Pavitra Qur’an aur Bhoorna Vigyan

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पवित्र क़ुरआन और भ्रूण विज्ञान

embroylogyयमन के प्रसिद्ध ज्ञानी ,शैख़ अब्दुल मजीद अल ज़न्दानी के नेतृत्व में मुसलमान स्कालरों के एक समूह ने भ्रूण विज्ञान (Embryology) और दूसरे वैज्ञानिक विषयों के बारे में पवित्र क़ुरआन और विश्वस्नीय हदीस ग्रंथों से जानकारियां इकट्ठी की और उनका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। फिर उन्होंने पवित्र क़ुरआन की एक सलाह पर काम किया:

ऐ पैग़म्बर! हमने तुमसे पहले भी जब कभी रसूल संदेशवाहक भेजे हैं आदमी ही भेजे हैं जिनकी तरफ हम अपने संदेश को वह्रा किया करते थे सारे चर्चा करने वालों से पूछ लो अगर तुम स्वयं नहीं जानते।(अल-क़ुरआन:सूरः16 आयत 43)

जब पवित्र क़ुरआन और प्रमाणिक हदीसों से भ्रूण विज्ञान के बारे में प्राप्त की गई जानकारी एकत्रित होकर अंग्रेज़ी में अनुदित हुई तो उन्हें प्रोफे़सर ड़ा. कैथमूर के सामने पेश किया गया। ड़ा. कैथमूर टोरॉन्टो विश्वविद्यालय कनाडा में शरीर रचना विज्ञान विभाग के संचालक और भू्रण विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं। आज कल वह प्रजनन विज्ञान के क्षेत्र में अधिकृत विज्ञान की हैसियत से विश्व विख्यात व्यक्ति हैं। उनसे कहा गया है कि वह उनके समक्ष प्रस्तुत शोध पत्र पर अपनी प्रतिक्रिया दें। गम्भीर अध्ययन के बाद डॉ. कैथमूर ने कहा भ्रूण के संदर्भ से क़ुरआन की आयतों और हदीस के ग्रंथों में बयान की गई तक़रीबन तमाम जानकारियां ठीक आधुनिक विज्ञान की खोजों के अनुकूल हैं। आधुनिक प्रजनन विज्ञान से उनकी भरपूर सहमति है और वह किसी भी तरह आधुनिक प्रजनन विज्ञान से असहमत नहीं हैं। उन्होंने आगे बताया कि अलबत्ता कुछ आयतें ऐसी भी हैं जिनकी वैज्ञानिक विश्वस्नीयता के बारे में वह कुछ नहीं कह सकते। वह यह नहीं बता सकते कि वह आयतें विज्ञान की अनुकूलता में सही अथवा ग़लत हैं, क्योंकि खुद उन्हें उन आयतों में दी गई जानकारी के संदर्भ का कोई ज्ञान नहीं। उनके संदर्भ से प्रजनन के आधुनिक अध्ययन और शोध प़त्रों में भी कुछ उप्लब्ध नहीं था ‘‘।

ऐसी ही एक पवित्र आयत निम्नलिखित हैः

‘‘पढ़ो (ऐ नबी ) अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया, जमे हुए रक्त के एक थक्के से मानव जाति की उत्पत्ति की‘‘। (अल-क़ुरआन: सूर 96 आयात 1 से 2 )

यहां अरबी शब्द अलक प्रयुक्त हुआ है जिसका एक अर्थ तो ,रक्त का थक्का है जब कि दूसरा अर्थ कोई ऐसी वस्तु है जो, चिपट जाती हो यानि जोंक जैसी कोई वस्तु डॉ. कैथमूर को ज्ञान नहीं था कि गर्भ के प्रारम्भ में भ्रूण (imbryo) का स्वरूप जोंक जैसा होता है या नहीं। यह मालूम करने के लिये उन्होंने बहुत शक्तिशाली और अनुभूतिशील यंत्रों की सहायता से, भ्रूण (imbryo) के प्रारिम्भक स्वरूप का एक और गम्भीर अध्ययन किया तत्पश्चात उन चित्रों की तुलना जोंक के चित्रांकन से की वह उन दोनों के मध्य असाधारण समानता देख कर आश्चर्यचकित रह गये। इसी प्रकार उन्होंने भ्रूण विज्ञान के बारे में अन्य जानकारियां भी प्राप्त की जो पवित्र क़ुरआन से ली गयी थीं और अब से पहले वह इस से परिचित नहीं थे।

