Paighamber Muhammad (saw) ki Shikshayen : Bandon Ke Adhikar

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पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षाएं : बन्दों के अधिकार

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रिश्तेदारों और क़रीबी लोगों के अधिकार:

‘‘रिश्तों को तोड़ने वाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।”
(बुख़ारी)
‘‘जो व्यक्ति यह पसन्द करे कि उसकी रोज़ी (आजीविका) में बढ़ोत्तरी हो और उसकी उम्र लम्बी हो तो वह रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करे।”  
(बुख़ारी)
‘‘तीन तरह के लोग स्वर्ग में नहीं जाएँगे। एक, हमेशा शराब पीनेवाला। दूसरा, रिश्ते–नातों को तोड़ने वाला। तीसरा, जादू पर यक़ीन करनेवाला।”
(अहमद)
‘‘उस क़ौम पर (अल्लाह की) रहमत (दयालुता) नहीं उतरती जिसमें रिश्तों को तोड़ने वाला मौजूद हो।”
(बैहक़ी)
‘‘जो तुमसे सम्बन्ध तोड़े तुम उससे सम्बन्ध जोड़ो! जो तुमपर अत्याचार करे तुम उसे क्षमा कर दो।”
(मिशकात)
‘‘रिश्ते–नाते जोड़ने वाला वह आदमी नहीं है जो बदले के तौर पर ऐसा करे। बल्कि रिश्ता जोड़ने वाला अस्ल में वह है जो इस हाल में भी रिश्ता जोड़े जबकि उसके साथ रिश्ता तोड़ने का व्यवहार किया जाए।”  
(बुख़ारी)
‘‘मिसकीन (दरिद्र) को सदक़ा (दान) देना केवल सदक़ा है और ग़रीब रिश्तेदार को सदक़ा देना सदक़ा भी है और रिश्ता निभाना भी।”
(नसाई, तिरमिज़ी)

पड़ोसी के अधिकार:

‘‘वह व्यक्ति जन्नत में नहीं जाएगा जिसकी बुराई और उपद्रवों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो।” 
(मुस्लिम)
‘‘जो अल्लाह और आख़िरत (मरने के बाद दोबारा ज़िन्दा किए जाने) पर ईमान रखता हो उसे अपने पड़ोसी से अच्छा व्यवहार करना चाहिए।”
(बुख़ारी)
‘‘वह मोमिन (ईमानवाला) नहीं जो पेट भरकर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रहे।”
(मिशकात) 
‘‘पड़ोसी का अधिकार तुमपर यह है कि अगर वह बीमार हो जाए तो उसकी बीमारपुर्सी करो, मर जाए तो उसके जनाज़े (क्रिया–कर्म) में शरीक हो, क़र्ज़ माँगे तो उसको क़र्ज़ दो, कोई ऐसा काम करे जो तुम्हें पसन्द न हो तो उसे अनदेखा कर दो,  उसे कोई ख़ुशी हासिल हो तो शुभकामनाएँ दो। तकलीफ़ पहुँचे तो तसल्ली दो। अपना मकान इस तरह ऊँचा न करो कि उसके घर की हवा रुक जाए। तुम्हारे घर पकनेवाली चीज़ों की गन्ध से उसे तकलीफ़ न पहुँचे। अगर खाने की सुगन्ध उसके घर पहुँचती हो तो जो कुछ तुमने पकाया है उसके घर भी भेजो।”
(तबरानी)

मेहमानों के अधिकार:

