सुन्नत की पैरवी
दीन ए इस्लाम मे रसूलुल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत(आज्ञापालन) इसी तरह फ़र्ज़ हैं जिस तरह अल्लाह की इताअत(आज्ञापालन) फ़र्ज़ हैं| अल्लाह ने कुरान मे इरशाद फ़रमाया – जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की|(सूरह निसा 4/80)
ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो अल्लाह और रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत करो और अमाल(कर्म) बर्बाद न करो| (सूरह मुहम्मद 47/33)
मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अपनी मर्ज़ी से कोई बात नही कहते वो जो कुछ भी कहते हैं उन पर वहयी की जाती हैं| (सूरह नजम 53/3)
लिहाज़ा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इस उम्मत को जो भी कुछ बताया वो अपनी मर्ज़ी से नही बताया बल्कि वो हुक्मे इलाही बताया चाहे वो वुज़ु का तरीका हो या नमाज़ का, चाहे वो तरीका निकाह का हो या तलाक का| तमाम बात जो भी आपने अपनी जुबान मुबारक से कही वो सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म से कही और ये तमाम बाते अल्लाह ने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को वह्यी(जिब्रील अलै0) के ज़रिये बताई| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की ज़िन्दगी मे ऐसी बहुत सी बाते मिलती हैं के जब तक अल्लाह की तरफ़ से वहयी ना आ जाती तब तक आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम सहाबा रज़ि0 के सवालात का जवाब न देते थे| हज़रत उवैस बिन सामित रज़ि0 अपनी बीवी हज़रत खौला रज़ि0 से जिहार(बीवी को अपने लिये हराम कर लेना) कर बैठे, तो हज़रत खौला रज़ि0 नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर हुई| मसला ब्यान किया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने उस वक्त तक कोई जवाब न दिया जब तक वहयी न नाज़िल हो गयी| इसी तरह जब आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से रूह के बारे मे सवाल किया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम उस वक्त तक खामोश रहे जबतक वह्यी न नाज़िल हुई| इसी तरह से और बहुत से वाकयात हैं के जब जब सहाबा को कोई मसला पूछना होता और नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम कोई जवाब न होता तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तब तक जवाब न देते जब तक अल्लाह वहयी नाज़िल न कर देता|
कुरान और सुन्नत-अकीदे और अमल की मुहाफ़िज़
अकाइद और आमाल मे तमामतर बिगाड़ कुरान और सुन्नत की हुक्मऊदूली करने से होते हैं| अमूमन गैर इसलामी अकायद उन इलाको मे होते हैं जहा कुरान और सुन्नत की तालिम आम नही होती| इसके उल्टे कुरान और हदीस को थामे रखना तमाम झूठे अकाइद और अमाल से महफ़ूज़ रहने का एक वाहिद तरीका हैं| 218 हिजरी मे मामून रशीद की हुक्मरानी के दौरान एक गलत अकीदा के कुरान अल्लाह की मखलूक हैं| मामून रशीद ने तमाम उल्मा से मनवाने की कोशीश की तो इमाम अहमद बिन हंबल रह0 उस झूठे अकीदे क सामने पहाड़ बन कर खड़े हो गये| जेल के ताज़ादम जल्लाद दो कोड़े मार कर पीछे हट जाते और इमाम अहमद बिन हंबल से पूछा जाता कुरान मख्लूक हैं या गैर मख्लूक? हर बार इमाम अहमद बिन हंबल की ज़ुबान से एक ही जवाब निकलता – मुझे कुरान और सुन्नत रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से कोई दलील ला दो तो मान लूगां| ज़रूरत और हिकमत का कोई मशवरा इमाम अहमद बिन हंबल को नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के फ़रमान पर अमल करने से ना रोक सका| जिसका नतीजा आज हमारे सामने हैं के ये उम्मत आज इस फ़ितने से महफ़ूज़ हैं| गौर करे के अगर इमाम अहमद बिन हंबल ने उस वक्त ये बात तसलीम कर ली होती तो उनके मानने वाले आज कुरान को अल्लाह का मख्लूक ही तसलीम करते न के अल्लाह का कलाम| लेकीन ऐसा न हुआ और इमाम अहमद बिन हंबल नबी का इस फ़रमान – “मैं तुम्हारे बीच ऐसी चीज़ छोड़े जा रहा हूं जिसे मज़बूती से थामे रखोगे तो कभी गुमराह न होगे| अल्लाह की किताब और उसके नबी कि सुन्नत” पर साबित कदम जमे रहे|
कुरान और सुन्नत उम्मते मुस्लिमा की इत्तेहाद की बुनियाद हैं|
उम्मते मुस्लिमा मे इत्तेहाद की ज़रूरत किसी वज़ाहत की मोहताज नही| साम्प्रादायिकता और गिरोह्बन्दी ने दीन व दुनिया दोनो हिसाब स हमे बड़े भारी नुकसान पहुंचाया हैं| जिसे हम खुद इस मुल्क मे काफ़ी लम्बे वकफ़े से देख रहे हैं और इस हकीकत से आगाह हैं हमारे दीन की तरक्की मे हमारी ये नाइत्तेफ़ाकी एक बड़ी रुकावट हैं| अगर हम अपने मआशरे मे इस्लामी कानून नाफ़िस करने का ख्याल भी करते हैं तो सबसे पहली बात जो वो ये के हुक्मरान किस जमात का होगा और कानून कौन सा होगा फ़िकह का या कुरान और हदीस का और अकसर तो कुरान और सुन्नत की तालीम से भी वाबस्ता नही बल्कि अंधी अकिदतमंदी और शख्सियत परस्ती के कायल हैं जबकी अल्लाह का फ़रमान हैं-
और सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और आपस म तफ़र्के मे न पड़ो| (सूरह अल इमरान 3/103)
बावजूद आज इसके इस उम्मत मे तफ़रका हैं लिहाज़ा हुक्म ए इलाही यानि इस्लामी कानून नाफ़िस करने की तमामतर कोशिशे बेकार हैं क्योकि हम फ़िर्को मे बंटे हैं जबकि अल्लाह खालिस कुरान और हदीस पर जमा होने का हुक्म दे रहा हैं जैसा ऊपर कुरान की आयत गुज़री| इस आयत मे अल्लाह ने गिरोहबन्दी से मना कर खालिस अल्लाह की बात यानि कुरान और सुन्नत को थामने का हुक्म दिया| इसके अलावा जबतक उम्मत कुरान और सुन्नत पर 100% इत्तेफ़ाक नही करेगी तबतक इस उम्मत मे इत्तेहाद नही पैदा हो सकता|
मसला तकलीद और अदम तकलीद
तकलीद और अदम तकलीद का मसला बहुत पुराना हैं| दोनो फ़रीक अपने अकायत के हक मे बहुत से तर्क रखते हैं| हमारे नज़दीक तकलीद और अदम तकलीद के फ़रीक मे तर्क जमा कर एक के अकायद को सही और दूसरे के अकायद को बातिल कर लोगो मे प्रचार करना नही| बल्कि इस उम्मत की नयी नस्ल के बारे मे ये गौर फ़िक्र हैं के वो अमूमन ये तो जानती हैं के हमारा अल्लाह एक, रसूल एक, कल्मा एक, किब्ला एक लेकिन दरहकीकत जब ये नौजवान नस्ल इस उम्मत को फ़िर्को मे बंटा देखती हैं तो उसे बेरगबती होती हैं और उसका अकीदा कमज़ोर होने लगता हैं|
लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की हैं की नौजवान नस्ल को ये बताया जाये के जिस तरह हमारा अल्लाह कुरान, कल्मा, किब्ला एक हैं उसी तरह हमारा तरीका ए ज़िन्दगी का रास्ता भी एक हैं न के हम अलग-अलग फ़िर्को मे बंटे हैं| लेकिन वो रास्ता कौन सा हैं? सीधी सी बात हैं के दीन ए इस्लाम की बुनियाद कुरान और सुन्नत पर हैं और इस पर ईमान लाना और अमल करना हमारे लिये लाज़िमी हैं और इसमे कम-बेशी करने की कोई गुन्जाइश नही जबकि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की वफ़ात के बाद दीन ए इस्लाम मे जो कुछ भी बढ़ोत्तरी की गयी उससे दूर रहना हमारे लिये लाज़िमी हैं| ज़रा गौर करे के एक इन्सान हनफ़ी मसलक पर अमल करता हैं और वो मुसलमान भी हैं और उसके इस मसलक पर अमल करने से बाकि तीन मसलक पर फ़र्क नही पड़ता इसी तरह कोई दूसरा किसी और मसलक पर अमल करता हैं और उसके इस मसलक पर अमल करने से हनफ़ी मसलक पर कोई फ़र्क नही पड़ता और ये भी मुसलमान ही रहता हैं| तो फ़िर दीन ए इस्लाम को 4 हिस्सो मे बांटने की क्या ज़रूरत? इस उम्मत के सबसे बेहतर इन्सान सहाबा इकराम रज़ि0 किस मसलक पर थे? क्या वो भी किसी मसलक के पैरोकार थे? जवाब हैं नही बल्कि सहाबा इकराम रज़ि0 खालिस कुरान और सुन्नत के पैरोकार थे| बल्कि खुद नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – के मेरे बाद सबसे बेहतर ज़माना सहाबा का हैं|(मुस्लिम) इन तमाम बातो का आखिर खुलासा सिर्फ़ ये निकलता हैं सुन्नत रसूलुल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम जिस पर अमल और इजमाअ करना सब पर लाज़िम हैं| ये तरीका सुन्नत चाहे इमाम अबू हनीफ़ा के ज़रिये हम तक आये या किसी और इमाम के ज़रिये| गिरोह्बन्दी उस वक्त होती हैं जब सुन्नत का सही इल्म हो जाने के बाद सिर्फ़ इस लिये उस पर अमल नही किया जाता के हमारे इमाम के नज़दीक ऐसा नही हैं या हमारे फ़िकहा मे ऐसा नही हैं| जबकि गौर फ़िक्र की बात ये हैं के अइम्मा खुद सुन्नत रसूल के पाबन्द थे और उन तमाम बातो से बरिज़िम्मा हैं जो आज अइम्मा पर थोपी जाती हैं| इसकी मिसाले नीचे मौजूद हैं-
इमाम अबू हनीफ़ा का हुक्म
मीज़ान शीरानी मतबुआ मिस्र पेज 29 मे हैं कि – इमाम आज़म(अबु हनीफ़ा) रह0 ने अपने इस कौल से इशारा किया हैं कि जो नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लमसे पहुंचे वो सर आंखो कुबूल हैं, जो सहाबा रज़ि0 से पहुंचे इस मे इन्तिखाब करेंगें और जो सहाबा क सिवा ताबईन रह0 वगैराह से पहुंचे तो वो आदमी हैं और हम भी आदमी हैं|
कलमात तैयबात मतबुआ मताला अलउलूम पेज 30 मे इमाम अबु हनीफ़ा रह0 क कौल नकल फ़रमाते हैं कि – जब सही हदीस मिल जये तो वही मेरा मज़हब हैं|
मीज़ान सफ़ा 49 मे हैं कि – इमाम अबू हनीफ़ा रह0 फ़रमाते थे कि लोग हिदायत पर रहेंगे जब तक कि उन मे हदीस के तलब करने वाले होंगें जब हदीस को छोड़ कर और चीज़ तलब करेंगे तो बिगड़ जायेंगे|
ऐनी शरह हिदाया मतबुआ जिल्द 1 पेज 253 मे हैं कि – हदीसे मर्सल हमरे लिये हुज्जत हैं|
अकीदा अल जैद पेज 70 मे हैं कि – इमाम अबू हनीफ़ा रह0 कहते हैं कि जो शख्स मेरी दलील से वाकिफ़ न हो उस को हक़ नही कि मेरे कलाम का फ़त्वा दे|
इमाम मालिक का हुक्म
जलबू अल मनफ़आता पेज 74 मे हैं कि – मैं भी एक आदमी हूँ कभी मेरी राय सही और कभी गलत होती हैं, तुम मेरी राय को देख लो जो किताब व सुन्नत के मुताबिक हो इसको ले लो और जो मुखालिफ़ हो इसे छोड़ दो|