भ्रूण के बारे में ज्ञान से संबंधित जिन प्रश्नों के उत्तर डॉ. कैथमूर ने क़ुरआन और हदीस से प्राप्त सामग्री के आधार पर दिये उनकी संख्या 80 थी। क़ुरआन व हदीस में प्रजनन की प्रकृति से संबंधित उप्लब्ध ज्ञान केवल आधुनिक ज्ञान से परस्पर सहमत ही नहीं बल्कि डॉ0 कैथमूर अगर आज से तीस वर्ष पहले मुझसे यही सारे प्रश्न करते तो वैज्ञानिक जानकारी के आभाव में:मै इनमें से आधे प्रश्नों के उत्तर भी नही दे सकता था।

1981 ई0 में दम्माम (सऊदी अरब ) में आयोजित ‘‘सप्तम चिकित्सा‘‘ सम्मेलन, में डॉ0 मूर ने कहां,, ‘‘मेरे लिये बहुत ही प्रसन्नता की स्थिति है कि मैंने पवित्र क़ुरआन में उप्लब्ध ‘गर्भावधि में मानव के विकास‘ से सम्बंधित सामग्री की व्याख्या करने में सहायता की। अब मुझ पर यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सारा विज्ञान पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व. तक ख़ुदा या अल्लाह ने ही पहुंचाया है क्योंकि कमोबेश यह सारा ज्ञान पवित्र क़ुरआन के अवतरण के कई सदियों बाद ढूंडा गया था।

इससे भी सिद्ध होता है कि मुहम्मद निसन्देह अल्लाह के रसूलः संदेशवाहक ही थे । इस घटना से पूर्व ड़ॉ0 कैथमूर‘ The developing human विकासशील मानव‘ नामक पुस्तक लिख चुके थे। पवित्र क़ुरआन से नवीन ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद उन्होंने 1982 ई0 में इस पुस्तक का तीसरा संस्करण तैयार किया। उस संस्करण को वैश्विक शाबाशी और ख्याति मिली और उसे वैश्विक धरातल पर सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पुस्तक का सम्मान भी प्राप्त हुआ। उस पुस्तक का अनुवाद विश्व की कई बड़ी भाषाओं में किया गया और उसे चिकित्सा विज्ञान पाठयक्रम के प्रथम वर्ष में चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों को अनिवार्य पुस्तक के रूप में पढ़ाया जाता है।

डॉ0 जोहम्पसन बेलर कॉलिज ऑफ़ मेडिसिन ह्युस्टन, अमरीका में ‘‘गर्भ एवं प्रसव विभाग obstearics and gynaecology के अध्यक्ष हैं। उनका कथन है यह मुहम्मद स.अ.व. की हदीस में कही हुई बातें किसी भी प्रकार लेखक के काल ,7 वीं सदी ई. में उप्लब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर पेश नहीं की जासकती थीं इससे न केवल यह ज्ञात हुआ कि ‘‘अनुवांशिक genetics और मज़हब यानी इसलाम में कोई भिन्नता नहीं है बल्कि यह भी पता चला कि इस्लाम मज़हब इस प्रकार से विज्ञान का नेतृत्व कर सकता है कि परम्पराबद्ध वैज्ञानिक दूरदर्शिता में कुछ इल्हामी रहस्यों को भी शामिल करता चला जाए। पवित्र क़ुरआन में ऐसे बयान मौजूद हैं जिनकी पुष्टि कई सदियों बाद हुई है। इससे हमारे उस विश्वास को शक्ति मिलती है कि पवित्र क़ुरआन में उप्लब्ध ज्ञान वास्तव में अल्लाह की ओर से ही आया है।‘‘

रीढ़ की हडडी और पस्लियों के बीच से रिसने वाली बूंद

‘‘फिर ज़रा इन्सान यही देख ले कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया। एक उछलने वाले पानी से पैदा किया गया है, जो पीठ और सीने की हड़डियों के बीच से निकलता है।‘‘(अल-क़ुरआन.सूर 86 आयत .5 से .7 )

