Islaam Apnaane Se Main Santusht Ho Gayee – Aayesha Jibreel

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इस्लाम अपनाने से मैं संतुष्ट हो गयी – आयशा जिबरील

कुरआन के अध्ययन के बाद इस्लाम अपनाने के अपने फैसले पर मैं संतुष्ट हो गयी – रोमन कैथोलिक परिवार में जन्मी आयशा जिबरील

maxresdefaultमैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूं वह यह है कि मैंने अपने लिए मुस्लिम नाम आयशा जिबरील चुना है। आयशा के मायने नया जीवन है और इस्लाम में मेरा नया जीवन है। जिबरील अल्लाह के फरिश्ते हैं जो अल्लाह का पैगाम लाते थे, अल्लाह ने मेरे दिल में इस्लाम के रूप में शांति और सुकून का मैसेज उतारा और मुझे सच्चा और सीधा रास्ता दिखाया।

विशेष। इस्लाम अपनाने के बाद तो मेरी वार्ड रोब भी बदल गई है जो मेरे लिए बेहद मुश्किल काम था क्योंकि मुझे फैशन और कपड़ों से बेहद लगाव रहा है। मैं अपने शरीर पर बेहद फख्र महसूस करती थी और इस तरह के परिधान पहना करती थी ताकि हर एक शख्स मेरी तरफ आकर्षित रहे। अब मैंने इस्लामी पर्दा हिजाब पहनना शुरू कर दिया है। अब मैं ढीले ढाले कपड़े ही पहनती हूं।

मेरा नाम आयशा जिबरील अलेक्जेंडर है। रोमन कैथोलिक परिवार, स्कूल और यूनिवर्सिटी में मेरी परवरिश और शिक्षा-दीक्षा हुई। धर्म में शुरू से ही मेरी दिलचस्पी रही है और मैं अक्सर कैथोलिक मत के धर्मगुरुओं से सवाल करती रहती थी। लेकिन जब-जब मैंने ईसाईयत में ट्रिनिटी (तीन खुदा) पर सवाल खड़ा किया तो मुझे स्कूल की नन हर बार यही जवाब देती थीं कि इस मामले में सवाल करके तुम पाप कर रही हो और तुम्हें बिना कोई सवाल किए अपनी आस्था बनाए रखनी चाहिए। मैं इस तरह के सवाल करने से डरने लगी और इसी के चलते मैं इसी आस्था और विश्वास के बीच बढ़ी हुई।

सन् 2001 में इस्लाम से मेरा पहली बार सामना हुआ जब मैंंने एक मुस्लिम मालिक की कैनेडियन कंपनी में काम करना शुरू किया। यहां इस्लाम से मेरा पहला परिचय हुआ। लेकिन मैं युवा थी और काम और कैरियर के प्रति पूरी तरह समर्पित थी, इस वजह से मैें धर्म से जुड़े सवालों को नजरअंदाज करते हुए अपना पूरा ध्यान अपने कैरियर को बनाने में देने लगी। परिवार में मेरी 61 वर्षीय मां और 93 वर्षीय दादी थी। मेरा परिवार कोलम्बिया से यहां आकर बसा था, मैं इस परिवार की जिम्मेदारी निभाने में जुट गई। इन दोनों महिलाओं ने मुझे ईश्वर के प्रति प्यार और सम्मान करना सिखाया। इस्लाम की ओर मेरी यात्रा इन महिलाओं की इस शिक्षा के साथ शुरू हुई कि मैं बिना ईश्वर पर यकीन किए कुछ नहीं कर सकती। उन्होंने मुझे ईश्वर का सम्मान करने की शिक्षा दी।

मेरी 2003 में शादी हुई। बदकिस्मती से इस शादी ने मुझे घरेलू हिंसा का शिकार बना दिया। लेकिन मेंरे इस दुखद वक्त के बीच मुझे एक प्यारा सा बेटा हुआ जो अभी आठ साल का है। मेरा पति ईश्वर पर यकीन नहीं रखता था और अपनी ख्वाहिशों के मुताबिक अपनी जिंदगी गुजारा करता था। उसने मुझे भी ईश्वर, यहां तक की ईसाईयत से भी दूर ही रखा। यह मेरी जिंदगी का सबसे दुखद दौर था लेकिन 2005 में एक दिन मैं अपनी मां की मदद से इस मुश्किलभरे दौर से बाहर निकल आई, मैंने अपने पति को छोड़कर अपने पुत्र और मां के साथ जिंदगी को आगे बढ़ाया। मैें अपना अच्छा कैरियर बनाने के लिए कठिन परिश्रम में जुट गई क्योंकि अब परिवार का पूरा दारोमदार मुझ पर ही था।

मेरे मौत के बाद का जीवन?

