Sab ke Liye Saakchhaat Aadarsh – Hazrat Muhammad(saw)

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सब के लिए साक्षात् आदर्श – हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)

aadarshमानव-जीवन को कल्याण और भलाई के मार्ग पर डालने के लिए एक आदर्श चाहिए। आदर्श वास्तव में मापदंड (Standard) का काम करता है, जिस पर नाप-तौलकर यह पता लगाया जाता है कि किसी व्यक्ति के व्यवहार का कितना भाग खरा है और कितना खोटा। मापदंड या आदर्श काल्पनिक भी होते हैं, जो क़िस्से-कहानी के रूप में उपदेशों में बयान किए जाते हैं और सुनकर लोग ख़ुश होते हैं। लेकिन उसका कोई वास्तविक लाभ व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन में नहीं होता। आदर्श होने के लिए सिर्फ़ इतना ही काफी नहीं है कि यह संभव और व्यावहारिक हो, बल्कि यह भी ज़रूरी है कि वह आदर्श किसी का जीवन बन चुका हो और उसने उस पर चलकर आदर्श का व्यावहारिक नमूना पेश किया हो। उस व्यक्ति के हृदय मंक मानव के प्रति इतना प्रेम हो कि हर कोई उसे अपना शुभ चिंतक समझने लगे। उसके प्रेम में डूबकर उसके आदर्श को अपनाने के लिए दीवाना हो जाए। इसके लिए वह केवल धन और दौलत लुटाने ही को तैयार न हो बल्कि जीवन भी बलिदान करने के लिए तत्पर हो जाए।

इतिहास में ऐसे अनगिनत महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपना सब कुछ मानवता के उत्थान और मुक्ति के लिए बलिदान किया है। मानव का सही मार्गदर्शन किया है। उन सब पर ईश्वर की अपार कृपा हो! दुनिया के किसी कोने में, इतिहास के किसी काल में और मानव-समुदाय की किसी जाति में उनका जन्म हुआ हो, हम उन्हें सलाम करते हैं और अपनी हार्दिक श्रद्धा उनको अर्पित करते हैं। वे सभी हमारे आदर्श पुरुष हैं।

लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि कालांतर में उनकी जीवनी और उनकी शिक्षाएं सुरक्षित नहीं रह सकीं। कुछ ऐसे प्रमाण अवशेष हैं जिनसे हमें मालूम होता है कि वे महान और आदर्श पुरुष थे। अफ़सोस कि उनके जीवन के आकार-प्रकार और उनकी शिक्षाओं की विस्तृत जानकारी के लिए हमारे पास कोई प्रामाणिक साधन नहीं है। यह ईश्वर की बड़ी कृपा है कि महान विभूतियों में एक महान व्यक्तित्व का पूरा जीवन इतिहास के प्रकाश में है। उसके जीवन और शिक्षाओं के बारे में हम जो कुछ जानना चाहें, सब मालूम कर सकते हैं। कहीं अटकल और अनुमान से काम लेने की ज़रूरत नहीं। निजी जीवन, सामाजिक जीवन और राजनीतिक जीवन भी, सब प्रकाश में हैं। यह प्रकाश-पुंज समस्त मानवजाति की अमूल्य धरोहर है। यह व्यक्तित्व है हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का।