प्रजनन अवधि में संतान उत्पन्न करने वाले जनांगों यानि‘ अण्डग्रंथि: testicles और अण्डाशय ovary ‘गुर्दो (kidnies) के पास से ‘‘मेरूदण्ड: spinal cord और ग्यारहवीं बारहवीं पस्लियों के बीच से निकलना प्रारम्भ करते हैं इसके बाद वह कुछ नीचे उतर आते हैं। ‘‘महिला प्रजनन ग्रंथिया (gonads) यानि गर्भाशय पेडू (pelvis) में रूक जाती हैं जबकि पुरूष जनांग वंक्षण नली (Inguinal Canal) के मार्ग से अण्डकोष (scrotum) तक जा पहुंचते हैं यहां तक कि व्यस्क होने पर जबकि प्रजनन ग्रंथियों के नीचे सरकने की क्रिया रूक चुकी होती है। उन ग्रंथियों में उदरीय महाधमनी (abdominal aorta) के माध्यम से रक्त और स्नायु समूह का प्रवेश क्रम जारी रहता है, ध्यान रहे ‘कि उदरीय महाधमनी (abdominal aorta) रीढ़ की हड़डी और पस्लियों के बीच होती है। लसीका निकास (Lymphetic Drainage) और धमनियों में रक्त प्रवाह भी इसी दिशा में होता है।

शुक्राणु (न्यूनतम द्रव)

पवित्र क़ुरआन में कम से कम ग्यारह बार दुहराया गया है कि मानव जाति की रचना‘ वीर्य “नुत्फ़ा” से की गई है जिसका अर्थ द्रव का न्युनतम भाग है। यह बात पवित्र क़ुरआन की कई आयतों में बार बार आई है जिन में सूरः 22 आयत 15 और सूरः 23 आयत 13 के अलावा सूर: 16 आयत 14, सूर: 18 आयत .37, सूर: 35 आयत. 11, सूरः 36 आयत 77, सूरः 40 आयत .67, सूर: 53 आयत 46, सूर: 76 आयत .2, और सूर: 80 आयत .19 शामिल हैं।

विज्ञान ने हाल ही में यह खोज निकाला है कि ‘‘अण्डाणु (ovum) को काम में लाने के लिये औसतन तीस लाख वीर्य‘ शुक्राणु (sperms) में से सिर्फ़ एक की आवश्यकता होती है। अर्थ यह हुआ कि स्खलित होने वाली वीर्य की मात्रा का तीस लाखवां भाग या 1/30,000,00 प्रतिशत मात्रा ही गर्भाधान के लिये पर्याप्त होता है।

सुलाला (प्रारम्भिक द्रव के गुण)

‘‘ फिर उसकी नस्ल एक ऐसे रस से चलाई जो तुच्छ जल की भांति है‘‘(अल-क़ुरआन: सूर: 22 आयत .8)

अरबी शब्द ‘सुलाला‘ से तात्पर्य किसी द्रव का सर्वोत्तम अंश है। सुलाला का शाब्दिक अर्थ‘ नवजात शिशु‘‘ भी है। अब हम जान चुके हैं कि स्त्रैन अण्डे की तैयारी के लिये पुरूष द्वारा स्खलित लाखों करोडो़ वीर्य शुक्राणुओं में से सिर्फ़ एक की आवश्यकता होती है। लाखों करोड़ों में से इसी एक वीर्य शुक्राणु (sperm) को पवित्र क़ुरआन ने ‘सुलाला‘ कहा है। अब हमें यह भी पता चल चुका है कि महिलाओं में उत्पन्न हज़ारों ‘अण्डाणुओं‘ (ovam) में से केवल एक ही सफल होता है। उन हज़ारों अंडों में से किसी एक कर्मशील और योग्य अण्डे के लिये पवित्र क़ुरआन ने सुलाला शब्द का प्रयोग किया है। इस शब्द का एक और अर्थ भी है किसी द्रव के अंदर से किसी रस विशेष का सुरक्षित स्खलन। इस द्रव का तात्पर्य पुरूष और महिला दोनों प्रकार के प्रजनन द्रव भी हैं जिनमें लिंगसूचक ‘युग्मक (gametes) (वीर्य) मौजूद होते है। गर्भाधान की अवधि में स्खलित वीर्यों से दोनों प्रकार के अंडाणु ही अपने-अपने वातावरण से सावधानी पूर्वक बिछड़ते हैं।

संयुक्त वीर्य (परस्पर मिश्रित द्रव)

