Islam – Kamyabi ka Rasta

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इस्लाम – कामयाबी का रास्ता

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इस्लाम के आखरी पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. सभी इंसानों की रहनुमाई के लिए इस दुनिया में आए थे। उनकी दी हुई शिक्षाएं और बताया हुआ रास्ता इंसानों के लिए बेहद फायदेमंद है। इंसानों का हित और कामयाबी उन्हीं के सुझाए मार्ग में छिपा है।

हमें चाहिए कि हम इंसानियत के इस सच्चे रहनुमा के नक्शे कदम पर चलें और अपनी जिंदगी को कामयाब बनाएं।

मुहम्मद सल्ल. की दी हुई शिक्षाएं ‘हदीस शास्त्र’ के रूप में संजो ली गई ताकि आने वाली पीढिय़ां उस राह को समझकर सही पथ पर चलती रहें। यहां पेश है पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. की चुनिंदा शिक्षा। आप इन पर गौर और फिक्र कीजिए, आपको अंदाजा हो जाएगा कि ये बातें आज की कराह रही इंसानियत के लिए कितनी फायदेमंद और कारगर है।

1.  ‘‘प्रत्येक धर्म का एक स्वभाव होता है। इस्लाम का स्वभाव लज्जा है।’’ (मालिक)

2.  जो व्यक्ति अपने छोटे-छोटे बच्चों के भरण-पोषण के लिए जायज़ कमाई के लिए दौड़-धूप करता है वह ‘अल्लाह की राह में’ दौड़-धूप करने वाला माना जाएगा।

3.  घूस लेने और देने वाले पर लानत है…कोई क़ौम ऐसी नहीं जिसमें घूस का प्रचलन हो और उसे भय व आशंकाए घेर न लें।

4.  सबसे बुरा भोज (बुरी दअ़वत) वह है जिसमें धनवानों को बुलाया जाए और निर्धनों को छोड़ दिया जाए।

5.  सबसे बुरा व्यक्ति वह है जो अपनी पत्नी के साथ किए गए गुप्त व्यवहारों (यौन क्रियाओं) को लोगों से कहता, राज़ में रखी जाने वाली बातों को खोलता है।

6.  यदि तुमने मां-बाप की सेवा की, उन्हें ख़ुश रखा, उनका आज्ञापालन किया तो स्वर्ग (जन्नत) में जाओगे। उन्हें दुख पहुंचाया, उनका दिल दुखाया, उन्हें छोड़ दिया तो नरक (जहन्नम) के पात्र बनोगे।

7.  ईश्वर की नाफ़रमानी (अवज्ञा) की बातों में किसी भी व्यक्ति (चाहे माता-पिता ही हों) का आज्ञापालन निषेध, हराम, वर्जित है।

8.  बाप जन्नत का दरवाज़ा है और मां के पैरों तले जन्नत है (अर्थात् मां की सेवा जन्नत-प्राप्ति का साधन बनेगी)।

9.  तुम लोग अपनी सन्तान के साथ दया व प्रेम और सद्व्यवहार से पेश आओ और उन्हें अच्छी (नैतिक) शिक्षा-दीक्षा दो।

10. सन्तान के लिए माता-पिता का श्रेष्ठतम उपहार (तोहफ़ा, Gift) है उन्हें अच्छी शिक्षा-दीक्षा देना, उच्च शिष्टाचार सिखाना।

11. तुममें सबसे अच्छा इन्सान वह है जो अपनी औरतों के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करे।

12. पत्नी के साथ दया व करुणा से पेश आओ तो अच्छा जीवन बीतेगा।

13. अल्लाह की अवज्ञा (Disobedience) से बचो। रोज़ी कमाने का ग़लत तरीक़ा, ग़लत साधन, ग़लत रास्ता न अपनाओ, क्योंकि कोई व्यक्ति उस वक्त तक मर नहीं सकता जब तक (उसके भाग्य में लिखी) पूरी रोज़ी उसको मिल न जाए। हां, उसके मिलने में कुछ देरी या कठिनाई हो सकती है। (तब धैर्य रखो, बुरे तरीके़ मत अपनाओ) अल्लाह से डरते हुए, उसकी नाफ़रमानी से बचते हुए सही, जायज़, हलाल तरीके़ इख़्तियार करना और हराम रोज़ी के क़रीब भी मत जाना।

14. वस्त्रहीन (नंगे) होकर मत नहाओ। अल्लाह हया वाला है और अल्लाह के (अदृश्य) फ़रिश्ते भी (जो हर समय तुम्हारे आसपास रहते हैं) हया करते हैं।

