Badhte Hamle se Apne Bachao ke Liye Karate Sikha Rahi Hoon – Khadeeja Safari

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2008

बढ़ते हमले से परेशान मुस्लिम महिलाओं को अपना बचाव करने के लिए मार्शल आर्ट सिखा रही हूँ – खदीजा सफारी (ब्लैक बेल्ट, कराटे)

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लंदन। खदीजा सफारी भले ही तीन बच्चों की मां हैं लेकिन वे कराटे में ब्लैक बेल्ट भी हैं। ख़दीजा का नाम कुछ दिन पहले तब चर्चा में आया जब उन्होंने हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को थाई किक बॉक्सिंग सिखाने की मुहीम शुरू की।

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वे मुस्लिम महिलाओं किक बॉक्सिंग सिखाने के अलावा उनका मनोबल भी बढ़ाती हैं । ख़दीजा कहती हैं कि मुस्लिम महिलाओं पर बढ़ते हमले चिंताजनक हैं। उनकी क्लास में युवा महिलाएं अपना बचाव करने के उपाय सीखती हैं।

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मिल्टन कींस नाम का एक शहर लंदन के पास ही है जहां एक जिम्नेजियम में ख़दीजा अपनी क्लास चलाती हैं। थाई बॉक्सिंग की कला यहां धीरे-धीरे काफी लोकप्रिय हो रही है। दूसरों की तरह ख़दीजा भी हिजाब पहनती है और किक बॉक्सिंग करती है। वे मुसलमान महिलाओं की परंपरागत छवि तोड़ना चाहती हैं।

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वे कहती हैं, “लोग सोचते है कि बेचारी मुस्लिम महिला, हिजाब पहनती है और कितना शोषण झेलती है। जरूर ये घर का पूरा काम करती होगी और घर के बाहर कुछ नहीं करती होगी। मैं उन्हें मार्शल आर्ट सिखा रही हूँ, जिससे वे सशक्त बनेंगी।”

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सप्ताह में एक दिन होने वाली इस क्लास में आप शाहीना परवीन से ज़रूर मिलेंगे, जिन्हें लोगों ने कई बार भला-बुरा कहा है।

शाहीना बताती हैं, “अनजान लोगों ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। मेरे मज़हब के कारण कई लोगों ने मुझे भला-बुरा कहा। पेरिस और ब्रसेल्स में हुए हमलों के बाद ये सब और बढ़ गया। लोग मुझे पूछते है कि क्या मेरे पास बम है।”

शाहीना अकेली नहीं है। पुलिस और अन्य समूह भी ये मानते हैं कि मुसलमान महिलाओं पर होने वाले हमले पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं।

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सितंबर 2015 में पुलिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लंदन में केवल एक साल में मुसलमानों पर होने वाले हमलों में 70 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ। पुलिस और जानकार भी मानते है कि नक़ाब या हिजाब पहनने वाली महिलाओं को निशाना बनाया जाता है।

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ख़दीजा सफारी कहती हैं, “हमें सड़कों पर चलने में काफी घबराहट होती है। कई बार लोग नक़ाब छीन लेते है। दूसरी तरह का शोषण भी हमें सहना पड़ता है। किक बॉक्सिंग से आप एकदम शक्तिशाली तो नहीं बन जाते, लेकिन अपनी सुरक्षा करने का एक तरीका ज़रूर आपके पास होता है।”

अफशां अज़ीम भी इस क्लास के फायदे गिनाती हैं। वे कहती हैं, “पहले लोग मुझे कुछ कह देते थे तो मैं रो पड़ती थी। मुझे बीच रास्ते ‘मुस्लिम’ कहते थे तो मैं डर के मारे में घर से निकलती ही नहीं थी। पर अब मुझे ऐसा बिलकुल नहीं लगता।”


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