‘‘हम ने मानव को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया ताकि उसकी परीक्षा लें और इस उद्देश्य की पूर्त्ति के लिये हमने उसे सुनने और देखने वाला बनाया‘‘ । (अल-क़ुरआन सूर 76 आयत 2)

अरबी शब्द ‘नुत्फ़तिन इम्शाज‘‘ का अर्थ मिश्रित द्रव है। कुछेक ज्ञानी व्याख्याताओं के अनुसार मिश्रित द्रव का तात्पर्य पुरूष और महिला के प्रजनन द्रव हैं: पुरूष और महिला के इस द्वयलिंगी मिश्रित वीर्य को ‘‘युग्मनर्ज (Zygote) जुफ़्ता कहते हैं जिसका पूर्व स्वरूप भी वीर्य ही होता है। परस्पर मिश्रित द्रव का एक दूसरा अर्थ वह द्रव भी हो सकता हैं। जिसमें संयुक्त या मिश्रित वीर्य शुक्राणु या वीर्य अण्डाणु तैरते रहते है। यह द्रव कई प्रकार के शारिरिक रसायनों से मिल कर बनता है जो कई शारिरिक ग्रंथियों से स्खलित होता है। इस लिये ‘नुत्फ़ा ए इम्शाजः संयुक्त वीर्य‘ यानि परस्पर मिश्रित द्रव के माध्यम से बने नवीन पुलिगं या स्न्नीलिगं वीर्य द्रव्य या उसके चारों ओर फैले द्रव्यों की ओर संकेत किया जा रहा है।

लिंग का निर्धारण

परिपक्व, भ्रूण (Foetus) के लिगं का निर्धारण यानि उससे लड़का होगा या लड़की ?

स्खलित वीर्य शुक्रणुओं से होता है न कि अण्डाणुओं से। अर्थात मां के गर्भाशय में ठहरने वाले गर्भ से लड़का उत्पन्न होगा यह क्रोमोजो़म के 23 वें जोड़े में क्रमशः xx/xy वर्णसूत्रः Chromosome अवस्था पर होता है। प्रारिम्भक तौर पर लिगं का निर्धारण समागम के अवसर पर हो जाता है और वह स्खलित वीर्य शुक्राणुओं Sperm के काम वर्णसूत्रः Sex Chromosome पर होता है जो अण्डाणुओं की उत्पत्ति करता है। अगर अण्डे को उत्पन्न करने वाले शुक्राणुओं में X वर्णसूत्र हैः तो ठहरने वाले गर्भ से लड़की पैदा होगी। इसके उलट अगर शुक्राणुओं में Y वर्णसूत्र है तो ठहरने वाले गर्भ से लड़का पैदा होगा ।

‘‘और यह कि उसी ने नर और मादा का जोड़ा पैदा किया, एक बूंद से जब वह टपकाई जाती है‘‘।(अल-क़ुरआनः सूरः 53 आयात 45 से 46 )

यहां अरबी शब्द नुत्फ़ा का अर्थ तो द्रव की बहुत कम मात्रा है जबकि ‘तुम्नी‘ का अर्थ तीव्र स्खलन या पौधे का बीजारोपण है। इस लिये नुतफ़ः वीर्य मुख्यता शुक्राणुओं की ओर संकेत कर रहा है क्योंकि यह तीव्रता से स्खलित होता है, पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता हैः

‘‘क्या वह एक तुच्छ पानी का जल वीर्य नहीं था जो माता के गर्भाशय में टपकाया जाता है? फिर वह एक थक्का । लोथड़ा बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंगों को ठीक किया, फिर उससे दो प्रकार के (मानव) पुरूष और महिला बनाए ।(अल-कुरआन:सूर:75 आयत .37 से 39 )

ध्यान पूर्वक देखिए कि यहां एक बार फिर यह बताया गया है कि बहुत ही न्यूनतम मात्रा ( बूंदों ) पर आधारित प्रजनन द्रव जिसके लिये अरबी शब्द ‘‘नुत्फतम्मिन्नी‘‘ अवतरित हुआ है जो कि पुरूष की ओर से आता है और माता के गर्भाशय में बच्चें के लिंग निर्धारण का मूल आधार है।