15. अत्याचारी, क्रूर और ज़ालिम शासक के सामने हक़ (सच्ची, खरी, न्यायनिष्ठ) बात कहना (सच्चाई की आवाज़ उठाना) सबसे बड़ा जिहाद है।

16. धन हो तो ज़रूरतमन्दों को क़र्ज़ दो। वापसी के लिए इतनी मोहलत (समय) दो कि कर्ज़दार व्यक्ति उसे आसानी से लौटा सके। किसी वास्तविक व अवश्यंभावी मजबूरी से, समय पर न लौटा सके तो उस पर सख़्ती तथा उसका अपमान मत करो, उसे और समय दो।

17. क़र्ज़ (ऋण) पर ब्याज न लो (ब्याज इस्लाम में हराम है)।

18. सामर्थ्य हो जाए, आर्थिक स्थिति अनुकूल हो जाए फिर भी क़र्ज़ वापस लौटाया न जाए तो यह महापाप है (जिसका दंड परलोक में नरक की यातना व प्रकोप के रूप में भुगतना पड़ेगा)।

19. ईश्वर चाहे तो इन्सान के गुनाह माफ़ कर दे। लेकिन उस व्यक्ति को माफ़ नहीं करेगा, चाहे वह शहीद (ईश मार्ग में जान भी दे देने वाला) ही क्यों न हो जो क़र्ज़ वापस लौटाने का सामर्थ्य होते हुए भी क़र्ज़दार होकर मरा।

20. जो व्यक्ति क़र्ज़ वापस किए बिना (इस कारण कि वह इसका सामर्थ्य नहीं रखता था) मर गया तो उसकी अदायगी की ज़िम्मेदारी इस्लामी कल्याणकारी राज्य (उसके शासक) पर है।

21. क़र्ज़ देकर एक व्यक्ति किसी ज़रूरतमंद आदमी को चोरी, ब्याज और भीख मांगने से बचा लेता है।

22. मांगने के लिए हाथ मत फैलाओ, यह चेहरे को यशहीन कर देता (और आत्म-सम्मान के लिए घातक होता) है। मेहनत-मशक्क़त करो और परिश्रम से रोज़ी कमाओ। नीचे वाला (भीख लेने वाला) हाथ, ऊपर वाले (भीख देने वाले) हाथ से तुच्छ, हीन होता है।

23. मज़दूर की मज़दूरी उसके शरीर का पसीना सूखने से पहले दे दो (अर्थात् टाल-मटोल, बहाना आदि करके, उसे उसका परिश्रमिक देने में अनुचित देरी मत करो)।

24. सरकारी कर्मचारियों को भेंट-उपहार देना घूस (रिश्वत) है।

25. मज़दूर की मज़दूरी तय किए बिना उससे काम न लो।

26. अल्लाह कहता है कि परलोक में मैं तीन आदमियों का दुश्मन हूंगा। एक: जिसने मेरा नाम लेकर (जैसे-‘अल्लाह की क़सम’ खाकर) किसी से कोई वादा किया, फिर उससे मुकर गया, दो: जिसने किसी आज़ाद आदमी को बेचकर उसकी क़ीमत खाई; तीन: जिसने मज़दूर से पूरी मेहनत ली और फिर उसे पूरी मज़दूरी न दी।

27. पत्नी के मुंह में हलाल कमाई का कौर (लुक़मा) डालना इबादत है।

28. रास्ते में पड़ी कष्टदायक चीज़ें (कांटा, पत्थर, केले का छिलका आदि) हटा देना (ताकि राहगीरों को तकलीफ़ से बचाया जाए) इबादत है।

29. कोई व्यक्ति (मृत्यु-पश्चात) माल छोड़ जाए तो वह माल उसके घर वालों के लिए है। और किसी (कम उम्र सन्तान, पत्नी, आश्रित माता-पिता आदि) को बेसहारा छोड़ (कर मर) जाए तो उसकी ज़िम्मेदारी मुझ (इस्लामी सरकार) पर है।

30. जिसका भरण-पोषण करने वाला कोई नहीं उस (असहाय, Destitute) के भरण-पोषण का ज़िम्मेदार राज्य है।

31. जिस व्यक्ति ने बाज़ार में कृत्रिम अभाव (Artificial Scarecity) पैदा करने की नीयत से चालीस दिन अनाज को भाव चढ़ाने के लिए रोके रखा (जमाख़ोरी Hoarding की) तो ईश्वर का उससे कोई संबंध नहीं, फिर अगर वह उस अनाज को ख़ैरात (दान) भी कर दे तो ईश्वर उसे क्षमा नहीं करेगा। उसकी चालीस वर्ष की नमाज़ें भी ईश्वर के निकट अस्वीकार्य (Unacceptable) हो जाएंगी।