तारीख इब्ने खलकान मतबुआ इरान जिल्द पेज 11 मे हैं कि – हाफ़िज़ हमीद ने हकायत की हैं कि कानबी ने ब्यान किया कि मैं इमाम मालिक रह0 के मर्ज़ मौत मे उनके पास गया और सलाम करके बैठा तो देखा उन को रोते हुए| मैंने कहा आप क्यो रोते हैं| फ़रमाया ऐ कानबी मैं क्यो न रोऊ मुझ से बढ़ कर रोने के काबिल कौन हैं मैंने जिस जिस मसले मे राय से फ़त्वा दिया, मुझे ये अच्छा मालूम होता हैं कि उन मसले के बदले कोड़े से मैं मार खाता, मुझको इसमे गुन्जाईश थी काश मैं राय से फ़त्वा न देता|
इमाम शाफ़ई का हुक्म
अकदाल ज़ैद पेज 54 मे हैं कि – इमाम शाफ़ई रह0 फ़रमाते हैं जब मैं कहूँ और नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लमने मेरी बात के खिलाफ़ फ़रमाया हो तो, जो मसला नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लमकी हदीस से साबित हो वो अव्वल हैं, लिहाज़ा मेरी तकलीद मत करना|
अकदाल ज़ैद पेज 80 मे हैं कि – इमाम शाफ़ई रह0 से रिवायत हैं – वह फ़रमाया करते थे जब सहीह हदीस मिल जाये तो वही मेरा मज़हब हैं| एक और रिवायत मे हैं कि जब मेरी बात को हदीस के खिलाफ़ देखो तो हदीस पर अमल करो और मेरी बात को दीवार पर मार दो| एक दिन मजनी से कहा कि ऐ इब्राहिम हर एक बात मे मेरी तकलीद न करना और इससे अपनी जान पर रहम करना, क्योकि ये दीन हैं| इसके अलावा इमाम शफ़ई रह0 ये भी फ़रमाया करते थे कि किसी कौल मे हुज्जत नही हैं सिवाये रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लमके| चाहे कहने वाले बहुत ज़्यादा क्यो न हो, और न किसी क्यास मे, और न किसी शै मे| यहां बात सिवाये अल्लाह और उसके रसूल की तसलीम करने के और कुछ नही हैं|
नज़रातूलहक मतबुआ बल्गार पेज 26 मे अल्लामा मरजानि हनफ़ी फ़रमाते हैं कि- इमाम शाफ़ई रह0 ने फ़रमाया कि सब मुसल्मानो ने इत्तेफ़ाक किया है नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लमकि हदीस से तो किसी की बात से हदीस ना छोड़ी जाये|
हुज्जतुल बलाग मतबुआ सिद्दीकी पेज 153 मे हैं कि- इमाम शाफ़ई रह0 ने इमाम अहमद रह0 से कहा कि सही हदीस का इल्म तुम को हम से ज़्यादा हैं, जो हदीस सही हुआ करे वह मुझे बता दिया करो ताकि मैं इसी को अपना मज़हब करार दूँ|
इमाम अहमद बिन हंबल का हुक्म
अकदाल ज़ैद मतबूआ सिद्दीकी लाहौर पेज 81 मे हैं कि- इमाम अहमद बिन हंबल रह0 फ़रमाते थे कि किसी को अल्लाह और उसके रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लमके कलाम के साथ गुन्जाईश नही है|
मीज़ान शअरानी मे मतबुआ मिस्र जिल्द जिल्ददार पेज 51 मे हैं कि – इमाम अहमद बिन हंबल रह0 के बेटे अब्दुल्लाह कहते हैं कि मैने अपने बाप अहमद बिन हम्बल रह0 से दरयाफ़्त किया कि एक शहर ऐसा हैं जहां एक मुहद्दीस हैं जो सही, ज़ईफ़ हदीस का इल्म नही रखता और एक सहाबुल राय हैं| अब आप फ़रमाये कि मैं किस से फ़तवा पूंछू| तो इमाम अहमद बिन हंबल रह0 सहाबुल हदीस से पूछो सहाबुल राय से नही|
मीज़ान शअरानी मतबुआ मिस्र जिल्द जिल्ददार पेज 10 मे हैं कि – इमाम अहमद बिन हम्बल रह0 फ़रमाते थे कि अपना इल्म इसी जगह से लो जहां से इमाम लेते हैं और तकलीद मत करो क्योकि ये अंधापन हैं, समझे|
लिहाज़ा अगर हम वाकई अगर अइम्मा के सच्चे पैरोकार हैं तो हमे उनकी तालीमात पर अमल करना चाहिये न के किसी शख्सियात के मोहताज बने रहे के जब हमारा इमाम हुक्म देगा तभी अमल करेंगे| लिहाज़ा छोटे-छोटे मसायल के इख्तेलाफ़ को बुनियाद बनाकर जमाते बनाना और फ़िर्का बनाकर मुज़ाहिरा करना सरासर सुन्नत की तौहीन और जिहालत हैं|
इताअत रसूल मे मौज़ूअ और ज़ईफ़ हदीस का बहाना
सहीह हदीस के साथ मौज़ूअ (मनगढ़त) और ज़ईफ़ हदीसो की मिलावट के बहाने सुन्नत रसूल की अदायगी मे हीलहुज्जत करना इल्म हदीस न होने का नतीजा हैं| ज़रा गौर करे बाज़ारो मे नकली और असली दोनो किस्म की दवा मौजूद हैं तो क्या इस डर से दवा नही खरीदना चाहिये| नही बल्कि ऐसी हालत मे खूब छान फ़टक कर डाक्टरो की सलाह लेकर सही दवा को चुना जाता हैं| जिस तरह तौहीद के साथ शिर्क का वजूद होने पर तौहीद पर नाअमल करने का बहाना तस्लीम नही किया जा सकता उसी तरह ये कहकर की फ़ला आदमी ने ज़ईफ़ रिवायत पेश की इसे नही माना जा सकता नही हो सकता| बल्कि कोशिश ये के सही हदीस को पाने की जद्दोजहद की जाती रहे|
हदीस का चुनाव
हदीस का चुनाव किसी अकीदे या फ़िर्के की बुनियाद पर नही बल्कि हदीस की सच्चाई की बुनियाद पर किया जाता हैं| महज़ ये उसूल बना लेन के फ़ला जमात इन हदीसो पर अमल करती हैं इसलिये हदीस पर अमल ना किया जाये सरासर गलत और सुन्नत रसूल की तौहीन हैं| साथ ही ये भी ध्यान रहे की सुन्नत रसूल(हदीस) पर अमल किसी फ़िक या उल्मा के फ़त्वे पर नही बल्कि मुहद्दिस के सही और ज़ईफ़ के इत्तेफ़ाक़ पर होगा| बाज़ हनफ़ी मसलक पर अमल करने वाले गैर हनफ़ी के अमल को इसलिये गलत करार देते हैं के उनके इमाम के नज़दीक ये अमल नही किया जाता इसलिये वो भी उन हदीस(सुन्नत) पर अमल नही करते सरासर गलत हैं| (हदीस क बारे मे मज़ीद मालूमात के लिये यहां क्लिक करे)
सुन्नत के माने
लुगत मे सुन्नत के माने तरीका या रास्ता के हैं| शरई लुगत मे सुन्नत के माने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का अमल या तरीका हैं| सुन्नत की तीन किस्मे हैं-