जीवन की एक झलक

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सन् 571 ई॰ में अरब देश के ‘मक्का’ नगर में पैदा हुए। जन्म से पूर्व ही पिता का देहांत हो गया। बचपन ही में थोड़े-थोड़े अंतराल से उनकी माता और दादा का भी देहांत हो गया। चाचा ने उनका पालन-पोषण किया। बचपन ही से उनके स्वभाव में ऐसी विनम्रता थी कि पूरे परिवार और नगर के लोग उनका आदर करते थे। उनकी सच्चाई और नेकी की चारों तरफ़ चर्चा होने लगी। बचपन में बकरी-भेड़ चराने का काम किया। जवान होकर व्यापार शुरू किया। ख़दीजा (रज़ि॰) नामक एक धनवान विधवा के व्यापारिक सामानों को लादकर मंडियों में बेचा। उनकी ईमानदारी और सद्गुणों से प्रभावित होकर उस विधवा ने आप से विवाह का प्रस्ताव किया जिसे आपने स्वीकार कर लिया। आप उस समय की सामाजिक कुरीतियों और लोगों की वेदना से बहुत विकल थे। आप एक गुफा में जाकर ईश्वर का मनन और समाज को उबारने के लिए प्रार्थना करने लगे। उसी गुफा में उन्हें ईश्वर की प्रकाशना हुई। आप पर मानवजाति के मार्गदर्शन का गुरुतर भार ईश्वर की ओर से डाला गया। ईश्वर ने मानव-कल्याण के लिए उन पर ‘कु़रआन’अवतरित किया। ईश्वर के आदेश के अनुकूल वे मानव के मार्गदर्शन का काम करते रहे। समाज के स्वार्थी और सत्तावान लोगों ने उनका तीव्र विरोध किया। सज्जन और उपेक्षित लोगों ने उनकी शिक्षा को अपना लिया। आपको और आपके साथियों को मक्का के दुष्टों ने घोर यातनाएं दीं। उन्हें मक्का नगर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। दूर ‘मदीना’नगर में शरण ली। मक्का वालों ने वहां भी आक्रमण किया। कई युद्ध हुए। फिर भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का उनके साथ दयापूर्ण व्यवहार रहा। जब मक्का में अकाल पड़ा तो आपने मदीना से ऊंटों पर लादकर गल्ले भिजवाए। इस्लामी शिक्षा का प्रचार-कार्य चलता रहा। जब अरब में हर तरफ़ इस्लाम फैल गया और मक्का के भी अधिकांश लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, मक्का पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को विजय प्राप्त हो गई और अपने वतन में वापसी हुई। यह अवसर था जब विरोधियों से जी भर कर बदला लिया जाता, किंतु आपने दुष्टों और अत्याचिारयों को माफ कर दिया। इतना ही नहीं, उन्हें सम्मान और श्रेष्ठता भी प्रदान की गई। विजेता के इस व्यवहार से अत्यंत प्रभावित होकर सबने स्वीकार किया कि सत्य आपके साथ है; और उन्होंने भी सत्य की सेवा के लिए अपने को अर्पित कर दिया।

आपके जीवन में ही एक बड़े भू-भाग पर सत्य का राज्य स्थापित हो गया। इस राज्य में ग़रीबों, अनाथों और पीड़ितों एवं उपेक्षितों को पूरा सम्मान मिला। मानव-मानव के बीच के हर प्रकार के भेदभाव मिट गए। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने शिक्षा-दीक्षा का उत्तम प्रबंध किया। स्वयं अत्यंत जीवन व्यतीत करते रहे। दूसरों की सेवा का इतना ध्यान था कि स्वयं न खाते और दूसरों को खिलाते। उनके घर कई-कई दिन चूल्हा न जलता। कुछ खजूरें खाकर पानी पी लेते। चटाई पर सोते। रातों में उठकर देर तक नमाज़ पढ़ते। यह था राज्य के सर्वोच्च अधिकारी का जीवन।

अपने अनुयायियों में भी आपने ऐसे गुण पैदा किए कि वे निःस्वार्थ भाव से ईश्वर की प्रसन्नता के लिए सेवा-कार्य में रत रहते। स्वार्थ और सुख-भोग से दूर भागते। उन सब लोगों के सम्मिलित प्रयास से देखते ही देखते इस्लाम एशिया, यूरोप और अफ्ऱीक़ा के बड़े भू-भागों में फैल गया। गोरे-काले, ऊंच-नीच, निर्बल-बलवान के भेद मिट गए। अज्ञान और अंधकार मिटने लगा। बुद्धि और विज्ञान को प्रतिष्ठा मिली। इस्लाम का आदर्श संपूर्ण विश्व में फैल गया। मानवाधिकार, न्याय का राज्य, शांति-स्थापना, सहानुभूति, स्वतंत्रता और संपूर्ण मानवजाति से भ्रातृभाव इत्यादि आदर्श उन लोगों ने भी स्वीकार किया जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इस्लाम को स्वीकार नहीं किया था। इन सिद्धांतों की मौजूदगी में आज संसार में अन्याय और अराजकता फैली हुई है। इसका मूल कारण यही है कि इन शिक्षाओं को दिल से स्वीकार नहीं किया गया है। सिर्फ़ लोगों को धोखा देने के लिए दिखावटी आदर्श अपनाए जाते हैं और इसकी आड़ में अपने स्वार्थ की पूर्ति की जाती है।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की जीवन-व्यवस्था का सार यह है कि सत्य-मार्ग पर चलने की प्रेरक शक्ति प्रभु पर ईमान और उससे प्रेम और डर है। वह मनुष्य के कर्मों का फल न्याय के साथ देने वाला है। कोई भलाई या बुराई उससे छिपाई नहीं जा सकती। प्रभु-प्रेम में लीन होकर उसकी प्रसन्नता एवं पारितोषिक पाने की अभिलाषा मानव को सत्य-मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। उसकी कठोर यातना से बचने की चिंता बुराई से रोकती है। सच्ची बात यह है कि ईश्वर में आस्था और पारलौकिक जीवन की धारणा को अपनाए बिना मानव में स्थायी रूप से उत्तम गुणों का आविर्भाव संभव नहीं।