32. मुसलमानों में मुफ़लिस (दरिद्र) वास्तव में वह है जो दुनिया से जाने के बाद (मरणोपरांत) इस अवस्था में, परलोक में ईश्वर की अदालत में पहुंचा कि उसके पास नमाज़, रोज़ा, हज आदि उपासनाओं के सवाब (पुण्य) का ढेर था। लेकिन साथ ही वह सांसारिक जीवन में किसी पर लांछन लगाकर, किसी का माल अवैध रूप से खाकर किसी को अनुचित मारपीट कर, किसी का चरित्रहनन करके, किसी की हत्या करके आया था। फिर अल्लाह उसकी एक-एक नेकी (पुण्य कार्य का सवाब) प्रभावित लोगों में बांटता जाएगा, यहां तक उसके पास कुछ सवाब बचा न रह गया, और इन्साफ़ अभी भी पूरा न हुआ तो प्रभावित लोगों के गुनाह उस पर डाले जाएंगे। यहां तक कि बिल्कुल ख़ाली-हाथ (दरिद्र) होकर नरक (जहन्नम) में डाल दिया जाएगा।

33. अल्लाह फ़रमाता है कि बीमार की सेवा करो, भूखे को खाना खिलाओ, वस्त्रहीन को वस्त्र दो, प्यासे को पानी पिलाओ। ऐसा नहीं करोगे तो मानो मेरा हाल न पूछा, जबकि मानों मैं स्वयं बीमार था; मानो मुझे कपड़ा नहीं पहनाया, मानो मैं वस्त्रहीन था, मानो मुझे खाना-पानी नहीं दिया जैसे कि स्वयं मैं भूखा-प्यासा था।

34. किसी परायी स्त्री को (व्यर्थ, अनावश्यक रूप से) मत देखो, सिवाय इसके कि अनचाहे नज़र पड़ जाए। नज़र हटा लो। पहली निगाह तो तुम्हारी अपनी थी; इसके बाद की हर निगाह शैतान की निगाह होगी। (अर्थात् शैतान उन बाद वाली निगाहों के ज़रिए बड़े-बड़े नैतिक व चारित्रिक दोष, बड़ी-बड़ी बुराइयां उत्पन्न कर देगा।)

35. वह औरत (स्वर्ग में जाना तो दूर रहा) स्वर्ग की ख़ुशबू भी नहीं पा सकती जो लिबास पहनकर भी नंगी रहती है (अर्थात् बहुत चुस्त, पारदर्शी, तंग या कम व अपर्याप्त (Scanty) लिबास पहनकर, देह प्रदर्शन करती और समाज में नैतिक मूल्यों के हनन, ह्रास, विघटन तथा अनाचार का साधन व माध्यम बनती है)।

36. दो पराए (ना-महरम) स्त्री-पुरुष जब एकांत में होते हैं तो सिर्फ़ वही दो नहीं होते बल्कि उनके बीच एक तीसरा भी अवश्य होता है और वह है ‘‘शैतान’’। (अर्थात् शैतान के द्वारा दोनों के बीच अनैतिक संबंध स्थापित होने की शंका व संभावना बहुत होती है।)

37. तुम (ईमान वालों, अर्थात् मुस्लिमों) में सबसे अच्छा व्यक्ति वह है जिसका व्यवहार (अख़लाक़) सबसे अच्छे हैं।

38. वह व्यक्ति (यथार्थ रूप में) मोमिन (अर्थात् ईमान वाला, मुस्लिम) नहीं है जिसका (कोई ग़रीब पड़ोसी भूखा सो जाए, और इस व्यक्ति को उसकी कोई चिंता न हो और यह पेट भर खाना खाकर सोए।

39. वह व्यक्ति (सच्चा, पूरा, पक्का) मोमिन मुस्लिम नहीं है जिसके उत्पात और जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो।

40. फल खाकर छिलके मकान के बाहर न डाला करो। हो सकता है आसपास (पड़ोसियों) के ग़रीब घरों के बच्चे उसे देखकर महरूमी, ग्लानि और अपनी ग़रीबी के एहसास से दुखी हो उठें।