1. वो जिसपर नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अमल किया हो
2. वो जिनको करने का हुक्म दिया हो
3. वो जिनपर ऐतराज़ न किया हो(यानि किसी को करते देख मना न किया हो या ये सुना हो के फ़ला ने ऐसा किया और मना न किया हो)
सुन्नत कुरान की रोशनी मे
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत तमाम मुसल्मान पर फ़र्ज़ हैं जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
ऐ लोगो जो ईमान लाये हो अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो और बात सुन लेने के बाद मुंह न फ़ेरो| (सूरह अनफ़ाल 820)
जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने रसूल की इताअत से मुंह फ़ेरा तो हमने उन पर आपको निगरा बना कर नही भेजा| (सूरह निसा 4/80)
हमने जो भी रसूल भेजा तो इसलिये के अल्लाह के हुक्म से उसकी पैरवी की जाये| (सूरह निसा 4/64)
अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाये|(सूरह अल इमरान 3/132)
ऐ लोगो जो ईमान लाये हो! अल्लाह की इताअत करो और उसके रसूल की इताअत करो और उनकी जो तुम्हारे अमीर हो| फ़िर अगर तुम्हारे बीच किसी बात मे इख्तेलाफ़ हो जाये तो पलटो अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ अगर तुम यकीनन अल्लाह और आखिरत पर ईमान रखते हो| यही एक सही तरीका हैं और सवाब के हिसाब से भी अच्छा हैं| (सूरह निसा 4/59)
सो तेरे रब की कसम ये कभी ईमानवाले नही हो सकते जब तक ये अपने आपसी झगड़े मे आपको फ़ैसला करने वाला न मान ले| फ़िर जो फ़ैसला तुम करो उस पर अपने दिलो मे कोiइ तन्गी न पाये और उसे खुशी से कबूल कर ले| (सूरह निसा 4/65)
ऐ लोगो जो ईमान लाये! अल्लाह और उसके रसूल का पालन करो और अपने अमाल को बरबाद न करो|( (सूरह मुहम्मद 47/33)
जो कुछ रसूल तुम्हे दे दे वो ले लो और जिस चीज़ से तुम्हे रोक दे उससे रुक जाओ और अल्लाह से डरो बेशक अल्लाह सख्त अज़ाब देने वाला हैं| (सूरह हश्र 59/67)
कुरान की बेशुमार आयत को अल्लाह ने अलग-अलग मौको पर नाज़िल फ़रमाया और बार-बार इस बात की याददहानी कराई के हर वो इन्सान जिसने ईमान का दावा किया है उस पर रसूल की इताअत फ़र्ज़ हैं और इस से बेरगबती करना या मुंह मोड़ना सिवाये जिहालत और नाकामयबी के और कुछ नही| इसके अलावा भी अल्लाह ने अनगिनत मुकाम पर इताअत रसूल के अलग अलग फ़ायदे बताये हैं| नीचे देखे-
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत आखिरत की कामयाबी की ज़मानत| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे इरशाद फ़रमाया-
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करे और अल्लाह से डरे और नाफ़रमानी से बचे वही कामयाब हैं| (सूरह नूर 24/52)
ईमान लाने वालो का काम तो यह हैं कि जब अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ बुलाये जाये ताकि रसूल उनके मामलात का फ़ैसला करे तब वे कह दे हमने बात सुन ली और इताअत किया ऐसे लोग ही कामयाब होने वाले हैं| (सूरह नूर 24/51)
जिसने अल्लाह और उसके रसूल की इताअत किय उसने बड़ी कामयाबी हासिल की| (सूरह अहज़ाब 33/71)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत जन्नत की गारन्टी| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
जो शख्स अल्लाह और रसूल की इताअत करेगा अल्लाह उसे ऐसे बागो मे दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरे बहती होगी जहा वो हमेशा रहेंगे और यही बड़ी कामयाबी हैं (सूरह निसा 4/13)
ऐ नबी! आप कह दीजिये अगर तुम अल्लाह से मुहब्बत करते हो तो मेरी इताअत करो अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाहो को माफ़ करेगा| (सूरह अल इमरान 3/31)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इताअत से अंबिया, सिद्दीकीन, शोहदा, और सालेहीन की जमात मे शामिल होना जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
जो लोग अल्लाह और रसूल की इताअत करेंगे वो उन लोगो के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने इनाम फ़रमाया| यानि अंबिया, सिद्दीकीन, शोहदा, और सालेहीन| और उन लोगो का कितना अच्छा साथ हैं| (सूरह निसा 4/69)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की नाफ़रमानी करने वाला मोमिन नही| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
लोग कहते हैं कि हम अल्लाह और रसूल पर ईमान लाये हैं और हमने इताअत कबूल की फ़िर उनमे से एक गिरोह मुंह फ़ेर लेता हैं| ऐसे लोग यकीनन ईमानवाले नही| जब उनको अल्लाह और रसूल की तरफ़ बुलाया जाता हैं ताकि रसूल उनके बाहमी मामलात का फ़ैसला करे तो उनमे से एक गिरोह कतरा जाता हैं| (सूरह नूर 24/47, 48)
जब उनसे कहा जाता हैं कि आओ उस चीज़ की तरफ़ जो अल्लाह ने उतारी और आओ रसूल की तरफ़ तो उन मुनाफ़िको को तुम देखते हो कि आपकी तरफ़ आने से रुक जाते हैं (सूरह निसा 4/61)
