TAUHEED – What and Why?

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tauheed

तौहीद(एकेश्वरवाद) क्या और क्यूँ ?

ऐ लोगो! आओ एक ऐसी बात की तरफ़ जो हमारे और तुम्हारे बीच है वो ये के हमारा और तुम्हारा मालिक एक हैं जिसे दुनिया मे लोग अलग-अलग नामो से बुलाते हैं जो तमाम आलमे इन्सान के लिये निजात का ज़रिया हैं और वो बात हैं के-

ला इलाहा इल्लललाह मुहम्मदुर्र रसूलुल्लाह(अल्लाह के सिवा कोई माबूद (इबादत के लायक) नही और मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के रसूल(ईशदूत अथवा सन्देष्टा) हैं|

इस्लाम किसी खास कौम या मुल्क या जाति के लिये नही बल्कि इस्लाम तमाम आलमे इन्सान के लिये हैं| इस्लाम ने जितनी अहमियत तौहीद को दी उतना किसी और चीज़ को नही दी| बावजूद इसके के इस्लाम का तालीमी निज़ाम आम होने के बाद आज भी इस दुनिया के हर हिस्से मे किसी न किसी जगह शिर्क के मानने वाले पाये जाते हैं| दुनिया मे बसने वाले आज भी एक खुदा का इकरार तो करते हैं लेकिन बावजूद इसके दूसरो को हाजतरवां व मुश्किलकुशा भी समझते हैं और उनसे अपनी मन्नते और मुरादे मांगते हैं|

दुनिया की इस वक्ती ज़िन्दगी को इन्सान हमेशा-हमेशा की समझता हैं और जन्नत व जहन्नम जो उसे मरने के बाद उसके अमल के मुताबिक हमेशा-हमेशा के लिये मिलेगी उसे भूला बैठा हैं और लोग जन्नत कि तरफ़ जाते हुये कम और जहन्नम की तरफ़ जाते हुये ज़्यादा नज़र आते हैं क्योकि आज दुनिया की चमक-धमक ने इन्सान को इस कदर अन्धा कर रखा हैं के लोग दुनिया को ही अपना हकीकी घर मानते हैं| जिसका असल सबब रसूल की तालिमात से मुंह फ़ेरना हैं आज जब दीन(धर्म) की बात होती हैं तो लोगो की भीड़ कम ही होती हैं लेकिन दीन(धर्म) के उलट जो भी बात होती हैं उसमे लोगो का हुजूम इस कदर नज़र आता हैं जैसे लोग खालिस दीन(धर्म) का काम करने आये हैं| ऐसे हालात मे हर तौहीदपरस्त की खास तौर से ज़िम्मेदारी हैं के के वो तौहीद की दावत लोगो तक आम करे ताकि लोग शैतान की फ़ैलायी हुयी इस मकर फ़रेबी से बाहर आकर आंखे खोले और सच्चे रब को पहचाने|

रोज़े कयामत इन्सान की निजात सिर्फ़ दो ही चीज़ो पर हैं| एक ईमान और दूसरे उसके नेक अमल जो दुनिया मे किये होंगे| ईमान से मुराद अल्लाह की ज़ात पर ईमान, फ़रिश्तो पर ईमान, रसूलो पर ईमान, किताबो पर ईमान, अच्छी और बुरी तकदीर पर ईमान और यौमे(हिसाब किताब का दिन) आखिरत पर ईमान| नेक अमल से मुराद वो काम जिसका करने का हुक्म नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने दिया हो, या करा हो या नबी के सहाबा मे से किसी ने किया हो तो आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने मना न किया हो| बिलाशुबह निजात के लिये नेक अमल बहुत अहमियत रखते हैं लेकिन तौहीद और र्नेक अमल मे तौहीद की अहमियत कही ज़्यादा हैं| रोज़े कयामत तौहीद की मौजुदगी मे अमल की कोताहिया तो माफ़ हो सकती हैं लेकिन तौहीद मे बिगाड़(काफ़िराना, मुश्रिकाना या तौहीद मे शिर्क की मिलावट) की सूरत मे ज़मीन व आसमान के बराबर भी नेक अमल इन्सान को कोई फ़ायदा न दे सकेगें| जैसा अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-

जिन लोगो ने कुफ़्र इख्तियार किया और कुफ़्र ही की हालत मे मरे उनमे से कोई अगर (अपने आप को बचाने के लिये) रुए ज़मीन भर कर भी सोना फ़िदया(टैक्स या रिश्वत) मे दे तो उसे कबूल न किया जायेगा| ऐसे लोगो के लिये दर्दनाक अज़ाब हैं और ऐसे लोगो का कोई मददगार नही होगा| (सूरह अल इमरान 3/91)

यानि ये के न सिर्फ़ उनके अच्छे काम जो उन्होने दुनिया मे किये होगें बरबाद हो ज़ायेगे बल्कि अकीदा तौहीद न होने या मिलावट होने के सबब उन्हे दर्दनाक अज़ाब भी दिया जायेगा जो उन्हे हमेशा-हमेशा दिया जाता रहेगा और न ही कोई उनकी मदद कर पायेगा|

अकीदा शिर्क जो सबसे बड़ा गुनाह हैं अल्लाह ने कुरान मे अनगिनत मुकाम पर इसकी बहुत मज़म्मत की हैं अंबिया(नबी और रसूलो) को वार्निंग भी दी गयी के अगर खुद उनके अकीदे तौहीद मे ज़र्रा बराबर भी शिर्क की मिलावट हुई तो वो भी माफ़ी के काबिल नही-

(ऐ नबी) यकीनन तुम्हारी तरफ़ और तुमसे पहले गुज़रे हुये तमाम अंबिया की तरफ़ यह वह्यी भेजी जा चुकी हैं कि अगर तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया कराया अमल ज़ाया हो जायेगा और तुम खसारा(घाटा) उठाने वालो मे से हो जाओगे| (सूरह ज़ुमर 39/65)

पस तू अल्लाह के साथ किसी दूसरे को अपना रब न पुकारो वरना तुम भी सज़ा पाने वालो मे शामिल हो जाओगे| (सूरह शुअरा 26/213)

उपर की दोनो आयतो से साफ़ ज़ाहिर हैं के अल्लाह अपने महबूब बन्दे जनाब मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम को खिताब करके फ़ैसलाकुन और वार्निंग के अन्दाज़ मे ये हुक्मनामा दिया के शिर्क अंबिया के भी अमल को ज़ाया कर देता हैं| लिहाज़ा अल्लाह के यहा शिर्क नाकाबिले माफ़ी गुनाह हैं| इसके अलावा ऐसा कोई गुनाह नही जिसे अल्लाह चाहे तो माफ़ करे या न करे|

खुद शिर्क की मज़म्मत मे नीचे हदीस नबवी को देखे-

1. नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत माज़ रज़ि0 को दस नसीहते फ़रमाई जिसमे से सबसे पहली यह नसीहत थी के अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना चाहे कत्ल कर दिये जाओ या जला दिये जाओ| (मुस्नद अहमद)

2. नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – सात हलाक करने वाली चीज़ो से बचो, (1) अल्लाह के साह शिर्क करना, (2) जादू, (3) बिलावजह कत्ल करना, (4) यतीम का माल खाना, (5) सूद खाना, (6) मैदाने जंग से भागना और (7) भोली-भाली मोमिन औरतो पर तोहमत लगाना| (मुस्लिम)

3. नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – अल्लाह उस वक्त तक बन्दे के गुनाह माफ़ करता रहता हैं जब तक अल्लाह और बन्दे क दरम्यान हिजाब न हो| सहाबा रज़ि0 ने अर्ज़ किया – या रसूलुल्लाह सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम! ये हिजाब क्या होता हैं? नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – हिजाब का मतलब हैं की इन्सान मरते दम तक शिर्क मे फ़ंसा रहे| (मुस्नद अहमद)

ऊपर गुज़री हुई हदीसो से ये अन्दाज़ा लगाना कोई मुश्किल नही के शिर्क ही वो गुनाह हैं जो इन्सान की हलाकत और बरबादी का सबब हैं| इसकी कुछ और मिसाले देखे-

1. रोज़े कयामत हज़रत इब्राहिम अलै0 अपने बाप आज़र की बख्शिश के लिये सिफ़ारिश करेंगे तो जवाब मे अल्लाह ताला इरशाद फ़रमायेगे – मैने जन्नत को काफ़िर के लिये हराम कर दी हैं| (बुखारी)

2. नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के चचा अबू तालिब को कौन नही जानता जिन्होने हर मुश्किल कि घड़ी मे आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम का साथ दिया बल्कि हर तरह से आप कि हिफ़ाज़त कि और कुफ़्फ़रे मक्का के आगे आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के लिये दीवार बन कर खड़े हो गये और अपनी पूरी ज़िन्दगी आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम का साथ देते रहे| यही नही जिस साल जनाब अबू तालीब का इन्तकाल हुआ आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने उसे गम का साल(आमुल हिज़्न) करार दिया लेकिन जनाब अबू तालिब ने एक बार भी कल्मा ला इलाहा इल्लललाह न पढ़ा और अपने इसी अमल की वजह से जहन्नम मे चले जायेगे| (मुस्लिम)

इसके उल्टे अकीदा तौहीद कयामत के दिन गुनाहो का कफ़्फ़ारा और अल्लाह की माफ़ी का सबब बनेगा| इरशादे नबवी हैं-

जिसने ला इलाहा इल्लललाह का इकरार किया और इसी पर मरा, वह जन्नत मे दाखिल होगा| सहाबा ने अर्ज़ किया – चाहे ज़िना किया हो, चोरी की हो? नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – हां! चाहे ज़िना किया हो, चोरी की हो| (मुस्लिम)

नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – कयामत के दिन एक आदमी अल्लाह की बारगाह मे हाज़िर होगा जिसके 99 दफ़्तर गुनाहो से भरे होगे| वह आदमी अपने गुनाहो की वजह से मायूस होगा| अल्लाह तालाह इरशाद फ़रमायेगा – आज किसी पर ज़ुल्म नही होगा तुम्हारी एक नेकी भी हमारे पास हैं लिहाज़ा मीज़ान की जगह पर चले जाओ| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया के उसके गुनाह तराज़ू के एक पलड़े मे डाल दिये जायेगे और नेकी दूसरे पलड़े मे, वह एक नेकी तमाम गुनाहो पर भारी हो जायेगी| वह एक नेकी – अशहदू अल लाइलाहा इल्लल्लाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहू होगी| (तिर्मिज़ी)

हज़रत अनस रज़ि0 कहते हैं मैने नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुये सुना हैं के अल्लाह ताला फ़रमाता हैं – ऐ इब्ने आदम! तू जब तक मुझे पुकारता रहेगा और मुझसे बख्शिश की उम्मीद रखेगा मैं तुझसे होने वाला हर गुनाह माफ़ करता रहूगां| ऐ इब्ने आदम! मुझे परवाह नही अगर तुम्हारे गुनाह आसमान के किनारे तक पहुंच जाये और तू मुझसे माफ़ी तलब करे, तो मैं तुझे माफ़ कर दूगां| ऐ इब्ने आदम! मुझे परवाह नही अगर तू रुए ज़मीन के बराबर गुनाह कर आये और मुझे इस हाल मे मिले कि किसी कि मेरे साथ शरीक न किया हो तो मैं रुए ज़मीन के बराबर ही तुझे मगफ़िरत अता करूंगा| (तिर्मिज़ी)

एक बूढ़ा शख्स नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया – या रसुलुल्लाह सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम! सारी ज़िन्दगी गुनाहो मे गुज़री हैं कोई गुनाह ऐसा नही जो न किया हो, रुए ज़मीन के सारे लोगो मे मेरे अगर गुनाह बांट दिया जाये तो सबको ले डूबे| क्या मेरी तौबा की कोई सूरत हैं? नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने पूछा – क्या इस्लाम लाये हो? उसने अर्ज़ किया – अशहदु अल्ला इलाहा इल्ललाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अबदुहु व रसूलुहु| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – जा, अल्लाह माफ़ करने वाला और गुनाहो को नेकियो मे बदलने वाला हैं| उसने अर्ज़ किया – क्या मेरे सारे गुनाह और जुर्म माफ़ हो जायेगे? नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – हां तेरे सारे गुनाह और जुर्म माफ़ हो जायेगे| (इब्ने कसीर)

ज़रा गौर फ़रमाये – एक तरफ़ नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के सगे चचा जिन्होने सारी ज़िन्दगी इस्लाम की मदद की लेकिन कल्मा तौहीद का इकरार किये बिना दुनिया से रुखसत हो गये और उनके इसी शिर्क की वजह से उनको जहन्नम का मुस्तहिक ठहराया गया| दूसरी तरफ़ वो शख्स जिसने सारी ज़िन्दगी गुनाह किये लेकिन आखिरी वक्त मे गुनाहो से तौबा कर तौहीद का इकरार किया और जन्नत का मुस्तहिक ठहरा| इन तमाम बातो का निचोड़ सिर्फ़ ये के अकीदा तौहीद ही इन्सान के तमाम गुनाहो का कफ़्फ़ारा और जन्नत की गारन्टी हैं और अकीदा तौहीद पर ही इन्सान के जन्नत और जहन्नम मे जाने का दारोमदार हैं|

तौहीद क्या हैं?

