Kaun si Cheez Murdon ko Faida Pahuchati Hai?

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सवाल: कौन सी चीज मुर्दो को फायदा पहुँचाती है?

जवाब: मरने के बाद सिर्फ वहीं चीजें फायदा दे सकती जो अल्लाह ने अपने नबी सल्ललाहो अलेही वसल्लम को बताया है और नबी सल्ल ने हमें बताया है। अब सवाल उठता है कि कौनसी चीज मुर्दे को सवाब पहुँचाती है।

आइये इसका जवाब हदीस शरीफ में देखते हैं:

दलील 1:

रसूलुल्लाह सल्ललाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया कि जब इंसान मर जाता हैं तो उसके नेक आमाल बंद कर दिए जाते हैं सिवाय तीन 3 तरह के:

  1. सद्का-ए-जारिया
    (यानी अल्लाह की राह में लगाया हुआ माल जो लोगों को मुसलसल फायदा पहुंचाता रहता हैं।)
  2. जो इल्म लोगों को सिखाया हो और उससे लोग फायदा उठा रहे हो
    (यानी उसने अगर किसी को दीनी तालीम सिखाई हो और जब तक वह इंसान उस तालीम पर अमल करता रहता है या वह उस तालीम को दुसरे जितने भी लोगों को सिखाता हैं सबका सवाब मरने के बाद भी मिलता रहता है।)
  3. नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे
    दलील (जामेया तीर्मीजी शरीफ हदीस नं, 1376)

दलील 2:

नबी सल्ललाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया:

“एक शख्स का जन्नत में दर्जा बुलंद होगा, फिर वो पूछेगा कि यह कैसे हुआ, फिर उसे कहा जाएगा तुम्हारे औलाद की दुआ की वजह से जो वह तुम्हारे लिए करता है।” (सही इब्ने माजा, 3660)

इस हदीस से मालूम हुआ की नेक औलाद की दुआ से मुर्दे को फायदा पहुँचाता है!

दलील 3:

रसूलुल्लाह सल्ललाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया :

“बेशक सबसे पाकीजा चीज जो इंसान खाता है वो उसके हाथों की कमाई है और उस की औलाद भी उसकी कमाई है।” (सुनन अबु दाऊद, 3528)

इस हदीस से मालूम हुआ कि औलाद वालदैन की ही कमाई है यानी अगर औलाद कोई नेक आमाल करता हैं या अपनी कमाई मे से अल्लाह की राह मे सदका खैरात करता है तो उसका सवाब खुद ब खुद वालदैन को मिलता रहता है चाहे उसके वालदैन जिन्दा हो या फौत हो गये हो।

दलील 4:

“एक शख्स ने रसूलुल्लाह सल्ललाहो अलेही वसल्लम से अर्ज किया कि मेरी वालीदा (माँ) का इंतेकाल हो गया है और अगर वह बोल पाती तो उन्होंने कुछ सद्का किया होता। तो अगर मैं उनकी तरफ से कुछ सद्का में दे दु तो क्या उन्हें सवाब मिलेगा?
आप सल्ललाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया,  “हाँ।” (सही बुखारी शरीफ, 1388)

इस हदीस से मालूम हुआ की अगर औलाद अपने वालदैन के लिए सद्का खैरात या जो भी नेक आमाल करता है उसका सवाब उसके वालदैन को पहुँचता है।

तो नबी सल्ललाहो अलेही वसल्लम से सिर्फ तीन 3 चीजें ही साबित है, मुर्दे को सवाब पहुँचाने के लिए। इसके अलावा जितने भी तरीके आजकल चलन में है उन सबका कुरआन और हदीस में कोई सबूत नहीं मिलता।

कुछ तरीके और उसकी वजाहत:

कुरआनख्वानी करवाना:

कुरआन पढ़ना सवाब का काम है, लेकिन एक खास रिवाज कुरआन ख्वानी के नाम से जरूरी बना लेना, जिसमें पैसा देकर मुल्ला, मौलवी और मदरसों के बच्चों को घर में बुलाकर कुरआन शरीफ पढ़वाया जाता हैं, इस यकीन के साथ की इससे मरहूम को सवाब पहुँचेगा, तो ये तरीका नबी सल्ल से साबित नहीं है और न हीं आप सल्ल ने इसका हुक्म दिया है, बल्कि ये बिद्अत है इससे मुर्दे को कोई सवाब नहीं पहुँचता है।

लोगों का जमा होकर तस्बीहात पढ़ना:

अल्लाह की तस्बीह पढ़ना सवाब का काम है, लेकिन एक खास रिवाज फातेहा के नाम से जरूरी बना लेना, जिसमें बहुत सारे लोग मय्यत के घर में जमा होकर कंकरीयो पर तस्बीह पढ़कर मुर्दे को बख्शाते हैं, ये तरीका नबी सल्ल से साबित नहीं और न ही इसका हुक्म है, बल्कि ये बिद्अत और लोगों का बनाया हुआ तरीका है। इससे मरहूम को कोई सवाब नहीं पहुँचता।

दसवाँ, चालीसा या बरसी करना:

गरीब को खाना खिलाना बहुत बड़ा सवाब का काम है, लेकिन इसके लिए किसी खास दिन को मुकर्रर (फिक्स) कर लेना जैसे दसवाँ (मरने के दस दिन बाद) या चालीसा (मरने के चालीस दिन बाद) या बरसी (जिस दिन इंतेकाल होता है हर साल उसी दिन को फिक्स करना), और उस खाने में अमीर लोगों को दावत देना, इस यकीन के साथ कि इससे मरहूम को सवाब मिलता है ये सब तरीका सरासर बिद्अत है इससे मुर्दे को कोई सवाब नहीं मिलता।

लीला सिखाइ करना:

आजकल मुस्लिम समाज में मुर्दे की लीला सीखाइ नाम से एक रिवाज है, जिसमें लोगों को जमा करके ऐलान करना कि मुर्दे की तरफ से कितना सद्का और खैरात किया गया है। ये तरीका नबी सल्ल की हुक्म के खिलाफ है, क्योंकि इसमें रियाकारी और दिखावा होता है, इससे मरहूम को कोई सवाब नहीं पहुँचता।

इसके अलावा मुर्दे को इसाले सवाब के नाम पर और भी बहुत सारे रिवाज है। जिसका शरीयत में कोई सबूत नहीं मिलता।

याद रखे कि अल्लाह के यहाँ वहीं इबादत काबिले कबूल है जो नबी सल्ल और सहाबा किराम के तरीकों के मुताबिक की जाए। जो इबादत हम अपने तरीकों और रस्म बनाकर करेंगे तो उससे कोई फायदा नहीं मिलेगा।


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