स्कूल में पढ़ने के लिए कुर्सी ले आनी होती है।
जॉर्डन के इस स्कूल में शरणार्थियों सीरियाई बच्चियों को पढ़ने के लिए सिर्फ़ कुर्सी ले आनी होती है।
जॉर्डन में शरणार्थियों की बेटियों के लिए एक स्कूल की प्रिंसिपल नई उम्मीद बन कर उभरी हैं। उम्मीद पढ़ने की, सपने देखने की और दूसरे बच्चों की तरह ही दुनिया का खूबसूरत कल बन पाने की।
Khawla Bint Tha’alba Elementary School for Girls की माहा सलीम अल अशकर ने, सीरिया से आई शरणार्थी बच्चियां पढ़ सकें। इसके लिए उन्होंने सिर्फ एक ही शर्त रखी है। “अपनी कुर्सी ले कर आओ और पढ़ो”।
माहा सलीम अल अशकर बताती हैं कि ये फैसला उन्होंने तब लिया, जब एक शरणार्थी बच्ची की मां अपनी बेटी के एडमिशन की भीख मांगने लगी। माहा सलीम अल अशकर ने साफ़ बता दिया था कि उनके स्कूल में सीट नहीं है। लेकिन हर स्कूल से लौटा दी गई उस मां की मिन्नतों ने माहा सलीम अल अशकर को दुबारा सोचने पर मजबूर कर दिया। आख़िरकार उन्होंने एक निर्णय लिया। ये निर्णय था, हर शरणार्थी बच्ची को एक कुर्सी ले आनी होगी। इसके साथ ही बहुत सी बच्चियों ने पढ़ने के लिए ये छोटी सी शर्त मान ली।
अब इस स्कूल में 356 बच्चियां पढ़ती हैं। इसके अलावा सीरियाई शरणार्थियों की 65 बच्चियां हैं। माहा सलीम अल अशकर कहती हैं कि स्कूल की शिक्षिकाओं पर इन सीरियाई बच्चियों को ले कर ज़िम्मेदारियां अधिक हैं, क्योंकि वे जिस ट्रॉमा से गुज़री हैं, उनका मन व्यथित और डरा हुआ रहता है। उन्हें प्यार से समझाना पड़ता है और काउंसिलिंग भी करनी होती है। इनमें से कुछ बच्चियों ने अपने माता या फिर पिता और परिवार को खो दिया है।
United States Agency for International Development (USAID) ऐसे स्कूलों की मदद करता है, जो इन बच्चियों के लिए अतिरिक्त केयर कर रहे हैं। USAID ने स्कूल को ज्यादा संख्या में टीचर्स और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं।
प्रिंसिपल माहा सलीम अल अशकर कहती हैं कि मैं अपने स्कूल और सभी स्टूडेंट्स को बेहद प्यार करती हूं। मुझे लगता है कि प्यार एक ऐसा एहसास है, जिसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को देना चाहिए। जिससे उन व्यथित लोगों को थोड़ा सुकून मिल सके, जिन्होंने बहुत कुछ खोया है।
अल्लाह इन सब की परेशानियों को दूर करे और उनके लिए आसानियां पैदा करे।
आमीन।
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Source: Mashable
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