ऐ नबी! कह दीजिये अल्लाह और रसूल की इताअत करो और अगर लोग मुंह फ़ेरे तो यकीनन अल्लाह काफ़िरो को पसन्द नही करता| (सूरह इमरान 3/32)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की नाफ़रमानी झगड़े और फ़ूट का सबब| ज़ैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
अल्लाह और रसूल की इताअत करो और आपस मे झगड़ा न करो वरना तुम्हारे अन्दर कमज़ोरी पैदा हो जायेगी और तुम्हारी हवा उखड़ जायेगी| (सूरह अनफ़ाल 8/46)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की नाफ़रमानी गुमाराही और फ़ित्ने का सबब| जैसा अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-
किसी मोमिन मर्द और मोमिन औरत को ये हक नही के जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दे तो फ़िर उसे अपने मामले मे खुद फ़ैसला करने का हक हासिल रहे और जो कोई अल्लाह और रसूल की नाफ़रमानी करे वो खुली गुमराही मे पड़ गया| (सूरह अहज़ाब 33/36)
रसूल के हुक्म की नाफ़रमानी करने वालो को डरना चाहिये कि वह किसी फ़ित्ने मे न गिरफ़्तार हो जाये या उन पर दर्दनाक अज़ाब न आ जाये| (सूरह नूर 24/63)
अल्लाह और रसूल की इताअत करो और नाफ़रमानी करने से रुक जाओ लेकिन अगर तुमने हुक्म न माना तो जान लो कि हमारे रसूल पर तो साफ़-साफ़ पैगाम पहुंचा देने के अलावा कोई ज़िम्मेदारी नही| (सूरह माइदा 5/92)
सुन्नत की फ़ज़ीलत(फ़ायदे)
सुन्नत की पैरवी जन्नत की ज़मानत हैं|
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – मेरी उम्मत के सारे लोग जन्नत मे जायेंगे सिवाये उन लोगो के जिन्होने इंकार किया| सहाबा रज़ि0 ने अर्ज़ किया – या रसूलल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम इंकार किसने किया? आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – जिसने मेरी इताअत की वह जन्नत मे जायेगा और जिसने नाफ़रमानी की उसने इंकार किया|(बुखारी)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – जिसने मेरी इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की जिसने मेरी नाफ़रमानी की उसने अल्लाह की नाफ़रमानी की और जिसने अमीर की इताअत की उसने मेरी इताअत की और जिसने अमीर की नाफ़रमानी उसने मेरी नाफ़रमानी की| (मुस्लिम)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – मैं तुम्हारे बीच दो ऐसी चीज़ छोड़े जा रहा हूं की अगर उन पर अमल करोगे तो कभी गुमराह न होगे| एक अल्लाह की किताब और दूसरी मेरी सुन्नत| (हाकिम)
हज़रत कसीर बिन अबदुल्लाह बिन अम्र बिन औफ़ मुज़नी रज़ि0 फ़रमाते हैं कि मुझ से मेरे बाप ने, मेरे बाप से मेरे दादा ने रिवायत किया हैं कि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – जिसने मेरी सुन्नतो मे से कोई एक सुन्नत ज़िन्दा की और लोगो ने उस पर अमल किया तो सुन्नत ज़िन्दा करने वाले को भी उतना सवाब मिलेगा जितना उस सुन्नत पर अमल करने वाले तमाम लोगो को मिलेगा जबकि लोगे के अपने सवाब मे से कोई कमी नही की जायेगी और जिसने बिदअत जारी की और फ़िर उस पर लोगो ने अमल किया तो बिदअत जारी करने वाले पर उन तमाम लोगो का गुनाह होगा जो उस बिदअत पर अमल करेगे जबकि बिदअत पर अमल करने वाले लोगो के अपने गुनाहो की सज़ा से कोई चीज़ कम नही होगी| (इब्ने माजा)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि0 कहते हैं कि मैने रसूलुल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को फ़रमाते सुना हैं – अल्लाह उस शख्स को हरा-भरा रखे जिसने हमसे कोई बात सुनी और उसको उसी तरह दूसरो तक पहुंचा दिया जिस तरह सुनी थी| बहुत से पहुचाये जाने वाले सुनने वालो से ज़्यादा याद रखने वाले होते हैं| (तिर्मीज़ी, इसी तरह से एक और रिवायत हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्लाह रज़ि0 से हैं जिसे इब्ने माजा ने रिवायत किया हैं)
सुन्नत की अहमियत
ज़यादा सवाब की नियत से गैर मसनून तरिको के लिये मेहनत मशक्कत करना नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की नाराज़गी का सबब हैं और ऐसे अमल काबिले मकबूल नही|
हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत हैं के तीन हज़रात(अली बिन तालिब, अबदुल्लाह बिन उमरो और उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि0) नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की अज़वाज मुताहरात के घरो की तरफ़ आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इबादत के मुताल्लिक पूछने गये| जब इनको आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के अमल के बारे मे बताया गया तो जिसे इन्होने कम समझा और कहा के हमारा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से क्या मुकाबला आप के तो तमाम अगली पिछली लगज़िशे माफ़ कर दी गयी हैं| इनमे से एक ने कहा के आज से मैं हमेशा रात मे नमाज़ पढा करुंगा| दूसरे ने कहा के मैं हमेशा रोज़े रखा करुंगा और कभी नागा नही करुंगा| तीसरे ने कहा के मैं औरतो से जुदाई इख्तयार कर लूगा और कभी निकाह नही करुंगा| फ़िर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तशरीफ़ लाये और इनसे पूछा – क्या तुमने ही ये बाते कही थी| सुन लो अल्लाह की कसम अल्लाह रब्बुल आलामीन से मैं तुम सब से ज़्यादा डरने वाला हूं| मैं तुम सबसे ज़्यादा परहेज़गार हूं लेकिन मैं अगर रोज़े रखता हूं तो इफ़तार भी करता हूं, नमाज़ भी पढता हूं और सोता भी हूं, और औरतो से निकाह भी करता हूं| मेरे तरिके से जिसने बेरगबती करी वो मुझ से नही हैं| (सहीह बुखारी)