तौहीद का मूल वहद हैं और इसके मसादिर मे से वह्द और वहदत ज़्यादा मशहूर हैं जिसका मतलब हैं अकेला और बेमिसाल होना| वहीद या वहद उस ज़ात को कहते है जो अपनी ज़ात मे और अपनी सिफ़ात(गुणो) मे अकेला हो| अरबी मे वहद का वाव हमज़ा मे बदल कर अहद बना हैं जिसका मतलब सिफ़ात मे अकेला और बेमिसाल हैं और कोई दूसरा उस जैसा नही जो उसकी ज़ात और सिफ़ात मे शरीक हो|

तौहीद की किस्मे

तौहीद की तीन किस्मे होती हैं- 1. तौहीद ज़ात(रबूबियत), 2. तौहीद इबादत(उलुहियत), 3. तौहीद अस्मा व सिफ़ात(नाम व गुण)

1. तौहीद ज़ात(रबूबियत)

तौहीद ज़ात यह हैं के अल्लाह तालाह को उसकी ज़ात मे अकेला बेमिसाल और लाशरीक माना जाये| न उसकी बीवी हैं न औलाद, न मां न बाप| वह किसी से नही पैदा न ही कोई उसकी ज़ात का हिस्सा हैं|

यहूदी उज़ैर अलै0 को अल्लाह का बेटा मानते हैं और ईसाई ईसा अलै0 को अल्लाह का बेटा मानते हैं| अल्लाह ने कुरान मे दोनो गिरोह के इस अकीदे की सख्ती से मज़म्मत की-

यहूदी कहते हैं उज़ैर अल्लाह का बेटा हैं और ईसाई कहते हैं ईसा अल्लाह का बेटा हैं| ये कौल सिर्फ़ इनके मुंह की बात हैं| अगले मुनकरो की बात की भी नकल करने लगे अल्लाह इन्हे गारत करे वो कैसे बहक जाते हैं| (सूरह तौबा सूरह नं0 9 आयत नं0 30)

मुश्रकीने मक्का फ़रिश्तो को अल्लाह की बेटीया करार देते थे अल्लाह ने कुरान मे उन के इस बेबुनियाद अकीदे की मज़म्मत की-

(मुश्रिक) कहते हैं के रहमान औलाद वाला हैं(गलत हैं) इसकी ज़ात पाक हैं, बल्कि वो सब इसके बाइज़्ज़त बन्दे हैं| (सूरह अंबिया 21/26)

इसके अलावा बाज़ मुश्रिके मक्का जिन्नो और इन्सानो को भी अल्लाह की ज़ात का जुज़(हिस्सा) समझते थे और बाज़ कायनात की हर चीज़ मे अल्लाह को शामिल कहते थे-

और इन्होने अल्लाह के बन्दो को इसका जुज़(हिस्सा) ठहरा दिया| यकीनन इन्सान खुल्लम खुल्ला नाशुक्रा हैं| (सूरह ज़ुखुरुफ़ 43/15)

इन तमाम बातो का निचोड़ सिर्फ़ ये का अल्लाह का न कोई खानदान न कोई औलाद न बीवी न कोई उसकी खुदाई मे साझेदार हैं न उसने किसी जानदार को अपने नूर से पैदा किया न ही कोई उसके नूर का जुज़(हिस्सा) हैं| वो लाशरीक हैं| कुफ़्फ़ारे मक्का ने आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से पूछा के आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम जिस हस्ती की दावत देते हैं उसका हसब-नसब क्या हैं वह किस चीज़ से बना हैं, वह क्या खाता हैं, क्या पीता हैं, उसने किससे विरासत पाई और उसका वारिस कौन होगा? इन सवालो के जवाब मे अल्लाह ने सूरह इख्लास नाज़िल फ़रमाई-

कहो वह अल्लाह हैं अकेला, अल्लाह सबए बेनियाज़ हैं सब उसके मोहताज हैं, न उसकी कोई औलाद हैं न वह किसी की औलाद और कोई उसके जैसा नही| (सूरह इख्लास 112/1-4)

तौहीदे ज़ात के बारे मे यह बात ज़हन नशीन रहनी चाहिये के अल्लाह की ज़ात अर्श पर जलवा फ़रमा हैं जैसा के कुरान और हदीस से साबित हैं| अलबत्ता हर चीज़ अल्लाह के इल्म मैं हैं के कहां कब क्या हैं और हो रहा हैं-

वह अल्लाह ही हैं जिसने ज़मीन और आसमान को और उन सारी चीज़ो को जो उनके दरम्यान हैं छ: दिनो मे पैदा किया और उसके बाद अर्श पर कायम हुआ| उसके सिवा न तुम्हारा कोई हामी व मददगार हैं और न कोई उसके आगे सिफ़ारिश करने वाला, फ़िर क्या तुम होश मे न आओगे| (सूरह अस सजदा 32/4)

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – जब रात का तिहाई हिस्सा बाकी रह जाता हैं तो हमारा बुज़ुर्ग व बरतर परवरदिगार आसमाने दुनिया पर नाज़िल होता हैं और फ़रमाता हैं – कौन हैं जो मुझसे दुआ करे और मैं उसकी दुआ कबूल करुं? कौन हैं जो मुझसे अपनी हाजत मांगे और मैं उसे अता करूं? अकुन हैं जो मुझसे बख्शिश चाहे और मैं उसे बख्श दूं? (बुखारी)

2. तौहीद इबादत(उलुहियत)

तौहीद इबादत(उलुहियत) ये के हर किस्म की इबादत को सिर्फ़ अल्लाह के लिये खास कि जाये और किसी दूसरे को उसमे शरीक न किया जाये| कुरान मे इबादत को तो अलग-अलग तरीके से ब्यान किया ताकि इन्सान अगर किसी एक तरीके का भी करने वाला हैं तो ये जान ले के अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत जायज़ नही| कुरान मे अल्लाह ने गैर अल्लाह की इबादत, सजदा, और परस्तिश की सख्ती से मज़म्मत की हैं| इबादत के एक माने तो किसी की पूजा और परस्तिश के हैं जैसा के नीचे आयत से साबित हैं-

सूरज और चांद को सजदा न करो बल्कि उसको सजदा करो जिसने इन्हे पैदा किया हैं| अगर तुम वाकई अल्लाह की इबादत करने वाले हो| (सूरह हा0 मीम0 सजदा 41/37)

दूसरे इबादत के माने किसी की इताअत और ताबेदारी हैं जैसा के नीचे कुरान की आयत से साबित हैं-

ऐ आदम की औलादो! क्या मैने तुमको हिदायत न की थी के शैतान की इताअत न करना वह तुम्हारा खुला दुश्मन हैं| (सूरह यासीन 36/60)

पहली आयत के माने तौहीदे इबादत जैसे नमाज़, नमाज़ से जुड़ी और नमाज़ की तरह इबादते जैसे कयाम, रूकू, सजदा, नज़र, नियाज़, सदका, खैरात, कुरबानी, तवाफ़, एतिकाफ़, दुआ, पुकार, फ़रियाद, मदद चाहना, खौफ़ सब की सब अल्लाह तालाह के लिये हैं दूसरे माने मे किसी की ताबेदारी(आज्ञापालन) हैं जैसे अल्लाह के अलावा किसी और के हुक्म को मानना जैसे अपनी नफ़्ज़ का मसला हो या किसी और का, मज़हबी पेशवा हो या सियासी रहनुमा, शैतान हो या कोई इन्सान अगर इन तमाम लोगो का हुक्म अल्लाह के हुक्म के मुख्तलिफ़ हैं तो ये भी अल्लाह की ज़ात मे शिर्क होगा|

कभी तुमने उस इन्सान के हाल पर गौर किया हैं जिसने अपनी नफ़्स को अपना रब बना लिया| (सूरह फ़ुरकान 25/43)

इसके अलावा एक दूसरी जगह अल्लाह ने फ़रमाया- बेशक शैतान अपने साथीयो के दिलो मे सह्क व शुबहात पैदा करते हैं ताकि तुमसे झगड़ा करे लेकिन अगर तुमने उनकी पैरवी कबूल कर ली तो तुम यकीनन मुश्रिक हो| (सूरह अनआम 6/121)

एक दूसरी जगह अल्लाह ने फ़रमाया- और जो लोग अल्लाह के नाज़िल करदा कानून के मुताबिक फ़ैसला न करे वही काफ़िर हैं| (सूरह माइदा 5/44)

लिहाज़ा अगर इबादत के दोनो मानो के सामने रख कर कुरान की रोशनी मे परखा जाये तो तौहीद इबादत यह होगी के नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात, सदकात, रुकू, सजूद, नज़र-नियाज़, तवाफ़, एतिकाफ़, दुआ, पुकार, इताअत व गुलामी, इताअत और पैरवी सिर्फ़ अल्लाह ही के लिये हैं और इनमे से किसी एक काम के भी न करने से अमल शिर्क कहलायेगा|

3. तौहीद अस्मा व सिफ़ात

तौहीद अस्मा व सिफ़ात ये के अल्लाह तालाह को उन तमाम सिफ़ात मे जो कुरान और हदीस से साबित हैं, अकेला, बेमिसाल और लाशरीक माना जाये| अल्लाह की सिफ़ात इस कद्र बेहिसाब हैं के इन्सान के लिये उनको गिनना तो दूर उसके बारे मे सोच पाना भी नामुमकिन हैं| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया- (ऐ नबी) कहो अगर समुन्द्र मेरे रब के कलिमात लिखने के लिये रोशनाई बन जाये तो वह खत्म हो जाये लेकिन मेरे रब के कलिमात खत्म न होगे बल्कि इतनी ही रोशनाई हम और ले आये तो वो भी काफ़ी न होगी| (सूरह कहफ़ 18/109)

एक जगह और अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया- ज़मीन मे जितने पेड़ हैं अगर वे सब कलम बन जाये और समुन्द्र रोशनाई बन जाये साथ ही सात और समुन्द्र रोशनाई बन जाये तब भी अल्लाह के कलिमात खत्म न होगे| (सूरह लुकमान 31/27)

इन आयत को पढ़कर किसी को ये हरगिज़ ताज्जुब मे नही पड़ना चाहिये की अल्लाह की सिफ़ात इतनी वसीह हैं के सारे जहां का पानी भी कम पड़ जाये| मिसाल के तौर पर अल्लाह की एक सिफ़ात समीअ हैं जिसके माना सुनने वाला हैं गौर फ़रमाये के अल्लाह आज, कल या परसो से नही बल्कि हज़ारो सालो से अरबो इन्सानो की दुआ फ़रियाद, बात-चीत सुन रहा हैं| लेकिन उसे कभी ये सुनने मे कोई न थकान आई न ही कोई परेशानी आई| ज़रा गौर फ़रमाये के दौराने हज जहां 20-25 लाख आदमी हर वक सिर्फ़ अल्लाह को पुकारने मे मसरूफ़ रहते हैं वहां भी अल्लाह हर पल उनकी पुकार सुनता हैं और उनके दिलो के हाल से वाकिफ़ होता हैं लेकिन बावजूद इसके न उससे भूल चूक होती हैं न कोई परेशानी| ये तो सिर्फ़ हज के मौके पर का मसला हैं गौर करे हर पल सारी दुनिया के लोगो की बात-चीत से वाकिफ़ रहना क्या किसी इन्सान के अन्दाज़े मे हैं| और ये तो सिर्फ़ इन्सान के लिये मिसाल दी गयी| ऐसा ही मामला जिन्नात का हैं जो इन्सानो की तरह अल्लाह की दूसरी मख्लूक हैं और जिन्नात के अलावा फ़रिश्ते, इस दुनिया मे बसने वाला हर जानदार अल्लाह के इल्म मे हैं| जानदार के अलावा इस कायनात की दूसरी चीज़े जैसे इस ज़मीन पर मौजूद पहाड़, पे्ड़, नदी और इस दुनिया के बाहर सूरज, चांद, सितारे वगैराह बल्कि कायनात का ज़र्रा-ज़र्रा सब अल्लाह के इल्म मे हैं|

हकीकत ये के अल्लाह की सिर्फ़ एक सिफ़ात समीअ ही इन्सान के अक्ल से परे हैं|

तौहीद कुरान की रोशनी मे

लोगो! तुम्हारा इलाह तो बस एक ही हैं, उसके सिवा कोई इलाह नही, वह बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला हैं| (सूरह अल बकरा 2163)

अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को इलाह न पुकारो, उसके सिवा कोई इलाह नही, उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ हलाक होने वाली हैं| फ़ैसला उसी के लिये हैं और उसी की तरफ़ तुम सब पलटाये जाने वाले हो| (सूरह कसस 28/88)

उसके सिवा कोई इलाह नही, वही ज़िन्दगी अता करता हैं, वही मौत देता हैं, वह तुम्हारा भी रब हैं और तुम्हारे बाप दादा जो गुज़र चुके उनका भी रब हैं| (सूरह अद दुखान 44/8)

तमाम अंबिया ने अपनी कौम को तौहीद की ही दावत

नूह अलै0 – हमने नूह को उसकी कौम की तरफ़ भेजा, उन्होने कहा – ऐ मेरी कौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई इलाह नही हैं, मैं तुम्हारे हक मे एक हौलनाक दिन के अज़ाब से डरता हूं| (सूरह आराफ़ 7/59)

हूद अलै0 – और कौमे आद की तरफ़ हमने उनके भाई हूद को भेजा| उन्होने कहा – ऐ मेरी कौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो उसके सिवा तुम्हारा कोई इलाह नही, फ़िर क्या तुम गलत रविश से परहेज़ न करोगे| (सूरह आराफ़ 7/65)