आज सबसे बड़ी आवश्यकता है कि फिर उन शिक्षाओं को अपनाया जाए जो जीवन को सत्य-मार्ग पर ले जा सकती हैं। इसके बिना मानवता पीड़ाओं और दुखों से मुक्त नहीं हो सकती।

शिक्षाओं की एक झलक

(हदीस और कु़रआन से संकलित)

  • संपूर्ण सृष्टि का सृजनहार एक प्रभु है। वह अत्यंत दयावान और कृपालु है। उसी की भक्ति करो और उसी की आज्ञा मानो।
  • ईश्वर ने मानव पर अनगिनत उपकार किए हैं। धरती और आकाश की सारी शक्तियां मानव की सेवा में लगा दी हैं। वही धरती और आकाश का मालिक है, वही तुम्हारा पूज्य प्रभु है।
  • ईश्वर (वास्तविक स्वामी) को छोड़कर अन्य की पूजा करना सबसे बड़ा जु़ल्म और व्यभिचार है।
  • ईश्वर की अवज्ञा करके तुम उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। आज्ञाकारी बनकर रहो, इसमें तुम्हारा अपना भला है।
  • ईश्वर की याद से आत्मा को शांति मिलती है। उसकी पूजा से मन का मैल दूर होता है।
  • ईश्वर की निशानियों (दिन, रात, धरती, आकाश, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि की बनावट) पर विचार करो। इससे प्रभु पर विश्वास दृढ़ होगा और संकुचित विचारों से छुटकारा प्राप्त होगा।
  • मैं (हज़रत मुहम्मद सल्ल॰) ईश्वर की ओर से संसार का मार्गदर्शक नियुक्त किया गया हूं। मार्गदर्शन का कोई बदला तुम से नहीं चाहता। मेरी बातें सुनो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
  • मैं कोई निराला और अजनबी रसूल नहीं हूं। मुझसे पहले संसार में मार्गदर्शन के लिए बहुत-से रसूल आ चुके हैं, अपने धर्म-ग्रंथों में देख लो या किसी ज्ञानी व्यक्ति से मालूम कर लो।
  • मैं पहले के रसूलों की शिक्षा को पुनः स्थापित करने और कपटाचारियों के बंधन से मानव को मुक्त कराने आया हूं।
  • मैं इसलिए भेजा गया हूं कि नैतिकता और उत्तम आचार को अंतिम शिखर तक पहुंचा दूं।
  • मैं लोगों की कमर पकड़-पकड़कर आग में गिरने से बचा रहा हूं, किंतु लोग हैं कि आग ही की ओर लपक रहे हैं।
  • मैं दुनिया वालों के लिए रहमत बनाकर भेजा गया हूं। तुम, लोगों के लिए आसानियां पैदा करो, मुसीबतें न पैदा करो।
  • मां-बाप की सेवा करो। उनके सामने ऊंची आवाज़ से न बोलो। उन्हेंने तुम पर बड़ा उपकार किया है, अतः तुम उनके आज्ञाकारी बनकर रहो।
  • माता-पिता यदि अन्याय का आदेश दें तो न मानो, बाक़ी बातों में उनकी आज्ञा का पालन करो।
  • सारे मानव एक प्रभु के पैदा किए हुए हैं, एक मां-बाप की संतान हैं। उनके बीच रंग-नस्ल, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता आदि का भेदभाव घोर अन्याय है।
  • सारे लोग आदम की संतान हैं, उनसे प्यार करो घृणा न करो। उन्हें आशावान बनाओ निराश मत करो।
  • मानव में श्रेष्ठ वह है जो दूसरों का हितैषी, पवित्र आचरण वाला और प्रभु का आज्ञाकारी है।
  • तुम धरती वालों पर दया करो, आकाश वाला (प्रभु) तुम पर दया करेगा।
  • वह व्यक्ति सबसे अच्छा है जो अपने घर वालों और पड़ोसियों के लिए अच्छा है।
  • नारियों, गु़लामों और यतीमों (अनाथों) पर विशेष रूप से दया करो।
  • जो अपने बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव न करे और बेटियों का ठीक से पालन-पोषण करे, उनकी शिक्षा की व्यवस्था करे, वह स्वर्ग में जाएगा।
  • जो बड़ों का आदर और छोटों से प्रेम न करे वह हम में से नहीं।
  • तुम सांसारिक जीवन में मस्त होकर भूल मत जाओ कि तुम सबको अपने किए हुए कर्मों का हिसाब अपने प्रभु को देना है। परलोक की सफलता ही वास्तविक सफलता है।