‘‘यह सुन्नत (पैग़म्बर सल्ल॰ का तरीक़ा) है कि आदमी अपने मेहमान के साथ घर के दरवाजे़ तक जाए।”
(इब्ने–माजा)
यह पूछने पर कि ‘‘इस्लाम की कौन–सी चीज़ अच्छी है?’’  पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘तुम खाना खिलाओ और सलाम करो चाहे तुम उसे पहचानते हो या न पहचानते हो।”
(बुख़ारी)
‘‘जो कोई अल्लाह और आख़िरत (मरने के बाद उठाए जाने) के दिन पर यक़ीन रखता हो तो उसे अपने मेहमान का आदर करना चाहिए। उसकी ख़ातिरदारी बस एक दिन और एक रात की है और मेहमानी तीन दिन और तीन रातों की। उसके बाद जो हो वह सदक़ा (दान) है और मेहमान के लिए जाइज़ नहीं कि वह अपने मेज़बान के पास इतने दिन ठहर जाए कि उसे तंग कर डाले।”
(बुख़ारी) 
एक व्यक्ति ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) की सेवा में हाज़िर होकर खाना माँगा। पैग़म्बर (सल्ल॰) ने उसके  खाने के लिए अपनी एक पत्नी के पास भेजा। वहाँ मालूम हुआ कि पानी के सिवा कुछ नहीं है। फिर उन्होंने एक–एक करके तमाम पत्नियों के पास भेजा और हर जगह से यही जवाब मिला। पैग़म्बर (सल्ल॰) के कहने पर एक सहाबी ने उसे अपना मेहमान बनाया, वे उसे अपने घर ले गए। पत्नी से मालूम हुआ कि बच्चों के भोजन के सिवा घर में कुछ नहीं है। पति के कहने पर पत्नी ने बच्चों को सुला दिया। जब मेहमान खाना खाने के लिए बैठे तो पत्नी ने दीया ठीक करने के बहाने बत्ती बुझा दी। मेहमान ने खाना खाया और मेज़बान उसके साथ बैठे यह ज़ाहिर करते रहे कि वे भी उनके साथ खा रहे हैं। हालाँकि वे रात–भर भूखे रहे। मेज़मान जब सबुह–सवेरे पैग़म्बर (सल्ल॰) की सेवा में हाज़िर हुआ तो पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘अल्लाह मेज़बान मर्द और औरत से राज़ी हो गया। उनके इस काम पर अल्लाह ने यह आयत (क़ुरआन 59:9) उतारी- “वे दूसरे ज़रूरतमन्दों को अपने आपपर प्राथमिकता देते हैं, अगरचे वे भूखे रह जाएँ।”
(मिशकात)

मालिक और नौकर के अधिकार:

‘‘ग़ुलाम (नौकर) का यह हक़ है कि उसे अच्छे तरीक़े से खाना और कपड़ा दिया जाए और उसकी ताक़त से ज़्यादा उससे काम न लिया जाए।”
(मुस्लिम)
‘‘जब किसी का सेवक खाना तैयार करके उसके पास लाए इस हाल में कि उसने गर्मी और धुएँ की तकलीफ़ सहन करके खाना तैयार किया है तो उसे पास बिठाकर अपने साथ खाना खिलाए। अगर खाना कम हो तो उसमें से कुछ सेवक को दे दे।”
(मुस्लिम)
‘‘ये (ग़ुलाम/सेवक) तुम्हारे भाई हैं, अल्लाह ने इनको तुमपर निर्भर कर दिया है। अल्लाह जिसके पास ऐसे सेवक को कर दे उसे चाहिए कि उसको वही खिलाए जो ख़ुद खाता हो और वही पहनाए जो ख़ुद पहनता हो, और उसको किसी ऐसे काम पर मजबूर न करे जो उसके बस से बाहर हो। अगर ऐसा काम उससे ले जो उसके बस से बाहर हो तो ख़ुद उस काम में उसकी मदद करे।”
(बुख़ारी, मुस्लिम)
एक आदमी ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से सवाल किया, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! हमें सेवक को कितनी बार क्षमा करना चाहिए?’’ वे चुप रहे। तीसरी बार पूछने पर पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘हर दिन सत्तर बार।”
(अबू–दाऊद)
‘‘अपने गु़लामों और उन लोगों के बारे में अल्लाह से डरो जो तुमपर निर्भर हैं (यानी उनके अधिकार अदा करते रहो)।”
(अबू–दाऊद)