सालेह अलै0 – और कौम समूद की तरफ़ उनके भाई सालेह को भेजा| उन्होने कहा – ऐ मेरी कौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो उसके सिवा तुम्हारा कोई इलाह नही हैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से खुली दलील आ गयी हैं| यह अल्लाह की ऊंटनी तुम्हारे लिये एक निशानी हैं, लिहाज़ा इसे छोड़ दो कि अल्लाह की ज़मीन मे चरती फ़िरे इसे किसी बुरे इरादे से हाथ न लगाना वरना एक दर्दनाक अज़ाब तुम्हे आ लेगा| (सूरह आराफ़ 7/73)

शुऐब अलै0 – और मदयन वालो की तरफ़ हमने उनके भाई शुऐब को भेजा| उन्होने कहा – ऐ मेरी कौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो उसके सिवा तुम्हारा कोई इलाह नही, तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से खुली दलील आ गयी हैं| लिहाज़ा वज़न और पैमाने पूरे करो, लोगो को उनकी चीज़ो मे घाटा न दो और ज़मीन मे फ़साद बरपा न करो जबकि उसकी इस्लाह हो चुकी, इसी मे तुम्हारी भलाई हैं अगर तुम वाकई मोमिन हो| (सूरह आराफ़ 7/85)

इब्राहिम अलै0 – और इब्राहीम ने अपनी कौम से कहा – अल्लाह की बन्दगी करो और उसी से डरो यह तुम्हारे लिये बेहतर हैं अगर तुम जानो| तुम अल्लाह को छोड़कर जिनकी इबादत कर रहे हो वे तो महज़ बुत हैं और तुम एक झूठ गढ़ रहे हो| दरहकीकत अल्लाह के सिवा जिनकी तुम पूजा करते हो वे तुम्हे रिज़्क तक देने का इख्तयार नही रखते| अल्लाह से रिज़्क मांगो और उसी की बन्दगी करो और उसी का शुक्र अदा करो| उसी कि तरफ़ तुम बुलाये जाने वाले हो| (सूरह अनकबूत 29/16-17)

युसुफ़ अलै0 – अल्लाह को छोड़कर जिनकी तुम बन्दगी कर रहे हो वे उसके सिवा कुछ नही हैं बस कुछ नाम हैं जो तुम्हारे बाप दादा ने रख लिये हैं| अल्लाह ने उनके लिये कोई सनद नाज़िल नही की| (सूरह युसुफ़ 12/40)

ईसा अलै0 – हकीकत ये हैं के अल्लाह मेरा भी रब हैं और तुम्हारा भी रब, लिहाज़ा उसी की तुम इबादत करो यही सीधा रास्ता हैं| (सूरह ज़ुखुरुफ़ 43/64)

नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम – ऐ मुहम्मद! कह दिजिये मैं तो बस खबरदार करने वाला हूं कि कोई हकीकी माबूद नही मगर अल्लाह जो अकेला हैं सब पर गालिब, आसमान और ज़मीन का मालिक और उन सारी चीज़ो का मालिक जो उनके दरम्यान हैं| वह ज़बरदस्त भी हैं और बख्शने वाला भी| (सूरह साद 38/25)

दिगर नबी – हमने तुमसे पहले जो रसूल भी भेजा उनको यही वहयी की हैं कि मेरे सिवा कोई इलाह नही लिहाज़ा तुम लोग मेरी ही बन्दगी करो| (सूरह अंबिया 21/25)

अकीदा तौहीद तमाम इन्सानो के लिये सबसे बड़ी रहमत

अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं- क्या तुम देखते नही के अल्लाह ने कल्मा तय्यब की मिसाल किस चीज़ से दी हैं? उसकी मिसाल ऐसी हैं जैसे एक ज़ात का पेड़ जिसकी जड़ ज़मीन मे गहरी जमी हुई हैं और शाखे आसमान तक पहुंची हुई हैं| हर पल अपने रब के हुक्म से अपने फ़ल दे रहा हैं| (सूरह इब्राहीम 14/24)

कुरान की इस आयत से वाज़े हैं के जिस पेड़ की जड़ मज़बूती के साथ ज़मीन मे जमी होती हैं सख्त आंधियो और तूफ़ान के झोको मे भी वो पेड़ साबित कदम जमीन पर खड़ा रहता हैं बल्कि बुलन्दी की और बढ़ता रहता हैं| ठीक इसी तरह जब इन्सान की तौहीद मज़बूत होती हैं तो इन्सान हर तरह के फ़ित्ने फ़साद से दूर तौहीद पर जमा रहता हैं ख्वाह उसे कितनी भी परेशानी का सामना करना पड़े लेकिन तौहीद परस्त इन्सान साबित कदमी के साथ तौहीद पर जमा रहता हैं और अल्लाह के बताये रास्ते पर चलता रहता हैं| यही बात नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की एक हदीस से और भी वाज़े होती हैं-

जब इन्सान सच्चे दिल से ला इलाहा इल्लल्लाह का इकरार करता हैं तो उसके लिये आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं यहां तक कि वह अर्शे इलाही की तरफ़ बढ़ता रहता हैं, बशर्ते के कबीरा गुनाह से बचा रहे| (तिर्मिज़ी)

अकीदा तौहीद की फ़ज़ायल और बरकात

1. इस्तकामत और साबित कदमी

हज़रत बिलाल रज़ि0 उमैया बिन खल्फ़ ज़हमी के गुलाम थे| जब दोपहर की गर्मी शबाब पर होती तो पथरीले कंकरो पर लिटाकर सीने पर भारी पत्थर रखकर कहता खुदा की कसम, तू इसी तरह पड़ा रहे यहां तक की मर जाये या मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के साथ कुफ़्र कर| हज़रत बिलाल रज़ि0 इस हालत मे भी यही फ़रमाते अहद, अहद(अल्लाह एक हैं, अल्लाह एक हैं)

हज़रत सुमय्या रज़ि0 को लोहे के जिरह पहना कर चिलचिलाती धूप मे ज़मीन पर लिटा दिया जाता और कहा जाता के मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के दीन का इन्कार करो| लेकिन उन्होने ऐसा नही किया यहां तक के अबू जहल ने आपकी शर्मगाह पर नेज़ा मार कर आपको शहीद कर दिया|

ये वो चन्द मिसाले हैं जो अकीदा तौहीद की बरकत से इन्सान को मिलती हैं

2. इज़्ज़त, नफ़्स और खुद का तहफ़्फ़ुज़

शिर्क इन्सान को अनगिनत ख्याली और वहमी खौफ़ मे मुब्तला कर देता हैं जैसे देवी देवताओ का खौफ़, भूत-प्रेत का खौफ़, जिन्नात का खौफ़, ज़िन्दा और मुर्दा इन्सानो का खौफ़, जाबिर और ज़ालिम हुक्मरानो का खौफ़| इस खौफ़ के नतीजे मे इन्सान ऐसी जिहालत और मज़हबी गहराई मे गिरता चला जाता हैं के इन्सानियत को भी शर्म आने लगती हैं| जबकि अकीदा तौहीद के तहत इन्सान सिर्फ़ एक खुदा का खौफ़ रखता हैं और अपने साथ साथ दूसरो की भी नफ़्स और इज़्ज़त का तह्फ़्फ़ुज़ और एहतराम करता हैं|

3. यकसानियत और इजतिमाई इन्साफ़

अकीदा तौहीद यह बात पेश करता हैं के तमाम जहान का मालिक, खालिक, राज़िक सिर्फ़ अल्लाह वाहदहु ला शरीक हैं| इन्सान चाहे अमेरीका का हो या अफ़्रीका, गोरा हो या काला, अमीर हो या गरीब सब इस अल्लाह ही के बन्दे हैं| कोई इन्सान किसी दूसरे इन्सान का गुलाम नही न ही कोई किसी को गुलाम समझे, न ही किसी को हकीर और कमतर जान कर किसी पर ज़ुल्म करे|

4. कल्बी सुकून

शिर्क कायनात का सबसे बड़ा झूठ हैं| इन्सान की ज़ात और आसपास मे मौजूद ऐसी अनगिनत निशानिया और दलायल मौजूद हैं जो शिर्क का इनकार करते हैं| लेकिन शिर्क मे मुलव्विश होने के सबब शिर्क करने वाले इन्सान के उसूली और इख्लाकी ज़िन्दगी मे पूरब और पशचिम का फ़र्क पाया जाता हैं| उसकी रूह हमेशा बेचैन रहती हैं और वो मुसलसल शुबहात और बेयकीनी की कैफ़ियत से दो चार रहता हैं| जबकि अकीदा तौहीद के सबब इन्सान सिर्फ़ और सिर्फ़ हर मामलात अल्लाह के सुपुर्द कर चैन और सुकून से रहता हैं क्योकि अकीदा तौहीद इन्सान की फ़ितरत के मुताबिक हैं और हर इन्सान पैदाइशी तौहीदपरस्त होता हैं| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया- तो यकसू होकर अपना रुख दीने इस्लाम की तरफ़ जमा दो और कायम हो जाओ उस फ़ितरत तौहीद पर जिस पर अल्लाह ने इन्सानो को पैदा किया| (सूरह रूम 30/30)

लिहाज़ा अकीदा तौहीद के सबब इन्सान अपनी हर मुश्किलात मे भी साबित कदम होकर अपना आप को अल्लाह के हवाले समझता हैं और कभी भी किसी शुबहात मे मुबतला नही होता| ज़िन्दगी के हालात और मामलात चाहे कुछ भी हो लेकिन अकीदा तौहीद के सबब इन्सान सुकून, करार और रज़ा की कैफ़ियत हर लम्हा महसूस करता रहता हैं|

अकीदा शिर्क तमाम इन्सानो के लिये सबसे बड़ी लानत

अकीदा तौहीद अल्लाह की तरफ़ से दिया गया हैं| जिसे अल्लाह ने अपने अंबिया और रसूलो के ज़रिये लोगो तक पहुंचाया हैं| इस अकीदे की तालीमात पहले दिन से एक ही हैं| इसमे कभी कोई तबदीली नही की गयी| जबकि शिर्क शैतान की तरफ़ से गढ़ा हुआ अकीदा हैं जिसे उसने मुख्तलिफ़ ज़मानो, इलाको और कौमो के लिये अलग-अलग फ़लसफ़ो के साथ गढ़ कर अपने चेले के ज़रिये लोगो तक पहुंचाता रहता हैं| कही नफ़्सपरस्ती, कही कब्रपरस्ती, कही तागूतपरस्ती, कही अइम्मापरस्ती, कही कौमपरस्ती कि शक्ल मे तो कही वतन और रंग और नस्ल की शक्ल मे| दरअसल एक ही खबीस पेड़ की मुख्तलिफ़ शाखे और पत्ते हैं| जिनकी बुनियाद शैतानी अकाइद और ख्यालो पर हैं| शैतान अपने इन्ही ख्यालात का सहारा लेकर कभी मज़हब के नाम पर, कही कानून के नाम पर लोगो को गुमराह करता रहता हैं और शिर्क मे रहने के सबब इन्सान उसके इस फ़न्दे मे फ़ंसता चला जाता हैं के यहा तक के उसकी मौत आ जाती हैं और जहन्नम उसका हमेशा-हमेशा का मुस्तक्बिल बन जाती हैं|

अल्लाह ने शिर्क की मिसाल कुरान मे इस तरह दी- कलिमा शिर्क की मिसाल एक ऐसे बदज़ात पेड़ की सी हैं जो ज़मीन की ऊपरी सतह से ही उखाड़ फ़ेका जाता हैं और उसके लिये कोई इस्तह्काम नही हैं| (सूरह इब्राहीम 14/26)

कुरान की इस आयत से वाज़े हैं के कायनात की कोई भी चीज़ शिर्क की तायद नही करती लिहाज़ा ऐसे पेड़ की कोई हैसियत नही लिहाज़ा ऐसे पेड़ की जड़े कभी भी मज़बूती के साथ ज़मीन से नही जुड़ी रहती और कभी भी ऐसा पेड़ गिर जाता हैं अगर कभी तागूती कूव्वतो की सरपरस्ती के सबब ये पेड़ उगा भी दिया जाये तो ये कभी इस्तहकामत के साथ नही खड़ा रह पाता सिवाये कुछ वक्त के| क्योकि शिर्क खुद एक बदज़ात पेड़ के मानिन्द हैं लिहाज़ा ये कभी ठीक से फ़लता फ़ूलता भी नही अगर फ़ल फ़ूल ले भी आये तो खुद खबीस पेड़ होने के सबब हर पल समाज मे सिर्फ़ अपनी बदबू भी फ़ैलाता रहता हैं|

अकीदा तौहीद

इस्लामी तालीमात और नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की ज़िन्दगी पर अगर नज़र डाली जाये तो पता चलता हैं के तमाम इबादत की रूह दरअसल अकीदा तौहीद ही हैं| रोज़ाना 5 बार हर नमाज़ से पहले अज़ान बुलन्द करने का हुक्म हैं जो तकबीर और तौहीद के इकरार के खूबसूरत और इन्तिहाई असरदार कलमात हैं| वुज़ू के बाद कल्मा तौहीद पढ़ने पर जन्नत की बशारत दी गयी| नमाज़ के शुरू के दौरान बार-बार कल्मा तौहीद पुकारा जाता हैं| सूरह फ़ातिहा को हर रकआत मे लाज़िम करार दिया गया जोकि तौहीद की मुकम्मल दावत हैं| रूकू और सजदे के दरम्यान अल्लाह की अज़मत और बुलन्दी को दुहराना गोया शुरु से आखिर तक खालिस तौहीद की गवाही देना ही अकीदा तौहीद हैं|

