Islam ko ‘Kroor Dharm Bana Kar’ Pesh Karne Ki Ho Rahi Hai Sazish

0
1909


इस्लाम को “क्रूर धर्म बना कर” पेश करने की हो रही है साज़िश

इस्लाम को लेकर समय समय पर तरह तरह की भ्रांतियां फैलाई जाती रही हैं । कुछ लोगों ने इतिहास से छेड़छाड़ कर उसे आपमें मन से गढ़ने की कोशिश की। यह कोशिश न सिर्फ इस्लाम के मौलिक स्वरुप को बदलने का प्रयास था बल्कि लोगों के दिल और दिमाग में इस्लाम के प्रति नफरत पैदा करना भी है।

यह कहना कि इस्लाम तलवार के जोर से फैलाया गया हैं, “केवल एक गलत दावा हैं जो पूर्णरूप से गलतफहमी पर आधारित हैं।”

आइये इस पहलू से भी हकीकत का जायजा ले और सही नतीजे तक पहुंचने की कोशिश करें:

र्इसाइयत और इस्लाम अपने आरम्भ काल में गुप्त प्रचार के द्वारा फैलाए गए। हजरत मसीह के बाद र्इसाइयत का प्रचार उनके अनुयायियों ने किया। लेकिन इस्लाम का प्रचार कुछ ही दिनों एक गुप्त रूप में हुआ, फिर खुल्लम-खुल्मा उसके प्रचार का हुक्म आ गया।

इस्लाम में जोर-जबर्दस्ती की कोर्इ गुंजाइश नही, स्पष्ट रूप से इसका ऐलान किया गया हैं….।

अत: फरमाया गया, “दीन के मामले में कोर्इ जोर-जबर्दस्ती नहीं।” कोर्इ कह सकता हैं कि अगर ऐसी ही बात हैं तो नबी स0 ने लड़ार्इयां क्यो लड़ी और आपको तलवार क्यों उठानी पड़ी? हकीकत यह है कि आप स0 ने जो लड़ाइया लड़ी हैं, उन्हे आक्रामक लड़ार्इ नही कह सकते। आप स0 ने जो लड़ार्इयॉ लड़ी वे सुरक्षा के लिए लड़नी पड़ी।

मक्कावासी मदीने के इस्लामी राज्य को नष्ट कर देने की योजना बना कर निकले थे। यह मदीना वही हैं, जिसने खुदा के नबी को पनाह दी थी। इस्लाम की जीवन-प्रणाली को खत्म कर देने के लिए कुरैश ने जब हिंसात्मक कार्यवाही की तो नबी स0 को उनसे संघर्ष करना पड़ा।

इतिहास के बाद के युग मे मुस्लिम शासकों ने जो लड़ार्इयां लड़ी हैं, उनका इस्लाम से कोर्इ सम्बन्ध नही हैं। हिन्दू राजा रामचन्द्र ने जो जावा और सुमात्रा पर फौजकशी की, वहॉ आज भी हिन्दू-संस्कृति का असर पाया जाता हैं, लेकिन इससे यह नतीजा निकलना सही न होगा कि राजा रामचन्द्र ने हिन्दु धर्म के फैलाने के लिए फौजकशी की थी।

यूरोप के र्इसाइयों ने फौजकशी की और पूर्वी देशो में अपना साम्राज्य स्थापित किया। इस साम्राज्य में र्इसाइयत का प्रचार हुआ, लेकिन क्या आप यह कह सकते हैं कि इन देशों में र्इसाइयत तलवार के जोर से फैली हैं। फौजकशी तो आम तौर से मुल्कगीरी के लिए होती है, फिर जिस देश मे जिन लोगो का राज्य स्थापित हो जाता हैं, उन शासकों की नकल वहा की जनता करने लगती है और उनके धर्मो को अपनाने लगती हैं।

