जमाख़ोरी :
‘‘जिस व्यापारी ने जमाख़ोरी (माल जमा करना) की वह पापी है।“
(मिशकात)
‘‘कितना बुरा है ज़रूरत की चीज़ों को रोककर रखनेवाला आदमी! अगर चीज़ों का भाव गिरता है तो उसे दुख होता है और अगर महँगाई बढ़ती है तो ख़ुश होता है।“
(मिशकात)
‘‘जमाख़ोरी (माल महँगा होने के लिए) तो सिर्फ़ गुनाहगार ही करता है।“
(मुस्लिम)
‘‘जिसने महँगाई के ख़याल से अनाज को चालीस दिनों तक रोके रखा, वह अल्लाह से बेताल्लुक़ हुआ और अल्लाह उससे बेताल्लुक़ हुआ।“
(हदीस)
‘‘जिस किसी ने (महँगा होने के इरादे से) अनाज को चालीस दिन तक रोके रखा फिर वह उसे ख़ैरात (अल्लाह की राह में दान) भी कर दे तो वह उसके लिए कफ्–फ़ारा (प्रायश्चित) नहीं होगा।“
(हदीस)
‘‘जो व्यापारी ज़रूरत की चीज़ों को नहीं रोकता, बल्कि समय रहते (अपने माल को) बाज़ार में लाता है, वह अल्लाह की रहमत (दयालुता) का हक़दार है। अल्लाह उसे रोज़ी देगा। आम ज़रूरतों की चीज़ों को रोकनेवाले पर अल्लाह की फटकार है।“
(इब्ने–माजा)
‘‘बाज़ार में माल लानेवाले को रोज़ी मिलती है और जमा करनेवाले पर फटकार है।“
(इब्ने–माजा)
‘‘जो कोई खाने–पीने की चीज़ों की जमाख़ोरी करेगा, अल्लाह उसे कोढ़ और ग़रीबी में गिरफ्तार कर देगा।“
(इब्ने–माजा)
ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई करना):
“ग़ीबत यह है कि तुम अपने भाई की चर्चा ऐसे ढंग से करो जिसे वह नापसन्द करे।“ लोगों ने पूछा, ‘‘अगर हमारे भाई में वह बात हो जो मैं कह रहा हूँ तब भी वह ग़ीबत है?’’ अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘अगर वह उसके अन्दर हो तो यह ग़ीबत हुई और अगर वह बात उसके अन्दर नहीं पाई जाती तो यह बुहतान (मिथ्यारोपण, झूठा आरोप) है।“
(मिशकात)
एक आदमी ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से पूछा कि ग़ीबत क्या चीज़ है ? पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू किसी व्यक्ति की चर्चा इस प्रकार करे कि अगर वह सुने तो उसे बुरा लगे।“ उसने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! चाहे वह बात सही हो ?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘अगर तू ग़लत कहे तो यह मिथ्यारोपण (झूठा आरोप) है।“
(मालिक)
‘‘मरे हुए लोगों को बुरा न कहो (यानी उनकी ग़ीबत न करो)। इसलिए कि वे अपने कर्मों के साथ अपने रब के पास जा चुके हैं।“
(बुख़ारी)
‘‘पीठ–पीछे बुराई व्यभिचार से ज़्यादा बड़ा जुर्म है।“ सहाबा (रज़ि॰) ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! पीठ–पीछे बुराई किस प्रकार व्यभिचार से बढ़कर सख़त जुर्म है?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘एक आदमी व्यभिचार करने के बाद जब तौबा (प्रायश्चित) करता है तो उसकी मग़फ़िरत हो जाती है (यानी वह अल्लाह की तरफ़ से माफ़ कर दिया जाता है) मगर ग़ीबत करनेवाले की मग़फ़िरत उस वक़्त तक नहीं होती जब तक कि वह व्यक्ति उसको माफ़ न कर दे जिसकी उसने ग़ीबत की है।“
(मिशकात)
चुग़लख़ोरी:
‘‘चुग़लख़ोरी करनेवाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।“
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘मेरे साथियों में से किसी के बारे में मुझे (बुराई की) कोई बात न पहुँचाएँ। इसलिए कि मैं चाहता हूँ कि मेरी मुलाक़ात तुम लोगों से इस हाल में हो कि मेरा सीना हर एक से साफ़ हो (यानी किसी की तरफ़ से मेरे दिल में कोई मैल या नाराज़ी मौजूद न हो)।“
(तिरमिज़ी)
रिश्वत और ख़ियानत (बेईमानी):
‘‘रिशवत देनेवाले और रिशवत लेनेवाले पर अल्लाह की फटकार और लानत है।“
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘जब किसी क़ौम में बदकारी (व्यभिचार) आम हो जाती है तो अवश्य ही वह (क़ौम) अकालग्रस्त कर दी जाती है। और जब किसी क़ौम में रिश्वत की बीमारी फैल जाती है तो अवश्य ही उसपर डर और दहशत छा जाती है।“
(मिशकात)
‘‘सरकारी नौकरी में कर्मचारी (लोगों से) जो हदिया (गिफ्ट, भेंट) वुसूल करते हैं, वह ख़ियानत (बेईमानी) है।“
(मुसनद अहमद)
‘‘जिस आदमी को हम किसी सरकारी काम पर नियुक्त कर दें और उस काम का वेतन उस आदमी को दें वह अगर उस वेतन के बाद और (कुछ) वुसूल करे तो यह ख़ियानत (बेईमानी) है।“
(अबू–दाऊद)
‘‘लोगो! जो कोई हमारी हुकूमत में किसी काम पर लगाया गया और उसने एक धागा या उससे भी मामूली चीज़ छिपाकर इस्तेमाल की तो यह ख़ियानत (चोरी) है, जिसका बोझ उठाए हुए वह क़ियामत (प्रलय) कळ दिन अल्लाह के सामने हाज़िर होगा।“
(अबू–दाऊद)
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