मज़ीद ये के बैतुल्लाह मे हज या उमराह के मौके पर एहराम बांधने के साथ ही अकीदा तौहीद का इकरार और शिर्क के इन्कार की नफ़ी पर मुश्तमिल तल्बिया “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीका लक लब्बैक, इन्नल हम्दा वन नैमत लक व मुल्क ला शरिक ल क” पुकारने का हुक्म | मीना, मुज़्दल्फ़ा और अराफ़ात हर जगह अल्लाह की तौहीद और तकबीर को ही हज व उमराह करार दिया गया| गोया मुसल्मान की तमाम इबादत तौहीद पर ही मुस्तमिल हैं जिसमे किसी भी किस्म का शिर्क नही| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने अपनी ज़िन्दगी मे कदम कदम पर उम्मत को अकीदा तौहीद के तहफ़्फ़ुज़ की तालीम दी, एक आदमी ने दौराने गुफ़्तगु अर्ज़ किया – जो अल्लाह चाहे और जो आप चाहे| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – क्या तूने मुझे अल्लाह का शरीक बना लिया हैं| (मुस्नद अहमद)

एक आदमी ने आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से बारिश की दुआ करवानी चाही और साथ अर्ज़ किया – हम अल्लाह को आपके यहां और आपको अल्लाह के यहां सिफ़ारिशी बनाते हैं| आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के चेहरे का रग बदलने लगा और फ़रमाया – अफ़सोस तुझे मालूम नही अल्लाह की शान कितनी बुलन्द हैं उसे किसी के सामने सिफ़ारिशी नही बनाया जा सकता| (अबू दाऊद)

कुछ सहाबी मुनाफ़िक के शर से बचने के लिये नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रियाद करने हाज़िर हुये| आपने सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – देखो मुझसे फ़रियाद नही की जा सकती बल्कि सिर्फ़ अल्लाह की ज़ात से ही फ़रियाद की जा सकती| (तबरानी)

10 हिजरी को नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के साहबज़ादे हज़रत इब्राहिम का इन्तकाल हुआ तो उसी रोज़ सूरज ग्रहण लग गया, कुछ लोगो ने उसे हज़रत इब्राहीम की वफ़ात की तरफ़ मन्सूब किया| नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम को जब मालूम हुआ तो आपने फ़रमाया – लोगो! सूरज और चांद अल्लाह की निशानियो मे से दो निशानिया हैं उन्हे किसी की मौत और ज़िन्दगी की वजह से ग्रहण नही लगता, लिहाज़ा जब ग्रहण लगे तो अल्लाह से दुआ करो और नमाज़ पढ़ो यहां तक के ग्रहण खत्म हो जाये| (मुस्लिम)

आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की इस बात ने शिर्क की वो तमाम जड़े काट दी के कायनात के तमाम मामलात सिर्फ़ अल्लाह के ही निज़ाम पर हैं इसे कोई वली या बुज़ुर्ग नही चला रहा और न ही इस कायनात को चलाने मे किसी और का अल्लाह के सिवा अमल दखल हैं| इसके अलावा और भी बहुत सी हदीस हैं जो दुनिया मे होने वाले शिर्क की जड़े काटती है|

आखिर मे नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की बीमारी का हाल देखे के बीमारी की हालत मे आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम मुसल्मानो को जो नसीहत की उसकी अहमियत किसी वज़ाहत की मुहताज नही| वफ़ात से 5 दिन पहले बुखार मे कुछ कमी हुई तो मस्जिद तशरीफ़ लाये| सर मुबारक पर पट्टी बंधी हुई थी| मिम्बर पर खड़े होकर आपने फ़रमाया – यहूद व नसारा पर अल्लाह की लानत हो कि उन्होने अपने अंबिया की कब्रो को मस्जिद बना लिया| (बुखारी) बीमारी के दिनो मे ही अपनी उम्मत को जो दूसरी वसीयत फ़रमाई वो ये थी कि – तुम मेरी कब्र को बुत न बनाना की उसकी पूजा की जाए| (मोत्ता इमाम मालिक) वफ़ात के आखिरी रोज़ आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के सामने प्याले मे पानी रखा था आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम दोनो हाथ पानी मे डालकर चेहरे पर मलते और फ़रमाते – ला इलाह इल्लल्लाहु इन्न लिल मौति सकराति(अल्लाह के सिवा कोई इलाह नही और मौत के लिये सख्तिया हैं)(बुखारी) यही लफ़्ज़ दुहराते आखिरी बार नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने तीन बार –अल्लाहुम्मगफ़िरली वरहमी व अलहिकनी बिर्रफ़ीकि(ऐ अल्लाह मुझे बख्श दे मुझ पर रहम फ़रमा और मुझे रफ़ीके आला के साथ मिला दे) फ़रमा कर रफ़ीके आला के पास पहुंच गये| गोया आपके ज़िन्दगी के आखिरी लफ़्ज़ भी कल्मा तौहीद पर मुश्तमिल थे|

शिर्क (बहुद्देववाद)

शिर्क की किस्मे – शिर्क की दो किस्मे हैं, 1 शिर्क अकबर 2 शिर्क असगर

1. शिर्क अकबर – अल्लाह की ज़ात, सिफ़ात और इबादत मे किसी दूसरे का शरीक करना शिर्क अकबर कहलाता हैं| शिर्क अकबर का करने वाला हमेशा-हमेशा के लिये दायरा इस्लाम से खारिज हो जाता हैं और उसकी सज़ा हमेशा के लिये जहन्नम हैं जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया- मुश्रिकीन का काम ये नही के वो अल्लाह की मस्जिद को आबाद करे| इस हाल मे कि वह अपने ऊपर खुद कुफ़्र की शहादत दे रहे हैं| उनके तो सारे अमाल ज़ाया हो गये और जह्न्नम मे हमेशा रहना हैं| (सूरह तौबा 9/17)

2. शिर्क असगर – शिर्क अकबर के अलावा कुछ ऐसे काम जिनके लिये हदीस मे शिर्क का लफ़्ज़ इस्तेमाल हुआ हैं| जैसे रिया या गैर अल्लाह की कसम खाना शिर्क असगर कहलाता हैं| शिर्क असगर करने के सबब इस्लाम से खारिज तो नही होता अलबत्ता गुनाह कबीरा का हकदार ज़रूर होता हैं जिसकी सज़ा जहन्नम हैं वो भी जब तक अल्लाह चाहे|

मुश्रिके मक्का अल्लाह को जानते मानते थे|

हर ज़माने मे मुश्रिक अल्लाह को जानते और मानते हैं, यहां तक के उसी को माबूदे आला और रब्बे अकबर(ग्रेट गाड) कबूल करते हैं और जो कुछ इस कायनात मे हैं उन सबका खालिक मालिक और राज़िक उसे ही समझते हैं बल्कि कायनात का मुन्तज़िम उसी को मानते हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं-

इनसे पूछो कौन तुमको आसमान और ज़मीन से रिज़्क देता हैं यह समाअत और बीनाई की कुव्वते किसके इख्तयार मे हैं? कौन बेजान मे से जानदार को और जानदार मे से बेजानदार को निकालता हैं? कौन इस निज़ामे आलम की तदबीर कर रहा हैं? वे ज़रूर कहेंग – अल्लाह| (सूरह युनुस 10/31)

जब ये लोग कश्ती पर सवार होते हैं तो अपने दीन को अल्लाह ताला के लिये खालिस करके उससे दुआ मांगते हैं| फ़िर जब वह उन्हे बचाकर खुश्की पर ले आता हैं तो यकायक शिर्क करने लगते हैं| (सूरह अनकबूत 29/65)

इस आयत से साबित हैं के मुश्रिक अल्लाह की ज़ात को तसलीम ही नही करते बल्कि कायनात के निज़ाम का मालिक और मुदब्बिर भी अल्लाह को तसलीम करते हैं यही नही बल्कि मुश्किल कुशाई और हाजत रवाई के लिये उसी की बारगाह को आखिरी और बड़ी बारगाह समझते थे|

इसके अलावा मुश्रिकीन जिन्हे अपने माबूद, मुश्किलकुशा और हाजतरवा समझते थे उनके इख्तियारात को ज़ाती नही बल्कि अल्लाह की तरफ़ से अता किया हुआ समझते थे| दौराने हज मुश्रिकीन मक्का जो तल्बिया पढ़ते थे उसमे मुश्रिकीन के इस अकीदे पर रोशनी पड़ती हैं जिसके लफ़्ज़ कुछ इस तरह हैं-

ऐ अल्लाह मैं हाजिर हूं तेरा कोई शरीक नही मगर एक तेरा शरीक हैं जिसका तू ही मालिक हैं और वो किसी चीज़ का मालिक नही|

बावजूद इसके के मुश्रिक अल्लाह को रब्बे अकबर समझते थे नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने उनके इस कल्मे और अमल को शिर्क करार दिया|

मुश्रिकीन मे पाये जाने वाले मुख्तलिफ़ अकायद मे से एक अकीदा ये भी हैं के कायनात की हर चीज़ मे खुदा मौजूद हैं या कायनात की मुख्तलिफ़ चीज़े खुदा की कुव्वत और ताकत के अलग-अलग रूप है जैसे सूरज, चांद, सितारे, आग, पानी, हवा, सांप, हाथी, गाय, बन्दर, पत्थर, पेड़ यहां तक हर चीज़ खुदा ही का रूप हैं और परस्तिश के काबिल हैं| अपने इस अकीदे के मुताबिक मुश्रिक अपने हाथो से पत्थरो के ख्याली मुजस्समे और बुत तराशते फ़िर उनकी पूजा परस्तिश करते और उन्हे अपना मुशकिलकुशा और हाजतरवा मानते|

मुश्रिकीन मे बुतपरस्ती की वजह एक दूसरा अकीदा भी था जिसके बारे मे इब्ने कसीर रह0 ने सूरह नूह की आयत नं0 23 की तफ़सीर मे किया हैं| वो ये के – हज़रत आदम अलै0 की औलाद मे से एक सालेह और वलियुल्लाह मुसलमान मर गया तो उसके अकीदतमंद रोने-पीटने लग और सदमे से निढाल उसकी कब्र पर आकर बैठ गये| इबलीस उनके पास इन्सानी शक्ल मे आया और कहा कि इस बुज़ुर्ग के नाम से यादगार क्यो कायम नही करते ताकि हर वक्त तुम्हारे सामने रहे और तुम उसे भूलने न पाओ| इस नेक सालेह बन्दे के अकीदतमंदो ने यह तजवीज़ पसन्द की तो इबलीस ने खुद ही इस बुज़ुर्ग की तस्वीर बनाकर उन्हे मुहय्या कर दी| जिसे देखकर वे लोग अपने बुज़ुर्ग की याद ताज़ा करते और उसकी इबादत और जद्दोजहद के किस्से आपस मे ब्यान करते रहते| इसके बाद दोबारा इबलीस उनके पास आया और कहा की आप सब हज़रात को तकलीफ़ करके यहां आना पड़ता हैं, क्या मैं तुम सबको अलग-अलग तस्वीरे न बन दूं ताकि तुम लोग अपने घरो मे उन्हे रख लो? अकीदतमन्दो ने इस तजवीज़ को भी पसन्द किया और इबलीस ने उन्हे इस बुज़ुर्ग की तस्वीरे या बुत अलग-अलग मुहय्या कर दिये जो उन्होने अपने घरो मे रख लिये| इन अकीदतमंदो ने यह तस्वीरे और बुत यादगार के तौर पर अपने पास महफ़ूज़ रख लिये लेकिन उनकी दूसरी नस्ल ने आहिस्ता आहिस्ता उन तस्वीरो और बुतो की परस्तिश शुरु कर दी| उस बुज़ुर्ग का नाम “वुद” था और यही पहला बुत था जिसकी दुनिया मे अल्लाह के सिवा पूजा और परस्तिश की गयी| “वुद” के अलावा कौमे नूह दिगर जिन बुतो की पूजा थी उनके नाम सुवाअ, यगूस, यऊक, और नस्र थे ये सब अपनी कौम के सालेह और नेक लोग थे| (बुखारी)

इस बात ये वाज़े होता हैं के मुश्रिक पत्थरो के ख्याली मुजसमे बना कर उसकी परस्तिश करते थे और उन्हे अपना माबूद मानते थे वही कुछ मुश्रिक अपनी कौम के बुज़्रुर्गो और वलियो के मुजस्समे और बुत बना कर उन्हे भी अपना माबूद बना लेते थे|

इसके अलावा इब्ने कसीर रह0 ने अपनी तफ़्सीर मे लिखते हैं जमाने जिहालत मे कुफ़्फ़ारे मक्का लात की इबादत करते थे और इसी से अपनी हाजते तलब करते थे| लात एक सफ़ेद रंग का पत्थर था जिस पर मकान बना हुआ था, पर्दे लटके हुए थे और वहां मुजावर रहते थे और इस के चारो तरफ़ हद मुकरर्र थी| (इब्ने कसीर)