कमजोरों और गरीबों के अधिकार:

‘‘मैं स्वर्ग के दरवाज़े पर खड़ा था। मैंने देखा कि उसमें अधिकतर ग़रीब लोग जा रहे हैं।”
(बुख़ारी)
‘‘मैंने स्वर्ग में झाँका तो देखा कि उसमें ग़रीबों की बहुतायत है।”
(बुख़ारी)
‘‘अल्लाह तआला अपने उस ईमानवाले बन्दे से प्रेम करता है जो ग़रीब और बाल-बच्चों वाला होने के बावजूद सवाल करने (भीख माँगने) से बचता है।”
(इब्ने–माजा)
‘‘तुम मुझे ग़रीब और कमज़ोर (निर्बल) लोगों में तलाशा करो (मैं उनके साथ रहता हूँ) उनकी वजह से तुम्हें रोज़ी मिलती है और तुम्हारी सहायता की जाती है।”
(तिरमिज़ी)
‘‘लोगो, भूखों को खाना खिलाओ! बीमारों का हाल मालूम करो! क़ैदियों को रिहा कराओ! सताए हुए लोगों की आह से बचो!’’  
(हदीस)
‘‘जिस किसी में तीन बातें पाई जाएँ अल्लाह उसकी मौत को सरल बना देता है और उसको स्वर्ग में प्रवेश करता है:
(1) कमज़ोरों के साथ नरमी
(2) माँ–बाप के साथ प्रेम और स्नेह
(3) सेवकों (और मातहतों) के साथ अच्छा व्यवहार।”
(तिरमिज़ी)
‘‘तुम्हें बूढ़ों और कमज़ोरों की वजह से ही अल्लाह की ओर से सहायता और रोज़ी (आजीविका) मिलती है।”
(बुख़ारी)
‘‘मैंने लोगों को इन दो कमज़ोरों- यतीम (अनाथ) और औरत– के अधिकारों के बारे में सख्त चेतावनी दी है।”
(हदीस)

विधवा और बे-सहारा औरतों के अधिकार:

‘विधवा और मिसकीन (दरिद्र) के लिए दौड़/धूप करनेवाला उस आदमी की तरह है जो अल्लाह की राह में जिहाद (संघर्ष) करता है।”
(बुख़ारी, मुस्लिम)
“अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) अल्लाह को बहुत याद करते, बेहूदा और व्यर्थ बातों में कभी दिलचस्पी न लेते, नमाज़ लम्बी करते और ख़ुतबा (तक़रीर) थोड़ा देते और वे इस बात को बुरा नहीं समझते थे कि ग़रीब, विधवा और मिसकीन के साथ चलकर जाएँ और उसकी ज़रूरत पूरी करें।”
(नसाई)
एक ग़रीब (बेसहारा) औरत बीमार हुई तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) को उसकी ख़बर दी गई।  अल्लाह के पैग़म्बर ग़रीबों  (बेसहारा लोगों) का हालचाल मालूम करते थे। पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, “जब उस (औरत) की मौत हो जाए तो मुझे ख़बर करना। रात को उसका जनाज़ा बाहर लाया गया (और उसे दफ़न किया गया)। पैग़म्बर (सल्ल॰) के साथियों ने उस समय अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) को जगाना उचित नहीं समझा। 
जब सुबह को अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) को उस ग़रीब औरत की मौत और जनाज़े के बारे में बताया गया तो पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘क्या मैंने तुम्हें आदेश नहीं दिया था कि मुझे उसकी मौत की सूचना देना?’’ 
सहाबा (रज़ि॰) ने कहा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! हमने उचित नहीं समझा कि रात के समय आपको जगाएँ (और घर से बाहर आने का कष्ट दें)। फिर पैग़म्बर (सल्ल॰) तशरीफ़ ले गए और उसकी क़ब्र पर लोगों को सफ़ (पंक्ति) में खड़ा किया और उसके जनाज़े पर चार तकबीरों के साथ मग़फ़िरत (क्षमा, मुक्ति और दया) की प्रार्थना की।
(नसाई)