विमानचालन के पेशे ने मुझे कई बेहतर अवसर दिए। इन अवसरों में कई तो बहुत दिलचस्प थे। इस बीच मुझे मलेशिया में रहने का मौका भी मिला। मलेशिया एक ऐसा देश जहां तीन धर्मों का प्रभाव देखने को मिलता है। मुख्य रूप से इस्लाम, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म। जब मैं दक्षिण अमेरिका में रहती थी तो वहां मैंने कॉर्पोरेट पायलेट के रूप में काम किया लेकिन अब मैं एयरलाइन पायलट हूं और मेरी उड़ान मुख्य रूप से एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप में रहती है। दुर्भाग्य से अपने स्टाफ में अकेली महिला पायलट होने की वजह से जहां कहीं भी मैं जाती हूं ज्यादातर समय अकेले ही गुजारना होता है। मेरे ज्यादातर पुरुष सहकर्मी अपना बचा हुआ वक्त नाइट क्लब और बार में गुजारते हैं जबकि मुझे तो कुछ अलग हटकर चीज की तलाश थी जो मुझे नाइट क्लब और बार में नजर नहीं आती थी। इस वजह से मैं अपना बचा समय अपनी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई को देने लगी और ऑनलाइन पढ़ाई करने लगी। लेकिन ईश्वर के लिए मेरे पास कोई समय नहीं था सिवाय सुबह-शाम थोड़ी बहुत प्रार्थना करने के। चर्च जाने के लिए भी मेरे पास समय नहीं था। अपना बेहतर कैरियर बनाने की धुन में एक कामकाजी महिला के रूप मे आगे बढ़ रही थी।

लेकिन कभी-कभी सोचती मौत के बाद की मेरी जिंदगी का क्या होगा?

कैसा होगा मेरे मौत के बाद का जीवन?

पोशाक अधिक शालीन और मर्यादित महसूस हुईजब मैंने मध्यपूर्व का सफर किया तो वहां कुछ अलग एहसास मुझे हुआ। वहां पहने जाने वाली पोशाक मुझे अपनी पहने जानी वाली पोशाक से अधिक शालीन और मर्यादित महसूस हुई। उनका शालीन डे्रस में एकट्ठे होकर दिन में पांच बार नमाज अदा करना। इस माहौल में मैं अपनी पोशाक टाइट जींस-पैंट और टॉप में शर्मिंदगी महसूस करती थी। मैं सोचती खुद में ऐसा बदलाव किस तरह लाया जा सकता है? एक दिन बहरीन में फ्लाइट उड़ाने से पहले बचे समय में मैने इंटरनेट से कुरआन डाउनलोड की और रोज सुबह नाश्ते से पहले प्रार्थना करने लगी। दरअसल मुझे अपने अंदर खोखलापन महसूस होता था। खालीपन सा लगता था। मुझे लगता था मेरी जिंदगी-उठो, काम पर जाओ, खाओ-पीओ और फिर सो जाओ तक ही सिमट कर रह गई है। यही मेरी जीवन बन कर रह गया था। मेरा आध्यात्मिक जीवन तो कुछ है ही नहीं? यहां तक कि जब मैं अपने घर लौटी तो अपने मासूम बच्चे को भी वह आध्यात्मिक जीवन उपलब्ध नहीं करा पा रही थी जिसके बारे में मैंने सोचा था। पहले शुरू में ईश्वर की तलाश के दौरान मैं कैथोलिक चर्च से बेपटिस्ट चर्च गई, कभी-कभी वहां गई लेकिन नौकरी की व्यस्तता के चलते और ईमानदारी से कहूं तो वहां से मेरा जुड़ाव बन ही नहीं पाया। मुझे वहां खालीपन का सा एहसास होता था और मैं वहां से पूरी तहर जुड़ भी नहीं पाई थी।