हिन्दुओं का एक पन्थ समनर पन्थ हैं। इस पंथ के लोगो का शासन जब तमिलनाडू में हुआ तो यहॉ समनर पंथ की उन्नति प्राप्त हुर्इ। हिन्दुस्तान में जब बुद्ध शासक थे तो बुद्धमत को उन्नति मिली। इसी तरह जब शिवपंथी हिन्दु शासक हुए तो इस पंथ को लोकख्याति प्राप्त हुर्इ और जब विष्णु पंथ के लोग सत्ता मे आए तो इस पंथ को लोकप्रियता हासिल हुर्इ। इससे यही मालूम होता हैं कि जैसा राजा वैसी प्रजा, की बात ही थी वरना धर्म के फैलाव से इन शासको को न दिलचस्पी थी न इस काम के लिए शासको ने कभी लड़ार्इ ही लड़ी।

इतिहास में हमे कोर्इ ऐसी घटना नही मिलती कि अगर किसी ने इस्लाम कुबूल करने से इन्कार किया तो उसे केवल इस्लाम कुबूल न करने के जुर्म मे कत्ल कर दिया गया हो, लेकिन कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट के बीच संघर्ष में धर्म की बुनियाद पर बड़े पैमाने पर खून खराबा हुआ। दूर क्यो जाइये, तमिलनाडू के इतिहास ही को देखिए, मदरै मे ज्ञान समुन्द्र के काल मे आठ हजार समनर मत के अनुयायियों को सूली दी गर्इ, यह हमारा इतिहास हैं।

अरब में प्यारे नबी शासक थे तो वहा यहूदी भी आबाद थे और र्इसार्इ भी, लेकिन आप स0 ने उन पर कोर्इ ज्यादती नही की। हिन्दुस्तान में मुस्लिम शासको के जमाने में हिन्दू धर्म का अपनाने और उस पर चलने की पूर्ण अनुमति थी। इतिहास गवाह हैं कि इन शासकों ने मन्दिरों की रक्षा और उनकी देखभाल की है।

मुस्लिम फौजकशी अगर इस्लाम को फैलाने के लिए होती तो दिल्ली के मुस्लिम सुल्तान के खिलाफ मुसलमान बाबर हरगिज़ फौजकशी न करता। मुल्कगिरी उस समय की सर्वमान्य राजनीति थी। मुल्कगीरी का कोर्इ सम्बन्ध धर्म के प्रचार से नही होता। बहुत सारे मुस्लिम उलमा और सूफी इस्लाम के प्रचार के लिए हिन्दुस्तान आए हैं और उन्होने अपने तौर पर इग्लास के प्रचार का काम यहॉ अन्जाम दिया, उनका मुस्लिम शासको से कोर्इ सम्बन्ध न था, इस के सबूत में नागोर में दफन हजरत शाहुल हमीद, अजमेर के शाह मुर्इनुददीन चिश्ती वगैरह को पेश किया जा सकता हैं।

इस्लाम अपने उलूमों और अपनी नैतिक शिक्षाओं की दृष्टिओं की दृष्टि से अपने अन्दर बड़ी कशिश रखता हैं, यही वजह हैं कि इन्सानों के दिल उसकी तरफ स्वत: खिचे चले आते हैं। फिर ऐसे दीन को अपने प्रचार के लिए तलवार उठाने की आवश्यकता ही कहां शेष रहती हैं?

इस्लाम की सजाए:

आमतौर से गैर-मुस्लिम भार्इयों में यह बात मशहूर हैं और इसे खूब फैलाया भी गया हैं कि मुसलमान निर्दयी होते हैं और उन के यहा सजाए भी जालिमाना दी जाती हैं। चोरो का हाथ काटा जाता हैं और व्यभिचार पर पत्थरो से मार डालने की सजा दी जाती है। यह भी कहा जाता है कि मुसलमानों ने फौजकशी करके मन्दिरों को ढाया हैं और जुल्म व सितम किया हैं। इन्ही सब बातों को लेकर कहा जाता हैं कि मुसलमान जालिम और बे-रहम होते है।

