Paighamber Hazrat Muhammad (saw) Ka Aacharan

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पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का आचरण

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इतिहास में ऐसे अनगिनत महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपना सब कुछ मानवता के उत्थान और मुक्ति के लिए बलिदान किया है। मानव का सही मार्गदर्शन किया है। उन सब पर ईश्वर की अपार कृपा हो! दुनिया के किसी कोने में, इतिहास के किसी काल में और मानव-समुदाय की किसी जाति में उनका जन्म हुआ हो, हम उन्हें सलाम करते हैं और अपनी हार्दिक श्रद्धा उनको अर्पित करते हैं। वे सभी हमारे आदर्श पुरुष हैं।

लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि कालांतर में उनकी जीवनी और उनकी शिक्षाएं सुरक्षित नहीं रह सकीं। कुछ ऐसे प्रमाण अवशेष हैं जिनसे हमें मालूम होता है कि वे महान और आदर्श पुरुष थे। अफ़सोस कि उनके जीवन के आकार-प्रकार और उनकी शिक्षाओं की विस्तृत जानकारी के लिए हमारे पास कोई प्रामाणिक साधन नहीं है। यह ईश्वर की बड़ी कृपा है कि महान विभूतियों में एक महान व्यक्तित्व का पूरा जीवन इतिहास के प्रकाश में है। उसके जीवन और शिक्षाओं के बारे में हम जो कुछ जानना चाहें, सब मालूम कर सकते हैं। कहीं अटकल और अनुमान से काम लेने की ज़रूरत नहीं। निजी जीवन, सामाजिक जीवन और राजनीतिक जीवन भी, सब प्रकाश में हैं। यह प्रकाश-पुंज समस्त मानवजाति की अमूल्य धरोहर है। यह व्यक्तित्व है हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का।

आइये जानते हैं हदीस से उनका आचरण:

हज़रत आइशा (रज़ि॰) कहती हैं कि जब अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०), (हिरा नामक गुफ़ा से) घर लौटे तो उन पर कपकपी छाई हुई थी। (अपनी पत्नी) हज़रत ख़दीजा (रज़ि॰) के पास आए और कहा, ‘‘मुझे (कम्बल) ओढ़ा दो।“
उनको ओढ़ा  दिया गया। जब डर कुछ कम हुआ तो उन्होंने हज़रत ख़दीजा (रज़ि॰) को पूरा क़िस्सा सुनाया और कहा, ‘‘मुझे अपनी जान का ख़तरा महसूस हो रहा है।“  
ख़दीजा (रज़ि॰) ने कहा, ‘‘हरगिज़ नहीं! अल्लाह की क़सम, वह आपको हरगिज़ रुसवा न करेगा! आप रिश्तेदारों का ख़याल रखते हैं, दूसरों का बोझ उठाते हैं, ज़रूरतमन्दों के काम आते हैं,  मेहमानों की ख़ातिरदारी करते हैं और सत्य की राह पर चलने में जो मुसीबतें आतीं हैं उसमें आप मदद करते हैं।“  
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत अनस–बिन–मालिक (रज़ि॰) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) व्यवहार और आचरण में (सब) लोगों से उत्तम थे।
(हदीस : मुस्लिम)
हज़रत अनस–बिन–मालिक (रज़ि॰) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत, सबसे ज़्यादा दानशील और सबसे ज़्यादा बहादुर थे ।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत अनस (रज़ि॰) कहते हैं, ‘‘मैंने दस साल तक अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की सेवा की। उन्होंने कभी (किसी भी मामले में) मँहु से ‘उफ़’ तक नहीं कहा,  और न किसी काम के बारे में यह कहा कि यह क्यों किया और किसी काम के न करने पर यह भी नहीं कहा कि यह (काम) क्यों नहीं किया।“
(हदीस : तिरमिज़ी)
हज़रत अबू–अब्दुल्लाह जदली कहते हैं कि मैंने हज़रत आइशा (रज़ि॰) से अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) के  आचरण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) न गाली देते थे, न अपशब्द बोलते थे, न वे बाज़ारों में चीख़ते–चिल्लाते थे और न कभी उन्होंने बुराई का बदला बुराई से दिया, बल्कि वे माफ़ कर दिया करते थे ।“
(हदीस : तिरमिज़ी)
हज़रत अनस (रज़ि॰) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की ज़बान गाली–गलौज, अपशब्दों और लानत–फटकार से पाक थी। कभी किसी पर गु़स्सा होते तो सिर्फ़ इतना कहते कि इसे क्या हो गया है, इसकी पेशानी मिट्टी में लिथड़े।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत जाबिर (रज़ि॰) कहते हैं कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि पैग़म्बर (सल्ल॰) से कोई चीज़ माँगी गई हो और उन्होंने देने से मना किया हो ।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत अबू–हुरैरा (रज़ि॰) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) खाने में कभी ऐब नहीं निकालते थे। अगर पसन्द होता तो खा लेते वरना छोड़ देते।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत आइशा (रज़ि॰) कहती हैं कि हम अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) के घरवाले महीना–महीना इस हाल में गुज़ारते  कि आग (खाना पकाने के लिए) जलाई न जाती। हमारी गुज़र–बसर सिर्फ़ खजूर और पानी पर होती थी।
(हदीस : मुस्लिम)
हज़रत इब्ने–अब्बास (रज़ि॰) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) लगातार कई रातें भूख की हालत में गुज़ारते। उनको और उनके घरवालों के पास रात का खाना न होता, हालाँकि जो रोटी वे खाते वह अधिकतर  जौ की होती थी।
(हदीस : तिरमिज़ी)
हज़रत मालिक–बिन–दीनार (रज़ि॰) कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने रोटी या गोश्त पेट भरकर नहीं खाया, सिवाय उस समय जबकि वे लोगों (सहाबा) के साथ खाना खा रहे हों।
(हदीस : शमाइले–तिरमिज़ी)
हज़रत अबू–मूसा अशअरी (रज़ि॰) कहते हैं कि हज़रत आइशा (रज़ि॰) ने हमें एक चादर और एक मोटी लुंगी निकालकर दिखाई और फ़रमाया, ‘‘अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) का इन्तिक़ाल इन दो कपड़ों में हुआ।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत आइशा (रज़ि॰) फ़रमाती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) का बिस्तर, जिसको वे सोने के लिए इस्तेमाल करते थे, चमड़े का था जिसमें खजूर के रेशे भरे हुए थे ।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत अब्दुल्लाह–बिन–मसऊद (रज़ि॰) कहते हैं कि एक बार अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) चटाई पर सो गए थे। जब उठे तो आपकी पीठ पर निशान पड़ गए थे। यह देखकर हमने कहा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर, अगर हम आपके लिए नर्म बिस्तर का प्रबन्ध कर दें तो क्या हरज है?’’
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने फ़रमाया, ‘‘मुझे दुनिया से क्या लेना है! दुनिया से मेरा नाता इतना ही है जैसे कोई (यात्री) किसी पेड़ की छाया में (थोड़ी देर के लिए) रुक जाए और फिर उसको छोड़कर चला जाए।“
(हदीस : तिरमिज़ी)
हज़रत आइशा (रज़ि॰) फ़रमाती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) इस हाल में इस दुनिया से विदा हुए कि उनकी ज़िरह (कवच) एक यहूदी के पास तीस साअ़ (लगभग 95 किलो जौ) के बदले में रहन (गिरवी) रखी हुई थी।
(हदीस : बुख़ारी)
हज़रत आइशा (रज़ि॰) कहती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) इस हाल में दुनिया से विदा हुए कि मेरे घर में कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जिसे कोई जानदार खा सकता हो, सिवाय थोड़े से जौ के, जो मेरी अलमारी में रखे हुए थे। मैं उसे बहुत दिनों तक खाती रही यहाँ तक कि मैंने उसको (एक दिन) नाप लिया जिसके बाद वह ख़त्म हो गया।
(हदीस : मुस्लिम)
हज़रत आइशा (रज़ि॰) कहती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने न कोई दिरहम–दीनार (धन–दौलत) छोड़ा, न कोई बकरी और ऊँट।
(हदीस : मुस्लिम)

यह था हमारे प्यारे मुहम्मद (सल्ल.) के आचरण का सूक्ष अंश। अगर हम उनके आचरण का थोड़ा अंश भी अपने जीवन में शामिल कर लें तो हम इंसान कहलाने लायक हो जायेंगे।


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