41. अपने अधीनों (मातहतों, Subordinates) से, उनको क्षमता, शक्ति से अधिक काम न लो।

42. पानी में मलमूत्र मत करो (जल-प्रदूषण उत्पन्न न करो) ज़मीन पर किसी बिल (सूराख़) में मूत्र मत करो। (इससे कोई हानिकारक कीड़ा, सांप-बिच्छू आदि, निकल कर तुम्हें हानि पहुंचा सकता है और इससे पर्यावर्णीय संतुलन भी प्रभावित होगा।)

43. अगर तुम कोई पौधा लगा रहे हो और प्रलय आ जाए तब भी पौधे को लगा दो। (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से वातावर्णीय हित के लिए वृक्षारोपण का महत्व बताया गया है।)

44. पानी का इस्तेमाल एहतियात से करो चाहे जलाशय से ही पानी क्यों न लिया हो और उसके किनारे बैठे पानी इस्तेमाल कर रहे हो। ज़रूरत से ज़्यादा पानी व्यय (प्राकृतिक संसाधन का अपव्यय) मत करो (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से जल-संसाधन अनुरक्षण (Water resource conservation) के महत्व का भाव निहित है)।

45. भोजन के बर्तन में कुछ भी छोड़ो मत। एक-एक दाने में बरकत है। बर्तन को पूरी तरह साफ़ कर लिया करो। खाद्यान्न/खाद्यपदार्थ का अपव्यय मत करो। (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से खाद्य-संसाधन-अनुरक्षण (Food resource conservation) का भाव निहित है।

46. किसी पक्षी को (पिजड़े आदि में) क़ैद करके न रखो। (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से हर जीवधारी के ‘स्वतंत्र रहने’ के मौलिक अधिकार का महत्व निहित है।)

47. किसी पालतू जानवर-विशेषतः जिससे तुम अपना काम लेते हो, जैसे बैल, ऊंट, गधा, घोड़ा आदि–को भूखा-प्यासा मत रखो, उससे उसकी ताक़त से ज़्यादा काम मत लो; उसको निर्दयता के साथ मारो मत। याद रखो, आज जितनी शक्ति तुम्हें उस पर हासिल है, परलोक में (ईश्वरीय अदालत लगने के समय) ईश्वर को तुम पर उससे अधिक शक्ति होगी।

48. दान दो (विशेषतः किसी व्यक्ति को) तो इस तरह दो कि तुम्हारा दायां हाथ दे तो बाएं हाथ को मालूम न हो। (अर्थात् दान देने में, दिखावा मत करो कि लोगों में दानी-परोपकारी व्यक्ति के तौर पर अपनी शोहरत के अभिलाशी रहो। दान मात्र ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए, परलोक में अल्लाह ही से पारितोषिक पाने के लिए दो।)

49. जिसे दान दो उस पर एहसान, उपकार मत जताओ, उसे मानसिक दुःख मत पहुंचाओ।

50. जिसने किसी ज़िम्मी (इस्लामी शासन में ग़ैर-मुस्लिम बाशिन्दे) की हत्या की उसके ख़िलाफ़ अल्लाह की अदालत में (परलोक में) ख़ुद मैं मुक़दमा दायर करूंगा। (विदित हो कि ‘ज़िम्मी’ का अर्थ है वह ग़ैर-मुस्लिम व्यक्ति जिसके जान-माल की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा, उस के मुस्लिम राज्य में रहते हुए, शासन व इस्लामी शासक पर होता है, ज़िम्मी की हत्या करने वाला मुसलमान, सज़ा के तौर पर क़त्ल किया जाएगा और अगर, गवाह-सबूत न होने या किसी और कारण से वह क़त्ल होने से बच भी गया तो हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) परलोक में स्वयं उसके ख़िलाफ़ ईश्वरीय अदालत में दंड के और ज़िम्मी के हक़ में इन्साफ़ के याचक होंगे।)

51. पराई स्त्रियों को दुर्भावना-दृष्टि से मत देखो। आंखों का भी व्यभिचार होता है और ऐसी दुर्भावनापूर्ण दृष्टि डालनी, आंखों का व्यभिचार (ज़िना) है। (और यही दृष्टि शारीरिक व्यभिचार/बलात्कार का आरंभ बिन्दु है)।

52. जो तुम पर एहसान करे तो उसका एहसान हमेशा याद रखो। किसी पर एहसान करो तो इसे भूल जाओ (अर्थात उस पर एहसान न जताओ)।

53. कोई व्यक्ति कोई सौदा कर रहा हो तो उसके ऊपर तुम सौदा करने मत लग जाओ (अगर उस व्यक्ति का सौदा तय नहीं हुआ तब तुम सौदा करो)।