  • परलोक की यातना बड़ी कठोर है। वहां कुल-वंश, सगे-संबंधी, धन-दौलत और किसी की सिफ़ारिश कुछ काम आने वाली नहीं। ईश्वर की आज्ञा का पालन और उत्तम आचरण ही (उसकी यातना से) बचने का एकमात्र साधन है।
  • अपने को और अपने घर वालों को नरक की अग्नि से बचाओ।
  • ईश-मार्ग में ख़र्च करके स्वयं को नरक की अग्नि से बचाओ। तुम्हारे माल में तुम्हारे संबंधियों, ग़रीबों, अनाथों का भी हक़ है। उनके हक़ अदा करो।
  • दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ। तिजारत या समझौते के द्वारा वैध रूप से धन ग्रहण करो।
  • चीज़ों में मिलावट न करो, नाप-तौल में कमी न करो। व्यापार में धोखा न दो। जो धोखा देता है वह हम (अर्थात् इस्लामी समुदाय) में से नहीं।
  • बाज़ार में भाव बढ़ाने के लिए (ग़ल्ला आदि) चीज़ों को रोककर (ज़ख़ीरा करके) मत रखो। ऐसा करने वाला (परलोक-जीवन में) घोर यातना का अधिकारी है।
  • पैसे को गिन-गिनकर जमा न करो और न फ़िजू़लख़र्ची करो, मध्यम मार्ग अपनाओ।
  • दूसरों के अपराध क्षमा कर दिया करो। दूसरों के ऐब का प्रचार न करो उसे छिपाओ, प्रभु तुम्हारे ऐबों पर परदा डालेगा।
  • झूठ, चुग़लख़ोरी, मिथ्या आरोप से बचो। लोगों को बुरे नाम से न पुकारो।
  • अश्लीलता और निर्लज्जता के क़रीब भी न जाओ, चाहे वह खुली हो या छिपी।
  • दिखावे का काम न करो। दान छिपाकर दो। उपकार करके एहसान मत जताओ।
  • रास्ते से कष्टदायक चीज़ों (कांटे, पत्थर आदि) को हटा दिया करो।
  • धरती पर नर्म चाल चलो। गर्व और घमंड न करो।
  • जब बोलो अच्छी बात बोलो अन्यथा चुप रहो।
  • अपने वचन और प्रतिज्ञा को पूरा करो।
  • सत्य और न्याय की गवाही दो, चाहे उससे तुम्हारी अपनी या अपने परिवारजनों की ही हानि क्यों न हो।
  • अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाला ईश्वर का प्रियपात्र होता है।
  • किसी बलवान को पछाड़ देना अस्ल बहादुरी नहीं, बहादुरी यह है कि आदमी गु़स्से पर क़ाबू पाए।
  • मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मज़दूरी अदा करो। सेवक से उसकी शक्ति के अनुसार काम लो, उसके आराम का ख़्याल रखो। जो ख़ुद खाओ उसे भी खिलाओ और जैसा ख़ुद पहनो उसे भी पहनाओ।
  • जानवरों पर दया करो, उनकी शक्ति से अधिक उनसे काम न लो।
  • किसी वस्तु का आवश्यकता से अधिक प्रयोग न करो। पानी का दुरुपयोग न करो, चाहे तुम नदी के किनारे ही क्यों न हो।
  • अपने शरीर, वस्त्र और घर को पाक-साफ़ रखो। जब सोकर उठो तो सबसे पहले अपने दोनों हाथों को धो लो। तुम्हें पता नहीं कि नींद में हाथ कहां-कहां गए हैं।
  • युद्ध में औरतों, बच्चों, बीमारों और निहत्थों पर हाथ न उठाओ। फल वाले पेड़ों को न काटो।
  • युद्ध के बन्दियों के साथ अच्छा व्यवहार करो, उन्हें यातनाएं न दो।
  • जो कोई बुराई को देखे, तो उसे भरसक रोकने की कोशिश करे, यदि रोकने की क्षमता न हो, तो दिल से उसको बुरा समझे।
  • सारे कर्मों का आधार नीयत (इरादा) है। ग़लत इरादे के साथ किए गए अच्छे कर्मों का भी कोई फल ईश्वर के यहां नहीं मिलेगा।
  • प्रभु-मिलन की आशा के साथ जीवन व्यतीत करो। आशाओं के अनुरूप ही मानव के क्रिया-कलाप होते हैं।

Courtesy :
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Taqwa Islamic School
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