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने कोई काम किया और लोगो को उसकी छूट दे दी लेकिन कुछ लोगो ने वह छूट लेने से मना किया| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को पता चला तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने खुत्बा दिया| अल्लाह की हम्दो सना के बाद आपने इरशाद फ़रमाया – क्या वजह हैं कि जो काम मैं करता हूं कुछ लोग उसस बचा करत हैं अल्लाह की कसम मैं लोगो की निस्बत अल्लाह की मंशा और मर्ज़ी से ज़्यादा आगाह हूं और लोगो कि निस्बत अल्लाह से डरने वाला हूं| (बुखारी व मुस्लिम)
सुन्नत का इल्म हो जाने के बाद उस पर अमल न करना नाफ़रमानी की अलामत हैं|
हज़रत जाबिर रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम रमज़ान मे फ़तह मक्का वाले साल मक्का के लिये रवाना हुये, जब कुराअ गमीम (जगह का नाम) पहुचे तो नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम और सहाबा रज़ि0 सबने रोज़ा रखा(दौराने सफ़र) आपने पानी का प्याला मंगा कर ऊंचा किया| यहा तक कि लोगो ने उस प्याले को देख लिया फ़िर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने पी लिया बाद मे आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को बताया गया कि कुछ लोगो ने अभी भी रोज़ा रखा हुआ हैं| इस पर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया – ये लोग नाफ़रमान हैं, ये लोग नाफ़रमान हैं| (मुस्लिम)
जो अमल सुन्नत से साबित न हो वो मरदूद(कबूल नही) हैं|
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – जिसने दीन मे कोई ऐसा काम किया जिसकी बुनियाद शरीअत मे नही वह मरदूद है| (बुखारी)
हज़रत इरबाज़ बिन सारिया रज़ि0 से रिवायत हैं कि उन्होने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को फ़रमाते सुना – लोगो! मैं तुम्हे एक ऐसे रोशन दीन पर छोड़े जा रहा हूं जिसकी रात भी दिन की तरह रोशन हैं उससे वही शख्स इन्कार कर सकता हैं गुमराह होना हैं| (इसे इब्ने आसिम ने किताबुस्सुन्नह मे रिवायत किया हैं|)
सुन्नत के मुकाबले मे किसी नबी, वली, मुहद्दिस या इमाम की इताअत का तसव्वुर भी खुली गुमराही हैं|
हज़रत जाबिर रज़ि0 से रिवायत हैं के हज़रत उमर रज़ि0 नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम कि खिदमत मे हाज़िर हुये और कहा कि – हम यहूदियो से कुछ बाते सुनते हैं, जो हमे अच्छी लगती हैंक्या उनमे से कुछ लिख लिया करे? नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – क्या तुम शुबहात का शिकार हो जिस तरह यहूद व नसारा शुबहात मे पड़ गये थे| हांलाकि मैं एक खुली और रोशन शरियत लेकर आया हूं| अगर आज मुसा अलै0 भी ज़िन्दा होते तो मेरा अनुसरण किये बिना उनके लिये भी कोई रास्ता न होता| (अहमद व बैहकी)
हज़रत जाबिर रज़ि0 से रिवायत हैं की हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ि0 तौरात लेकर नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर हुये और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम यह तौरात हैं| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम खामोश रहे| हज़रत उमर रज़ि0 तौरात पढ़ने लगे, तो नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का चेहरा मुबारक बदलने लगा| हज़रत अबू बक्र रज़ि0 ने कहा – ऐ उमर! गुम करने वालिया तुझे गुम पाये| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के चेहरे की तरफ़ नही देखते| हज़रत उमर रज़ि0 ने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के चेहरे मुबारक की तरफ़ देखा तो कहा – मै अल्लाह और उसके रसूल के गुस्से से अल्लाह की पनाह मांगता हूं हम अल्लाह के रब होने पर, इस्लाम के दीन होने पर और मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के नबी होने पर राज़ी हैं| इसके बाद नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – उस ज़ात की कसम! जिसके हाथ मे मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की जान हैंअगर आज मूसा अलै0 तशरीफ़ ले आये और तुम लोग मेरे बजाये उनकी इताअत शुरु कर दो तो सीधी राह से गुमराह हो जाओगे और अगर मूसा अलै0 ज़िन्दा होते और मेरी नबूवत का ज़माना पाते तो वो भी मेरी इताअत करते| (दारमी)
सहाबा सुन्नत को तर्क करना गुमराही समझते थे|