उपमहाद्वीप में यह अफ़सोस नाक रिवाज है कि आम तौर पर जो महिलाएं सास बन जाती हैं उन्हें पोतियों से अघिक पोतों का अरमान होता है अगर बहु के यहां बेटों के बजाए बेटियां पैदा हो रहीं हैं तो वह उन्हें ‘‘पुरूष संतान‘‘ पैदा न कर पाने के ताने देती हैं अगर उन्हें केवल यही पता चल जाता है कि संतान के लिंग निर्धारण में महिलाओं के अण्डाणुओं की कोई भूमिका नहीं और उसका तमाम उत्तरदायित्व पुरूष वीर्यः शुक्राणुओं पर निर्भर होता है और इसके बावजूद वह ताने दें तो उन्हें चाहिए कि वह ‘‘पुरूष संतान‘‘ न पैदा होने परः अपनी बहुओं के बजाए बपने बेटों को ताने दें या कोसें और उन्हें बुरा भला कहें। पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान दोनों ही इस विचार पर सहमत हैं के बच्चे के लिंग निर्धारण में पुरूष शुक्राणुओं की ही ज़िम्मेदारी है तथा महिलाओं का इसमें कोई दोष नहीं।

तीन अंधेरे पर्दों में सुरक्षित ,‘उदर‘

‘‘उसी ने तुम को एक जान से पैदा किया। फिर वही है जिसने उस जान से उसका जोडा बनाया और उसी ने तुम्हारे लिये मवेशियों में से आठ नर और मादा पैदा किये और वह तुम्हारी मांओं के ‘उदरोंरः पेटो‘ ,में तीन तीन अंधेरे परदों के भीतर तुम्हें एक के बाद एक स्वरूप देता चला जाता है। यही अल्लाह (जिसके यह काम हैं )तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है कोई मांबूद (पूजनीय) उसके अतिरिक्त नहीं है‘‘।(अल-क़ुरआन सूर 39 आयत 6)

प्रोफ़ेसर डॉ. कैथमूर के अनुसार पवित्र क़ुरआन में अंधेरे के जिन तीन परदों कीचर्चा की गई है वह निम्नलिखित हैं :

1- मां के गर्भाशय की अगली दीवार

2- गर्भाशय की मूल दीवार

3- भ्रूण का खोल या उसके ऊपर लिपटी झिल्ली

भ्रूणीय अवस्थाएं

‘‘हम ने मानव को मिट्टी के, रस: ‘सत से बनाया फिर उसे एक सुरक्षित स्थल पर टपकी हुई बूंद में परिवर्तित किया, फिर उस बूंद को लोथडे़ का स्वरूप दिया, तत्पश्चात लोथड़े को बोटी बना दिया फिर बोटी की हडिडयां बनाई, फिर हड्रि़ड़यों पर मांस चढ़ाया फिर उसे एक दूसरा ही रचना बना कर खडा़ किया बस बड़ा ही बरकत वाला है अल्लाह: सब कारीगरों से अच्छा कारीगर‘‘ ।(अल-क़ुरआन: सूर:23 आयात .12 से 14 )

इन पवित्र आयतों में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं कि मानव को द्रव की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा से बनाया गया अथवा सृजित किया गया है, जिसे विश्राम:Rest स्थल में रख दिया जाता है यह द्रव उस स्थल पर मज़बूती से चिपटा रहता है। यानि स्थापित अवस्था में, और इसी अवस्था के लिये पवित्र क़ुरआन में ‘क़रार ए मकीन‘ का गद्यांश अवतरित हुआ है। माता के गर्भाशय के पिछले हिस्से को रीढ़ की हडड़ी और कमर के पटठों की बदौलत काफ़ी सुरक्षा प्राप्त होती हैं उस भ्रूण को अनन्य सुरक्षा‘‘ प्रजनन थैली:Amniotic Sac से प्राप्त होती है जिसमें प्रजनन द्रवः Amnioic Fluid भरा होता है अत: सिद्ध हुआ कि माता के गर्भ में एक ऐसा स्थल है जिसे सम्पूर्ण सुरक्षा दी गई है।द्रव की चर्चित न्यूनतम मात्रा ‘अलक़ह‘ के रूप में होती है यानि एक ऐसी वस्तु के स्वरूप में जो ‘‘चिमट जाने‘‘ में सक्षम है। इसका तात्पर्य जोंक जैसी कोई वस्तु भी है। यह दोनों व्याख्याएं विज्ञान के आधार पर स्वीकृति के योग्य हैं क्योंकि बिल्कुल प्रारम्भिक अवस्था में भ्रूण वास्तव में माता के गर्भाशय की भीतरी दीवार से चिमट जाता है जब कि उसका बाहरी स्वरूप भी किसी जोंक के समान होता है।