ये आरोप लगाने से पहले लोगो को अपना दामन भी देखना चाहिए। फिर असल हकीकत खुलकर सामने आ सकती हैं:

  • बेटे ने बछड़े को मार डाला तो मनुस्मृति के आदेशानुसार चोलान (Cholan) ने अपने बेटे को फासी पर लटकाया। इस काम को आखिर क्या कहा जाएगा?
  • राजा के बाग से एक फल नदी में गिर कर बहता हुआ चला आया, उसको एक लड़की ने उठा कर खा लिया। नन्नन (Nunnen) नामक राजा ने इस अपराध मे उस लड़की को कत्ल की सजा दी।
  • मशहूर कवि कंगी के पैर के कंगन को एक सुनार ने चुराया तो उस समय के सारे ही सुनारों को कत्ल कर दिया गया।
  • ज्ञाना समुन्दर नामक गुरू एक मठ मे रहते थे। समनर नामक एक कौम के लोगो ने उस मठ को आग लगाने की कोशिश की इस अपराध मे ंउस कौम के आठ हजार लोगो को सूली दी गर्इ।
  • अययर नामक एक व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने के जुर्म में पत्थर से बांधकर समुन्दर में फेंक दिया गया। जब वह बच निकला तो उसे चूने की मिटटी में डाल दिया।
  • तेनालीरामन की घटनाओं में एक घटना यह भी हैं कि राजा के आदेश को न मानने वालो को जिन्दा दफन किया गया और कुछ को हाथी के पैरो तले कुचला गया।
  • तमिलानाडू के तिरूमलार्इ और मैसूर के एक राजा के बीच जो लड़ार्इ हुर्इ उसमें लोगो की नाक काट दी गर्इ। मैसूर के शासक ने तमिलनाडू पर इतिहास लेने ही के लिए फौजकशी की थी और लोगो के होंट और नाक काट डाले थे। फिर इसके जवाब में उस समय के तमिलनाडू के शासक मे मैसूर पर हमला किया और उसने अपने दुश्मनों के नाक और होट काटे। (नायक राजाओं के इतिहास की किताबों से लिया गया।)
  • बच्चो का बलिदान करना, इंसानी अंगो की भेंट चढ़ाना, यह रिवाज आज भी हमारे देश मे कर्इ जगह पाया जाता हैं। आखिर क्या यह दया और रहम दिली के कारनामे हैं?
  • पश्चिम जगत मे सूली देना एक आम बात रही हैं हजरत मसीह को सूली देने की कोशिश की गर्इ। सेंट पीटर को उलटा लटका कर सूली दी गर्इ।
  • जान आफ आर्क को जिन्दा जलाया गया।
  • प्रोटेस्टेन्ट मत ग्रहण करने वालो के सिर फोड़ कर दिमाग को चूर्ण-विचूर्ण किया गया और उन्हे जिन्दा जलाया गया।
  • ढोर-डंगर की तरह इंसानों को अफरीका से पकड़ कर लाया गया और यूरोप के बाजारों में गुलाम बना कर नीलाम किया गया-यह थी पश्चिम की सभ्यता।
  • हिटलर ने गैस चेम्बर मे अगणित व्यक्तियों को खत्म किया।
  • आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ये खबरे आती हैं, कि फसाद और दंगो में इन्सानों को जिन्दा जलाया गया। वलीपुरम, जमशेदपुर, और भेलसा की घटनाएं इसकी साक्षी हैं।

इस तरह दुनिया के हर देश का इतिहास जुल्म और सितम की दास्तानों से दागदार दिखार्इ देता हैं। विभिन्न दर्शन शास्त्रो की बुनियाद पर आदमी ने जुल्म व सितम को वैध समझा हैं। वही उसकी ओर से रहम दिली और दानशीलता भी सामने आर्इ हैं। जालिमाना और हिंसक विचारों को मिटाकर उनकी जगह सही अर्थ मे दिया की शिक्षा देने वाला अगर कोर्इ सच्चा धर्म हैं तो वह इस्लाम हैं।