अज़ा मक्का और तायफ़ के दरम्यान एक दरख्त था जिस पर एक बड़ी शानदार इमारत बनी हुई थी और इस मे पर्दे लटके हुए थे| फ़तह मक्का के बाद इन सब कब्रो, तकियो को गिरा दिया गया और दरख्तो को कटवा दिया गया| (सही बुखारी)

हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के – कबीला अन्सार के कुछ लोग मनात के नाम का एहराम बांधते थे| मनात बुत था जो मक्का और मदीना के दरम्यान रखा हुआ था| इस्लाम लाने के बाद इन लोगो ने कहा या रसूलल्लाह सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम हम मनात की ताज़ीम के लिये सफ़ा और मरवा के दरम्यान सई नही किया करते थे| (सहीह बुखारी)

शिर्क के हक मे शिर्क करने वालो के दलायल और उसका तजज़िया

शिर्क करने वाले अमूमन शिर्क करने के एवज़ मे दलायल पेश करते हैं क्या ये दलायल कुरान की रू से सही हैं या गलत-

1. पहली दलील – शिर्क करने वाले हर दौर मे अल्लाह को रब्बे अकबर तो मानते ही हैं लेकिन साथ ही औलिया जो अल्लाह के महबूब और प्यारे बन्दे होते हैं अल्लाह उन्हे अपने इख्तयार मे से कुछ इख्तयार दे देता हैं इसलिये उनसे भी मुरादे मांगी जा सकती हैं, उनसे भी हाजते और मदद तलब की जा सकती हैं, वो भी तकदीर को बना और सवांर सकते हैं| दुआ और फ़रियाद सुन सकते हैं| अल्लाह ने कुरान मे मुश्रिक के इन अकीदो की वज़ाहत की और ज़बरदस्त मज़म्मत की- मुश्रिको ने अल्लाह के सिवा दूसरे इलाह इसलिये बना रखे हैं ताकि वे उनकी मदद करे| (सूरह यासीन 36/74)

इसी अकीदे के तहत मुसल्मानो की अकसरियत औलिया की कब्रो पर जा कर उनसे मदद और हाजत तलब करते हैं| सय्यद अला हजवेरी रह0 अपनी मशहूर किताब “कश्फ़ुल महजूब” मे फ़रमाते हैं – अल्लाह के औलिया मुल्क के मुदब्बिर हैं और आलम के निगरा हैं अल्लाह ने खास तौर पर उनको आलम का हाकिम गरदाना हैं और आलम का हल व इन्तिज़ाम उनके साथ वाबस्ता कर दिया हैं और अहकामे आलम को उन्ही की हिम्मत के साथ जोड़ दिया हैं| (अज़ सय्यद अहमद उरूज कादरी पेज 32) हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया अपनी मारुफ़ किताब “फ़वाइदुल फ़वाइद” मे फ़रमाते हैं “ शेख निज़ामुद्दीन अबुल मवेद बारहा फ़रमाया करते – मेरी वफ़ात के बाद जिसको कोई मुहिम दरपेश हो तो उससे कहो तीन दिन मेरी ज़ियारत को आये अगर तीन दिन गुज़र जाने के बाद भी वह काम पूरा न हो तो चार दिन आये| और अब भी काम न निकले तो मेरी कब्र की ईंट से ईंट बजा दे|(शरीअत व तरीकत पेज 591)” जनाब अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी फ़रमाते हैं – “औलिया किराम मुर्दे को ज़िन्दा कर सकते हैं| मादरजात अंधे को, कोढ़ी को शिफ़ा दे सकते हैं और सारी ज़मीन को एक कदम मे तय कर सकते हैं| (बरेलवियत अज़ अल्लामा ऐहसान इलाही ज़हीर मरहूम पेज 134-135)” इसके अलावा दिगर फ़रमाते हैं – “ऐ अबदुल कादिर! ऐ फ़ज़्ल करने वाले, बगैर मांगे सखावत करने वाले, ऐ इनाम व इकराम के मालिक, तू बुलन्द व अज़ीम हैं, हम पर अह्सान फ़रमा और साइल की पुकार सुन ले| ऐ अब्दुल कादिर हमारी आरज़ुओ को पूरा कर| (बरेलवियत पेज 130-131)”

औलिया किराम और बुज़ुर्गाने दीन के बारे मे पाये जाने वाले इन तसुव्वरात को जब कुरान और हदीस की रोशनी मे जायज़ा लेते हैं तो इन तसुव्वरात और अकायद की ज़बरदस्त मज़म्मत होती हैं| अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं- अल्लाह को छोड़कर जिन्हे तुम पुकारते हो वे एक खजूर की गुठली के छिलके के भी मालिक नही हैं| (सूरह फ़ातिर 35/13)

कहो के उन्हे पुकारो जिन्हे तुमने खुदा के सिवा माबूद बना रखा हैं, वे न आसमानो मे ज़र्रा बराबर इख्तयार रखते और न ज़मीन मे और न इन दोने मे उनकी कोई शिरकत हैं| और न इनमे से कोई उसका मददगार हैं| (सूरह सबा 34/22)

इन आयत मे अल्लाह ने साफ़ लफ़्ज़ो मे ये बात ब्यान कर दी के अल्लाह की हुकुमत मे किसी दूसरे का कोई इख्तयार नही और न वो किसी को इसमे शरीक करता हैं और अल्लाह के सिवा लोग जिनसे मदद तलब करते हैं वो ज़र्रा भर भी इख्तयार नही रखते|

इस दुनिया मे अंबिया और रसूल अल्लाह के नुमाइन्दे की हैसियत से अल्लाह से सबसे ज़्यादा मुकर्रब और महबूब होते हैं| कुरान मे अल्लाह ने अंबिया के बहुत से वाकियात ब्यान किये हैं के किस तरह वो अपनी कौम के पास दावत लेकर गये और किस तरह उनकी कौम के लोगो ने उनकी नाफ़रमानी की यही नही बल्कि बाज़ को मारा पीटा, बाज़ को जिला वतन किया, बाज़ को कत्ल कर दिया लेकिन वो खुद अपनी कौम का कुछ नही बिगाड़ सके|

हज़रत हूद अलै0 ने कौम को दावत तौहीद दी तो उनकी कौम ने न माना बल्कि उल्टा कहा – अच्छा तो ले आ वो अज़ाब जिसकी तू हमे धमकी देता हैं अगर अपनी बात मे सच्चा हैं| (सूरह आराफ़ 7/70) इस पर अल्लाह का नबी सिर्फ़ इतना कह कर खामोश हो गया – तुम भी(अज़ाब का) इन्तज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तज़ार करता हूं| (सूरह आराफ़ 7/71)

ऐसा ही मामला दूसरे अंबिया के साथ भी पेश आता रहा| हज़रत लूत अलै0 की बदकिरदार कौम जो औरतो को छोड़ कर मर्दो से अपनी जिस्मानी ख्वाहिशात पूरी करती थी| फ़रिश्ते जब हज़रत लूत अलै0 के पास जब अज़ाब की खबर लेकर खूबसूरत लड़को की शक्ल मे आये तो हज़रत लूत अलै0 उन लड़को (फ़रिशतो के बारे मे उनको तब तक इल्म नही था के ये लड़के अल्लाह के भेजे हुये फ़रिश्ते हैं जो लडको की शक्ल मे उनके पास आये हैं) के लिये अपनी बदकिरदार कौम को लेकर फ़िक्र्मन्द हुये और कहने लगे –

यह दिन तो बड़ी मुसीबत का हैं| (सूरह हूद 11/77) और अपनी कौम से ये दरख्वास्त की – अल्लाह से डरो और मेरे मेहमानो के मामले मे मुझे ज़लील न करो क्या तुममे कोई भला आदमी नही| (सूरह हूद 11/78)उनकी कौम पर उनकी इस मिन्नत समाजत का कोई असर न हुआ| तो आजिज़ होकर ये तक कह डाला की – अगर तुम्हे कुछ करना ही हैं तो यह मेरी बेटीया (निकाह के लिये) मौजूद हैं| (सूरह हूद 11/78) बदबख्त कौम इस पर भी न राज़ी हुई तो बड़ी हसरत के सात नबी की ज़ुबान पर ये लफ़्ज़ आये – ऐ काश! मेरे पास इतनी ताकत होती की तुम्हे सीधा कर देता या कोई मज़बूत सहारा होता जिसकी पनाह लेता| (सूरह हूद 11/80)

लूत अलै0 के इस वाकयात को औलिया का जो तज़किरा पीछे गुज़रा उसके सामने रखे के कहां एक तरफ़ औलिया और बुज़ुर्ग को खुदाई की साझेदारी का इख्तयार दिया जा रहा और कहा लूत अलै0 जो अल्लाह के नबी किस तरह बेबस और मजबूर हैं के मेहमानो के सामने कैसे अपने दुश्मनो से मिन्नत समाजत कर रहा हैं| और तो और बेबसी का ये आलम के अपनी बेटीया भी ऐसे बदकिरदार के निकाह मे देने पर अमादा हो गये|

लूत अलै0 से आगे खातीमीन नबी रहम्तुललिल आलामीन के ज़रा सीरत पर ज़रा नज़र डाले के मस्जिदुल हराम मे नमाज़ पढ़ने के दौरान मुश्रिकीन ने आपके सजदा करते वक्त पीठ पर ऊंट की ओझड़ी रख दी| जिसके सबब आप ओझड़ी के बोझ तले दबे रहे| यहां तक के हज़रत फ़ातिमा ने आकर आपकी पीठ मुबारक पर से उस बोझ को उतारा| इसके अलावा एक मुश्रिक उकबा बिन अबी मुईत ने आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के गले मे चादर डाल कर सख्ती से गला घोंटा, हज़रत अबू बक्र रज़ि0 दौड़कर आये और आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की जान बचाई| ताइफ़ के मुश्रिकीन ने पत्थर मार-मार कर आपके पैर मुबारक को ज़ख्मी कर दिया के आप के नालैन(चप्पल) मुबारक खून से तर हो गये और आप को वहा से बाहर एक बाग मे पनाह ली| इसके अलावा आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम का जंगे ऊहद मे ज़ख्मी होना| फ़तह मक्का से पहले आपके हमराह सहाबा का उमराह अदा करने को मुश्रिकीन मक्का का रोक देना वगैराह| सीरत नबवी का मुताला करने से साफ़ समझ मे आता हैं नबी होने के बावजूद कानून इलाही के सामने नबी भी बेबस और लाचार हैं| अगर सीरत नबवी और कुरान की रू से दूसरे अंबिया के हालत पर नज़र डाली जाये तो औलिया और बुज़ुर्गे के अकाइद और उनके बारे मे जो मोजज़ात का मामला मिलता हैं वो सिवाये किस्से और कहानी के कुछ नही| लिहाज़ा इन मामलात के बाद भी जिसका जो जी चाहे रास्ता इख्तयार कर ले क्योकि अहले ईमान का रास्ता सिर्फ़ एक हैं- ऐ हमारे रब! जो फ़रमान तूने नाज़िल किया हैं हमने उसे मान लिया और रसूल की पैरवी कि| हमारा नाम गवाही देने वालो मे लिख ले| (सूरह अल इमरान 3/53)

2. दूसरी दलील – कुछ लोग यह अकीदा रखते हैं के बुज़ुर्गाने दीन और औलिया अल्लाह के यहां बुलन्द मर्तबा रखते हैं| अल्लाह ताला के महबूब और प्यारे होते हैं इसलिये अल्लाह की बारगाह मे रसाई हासिल करने के लिये औलिया का वसीला पकड़ना बहुत ज़रूरी है| बल्कि ये भी कहा जाता हैं जिस तरह दुनिया मे किसी आला तक पहुंचने के लिये पहले उससे नीचे के लोगो को खुश(वसीला) करना ज़रूरी होता हैं उसी तरह अल्लाह तक सीधे रसाई हासिल करने के लिये पहले किसी बुज़ुर्ग का वसीला होना ज़रूरी हैं| वरना बात नामन्ज़ूर कर दी जायेगी|

शेख अब्दुल कादिर जीलनी रह0 से मन्सूब इसी अकीदे के मानने वाले कहते हैं – जब भी अल्लाह से कोई चीज़ मांगो मेरे वसीले से मांगो ताकि मुराद पूरी हो और फ़रमाया कि जो मुसीबत मे मेरे वसीले से मदद चाहे उसकी मुसीबत दूर हो और जो किसी सख्ती मे मेरा नाम लेकर पुकारे उसे कुशादगी हासिल हो, जो मेरे वसीले से अपनी मुरादे पेश करे तो पूरी हो| (शरीअत व तरीकत पेज 306) जनाब अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी फ़रमाते हैं – औलिया से मदद मांगना उन्हे पुकारना उनके साथ तवस्सुल करना अम्र मशरूअ और शैई मरगूब हैं जिसका इन्कार न करेगा मगर हठधर्म या दुश्मन इन्सान| (बरेलवियत पेज 110) वसीला पकड़ने के सिलसिले मे हज़रत जुनेद बगदादी का भी एक वाकिया काबिले ज़िक्र हैं – एक बार हज़रत जुनेद बगदादी रह0 या अल्लाह या अल्लाह कहकर दरिया पार कर गये| लेकिन मुरिद से कहा कि या जुनेद या जुनेद कहकर चला आ| फ़िर शैतान ने उस मुरिद के दिल मे वसवसा डाला क्यो न मैं भी या अल्लाह या अल्लाह कहूं जैसा के पीर साहब कहते हैं| या अल्लाह कहने की देर थी के डूबने लगा| फ़िर जुनेद को पुकारा तो जुनेद ने कहा – वही कह या जुनेद या जुनेद| जब पार लगा तो पूछा – हज़रत! यह क्या बात हैं? फ़रमाया – ऐ नादान! अभी तू जुनेद तक तो पहुंचा नही अल्लाह तक रसाई की हवस हैं| (शरीअत व तरीकत पेज 328)