हज़रत उर्वा बिन ज़ुबैर रज़ि0 से रिवायत हैं के हज़रत अबू बक्र रज़ि0 ने फ़रमाया – मै कोई ऐसी चीज़ नही छोड़ सकता जिस पर नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अमल किया करते थे, क्योकि मुझे डर हैं कि अगर मैं नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के कौल और अमल मे से कोई चीज़ छोड़ दूं तो मैं गुमराह हो जाऊंगा| (बुखारी व मुस्लिम)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम का नाम लेकर बात कहना जो के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने न कही हो ऐसे लोग जहन्नम मे जायेगे
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – जिसने जानबूझ कर झूठ मेरी तरफ़ मंसूब किया वह अपना ठिकाना जहन्नम मे बना ले|(बुखारी व मुस्लिम)
(इसी तरह से हज़रत अली रज़ि0 से भी रिवायत हैं जिसे बुखारी व मुस्लिम ने रिवायत किया हैं| और एक दूसरी जगह हज़रत सलमा रज़ि0 जिसे बुखारी ने रिवायत किया)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – आखिरी ज़माने मे दज्जाल और झूठे लोग तुम्हे पास ऐसी हदीसे लायेगे, जो तुमने और तुम्हारे बुज़ुर्गो ने कभी न सुनी होगी| लिहाज़ा उनसे बचकर रहो कही तुम्हे गुमराह न कर दे या फ़ितने का शिकार न कर दे|(मुस्लिम)
सुन्नत की ताज़िम
सहाबा रज़ि0 सुन्नत मे ज़रा सा भी रद्दोबदल बर्दाश्त नही करते थे|
हज़रत उमारा बिन रुवैबा रज़ि0 ने खलीफ़ा मरवान के बेटे बशर को मिंबर पर दोनो हाथ उठाते देखा तो फ़रमाया – अल्लाह खराब करे उन दोनो हाथो को मैने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को इससे ज़्यादा करते नही देखा और अपनी अंगुश्त शहादत से इशारा किया| (मुस्लिम)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – कोई शख्स अल्लाह की बन्दियो को मस्जिद मे आने से न रोके| हज़रत अब्दुल्लाह के बेटे ने कहा – हम तो रोकेगे| हज़रत अब्दुल्लाह रज़ि0 सख्त नाराज़ हुये और फ़रमाया – मै तेरे सामने हदीसे रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ब्यान कर रहा हूं और तू कहता हैं कि हम उन्हे ज़रूर रोकेगे| (इब्ने माजा)
हज़रत हारिस बिन अब्दुल्लाह बिन औस रज़ि0 कहते हैं कि मैं उमर बिन खत्तब रज़ि0 के पास हाज़िर हुआ और उनसे पूछा कि अगर कुर्बानी के दिन तवाफ़े ज़ियारत करने के बाद औरत को हैज़ हो जाये तो क्या करे? हज़रत उमर रज़ि0 ने फ़रमाया – (तहारत क बाद)आखीरी काम बैतुल्लाह शरीफ़ का तवाफ़ होना चाहिये| हारिस रज़ि0 ने कहा – नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने मुझे यही फ़तवा दिया था| इस पर हज़रत उमर रज़ि0 ने फ़रमाया – तेरे हाथ टूट जाये, तूने मुझसे ऐसी बात पूछी, जो तू नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से पूछ चुका था, ताकि मैं नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के खिलाफ़ फ़ैसला करुं|(अबू दाऊद)
सुन्नत की मौजूदगी मे राय की हैसियत
हज़रत कबीसा बिन ज़ुवैब रज़ि0 से रिवायत हैं की एक मय्यत की नानी हज़रत अबू बक्र रज़ि0 के पास मीरास मांगने आई, हज़रत अबू बक्र रज़ि0 ने फ़रमाया – कुरान के हुक्म के मुताबिक मीरास मे तुम्हारा कोई हिस्सा नही और न ही मैने इस बारे मे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से कोई हदीस सुनी हैं| लिहाज़ा वापस चली जाओ| मै इस बारे मे लोगो से मालूम करुंगा| इसके बाद हज़रत अबू बक्र रज़ि0 ने लोगो से पूछा तो हज़रत मुगीरा बिन शैबा रज़ि0 ने कहा – मेरी मौजूदगी मे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने नानी का छठा हिस्सा दिलाया हैं| हज़रत अबू बक्र रज़ि0 ने पूछा – कोई और भी इसका गवाह हैं? मुहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ि0 ने भी इस हदीस की तसदीक की| लिहाज़ा हज़रत अबू बक्र रज़ि0 ने नानी को छठा हिस्सा दिला दिया (अबू दाऊद)
हज़रत सईद रज़ि से रिवायत हैं के हज़रत उमर रज़ि0 फ़रमाया करते थे – विरासत केवल बाप के रिश्तेदारो के लिये हैं लिहाज़ा बीवी को अपने शौहर की विरासत मे कोई हिस्सा नही मिलता| जह्हाक बिन सूफ़ियान ने कहा की नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने मुझे यह पैगाम लिखवाकर भिजवाया कि मै अशीम ज़ुबाबी की बीवी को उसके शौहर की विरासत से हिस्सा दिलाऊ| लिहाज़ा हज़रत उमर रज़ि0 ने अपनी राय वापस ली| (अबू दाऊद)
लिहाज़ा सहाबा का ये अमल था के सुन्नत रसूल पर अपनी राय नही पेश करते थे|
कुरान समझने के लिये सुन्नत की ज़रूरत
हज़रत मिकदाम बिन मअदी करिब रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – लोगो! याद रखो कुरान ही की तरह एक और चीज़ मुझे अल्लाह की तरफ़ दी गयी हैं| खबरदार॰ एक वक्त आयेगा कि “एक पेट भरा अपनी मसनद पर तकिया लगाये बैठा होगा और कहेगा लोगो ! तुम्हारे लिये कुरान ही काफ़ी हैं इसमे जो चीज़ हलाल हैं बस वही हलाल है और जो चीज़ हराम हैं बस वही हराम हैं|” हालाकि जो कुछ अल्लाह के रसूल ने हराम किया हैं वह ऐसे ही हराम हैं जैसे अल्लाह ने हराम किया हैं| सुनो! घरेलू गधा भी तुम्हारे लिये हलाल नही| न ही वो दरिन्दे जिनकी कचलिया(नोकिले दांत) हैं, न ही किसी जिम्मी की गिरी पड़ी चीज़ किसी के लिये हलाल हैं| हां अलबत्ता अगर उसके मालिक को उसकी ज़रूरत ही न हो तो फ़िर जाइज़ हैं| (अबू दाऊद)