कुछ धर्मो में र्इश्वर के गुणो को विभाजित कर के हर गुण का एक अलग र्इश्वर माना जाता हैं। कुछ धर्म तो ऐसे हैं जिनमें र्इश्वर को गुणों से खाली समझा जाता है। लेकिन इस्लाम मे र्इश्वर सर्वथा दया दिखार्इ देता हैं। स्वयं प्यारे नबी हजरत मुहम्मद के आगमन को दया बतलाया गया हैं। कुरआन में र्इश्वर को जगह-जगह दयावान और कृपाशील कहा गया हैं। अल्लाह को यह पसन्द हैं कि उस के गुण, दया और कृपा की छाप उस के बन्दो की जिन्दगी मे भी पायी जाये।

इस्लाम की शिक्षा हैं कि प्रत्येक कार्य अल्लाह-दयावान, कृपाशील के नाम से शुरू किया जाय। इस्लाम ने सलाम का जो तरीका सिखाया हैं उससे भी दया और कृपा ही प्रकट होती हैं। वास्तविक मुसलमान दूसरों के लिए दयावान, कृपाशील और स्नेही होता हैं। कुरआन की शिक्षा यही हैं और नबी सल्ल0 का आदर्श भी यही हैं। कुछ लोग अगर इस रहस दिली के रास्ते से फिसल जाते हैं तो इस्लाम उन्हे इस राह पर पलट आने की ताकीद करता हैं।

तुर्की के एक शासक सुलतान सलीम थे। वे अपने अधीनों से बड़ी सख्ती से पेश आते थे। वे अपने देश की समस्त भाषाओं और सारे धर्मो को मिटाकर एक ही भाषा और एक ही धर्म को प्रचलित करने का इरादा रखते थे लेकिन उस समय के इस्लामी विद्वान के घोर विरोध के कारण सुलतान को अपनी यह योजना समाप्त कर देनी पड़ी।

तफरीह के लिए जानवरों पक्षियों को आपस मे लड़ाने का रिवाज विभिन्न देशो मे आज भी पाया जाता हैं। इस्लाम ने इसे अत्यन्त निन्दित ठहराया हैं। अदी बिन हातिम ने च्यूटियों को खुराक पहुचार्इ, यह इस्लामी शिक्षा का असर था। सड़क पर चलने का अधिकार जानवरों को भी हैं, उन्हे हटाया नही जा सकता। शीराजी ने यह घोषणा की। इस प्रकार की घटनायें मुसलमानों के इतिहास मे मिलती हैं।

ऊट पर अगर तीन व्यक्ति सवार हो और ऊट बोझ से दबा जाता हो तो सख्ती के साथ एक को उतार दो। यह शिक्षा भी इस्लाम की हैं। यह सही हैं कि दया की शिक्षा देने वाला इस्लाम -संगीत अपराधों पर अपराधियों को सख्त सजाये देने का आदेश भी देता है। निस्सन्देह इस्लाम ने चोर का हाथ काटने का हुक्म दिया हैं। लेकिन इसके परिणामों और प्रभाव को भी देखना चाहिए। जिन मुस्लिम देशो में यह कानून प्रचलित हैं, वहॉ चोरी की घटनायें नही के बराबर ही घटित होती हैं।

अरब देशों में कातिल की गर्दन तलवार से उड़ा दी जाती जब कि अन्य देशो में उसे फासी दी जाती हैं या बिजली की कुर्सी पर बिठा कर मौत की सजा देते हैं। सूली या बिजली के द्वारा बड़े कष्ट के साथ जान निकलती हैं। इसलिए तलवार से गर्दन मार कर मौत की सजा देने ही को बेहतर कहा जायेगा।