अल्लाह ने कुरान मे ऐसे वसीले की सख्ती से मज़म्मत की जैसा ऊपर गुज़रा- वे लोग जिन्होने अल्लाह के सिवा दूसरो को अपना सरपरस्त बना रखा हैं कहते हैं हम तो उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिये करते हैं ताकि वे अल्लाह तक हमारी रसाई कर दें| (सूरह ज़ुमर 39/3)

इसके अलावा अल्लाह तक रसाई हासिल करने के लिये बुज़ुर्ग का वसीला और वास्ता पकड़ना सही हैं या गलत इसका अन्दाज़ा कुरान और नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की तालीमात लगाया जा सकता हैं के शरियत इस बारे मे क्या हुक्म देती हैं जो नीचे दी गयी हैं-

तुम्हारा रब कहता हैं मुझे पुकारो मैं तुम्हारी दुआएं कबूल करूगां| (सूरह मोमिन 40/60)

ऐ नबी! मेरे बन्दे अगर तुमसे मेरे बारे मे पूछे तो उन्हे बता दो कि मैं उनसे करीब ही हूं| पुकारने वाला जब मुझे पुकारता हैं तो मैं उसकी पुकार का जवाब देता हूं| (सूरह अल बकरा 2/186)

मेरा रब करीब भी हैं और जवाब देने वाला भी| (सूरह हूद 11/61)

ये हैं वो कुरान की आयत जो हर नस्ल, हर कौम, हर मुल्क, हर रंग के लोगो को खुले तौर पर ये बता बताती हैं के अल्लाह अपने हर बन्दे से बहुत करीब हैं और जब भी बन्दा उसे अपनी किसी हाजत के सबब पुकारता हैं तो अल्लाह उसे सुनता हैं|

इसके अलावा नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम की जितनी भी दुआ हदीस की किताब मे दर्ज हैं उनमे से कोई एक ज़ईफ़ हदीस भी नही मिलती के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने कभी दुआ के लिये किसी अंबिया जैसे इब्राहीम अलै0, ईसमाईल अलै0, मूसा अलै0, ईसा अलै0 या किसी और नबी का वसीला इस्तेमाल किया हो| और तो और नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने कभी सहाबा को भी इस बात का हुक्म नही दिया के वो खुद नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम का वसीला लगा कर अल्लाह से दुआ करे|(वसीला की मज़ीद मालूमात के लिये हमारा पम्फ़लेट सिफ़ारिशी कौन और सिफ़ारिश किसकी? देखे) अगर वसीला लगाना ही होता तो नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम से अफ़ज़ल और आला वसीला और किसका हो सकता हैं लेकिन बावजूद इसके सहाबा ने कभी भी नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम का वसीला नही लगाया|

इस मसले की मज़ीद वज़ाहत ये के हाजतमंद सैकड़ो मील दूर से किसी का वसीला लगाता हैं तो क्या जिसका वसीला लगाया जा रहा हैं वो दुनिया मे न होने के बावजूद इस बात की कुदरत रखता हैं के अपने हाजतमन्द की हाजत को पूरा कर सके| कुरान की नीचे दी हुई आयत इस बात पर सख्ती से मुहर लगाती हैं के मरने के बाद किसी इन्सान का ज़िन्दा इन्सान का सुन पाना नामुमकिन हैं-

और ऐ रसूल तुम उनको नही सुना सकते जो कब्रो मे हैं| (सूरह फ़ातिर 35/22)

लोगो एक मिसाल पेश की जाती हैं उसे कान लगा के सुनो कि अल्लाह के अलावा जिन को तुम पुकारते हो वह सब के सब अगर एक साथ इकठ्ठे जमा हो जाये तो भी एक मक्खी तक पैदा नही कर सकते और अगर मक्खी उनसे कुछ छीन ले जाये तो उससे उसको छुड़ा नही सकते| बेबस हैं वो जिससे मांगा जा रहा हैं और जो मांग रहा हैं| (सूरह हज 22/73)

3. तीसरी दलील – कुछ लोग ये अकीदा रखते हैं कि औलिया चूंकि अल्लाह के यहां बुलन्द और बाला मर्तबे पर फ़ायज़ हैं लिहाज़ा उनका बड़ा असर और रसूख हैं| अगर नज़्र और नियाज़ देकर उन्हे खुश कर लिया जाये तो वे अल्लाह के यहां हमारी सिफ़ारिश करके हमे बख्शवा लेगे| एक बुज़ुर्ग जनाब खलील बरकाती साहब ने इस अकीदे का इज़हार इन लफ़्ज़ो मे किया- बेशक औलिया और फ़ुकहा अपने पैरोकार की शफ़ाअत करते हैं और उनकी निगहबानी करते हैं| जब उनकी रूह निकलती हैं, जब मुंकर नकीर उनसे सवाल करते हैं, जब उनका हश्र होता हैं, जब उनका नामाए आमाल खुलता हैं, जब उनसे हिसाब लिया जाता हैं, जब वे पुल सिरात पर चलते हैं, हर वक्त हर हाल मे उनकी निगहबानी करते हैं, किसी जगह गाफ़िल नही होते| (बरेलवियत पेज 312)

इसी तरह जब शेख अब्दुल कादिर जीलानी रह0 इस दुनिया से तशरीफ़ ले गये तो एक बुज़ुर्ग को ख्वाब मे बताया कि मुन्कर नकीर ने जब मुझसे कब्र मे सवाल किया तेरा रब कौन हैं? तो मैने कहा इस्लामी तरीका ये हैं के पहले सलाम और मुसाहफ़ा करते हैं चुनान्चे फ़रिश्तो ने नादिम होकर मुसाफ़हा किया तो शेख ने हाथ मज़बूती से पकड़ लिया और कहा की तख्लीके आदम के वक्त तुमने “क्या तू पैदा करता हैं उसे जो ज़मीन मे फ़साद बरपा करे| (सूरह बकरा 2/30)” कह कर अपने इल्म को अल्लाह के इल्म से ज़्यादा समझने की गुस्ताखी क्यो की और तमाम बनी आदम की तरफ़ फ़साद और खूंरेज़ी की निसबत क्यो की? तुम मेरे इन सवालो का जवाब दोगे तो छोड़ूगा वरना नही| मुन्कर नकीर हक्का बक्का एक दूसरे का मुंह देखने लगे और अपने आप को छुड़ाने की कोशीश करने लगे मगर उस दिलावर के सामने लाचार रहे| मजबूरन फ़रिश्तो ने अर्ज़ किया – हुज़ूर! यह बात तो सारे फ़रिश्तो ने कही थी, लिहाज़ा आप हमे छोड़ दे ताकि बाकी फ़रिश्तो से पूछ कर जवाब दे| शेख ने एक फ़रिश्ते को छोड़ कर दूसरे को पकड़े रखा, फ़रिश्ते ने जाकर सारा हाल ब्यान किया तो सब फ़रिश्ते उस सवाल के जवाब से आजिज़ आकर रह गये| तब बारी तालाह की तरफ़ से हुक्म हुआ की मेरे महबूब की खिदमत मे हाजिर होकर अपनी खता माफ़ कराओ| जब तक वह माफ़ न करेगा रिहाई न होगी| लिहाज़ा तमाम फ़रिश्ते शेख की खिदमत मे हाज़िर होकर माफ़ी तलब की| अल्लाह की तरफ़ से भी शफ़ाअत का इशारा हुआ| उस वक्त गौसे आज़म ने जनाब बारी तालाह से अर्ज़ किया – ऐ खालिकुल! रब्बे अकबर! अपने रहम व करम से मेरे मुरीदीन को बख्श दे और मुन्कर नकीर के सवालो से बरी फ़रमा दे तो मैं इन फ़रिश्तो का कसूर माफ़ करता हूं| फ़रमाने इलाही पहुंचा कि मेरे महबूब! मैने तेरी दुआ कबूल की फ़रिश्तो को माफ़ कर| तब जनाब गौसे आज़म ने फ़रिश्तो को छोड़ा और वह आलमे मलकूत को चले गये (तोहफ़तुल मजालिस अज़ हज़रत रियाज़ अहमद गोहर शाही पेज 8-11 बहवाला गुल्स्ताने औलिया)

ज़रा गौर करे के किस तरह औलिया के बाइख्तयार होने और किस तरह अल्लाह से अपनी बात मनवाने और अल्लाह को मजबूर करने के बारे मे पता चलता हैं| जबकी अल्लाह ने कुरान मे इस अकीदे की मज़म्मत इस तरह की हैं- ये लोग अल्लाह के सिवा उनकी इबादत करते हैं जो न उनको नुकसान पहुंचा सकते हैं न नफ़ा और कहते हैं कि ये अल्लाह के यहां हमारे सिफ़ारिशी हैं| (सूरह युनुस 10/18)

और जहां तक अल्लाह को मजबूर कर सिफ़ारिश मनवाने की बात हैं तो खुद कुरान से पूछ ले के कलाम अल्लाह इस बारे मे क्या कहता हैं- कौन हैं जो उसकी जानिब मे उसकी मर्ज़ी के बिना सिफ़ारिश कर सके| (सूरह अल बकरा 2/255)

कहो! सिफ़ारिश सारी की सारी अल्लाह के इख्तयार मे हैं| (सूरह ज़ुमर 39/44)

और वो अपने फ़ैसले मे किसी को शरीक नही करता| (सूरह कहफ़ 18/26)

और अल्लाह फ़ैसला करता हैं उसके फ़ैसले पर कोई एतराज़ करने वाला नही| (सूरह रअद 13/41)

कुरान की इस मुकर्रर हुदूद के बाद क्या अब भी कोई इस बात का दावा कर सकता हैं की वो अल्लाह की बारगाह मे किसी की बख्शिश करा लेगा जबकि खुद कयामत के दिन तमाम अंबिया को खुद अपनी जान की फ़िक्र होगी जैसा के हदीस नबवी से साबित है-

