्र क़ुरआन में आसानी से उप्लब्ध हो गए थे। इस विषय को पवित्र क़ुरआन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।

Courtesy:
www.ieroworld.net
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)


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