इसकी कार्यप्रणाली जोंक की तरह ही होती है क्योंकि, यह ‘आवल नाल‘‘ के मार्ग से अपनी मां के शरीर से रक्त प्राप्त करता और उससे अपना आहार लेता है। ‘अलक़ह‘ का तीसरा अर्थ रक्त का थक्का है। इस अलक़ह वाले अवस्था से जो गर्भ ठहरने के तीसरे और चौथे सप्ताह पर आधारित होता है बंद धमनियों में रक्त जमने लगता है।

अतः भ्रूण का स्वरूप केवल जोंक जैसा ही नहीं रहता बल्कि वह रक्त के थक्के जैसा भी दिखाई देने लगता है। अब हम पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त ज्ञान और सदियों के संधंर्ष के बाद विज्ञान द्वारा प्राप्त आधुनिक जानकारियों की तुलना करेंगे। 1677 ई0 हेम और ल्यूनहॉक ऐसे दो प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने खुर्दबीन: Microscope से वीर्य शुक्राणुओं का अध्ययन किया था। उनका विचार था कि शुक्राणुओं की प्रत्येक कोशिका में एक छोटा सा मानव मौजूद होता है जो गर्भाशय में विकसित होता है और एक नवजात शिशु के रूप में पैदा होता है। इस दृष्टिकोण को ,छिद्रण सिद्धान्त:Perforation Theory भी कहा जाता है। कुछ दिनों के बाद जब वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला कि महिलाओं के अण्डाणु, शुक्राणु कोशिकाओं से कहीं अधिक बडे़ होते हैं तो प्रसिद्ध विशेषज्ञ डी ग्राफ़ सहित कई वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू कर दिया कि अण्डे के अंदर ही मानवीय अस्तित्व सूक्ष्म अवस्था में पाया जाता है। इसके कुछ और दिनों बाद, 18 वीं सदी ईसवी में मोपेशस:उंनचमपजपनेण् नामक वैज्ञानिक ने उपरोक्त दोनों विचारों के प्रतिकूल इस दृष्टिकोण का प्रचार शुरू किया कि, कोई बच्चा अपनी माता और पिता दोनों की ‘संयुक्त विरासत:Joint inheritance का प्रतिनिधि होता है । अलक़ह परिवर्तित होता है और ‘‘मज़ग़ता‘‘ के स्वरूप में आता है, जिसका अर्थ है कोई वस्तु जिसे चबाया गया हो यानि जिस पर दांतों के निशान हों और कोई ऐसी वस्तु हो जो चिपचिपी (लसदार) और सूक्ष्म हों, जैसे च्युंगम की तरह मुंह में रखा जा सकता हो। वैज्ञानिक आधार पर यह दोनों व्याख्याएं सटीक हैं। प्रोफ़ेसर कैथमूर ने प्लास्टो सेन: रबर और च्युंगम जैसे द्रव ,का एक टुकड़ा लेकर उसे प्रारम्भिक अवधि वाले भ्रूण का स्वरूप दिया और दांतों से चबाकर ‘मज़गा‘ में परिवर्तित कर दिया। फिर उन्होंने इस प्रायोगिक ‘मज़ग़ा‘ की संरचना की तुलना प्रारम्भिक भू्रण:Foetus के चित्रों से की इस पर मौजूद दांतों के निशान मानवीय ‘मज़ग़ा पर पड़े कायखण्ड:Somites के समान थे जो गर्भ में ‘मेरूदण्ड:Spinal Cord के प्रारिम्भक स्वरूप को दर्शाते हैं।

अगले चरण में यह मज़ग़ा परिवर्तित होकर हड़डियों का रूप धारण कर लेता है। उन हड्रडियों के गिर्द नरम और बारीक मांस या पटठों का ग़िलाफ़ (खोल) होता है फ़िर अल्लाह तआला उसे एक बिल्कुल ही अलग जीव का रूप दे देता है।