यतीम (अनाथ) के अधिकार:

‘‘मैंने उन दो कमज़ोरों, अनाथ और औरत, के अधिकारों के बारे में (लोगों को) कड़ी चेतावनी दी है (कि उनका ध्यान रखा जाए)।”
(नसाई)
‘‘मुसलमानों के घरों में सबसे उत्तम घर वह है जिसमें कोई यतीम (अनाथ) हो जिसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए, और मुसलमानों के घरों में सबसे बुरा घर वह है जिसमें कोई यतीम हो और उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाए।”
(इब्ने–माजा)
एक आदमी ने अपने कठोर दिल होने की शिकायत अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से की। उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यतीम (अनाथ) के सिर पर (प्यार और सरपरस्ती का) हाथ फेरा करो और मिसकीनों (दरिद्रों) और ज़रूरतमन्दों को खाना खिलाया करो।
(अहमद)
‘‘मैं और अनाथ का लालन–पालन और सरपरस्ती करनेवाला दोनों स्वर्ग में इस तरह पास रहेंगे। पैग़म्बर (सल्ल॰) ने बीच की उँगली और शहादत की उँगली (तर्जनी) से इशारा करते हुए उसकी नज़दीकी बताई।”
(बुख़ारी)
एक व्यक्ति ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से पूछा, ‘‘मेरी सरपरस्ती में जो अनाथ है मैं उसको किस–किस कारण से (चेतावनी के लिए) दण्डित कर सकता हूँ ? “पैग़म्बर” (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘जिस–जिस वजह से तुम अपने बेटे को दण्ड देते हो (उसी तरह) अनाथ को भी दण्ड दे सकते हो। ख़बरदार, अपना माल बचाने के लिए अनाथ का माल बरबाद न करना और न उसके माल को अपनी जायदाद बना लेना!’’  
(तबरानी)

मज़दूरों के अधिकार:

‘‘मज़दूर का मेहनताना उसका पसीना सूखने से पहले दे दो!’’  
(इब्ने–माजा)
‘‘अल्लाह कहता है कि तीन तरह के लोग हैं जिनके विरुद्ध क़ियामत (प्रलय) के दिन मेरी ओर से मुक़द्दमा दायर होगा। एक वे लोग जिन्होंने मेरे नाम पर कोई समझौता किया, फिर बिना किसी उचित कारण के उसे तोड़ डाला। दूसरे वे जो किसी शरीफ़ और आज़ाद आदमी का अपहरण करें फिर उसे गु़लाम बनाकर बेचें। तीसरे वे लोग जो मज़दूर को काम पर लगाएँ, उससे पूरी मेहनत लें और उसकी मज़दूरी न दें।”
(बुख़ारी)
‘‘जो व्यक्ति किसी मज़दूर को मज़दूरी पर रखे तो उसे चाहिए कि उसकी मज़दूरी पहले ही बता दे।”
(अहमद)

बीमारों के अधिकार:

‘‘बीमार (रोगी) की बीमारपुरसी करनेवाला उसके पास से वापसी तक स्वर्ग के बाग़  में रहता है।”
(मुस्लिम)
‘‘जब तुम बीमार के पास जाओ तो उससे कहो, ‘अभी तुम्हारी उम्र बहुत है।’यह बात अल्लाह के किसी फ़ैसले को रद्द नहीं करेगी लेकिन इससे बीमार का दिल ख़ुश हो जाएगा।”
(तिरमिज़ी)
अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) जब किसी बीमार का हाल मालूम करने जाते तो यह दुआ करते, ‘‘ऐ लोगों के रब! बीमारी की सख़ती को इससे दूर कर दे, इसको ऐसी शिफ़ा (रोग–मुक्ति) दे जो किसी बीमारी को न छोड़े तू शिफ़ा देनेवाला है, तेरे सिवा और कोई इसे ठीक नहीं कर सकता।”
(मुस्लिम)
‘‘तुम बीमार की देखभाल करो, भूखे को खाना खिलाओ और (बे–क़ुसूर) क़ैदी को (हवालात या जेल से) छुड़ाने का प्रबन्ध करो।”
(बुख़ारी)
‘‘क़ियामत (प्रलय) के दिन अल्लाह एक आदमी से कहेगा, ‘ऐ आदम के बेटे, मैं बीमार था तू मेरा हाल मालूम करने के लिए नहीं आया।‘
वह कहेगा, ‘ऐ मेरे रब! मैं तेरी बीमारपुर्सी को कैसे आता? तू तो सारी दुनिया का पालनहार है (बीमार होना तो तेरी शान के ख़िलाफ़ है)’
अल्लाह कहेगा, ‘क्या तुझे नहीं पता था कि मेरा अमुक बन्दा बीमार पड़ा था? मगर तू उसका हाल पूछने नहीं गया था। क्या तुझे मालूम नहीं था कि अगर तू उसका हाल मालूम करने जाता तो मुझे उस (बीमार) के पास पाता?  ऐ आदम के बेटे, मैंने तुझसे खाना माँगा, तूने मुझे नहीं खिलाया।’
बन्दा कहेगा, ‘ऐ मेरे रब! मैं तुझे कैसे खिला सकता हूँ, जबकि तू सारे जहान का पालनहार है?’
अल्लाह कहेगा, ‘तुझे पता नहीं कि मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे खाना माँगा था, मगर तूने उसे नहीं खिलाया, अगर तू उसे खिलाता तो उस समय मुझे उसके पास पाता। ऐ आदम के बेटे, मैंने तुझसे पानी माँगा, तूने मुझे पानी नहीं पिलाया।
बन्दा कहेगा, ‘ऐ मेरे रब! मैं तुझे कैसे पिला सकता हूँ? तू तो सारे जहान का पालनहार है।‘ अल्लाह कहेगा,‘तुझसे मेरे अमकु बन्दे ने पानी माँगा था, तूने उसे पाली नहीं पिलाया, याद रख, अगर तूने उसे पानी पिलाया होता तो मुझे उस समय उसके पास पाता।’ 
(मुस्लिम)

अपनों से बड़ो के अधिकार:

‘‘वह व्यक्ति हममें से नहीं जो बड़ों का आदर न करे, और छोटों से स्नेह का बरताव न करे।”
(अहमद, तिरमिज़ी)
‘‘लोगों को उनके स्थान और मंसब (पद) पर रखो (यानी उम्र के हिसाब से उनका आदर–सम्मान करो)।“
(अबू–दाऊद)
‘‘सवार व्यक्ति पैदल चलनेवाले को सलाम करे, पैदल चलनेवाला बैठे हुए व्यक्ति को सलाम करे, छोटा गरोह बड़े गरोह को सलाम करे और छोटा (कम उम्र व्यक्ति) अपने बड़े को सलाम करे।”
(बुख़ारी)
‘‘जो व्यक्ति किसी बूढ़े का आदर उसके बुढ़ापे  की वजह से करेगा, अल्लाह ऐसे व्यक्ति के बुढ़ापे के समय ऐसे आदमी को नियुक्त कर देगा जो उसका आदर करेगा।”
(तिरमिज़ी)

रास्तों के अधिकार:

‘‘रास्तों से कष्टदायक चीज़ों को हटा देना भी सदक़ा (नेकी) है।”
(बुख़ारी)
‘‘मैंने स्वर्ग में एक व्यक्ति को देखा जो अपनी मर्ज़ी से उसकी (स्वर्ग की) नेमतों और लज़्ज़तों का मज़ा ले रहा था। इसलिए कि उसने रास्ते से एक ऐसे पेड़ को काट दिया था जिससे गुज़रनेवालों को कष्ट होता था।”
(मुस्लिम)
‘‘रास्तों पर बैठने से बचो! अगर वहाँ बैठने की मजबूरी ही है तो रास्ते का हक़ भी अदा करो!’’ सहाबा (रज़ि॰) ने पूछा, ‘‘रास्ते का हक़ क्या है? ’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘निगाहें (दृष्टि) नीची रखना, किसी को तकलीफ़ देने से बचना, सलाम का जवाब देना,  अच्छी बातों के लिए लोगों को नसीहत करना और बुरी बातों से रोकना।”
(बुख़ारी)

जानवरों के अधिकार:

अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने (जानवरों के) मुँह पर मारने और चेहरे पर दाग़  लगाने से मना किया है।”
(हदीस : मुस्लिम)
‘‘कोई किसी पक्षी या उससे छोटे–बड़े पशु और पक्षी को अकारथ मार डालेगा तो अल्लाह उस व्यक्ति से प्राण लेने के बारे में पूछ-गच्छ करेगा।”
(अहमद, नसाई)
‘‘क्या तुम उस जानवर के बारे में अल्लाह से डरते नहीं जिसको अल्लाह ने तुम्हारे अधिकार में दे रखा है? क्योंकि वह मुझसे शिकायत करता है कि तुम उसे भूखा रखते हो और हमेशा उस (जानवर) से मेहनत का काम लेते हो।”
(मुस्लिम)
हज़रत अब्दुर्रहमान–बिन–अब्दुल्लाह (रज़ि॰) अपने बाप से बयान करते हैं कि एक सफ़र में हम अल्लाह के  पैग़म्बर (सल्ल॰) के साथ थे। आप (सल्ल॰) शौच के लिए गए, इसी बीच हमने एक छोटी–सी चिड़िया देखी जिसके दो छोटे बच्चे भी थे, हमने उन (सुन्दर) बच्चों को पकड़ लिया। वह चिड़िया आई और हमारे सिर पर मंडराने लगी। इसी बीच अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) तशरीफ़ लाए और फ़रमाया, ‘‘किसने इसके बच्चों को पकड़ कर इसको तकलीफ़ पहुँचाई, इसके बच्चे वापस कर दो!’’
(अबू–दाऊद)
‘‘एक औरत पर इसलिए यातना हुई कि उसने एक बिल्ली को क़ैद कर रखा था। यहाँ तक कि वह (बिल्ली) इसी हालत में मर गई। इसी वजह से वह औरत (नरक की) आग में दाख़िल हुई, वह न ख़ुद बिल्ली को खाने–पीने के लिए देती थी और न उसे छोड़ती थी कि वह ज़मीन के कीड़े–मकोड़े खा ले।”
(बुख़ारी)
अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने ऐसे लोगों पर लानत (फटकार) भेजी है जो किसी जानदार को निशाना बनाएँ (यानी उसपर निशाने बाज़ी का अभ्यास करें)।
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘एक आदमी रास्ते पर चल रहा था। उसे ज़ोर की प्यास लगी। उसे एक कुआँ मिला, उसने कुँए में उतरकर पानी पिया। बाहर निकलकर देखता है कि एक कुत्ता ज़बान निकाले हाँफ रहा है, (अपनी प्यास बुझाने के लिए) गीली मिट्टी खा रहा है। उस आदमी ने देखा कि प्यास से उसकी हालत इस तरह हो गई है जैसी हालत उसकी हो गई थी। फिर वह कुँए में उतरा और अपनी जुराबों को पानी से भर लिया और बाहर निकलकर कुत्ते को पिला दिया। इस (कर्म) पर अल्लाह ने उसकी क़द्र की और उसको क्षमा कर दिया।  लोगों ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! क्या जानवरों के मामले में भी हमारे लिए अच्छा बदला है?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘हर तर-जिगर (जानदार) में (तुम्हारे लिए) अच्छा बदला है।”
(बुख़ारी, मुस्लिम)

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