मैं सोचती क्या मेरी जिंदगी में ईश्वर है? मुझे लगता हां वह है, शायद वह मेरे लिए बेहतर कुछ करने की सोच रहा है। मैं सोचती कि ईश्वर शायद मेरे मामले में यह नहीं चाहता था कि मेरा जीवन मेरी, बेटे आदि की जिम्मेदारी आदि निभाने और काम में लगे रहने में ही समर्पित होकर रह जाए। मेरा जीवन दुनियादारी में ही उलझकर रह जाए और इस जीवन के बाद वाला जीवन न संवर पाए। इसलिए ईश्वर मेरे जीवन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था लेकिन मैं ही इस दरवाजे को खोलने से डर रही थी। मैं सोचती थी दिमाग में ईश्वर को रखना और दिनभर में ईश्वर को याद करना मेरे रूहानी और आत्मिक सुकून के लिए काफी है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह पर्याप्त नहीं था। ईश्वर जानता है कि उस वक्त रूहानी नजरिए से मेरी जिंदगी को बचाए जाने की सख्त जरूरत थी।maxresdefault (1)

जब मेरे कानों में अजान की आवाज आईमध्य पूर्व की बात है जब मेरे मुंह से निकल पड़ा कि इस्लाम तो मेरे लिए है। यह उस पल की बात है जब मेरे कानों में अजान की आवाज आई। अजान की आवाज सुनने के दौरान ही मैंने चश्मा लगाकर अपनी आंखों को ढक लिया क्योंकि उस दौरान मेरी आंखें आंसुओं से पूरी तरह भीग चुकी थी। उस वक्त साथी पायलट मेरे साथ थे और हम एक रेस्टोरेंट जा रहे थे। मुझे महसूस हुआ मानो मुझसे यह कहा जा रहा है कि रुक जाओ और इस प्रेयर में शामिल हो जाओ। मेरी आंखों से आंसू निकलने जारी रहे। उस रात खाने के बाद मैं अपने कमरे में आई और दरी बिछाकर सिर के बल झुक गई और ईश्वर से सच्ची और सीधी राह सुझाने की दुआ करती रही। उस रात के बाद मैं पहले से ज्यादा सच्चे ईश्वरीय मार्ग की तलाश में जुट गई। फ्लाइट के सफर के दौरान ही मैंने कुरआन पढऩा शुरू कर दिया। इस्लाम को समझने के लिए मैंने इंटरनेट पर कई वीडियो देखे। इस्लाम की ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए मैंने गूगल पर कई इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन तलाश किए। मैंने अर्जेंटीना में एक इस्लामिक प्रोग्राम में शामिल होने का निश्चय किया। मैंने गूगल पर दक्षिण अमेरिका में इस्लाम संबंधी जानकारी जुटाई तो मुझे एहसास हुआ कि मैं ही नहीं इस्लाम में दिलचस्पी रखने वालों की एक बड़ी तादाद है। मैंने जल्दी अर्जेंटीना लौटने और अमेरिका की सबसे बड़ी मस्जिद जाने का दृढ़ निश्चय किया। तीन महीने बाद मैं अर्जेंटीना पहुंची। मैंने टाइम सेट किया और मस्जिद पहुंची। मैं वहां मस्जिद के इमाम शीज मोहम्मद से मिली जो दक्षिण अरब के थे।। हमारे बीच इस्लाम से जुड़े विषयों पर तकरीबन तीन घंटे बातचीत हुई। मेरे वहां से रवाना होने से पहले उन्होंने मेरे से पूछा- क्या तुम इस्लाम अपनाना चाहती हो? मैंने जवाब में कहा-हां, अभी इस्लाम कुबूल करना चाहूंगी। दरअसल मैं सोच रही थी कि पता नहीं कब मेरा फिर अर्जेंटीना लौटना हो और ना जाने ऐसा मौका मुझे फिर मिल पाए या नहीं।अब मेरे लिए सबसे बड़ा संघर्ष मेरे अपने पूर्वाग्रहों से जूझना था जिसके तहत मैं जीसस को ईश्वर के रूप में मानती थी। मुझे पहले लगता जैसे मैं जीसस को धोखा दे रही हूं। स्कूल टाइम में टीचर द्वारा कही गई बातें मेरे जेहन में बार-बार घूमती-‘धर्म को चुनौती मत दो क्योंकि ऐसा करना गुनाह है।’ मैं इन बातों को अपने दिमाग से नहीं निकाल पा रही थी। यह उहापोह वाला दौर मेरे लिए बेहद कठिन दौर था।

अर्जेंटीना की मस्जिद के इमाम शीज मोहम्मद ने सही राह सुझाने में मेरी काफी मदद की और मुझे बताया कि पैगम्बर इब्राहीम, मूसा, नूह और जीसस (ईश्वर की शांति हो इन सब पर) एक ही मैसेज लेकर आए थे और एक ही मजहब के पैरोकार थे तो फिर भलां तुम इनका अनुसरण करना क्यों नहीं चाहोगी?