54. नमूना (बानगी, Sample) कुछ दिखाकर, माल किसी और क्वालिटी का मत बेचो।

55. ऐसी किसी भी चीज़ को किसी के हाथ बेचने का सौदा मत करो जिसे ख़रीदकर तुम अपनी मिल्कियत में न ले चुके हो।

56. रुपये से रुपया मत कमाओ। (यह अवैध है क्योंकि ब्याज है।) रुपये से तिजारत, कारोबार (Business, Trading) करके रुपया कमाओ। यह ‘मुनाफ़ा’ (Profit, लाभ) है, और वैध व पसन्दीदा है।

57. सूद लेना इतना घोर पाप है जैसे कोई अपनी मां के साथ व्यभिचार करे।

58. कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसके दिल में एक काला धब्बा पड़ जाता है। यदि वह पछताकर, पश्चाताप करते हुए तौबा कर लेता और अल्लाह से माफ़ी मांग लेता है और संकल्प कर लेता है कि अब उस पाप कर्म को नहीं करेगा, तो वह धब्बा मिट जाता है। यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह बार-बार पाप करेगा और हर बार दिल के अन्दर का धब्बा फैल कर बड़ा होता जाएगा। अंततः उसका पूरा हृदय सियाह (काला) हो जाएगा (और पापाचार उसके जीवन का अभाज्य अंग बन जाएगा)।

59. झूठी गवाही देना उतना ही बड़ा पाप है जितना शिर्क (अर्थात् ईश्वर के साथ किसी और को भी शरीक-साझी बना लेने का महा-महापाप)।

60. पहलवान वह नहीं है जो कुश्ती में किसी को पछाड़ दे, बल्कि अस्ल पहलवान वह है जो गु़स्सा आ जाने पर, अपने क्रोध को पछाड़ दे (अर्थात् उस पर क़ाबू पा ले)।

61. सच्चा मुजाहिद (ईश मार्ग का सेनानी) वह है जो (ईशाज्ञापालन में अवरोध डालने वाली) अपने मन (की प्रेरणाओं व उकसाहटों) से लड़ता है।

62. तुम छः बातों की ज़मानत दो तो मैं तुम्हें ईशप्रदत्त स्वर्ग की ज़मानत देता हूं। (1) बोलो तो सच बोलो, (2) वादा करो तो पूरा करो, (3) अमानत में पूरे उतरो, (4) व्यभिचार से बचो, (5) बुरी नज़र मत डालो, (6) जु़ल्म करने से हाथ रोके रखो।

63. जिस व्यक्ति ने कोई त्रुटिपूर्ण (Defective) चीज़ इस तरह बेच दी कि ग्राहक को उस त्रुटि से बाख़बर न किया उस पर अल्लाह क्रुद्ध होता है और अल्लाह के फ़रिश्ते उस पर लानत (धिक्कार) करते हैं।

64. अपने अधीनस्थ लोगों से कठोरता का व्यवहार करने वाला व्यक्ति स्वर्ग में नहीं जा सकेगा।

65. नमाज़, रोज़ा, दानपुण्य से भी बढ़कर यह काम है कि दो व्यक्तियों या गिराहों में बिगाड़ व वैमनस्य पैदा हो जाए तो उनके बीच सुलह करा दी जाए।

66. लोगों में बिगाड़, विद्वेष, वैमनस्य, शत्रुता पैदा करना वह काम है जो ऐसा करने वाले व्यक्ति की सारी नेकियों, अच्छाइयों, सद्गुणों पर पानी फेर देता है।

67. लोगों के व्यक्तिगत जीवन और निजी, दाम्पत्य व पारिवारिक मामलों की टोह में मत रहा करो।

68. दूसरों के घर में बिना इजाज़त न दाख़िल हो, न ताक-झांक करो, न उनकी गोपनीयता (Privacy) को भंग करो।

69. किसी से बदला लो तो बस उसी मात्रा में जितना तुम पर उसने अत्याचार किया है और क्षमा कर दो तो यह उत्तम है।

70. दूसरों के प्रति अपने व्यवहार वैसे ही रखो, जैसे व्यवहार तुम अपने प्रति उनसे चाहते हो।

71. तुम्हारे अपने व्यक्तित्व और शरीर का तुम पर हक़ है अतः अत्यधिक उपासना करके अपने शरीर को बहुत अधिक कष्ट में मत डालो। (अर्थात् जीवन के आध्यात्मिक तथा भौतिक पहलुओं में संतुलन रखो।)


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