हज़रत हुज़ैफ़ा रज़िरज़िया कहते हैं कि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – ईमानदारी आसमान से लोगो के दिलो मे उतरी हैं(यानि फ़ितरते इन्सान हैं) और कुरान भी उतरा हैं जिसे लोगो ने पढ़ा और सुन्नत के ज़रिये समझा| (बुखारी)
लिहाज़ा कुरान को समझने के लिये सुन्नत की समझना और पैरवी करना ज़रूरी हैं| इसके अलावा कुरान मे अल्लाह ने केवल मुआफ़िर और बीमार को रमज़ान मे रोज़े छोड़कर कज़ा अदा करने की छूट दी हैं जबकि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने मुसाफ़िर और बीमार के अलावा हैज़ वाली और दूध पिलाने वाली औरतो को भी रोज़ा छोड़कर बाद मे कज़ा करने की छूट दी हैं|
अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया – तुममे से जो शख्स बीमार हो या सफ़र मे हो दूसरे दिनो मे गिनती पूरी करे| (सूरह अल बकरा 2/184)
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – हज़रत अनस रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – अल्लाह ने मुसाफ़िर को रोज़ा कज़ा करने और आधी नमाज़ की छूट दी हैं जबकि हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को केवल रोज़ा कज़ा करने की छूट दी हैं| (निसाई)
इसके अलावा कुरान मे ऐसी बहुत सी हुक्म हैं जिन पर किस तरह अमल करना हैं बिना सुन्नत को समझे उसे समझ पाना नामुमकीन हैं इसकी दूसरी मिसाल ये हैं के अल्लाह ने कुरान मे नमाज़ का हुक्म दिया लेकिन तरीका नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने बताया| निकाह का हुक्म कुरान से हैं लेकिन उसका तरीका नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने बताया वगैराह|
सुन्नत सहाबा रज़ि0 की नज़र मे
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ि0 कहते हैं के एक बार नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम सहाबा रज़ि0 को नमाज़ पढ़ा रहे थे कि दौराने नमाज़ आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अपने जूते उतार कर बाई और रख दिये| जब सहाबा रज़ि0 ने देखा तो उन्होने भी अपने जूते उतार दिये| नबी सम ने नमाज़ खत्म की तो मालूम किया – तुम लोगो ने अपने जूते क्यो उतारे? सहाबा रज़ि0 ने अर्ज़ किया – हमने चूंकि आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को जूते उतारते देखा लिहाज़ा हमने भी अपने जूते उतार दिये| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – मुझे तो जिब्रील अलै0 ने आकर बताया कि मेरे जूतो मे गन्दगी हैं या कहा के तकलीफ़ देने वाली चीज़ हैं| फ़िर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने सहाबा रज़ि0 को नसीहत फ़रमाई – जब मस्जिद मे नमाज़ पढ़ने आओ तो पहले अपने जुतो को अच्छी तरह देख लिया करो| अगर उनमे गन्दगी लगी हो तो उसे साफ़ कर लो फ़िर नमाज़ पढ़ो| (अबू दाऊद)
हज़रत ज़ैद बिन असलम अपने बाप से रिवायत करते हैं कि हज़रत उमर रज़ि0 ने हजरे असवद को खिताब करके कहा – वल्लाह मैं जानता हूं तू एक पत्थर हैं न नुकसान दे सकता हैं न फ़ायदा दे सकता हैं| अगर मैने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को इस्तलाम (हजरे असवद को हाथ लगाकर बोसा देना) करते न देखा होता तो तुझे कभी न चूमता| फ़िर फ़रमाया अब हमे रमल करने की क्या ज़रूरत हैं| रमल तो मुशरिको को दिखाने के लिये था| अब अल्लाह ने उन्हे खत्म कर दिया हैं फ़िर खुद फ़रमाया – लेकिन रमल तो वो चीज़ हैं जो नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की सुन्नत हैं और सुन्नत छोड़ना हमे पसन्द नही| (बुखारी व मुस्लिम)
लिहाज़ा सुन्नत की पैरवी के लिये ये ज़रूरी नही के सुन्नत समझ मे आये तभी उस पर अमल किया जाये क्योकि सहाबा का ये अमल था के उन्होने नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को जो भी करते देखा उस पर अमल किया चाहे उन्हे वो बात समझ आई या नही लेकिन उन्होने सुन्नत की पैरवी के लिये कभी हiल हुज्जते न करी जैसा आज अमूमन लोग सुन्नत की पैरवी के लिये हील हुज्जत करते है के ये मुकतदा हैं या गैर मुकतदा हैं या वाजिब हैं वगैराह|
इसके अलावा और भी ऐसे बहुत से मुकामात हैं जैसे हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी रज़ि0 का लहसुन खाने को तर्क कर देना क्योकि नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को लहसुन की बू पसन्द न थी|(मुस्लिम) या नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अंगूठी को पहनना तर्क किया तो सहाबा ने भी इसे तर्क कर दिया|(बुखारी) अल्लाह ने रसूल खुत्बा देने के लिये मिम्बर पर चढ़े और कह लोगो बैठ जाओ तो हज़रत अबदुल्लाह बिन मसऊद रज़ि0 मस्जिद के दरवाजे पर थे और वही बैठ गये तो नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया मस्जिद के अन्दर आकर बैठो|(अबू दाऊद)