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – कयामत के दिन अल्लाह तालाह अगले और पिछ्ले तमाम इन्सानो को एक सपाट मैदान मे जमा करेगा जहां पुकारने वाला उन्हे आसानी से पुकार सकेगा और देखने वाला आसानी से देख सकेगा| सूरज करीब आ जायेगा जिसकी वजह से परेशानी और तकलीफ़ नाकाबिले बरदाश्त हो जायेगी| लोग आपस मे कहेंगे देखो केसा मुश्किल वक्त आ पहुंचा हैं कोई ऐसा आदमी तलाश करो जो तुम्हारे पालनहार के सामने सिफ़ारिश कर सके(ताकि हिसाब किताब शुरु हो सके) आपसी मशवरे के बाद लोग कहेंगे कि हमे हज़रत आदम अलै0 के पास जाना चाहिये| लोग हज़रत आदम अलै0 के पास आऐगे और कहेंगे – आप अबुल बशर हैं अल्लाह तालाह ने आपको अपने हाथो से बनाया और अपनी रूह फ़ूंकी, फ़रिश्तो को हुक्म दिया उन्होने आपको सजदा किया आज आप अपने पालनहार के सामने हमारी सिफ़ारिश करे| आप देख रहे हैं आज हम किस मुसीबत मे फ़ंसे हुये हैं| हज़रत आदम अलै0 कहेंगे – आज मेरा पालनहार इतने गुस्से मे हैं कि इससे पहले कभी न था न इसके बाद होगा| मुझे अल्लाह तालाह ने (जन्नत मे) पेड़ के करीब जाने से मना किया था लेकिन मै नाफ़रमानी कर बैठा जिस वजह से मुझे अपनी जान की फ़िक्र हैं| (या अल्लाह) मुझे माफ़ फ़रमा| (या अल्लाह) मुझ्र माफ़ फ़रमा| तुम लोग किसी और के पास जाओ| नूह अलै0 के पास चले जाओ| लोग नूह अलै0 के पास आयेगे और कहेंगे – ऐ नूह! आप ज़मीन वालो की और से सबसे पहले रसूल थे अल्लाह तालाह ने आपको (कुरान मे) शुक्र करने वाला बन्दा कहा हैं| अपने पालनहार के सामने हमारी सिफ़ारिश कर दें| आप देख रहे हैं हमारी क्या हालत हो रही हैं| हज़रत नूह अलै0 कहेंगे – आज मेरा पालनहार इतने गुस्से मे हैं कि इससे पहले कभी न था न इसके बाद कभी होगा| (मैने दुआ मे) अपनी कौम के लिये बद्दुआ की(और वो बरबाद हो गयी) इसलिये आज मुझे अपनी जान की फ़िक्र हैं| (या अल्लाह) मुझे माफ़ फ़रमा| (या अल्लाह) मुझे माफ़ फ़रमा| तुम लोग मेरे अलावा किसी और के पास जाओ| तुम लोग हज़रत इब्राहिम अलै0 के पास चले जाओ| लोग हज़रत इब्राहिम अलै0 के पास आयेगे और कहेंगे – ऐ इब्राहिम अलै0 आप अल्लाह के नबी और उसके दोस्त हैं आप पालनहार के सामने हमारी सिफ़ारिश कर दीजिये| आप देख रहे हैं कि हम किस हाल को पहुंच चुके हैं? हज़रत इब्राहिम अलै0 कहेंगे – आज मेरा पालनहार इतने गुस्से मे हैं कि न उससे पहले कभी इतने गुस्से मे आया न इसके बाद आयेगा| (दुनिया मे) मैने तीन झूठ बोले थे जिसकी वजह से मुझे अपनी जान की चिन्ता हैं| (अल्लाह तालाह इस पर पकड़ न ले) (या अल्लाह) मुझे बचाना, (या अल्लाह) मुझे बचाना| मेरे अलावा किसी और के पास जाओ, मूसा अलै0 के पास चले जाओ| (शायद वह तुम्हारी सिफ़ारिश कर सके) लोग हज़रत मूसा अलै0 के पास आयेगे और कहेंगे – ऐ मूसा अलै0! आप अल्लाह के रसूल हैं अल्लाह तालाह ने अपनी रिसालत से आपको बरतरियत अता की और आपसे बात करके सारे लोगो पर बरतरियत दी| आप अपने पालनहार के सामने हमारी सिफ़ारिश कर दीजिये, आप देख रहे हैं कि हमारी क्या हलत हो रही हैं? हज़रत मूसा अलै0 कहेंगे! आज तो मेरा रब इतने गुस्से मे हैं कि न इससे पहले इतना गुस्से मे आया न इसके बाद कभी इतने गुस्से मे आयेगा| (दुनिया मे) मैनें एक आदमी को कत्ल कर दिया था जिसे कत्ल करने का मुझे हुक्म न था जिसकी वजह से मुझे अपनी जान की चिन्ता हैं| (या अल्लाह) मुझे बचाना, (या अल्लाह) मुझे बचाना| तुम लोग मेरे अलावा किसी और के पास जाओ, हज़रत ईसा अलै0 के पास चले जाओ| लिहाज़ा लोग हज़रत ईसा अलै0 के पास आयेगे और कहेंगे, ऐ ईसा अलै0! आप अल्लाह की रूह हैं, आपने बचपन की उम्र मे गोद मे रहकर लोगो से बाते की, आज हमारे लिये अल्लाह के सामने सिफ़ारिश कर दीजिये| आप देख रहे हैं कि हमारी क्या हालत हो रही हैं? हज़रत ईसा अलै0 जवाब देगे! आज मेरा पालनहार इतने गुस्से मे हैं कि न इससे पहले कभी गुस्से मे आया न इसके बाद ऐसे गुस्से मे आयेगा| (आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत ईसा अलै0 के किसी गुनाह के बारे मे नही फ़रमाय|) जवाब मे हज़रत ईसा अलै0 नफ़्सी नफ़्सी नफ़्सी कहेंगे और फ़रमायेगे, मेरे अलावा किसी दूसरे के पास जाओ| हज़रत मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के पास चले जाओ| लिहाज़ा लोग हज़रत मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के पास हाज़िर होगें और कहेंगे – ऐ मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम! आप अल्लाह के रसूल हैं और आखिरी नबी हैं अल्लाह तालाह ने आपके अगले औ्र पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिये हैं अपने पालनहार के सामने हमारे लिये सिफ़ारिश कर दीजिये आप देख रहे हैं हमारी क्या हालत हो रही हैं? लिहाज़ा मैं (मैदाने हश्र से) चलूँगा औ अर्श के नीचे पहुंचकर अपने पालनहार के सामने सजदे मे गिर पड़ूगां उस वक्त अल्लाह तालाह अपनी हम्दो सना के कलमात मेरे दिल मे डाल देगें जो उससे पहले अल्लाह तालाह ने किसी को नही बतालाये| फ़िर इरशाद होगा – ऐ मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम! अपना सर उठाये और सवाल करे आपको अता किया जायेगा, सिफ़ारिश करे सिफ़ारिश सुनी जायेगी| मैं अल्लाह तालाह से सिफ़ारिश करूगां और मेरे लिये एक हद मुकर्रर कर दी जायेगी| मैं इतने मे गिर पड़ूगां फ़िर उस वक्त तक सजदे मे पड़ा रहूगां जब तक अल्लाह चाहेगा| फ़िर कहा जायेगा – ऐ मुहम्मद सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम! सर उठाओ, बात कहो सुनी जायेगी| सवाल करो, दिये जाओगे| सिफ़ारिश करो, कबूल की जायेगी| मैं फ़िर अल्लाह तालाह की हम्दो सना करूगां जो अल्लाह तालाह मुझे उस वक्त सिखायेगा उसके बाद सिफ़ारिश करूगां| लिहाज़ा मेरे लिये एक हद मुकर्रर कर दी जायेगी मैं (उसके हिसाब से) लोगो को जहन्नम से निकालूगां और जन्नत मे ले जाऊगां (इसी तरह तीन या चार बार होगा रावी कहता हैं) मुझे याद नही तीसरी या चौथी बार सिफ़ारिश के बाद नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम फ़रमायेगें – या अल्लाह! अब तो जहन्नम मे कोई भी तौहीदपरस्त बाकी नही रहा सिवाये उन लोगो के जिन्हे कुरान ने रोक रखा हैं मतलब जिन्हे कुरान के हुक्म के हिसाब से हमेशा जहन्नम मे रहना हैं| (बुखारी व मुस्लिम)

इस हदीस नबवी के बाद भी क्या कोई शक की गुन्जाइश हैं के क्या आम बुज़ुर्ग जिन्हे लोग अपना सिफ़ारिशी कहते हैं वो अपने मुरीद को बचा लेगे| लिहाज़ा कुरान व सुन्नत की तालीमात जान लेने के बावजूद भी अगर कोई शख्स यह अकीदा रखे कि फ़लां बुज़ुर्ग उसकी बख्शीश करा लेगे या फ़ला पीर साहब को नज़्रो नियाज़ करते हैं वो हमे बचा लेगे तो इसका अन्जाम उस इन्सान से अलग कैसे हो सकता हैं जो अपना कोई जुर्म बख्शावाने के लिये हुकूमत के किसी कारिन्दे को बादशाह के पास सिफ़ारिश बनाकर भेजना चाहे जबकि वो सिफ़ारिश करने वाला खुद बादशाह के जाह व जलाल से थर-थर कांप रहा हो|

फ़लसफ़ा वहदुल वजूद, वहदत शहूद और हुलूल

कुछ लोगो यह अकीदा रखते हैं कि इन्सान इबादत और रियाज़त के ज़रिये उस मकाम पर पहुंच जाता हैं कि उसे कायनात की हर चीज़ मे अल्लाह नज़र आने लगता हैं या वह हर चीज़ को अल्लाह की ज़ात का जुज़ समझने लगता हैं| तसव्वुफ़ की इस्तलाह मे इस अकीदे को वहदतुल वजूद कहा जाता हैं| इबादत और रियाज़त मे मजीद तरक्की करने के बाद इन्सान की हस्ती अल्लाह की हस्ती मे मुदगम हो जाती हैं और वह दोनो (खुदा और इन्सान) एक हो जाते हैं इस अकीदे को वहदत शहूद कहा जाता हैं| इबादत और रियाज़त मे मजीद तरक्की से इन्सान का आईना दिल इस कद्र लतीफ़ और साफ़ हो जाता हैं की अल्लाह की ज़ात खुद उस इन्सान मे दाखिल हो जाती हैं जिसे हुलूल कहा जाता हैं| गौर किया जायए तो इस्तलाहात तीनो मे कुछ फ़र्क नही लेकिन नतीजे के एतबार से तीनो एक ही हैं ये ठीक वैसे ही हैं जैसे के यहूदी उज़ैर अलै0 को अल्लाह का बेटा(जुज़) मानते हैं और ईसाई ईसा अलै0 को अल्लाह का बेटा(जुज़) कहते हैं और यही इनका अकीदा हैं|

कदीम व जदीद सूफ़िया किराम ने फ़लसफ़ा वहदतुल वजूद और हुलूल को दुरुस्त साबित करने के लिये बड़ी तूल व बहस की हैं| अगर इस बात को तस्लीम कर लिया जाये तो सवाल ये पैदा होता हैं के क्या ईसाई और यहूदी अकायद सही हैं जबकि कुरान उनको सरासर मुश्रिक करार देती हैं| इसके अलावा सवाल ये पैदा होता के अगर इन्सान अल्लाह मे हैं और अल्लाह इन्सान मे तो फ़िर आबिद कौन और माबूद कौन?, खालिक कौन और मख्लूक कौन?, हाजतमन्द कौन और हाजतरवा कौन?, मरने वाला कौन और मारने वाला कौन?, गुनाहगार कौन और बख्शने वाला कौन? और सज़ा के तौर पर जहन्नम मे जाने वाले कौन और भेजने वाला कौन? वगैराह|

हकीकत ये के किसी इन्सान को अल्लाह की ज़ात का जुज़ समझना या अल्लाह तालाह को किसी इन्सान मे मुदगम समझना ऐसा खुला और नंगा शिर्क फ़िज़्ज़ात हैं जिस पर अल्लाह बेहद गज़बनाक होता हैं| ईसाइयो ने ईसा अलै0 को अल्लाह का बेटा(जुज़) करार दिया जिस पर अल्लाह ने गज़बनाक लहज़े मे कुरान मे इसका तज़किरा फ़रमाया- यकीनन कुफ़्र किया उन लोगो ने जिन्होने कहा मरयम का बेटा, मसीह ही अल्लाह हैं| (ऐ नबी) कहो अगर अल्लाह मसीह इब्ने मरयम को और उसकी मां को और तमाम ज़मीन वालो को हलक कर देना चाहे तो किसकी मजाल हैं कि उसको इस इरादे से रोके रखे? अल्लाह ज़मीन और आसमान का और उन सब चीज़ो का मालिक हैं जो ज़मीन और आसमान के दरम्यान पाई जाती हैं| जो कुछ चाहता हैं पैदा करता हैं और वह हर चीज़ पर कादिर हैं| (सूरह माइदा 5/17)

और उन लोगो ने अल्लाह के बन्दो मे से अल्लाह का जुज़ ठहराया| (सूरह ज़ुखुरुफ़ 43/15)

इसके अलावा अल्लाह ने दूसरी जगह बहुत सख्ती के साथ इस बात की मज़म्मत कि और उन लोगो को वार्निंग दी जो अल्लाह के बन्दो का अल्लाह का जुज़ करार देते हैं- वे कहते हैं रहमान ने किसी को बेटा बनाया हैं सख्त बेहूदा बात हैं जो तुम गढ़ रहे हो, करीब हैं की आसमान फ़ट पड़े ज़मीन धंस जाये और पहाड़ गिर जाये इस बात पर कि लोगो ने रहमान के लिये औलाद होने का दावा किया हैं| (सूरह मरयम 19/88-91)

लिहाज़ा जब बन्दे को अल्लाह का बेटा करार देने पर अल्लाह की सख्त नाराज़गी और शदीद गुस्सा होने का मुज़ाहिरा हैं तो खुद अन्दाज़ा लगाया जा सकता हैं कि जब बन्दे को अल्लाह का जुज़ कहा जाये तो क्या होगा और तो और अल्लाह की सिफ़ात को बन्दे मे तस्लीम करना कैसा होगा|

वहदतुल वजूद और हुलूल का अकीदा तौहीद से खुल्लम खुल्ला टकराव हैं| इसके अलावा इस अकीदे के तहत इबादत का जो तरिका हैं वो सुन्नत की तालीमात के बिल्कुल उलट हैं| नीचे कुछ सूफ़ियत के इबादत के तरिके पर गौर फ़रमाये-

1. गौस आज़म अब्दुल कादीर जिलानी रह0 ने पन्द्रह साल तक नमाज़ इशा के बाद तुलूअ सुबह से पहले एक कुरान शरीफ़ खत्म करते| आपने ये सारे कुरान पाक एक पांव पर खड़े होकर खत्म किये बल्कि खुद फ़रमाते हैं मै 25 साल तक इराक के जंगलो मे तन्हा फ़िरता रहा एक साल तक साग घास और फ़ेंकी हुई चीज़ो पर गुज़ारा करता रहा और पानी बिल्कुल ना पिया फ़िर एक साल तक पानी भी पीता रहा फ़िर तीसरे साल सिर्फ़ पानी पर गुज़ारा रहा फ़िर एक साल न कुछ खाया न पिया न सोया| (गौसुस सकलैन) (शरिअत व तरिकत पेज 431)

2. हज़रत बायज़ीद बुस्तामी तीस साल तक शाम के जंगलो मे रियाज़त व मुजाहिदा करते रहे| एक साल आप हज को गये तो हर कदम पर दोगुना अदा करते थे यहां तक की 12 साल मे मक्का पहुंचे| (सूफ़िया नक्शबन्दी पेज 89) (शरिअत व तरिकत पेज 431)

3. हज़रत मुईनुद्दीन चिश्ती 70 साल रात भर सोये नही| (शरीअत व तरीकत पेज 591)

4. हज़रत फ़रीदगन्ज शकर ने चालीस दिन कुएं मे बैठकर चिल्लाकशी की| (तारिख मशायख चिश्त पेज 178) (शरीअत व तरीकत पेज 340)

5. हज़रत जुनेद बगदादी तीस साल तक इशा की नमाज़ पढ़ने के बाद एक पांव पर खड़े होकर अल्लाह अल्लाह करते रहे| (सूफ़िया नक्शबन्दी पेज 89) (शरीअत व तरीकत पेज 491)