पूर्वाग्रह दूर हुए कुरआन के अध्ययन, इस्लाम में मरियम को दिए ओहदे और इज्जत जो कई ईसाई विद्वानों की तुलना में काफी अधिक है, ईसाई धर्म में मिलावट और बदलाव आदि का अध्ययन से मेरे दिमाग में व्याप्त पूर्वाग्रह दूर हुए। इन सबके अध्ययन के बाद इस्लाम अपनाने के अपने फैसले पर मैं संतुष्ट हो पाई और साथ ही मुझे एहसास हुआ कि अब तक कैसे मेरे और मेरे घर वालों से इस सत्य धर्म को छुपाया गया सिर्फ इस वजह से कि यही सच्चा और हक मजहब था।

जहां तक मेरी लाइफ स्टाइल का सवाल है तो इस्लाम अपनाने के कुछ समय पहले ही मैंने शराब पीना छोड़ दिया था। और अब मैं सुअर का गोश्त भी नहीं खाती हूं। इस्लाम अपनाने के बाद तो मेरी वार्ड रोब भी बदल गई है जो मेरे लिए बेहद मुश्किल काम था क्योंकि मुझे फैशन और कपड़ों से बेहद लगाव रहा है। मैं अपने शरीर पर बेहद फख्र महसूस करती थी और इस तरह के परिधान पहना करती थी ताकि हर एक शख्स मेरी तरफ आकर्षित रहे। अब मैंने इस्लामी पर्दा हिजाब पहनना शुरू कर दिया है। अब मैं ढीले ढाले कपड़े ही पहनती हूं।

जहां पर मैं नौकरी करती हूं वहां जरूर मुझे कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल मेरे सहकर्मी इस्लाम के मामले में पूर्वाग्रह से ग्रसित है। मेरी मां ईसाई है लेकिन वे इस्लाम अपनाने के बाद मुझमें आए सकारात्मक बदलावों को लेकर बेहद खुश हैं। अब तो वह भी रोज इस्लाम के बारे में ज्यादा से ज्यादा सीख रही हैं। मेरी मां को मेरे मुस्लिम होने पर फख्र है। मेरा आठ साल का बेटा भी अपनी इच्छा से इस्लाम अपना चुका है।

इस्लामिक साइंस का अध्ययन न्यू मुस्लिम के रूप में मेरा सपना इस्लामिक साइंस का अध्ययन करना और उन परिवारों की मदद करना है जो इस्लाम अपनाने की चाहत के चलते जद्दोजहद कर रहे हैं। मैं इस्लाम की तरफ आने वाले बच्चों की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहती हूं क्योंकि मेरा मानना है कि नया धर्म अपनाने वाले उन माता-पिताओं को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है जिनके बच्चे किशोर होते हैं। दरअसल ये किशोर बेटे-बेटी इस मामले को सही तरीके से समझ नहीं पाते हैं और भ्रमित हो जाते हैं। इसी वजह से मैं भविष्य में ऐसे बच्चों पर काम करना चाहती हूं जिनके माता-पिता इस्लाम कुबूल कर चुके हैं।

एक मुस्लिम पायलट होने के नाते मैं दुनिया को दिखाना चाहती हूं कि इस्लाम गुलामी और उत्त्पीडऩ का मजहब नहीं है जैसा कि कई लोग सोचते हैं और ना ही इस्लाम महिलाओं के कैरियर बनाने में बाधक है। इस सबके विपरीत आज मैं जिस मुकाम पर हूं, अल्लाह ही की मदद और करम से हूं।

और आखिरी बात जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूं वह यह है कि मैंने अपने लिए मुस्लिम नाम आयशा जिबरील चुना है। आयशा के मायने नया जीवन है और इस्लाम में मेरा नया जीवन है। जिबरील अल्लाह के फरिश्ते हैं जो अल्लाह का पैगाम लाते थे, अल्लाह ने मेरे दिल में इस्लाम के रूप में शांति और सुकून का मैसेज उतारा और मुझे सच्चा और सीधा रास्ता दिखाया।


Source: TeesriJung

Courtesy :
www.ieroworld.net
www.taqwaislamicschool.com
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)