6. ख्वाजा मुहम्मद चिश्ती ने अपने मकान मे एक गहरा कुआ खोद रखा था जिसमे उल्टा लटक कर इबादते इलाही मे मसरूह रहते| (शरीअत व तरीकत पेज 431)

7. हज़रत मुल्ला शाह कादरी फ़रमाया करते – तमाम उम्र हमको गुस्ले जनाबत और एहतिलाम की हाजत नही हुई क्योकि यह दोनो गुस्ल, निकाह और नींद से मुताल्लिक हैं| हमने न निकाह किया हैं न सोते हैं| (हदीकतुल औलिया पेज 57) (शरीअत व तरीकत पेज 271)

इबादत और रियाज़त के ये तरीके कुरान और सुन्नत से करीब तो क्या दीन ए इस्लाम मे ऐसे तरीको का तो कोई वजूद ही नही के इन्सान अपनी जान पर ज़ुल्म करके अल्लाह की इबादत करे बावजूद इसके के वो इबादत के तरीके कुरान और सुन्नत की रोशनी मे जानता हो|

हज़रत निज़ामुद्दिन औलिया अपने मल्फ़ूज़ात फ़वाइअदुल फ़वाइद मे फ़रमाते हैं कयामत के दिन हज़रत मारूफ़ करखी को हुक्म होगा बहिश्त चलो वे कहेगे – मैं नही जाता मैने तेरी बहिश्त के लिये इबादत नही की थी| लिहाज़ा फ़रिश्तो को हुक्म होगा के नूर की ज़न्जीरो मे जकड़ कर खीचते खीचते बहिश्त मे ले जाओ| (शरीअत व तरीकत पेज 500)

ज़रा इन अकीदो पर गौर फ़रमाये के एक बन्दे को जन्नत मिल रही हैं और वो कहता हैं के मैं उसमे न जाऊगा| नीचे ज़रा हदीस नबवी पर गौर फ़रमाये-

हज़रत अनस बिन मालिक से रिवायत हैं के तीन हज़रात(अली बिन तालिब, अबदुल्लाह बिन उमरो और उस्मान बिन मज़ऊन रज़ि0) नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की अज़वाज मुताहरात के घरो की तरफ़ आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इबादत के मुताल्लिक पूछने गये| जब इनको आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के अमल के बारे मे बताया गया तो जिसे इन्होने कम समझा और कहा के हमारा नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से क्या मुकाबला आप के तो तमाम अगली पिछली लगज़िशे माफ़ कर दी गयी हैं| इनमे से एक ने कहा के आज से मैं हमेशा रात मे नमाज़ पढा करुंगा| दूसरे ने कहा के मैं हमेशा रोज़े रखा करुंगा और कभी नागा नही करुंगा| तीसरे ने कहा के मैं औरतो से जुदाई इख्तयार कर लूगा और कभी निकाह नही करुंगा| फ़िर आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम तशरीफ़ लाये और इनसे पूछा – क्या तुमने ही ये बाते कही थी| सुन लो अल्लाह की कसम अल्लाह रब्बुल आलामीन से मैं तुम सब से ज़्यादा डरने वाला हूं| मैं तुम सबसे ज़्यादा परहेज़गार हूं लेकिन मैं अगर रोज़े रखता हूं तो इफ़तार भी करता हूं, नमाज़ भी पढता हूं और सोता भी हूं, और औरतो से निकाह भी करता हूं| मेरे तरिके से जिसने बेरगबती करी वो मुझ से नही हैं| (सहीह बुखारी)

क्या वहदतुल वजूद और हुलूल का अकीदा तौहीद और सुन्नत के मुखालिफ़ नही?

ये तो इस अकीदे से जुड़ी इबादात थी अब ज़रा इन अकीदे के लोगो के करामात पर भी ज़रा गौर फ़रमाये-

1. एक बार शेख अब्दुल कादिर जिलानी रह0 ने मुर्गी का सालन खाकर हड्डीया एक तरफ़ रख दी, उन हड्डीयो पर हाथ रख कर फ़रमाया – कुम बिइज़्निल्लाह तो वह मुर्गी ज़िन्दा हो गयी| (सीरते गौस पेज 191) (शरीअत व तरीकत पेज 411)

2. गवैये की कब्र पर पीराने पीर ने कुम बिइज़्निल्लाह कहा कब्र फ़टी और मुर्दा गाता हुआ निकल आया| (तफ़रीहुल खातिर पेज 19) (शरीअत व तरीकत पेज 413)

3. ख्वाजा अबू इसहाक चिश्ती जब सफ़र का इरादा फ़रमाते तो दो सौ आदमियो के साथ आंख बन्द कर फ़ौरन मन्ज़िल मकसूद पर पहुंच जाते| (तारिख मशाइख चिश्त सफ़ा 192) (शरीअत व तरीकत पेज 418)

4. सय्यद मौदूद चिश्ती की वफ़ात 97 साल की उम्र मे हुई| आपकी नमाज़े जनाज़ा अव्वल रिजालुल गैब (मुर्दा बुज़ुर्ग) ने पढ़ी, फ़िर आम आदमी ने| उसके बाद जनाज़ा खुद बखुद उड़ने लगा| इस करामात से बेशुमार लोगो ने इस्लाम कबूल किया| (तारिख मशाइख चिश्त पेज 160) (शरीअत व तरीकत पेज 74)

5. ख्वाजा उसमान हारूनी ने वुज़ु दोगुना अदा किया और एक कमसिन बच्चे को गोद मे लेकर आग मे चले गये और दो घन्टे उसमे रहे| आग ने दोनो पर कोई असर नही किया| उस पर बहुत से आतिशपरस्त मुसलमान हो गये| (शरीअत व तरीकत पेज 375)

6. एक औरत ख्वाजा फ़रीदुद्दीन गंज शकर के पास रोती हुई आई और कहा बादशाह ने मेरे बेगुनाह बच्चे को तख्तादार पर लटकवा दिया हैं| चुनांचे आप असहाब समेत वहां पहुंचे और कहा – इलाही अगर ये बेगुनाह हैं तो इसे ज़िन्दा कर दे| लड़का ज़िन्दा हो गया और साथ चलने लगा यह करामात देख हज़ार हिन्दू मुसलमान हो गये| (इसरारुल औलिया पेज 110-111) (शरीअत व तरीकत पेज 376)

7. एक शख्स ने बारगाहे गौसिया मे लड़के की दरख्वास्त की आपने उसके हक मे दुआ फ़रमाई| इत्तिफ़ाक से लड़की पैदा हो गयी| आप ने फ़रमाया इसे घर ले जाओ और कुदरत का करिश्मा देखो जब घर आया तो उसे लड़की की बजाये लड़का पाया| (सफ़ीना औलिया पेज 17) (शरीअत व तरीकत पेज 299)

8. पीराने पीर गौसे आज़म मदीना से हाज़िरी देकर नगे पांव बगदाद आ रहे थे| रास्ते मे चोर मिला जो लूटना चाहता था| जब चोर को इल्म हुआ की आप गौसे आज़म हैं तो कदमो पर गिर पड़ा और ज़ुबान पर या सय्यिदी अब्दुल कादिर जिलानी शैअन लिल्लाह जारी हो गया| आप को उसकी हालत पर रहम आ गया| उसकी इसलाह के लिये बारगाहे इलाही मे मुतवज्जह हुये| गैब से निदा आई चोर को हिदायत की रहनुमाई करते हो कुतुब बना दो लिहाज़ा आपकी एक निगाह फ़ैज़ से वह कुतुब के दर्जे पर फ़ाइज़ हो गया| (सीरत गौसिया पेज 640) (शरीअत व तरीकत पेज 173)

9. मियां इस्माईल लाहौर अलमारुफ़ मियां कला ने सुबह की नमाज़ के बाद सलाम फ़ेरेते वक्त जब निगाह करम डाली तो दाई तरफ़ के मुकतदी सब के सब हाफ़िज़ कुरान बन गये और बाई तरफ़ के नाज़रा पढ़ने वाले| (ह्दिकतुल औलिया पेज 176) (शरीअत व तरीकत पेज 304)

ये हैं वो अकायद जिसके सबब इन्सान तौहीद से दूर हैं गौर तलब बात ये के जैसा पहले गुज़र चुका नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम सहाबा के हमराह उमराह करने मदीना से मक्का तशरीफ़ ले जाते हैं और उन्हे कुफ़्फ़ारे मक्का रास्ते से ही वापस कर देते हैं| और तो और मक्का से मदीना को हिजरत करते हैं तो आप सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम को गारे सौर मे पनाह लेनी पड़ती हैं| लूत अलै0 का मामला जो गुज़रा वो भी काबिले गौर हैं के उनकी बेबसी को अल्लाह कुरान मे ब्यान करता हैं मगर यहा तो मामला ही बिल्कुल उलट हैं हर बुज़ुर्ग कोई न कोई करामात दिखा रहा हैं हर बुज़ुर्ग सुपर नेचुरल पावर रखता हैं और अल्लाह से अपने इख्तयारात को मनवाने की ताकत रखता हैं और तो और अल्लाह भी इनकी हर बात को माने लेता हैं क्या ये बुज़ुर्ग नाऊज़ोबिल्लाह नबियो से भी ज़्यादा रुत्बा रखते हैं के अल्लाह ने अपने नबियो को ये इख्तयारात न दिये लेकिन शरियत मुकम्मल हो जाने के बाद भी इनको नबियो से ज़्यादा रुत्बा और कूवत बख्श दी|

बातिनियत

कुरान व सुन्नत से सीधा टकराव अकाइद व इफ़कार पर पर्दा डालने के लिये अहले तसव्वुफ़ ने बातिनियत का सहारा लिया| कहते हैं के कुरान और हदीस के लफ़्ज़ो के दो-दो मायने हैं| एक ज़ाहिरी और दूसरा बातिनी(या हकीकी)| यह अकीदा बातिनियत कहलाता हैं| अहले तसव्वुफ़ के नज़दीक दोनो मायने की आपस मे वही निस्बत हैं जो छिलके को मग्ज़ से होती हैं| यानि बातिनी मायना ज़ाहिरी मायना से अफ़ज़ल और मुकद्दम हैं| ज़ाहिरी मायना से तो उलमा वाकिफ़ हैं लेकिन बातिनी मायने को सिर्फ़ अहले इसरार व रमूज़ ही जानते हैं| इन इसरार व रमूज़ का मरकज़ औलिया किराम के मुकाशिफ़े, मुराकबे, मुशाहिदे और इल्हाम या फ़िर बुज़ुर्गो का फ़ैज़ और तवज्जोह करार दिया गया| जिसके ज़रिये पाक शरियत की मन मानी ताविले की गयी| जैसे कुरान की आयत वअबुद रब्बक हत्ता याति यकल यकीन(सूरह हिज्र 15/99) का तर्जुमा ये हैं कि अपने रब की इबादत उस आखिरी घड़ी तक करते रहो जिसका आना यकीनी हैं(यानि मौत)अहले तसव्वुफ़ के नज़दीक यह उल्मा(अहले ज़ाहिर) का तर्जुमा हैं उसका बातिनी या हकीकी तर्जुमा यह हैं के “सिर्फ़ उस वक्त तक अपने यकीन या मारफ़त से मुराद मारफ़ते इलाही हैं यानि जब अल्लाह की पहचान हो जाये तो सूफ़िया के नज़दीक नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और तिलावत वगैराह की ज़रूरत बाकी नही रहती| इसी तरह बनी इसराईल की आयत हैं “व कज़ा रब्बुक अल्ला तअबुदू इल्ला इय्याहु यानी तेरे रब ने फ़ैसला कर दिया हैं कि तुम लोग किसी की इबादत न करो मगर सिर्फ़ उसकी” यह उल्मा का तर्जुमा हैं और अहले तसव्वुफ़ का तर्जुमा ये हैं “तुम न इबादत करोगे मगर उसी(यानि अल्लाह) की होगी जिस चीज़ की भी इबादत करोगे” जिसका मतलब ये निकलता हैं कि तुम चाहो किसी इन्सान को सजदा करो या कब्र को या किसी मुजस्समे और बुत को वह दरहकीकत अल्लाह ही की इबादत होगी| कल्मा तौहीद ला इलाहा इल्लल लाह का सीधा और साफ़ मतलब ये हैं के अल्लाह के सिवा कोई इलाह(माबूद) नही सूफ़िया के नज़दीक इसका मतलब यह हैं ला मौजूद इल्लल लाह यानी दुनिया मे अल्लाह के सिवा कोई चीज़ मौजूद नही| इलाह का तर्जुमा मौजूद करके अहले तसव्वुफ़ ने कलमा तौहीद से अपना नज़रिया वहदतुल वजूद तो साबित कर दिया और साथ ही कलमा तौहिद को कलमा शिर्क मे बदल डाला| जैसा के अल्लाह ने कुरान मे फ़रमाया-

जो बात उनसे कही गयी थी ज़ालिमो ने उसे बदल कर कुछ और कर दिया| (सूरह बकरा 2/59)

ऐ मेरी कौम के लोगो, ऐ इस किताब के पढ़ने वालो अल्लाह के लिये अल्लाह के नाज़िल करदा दिन की तरफ़ रुजु करो| कुरान और सुन्नत की पैरवी करो और यही तुम्हारी और हम सबकी निजात हैं|


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