अमरीका में थॉमस जिफ़र्सन विश्वविद्यालय, फ़िलाडॅल्फ़िया के उदर विभाग में अध्यक्ष, दन्त संस्थान के निदेशक और अधिकृत वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर मारशल जौंस से कहा गया कि वह भू्रण विज्ञान के संदर्भ से पवित्र क़ुरआन की आयतों की समीक्षाकरें। पहले तो उन्होंने यह कहा कि कोई असंख्य प्रजनन चरणों की व्याख्या करने वाली क़ुरआनी आयतें किसी भी प्रकार से सहमति का आधार नहीं हो सकतीं और हो सकता है कि पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. के पास बहुत ही शक्तिशाली खुर्दबीन Microscope रहा हो। जब उन्हें यह याद दिलाया गया कि पवित्र क़ुरआन का नज़ूलः अवतरण 1400 वर्ष पहले हुआ था और विश्व की पहली खु़र्दबीन Microscope भी हज़रत मुहम्मद स.अ.व. के सैंकडों वर्ष बाद अविष्कृत हुई थी तो प्रोफ़ेसर जौंस हंसे और यह स्वीकार किया कि पहली अविष्कृत ख़ुर्दबीन भी दस गुणा ज़्यादा बड़ा स्वरूप दिखाने में समक्ष नहीं थी और उसकी सहायता से सूक्ष्म दृश्य को स्पष्ट रूप में नहीं देखा जा सकता था। तत्पश्चात उन्होंने कहा: फ़िलहाल मुझे इस संकल्पना में कोई विवाद दिखाई नहीं देता कि जब पैग़म्बर मोहम्मद स0अ0व0 ने पवित्र क़ुरआन की अयतें पढ़ीं तो उस समय विश्वस्नीय तौर पर कोई आसमानी (इल्हामी )शक्ति भी साथ में काम कर रही थी।

ड़ॉ. कैथमूर का कहना है कि प्रजनन विकास के चरणों का जो वर्गीकरण सारी दुनिया में प्रचलित है, आसानी से समझ में आने वाला नहीं है, क्योंकि उसमें प्रत्येक चरण को एक संख्या द्वारा पहचाना जाता है जैसे चरण संख्या,,1, चरण संख्या,,2 आदि। दूसरी ओर पवित्र क़ुरआन ने प्रजनन के चरणों का जो विभाजन किया है उसका आधार पृथक और आसानी से चिन्हित करने योग्य अवस्था या संरचना पर हैं यही वह चरण हैं, जिनसे कोई प्रजनन एक के बाद एक ग़ुजरता है इसके अलावा यह अवस्थाएं (संरचनाएं) जन्म से पूर्व, विकास के विभिन्न चरणों का नेतृत्व करतीं हैं और ऐसी वैज्ञानिक व्याख्याए उप्लब्ध करातीं हैं जो बहुत ही ऊंचे स्तर की तथा समझने योग्य होने के साथ साथ व्यवहारिक महत्व भी रखतीं हैं। मातृ गर्भाशय में मानवीय प्रजनन विकास के विभिन्न चरणों की चर्चा निम्नलिखित पवित्र आयतों में भी समझी जा सकती हैं:

‘‘क्या वह एक तुच्छ पानी का वीर्य न था जो (मातृ गर्भाशय में ) टपकाया जाता है ? फ़िर वह एक थक्का बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंग ठीक किये फिर उससे मर्द और औरत की दो क़िसमें बनाई । (अल-कुरआनः सूरे:75, आयत 37 से 39)

‘‘जिसने तुझे पैदा किया, तुझे आकार प्रकार (नक-सक) से ठीक किया , तुझे उचित अनुपात में बनाया और जिस स्वरूप में चाहा तुझे जोड़ कर तैयार किया।‘‘(अल-क़ुरआन: सूरः 82 आयात 7 से 8 )

अर्द्ध निर्मित एंव अर्द्ध अनिर्मित गर्भस्थ भ्रूण

अगर ‘मज़ग़ा‘ की अवस्था पर गर्भस्थ भ्रूण बीच से काटा जाए और उसके अंदरूनी भागों का अध्ययन किया जाए तो हमें स्पष्ट रूप से नज़र आएगा कि (मज़ग़ा के भीतरी अंगों में से ) अधिकतर पूरी तरह बन चुके हैं जब कि शेष अंग अपने निर्माण के चरणों से गुज़र रहे हैं। प्रोफ़ेसर जौंस का कहना है कि अगर हम पूरे गर्भस्थ भ्रूण को एक सम्पूर्ण अस्तित्व के रूप में बयान करें तो हम केवल उसी हिस्से की बात कर रहे होंगे जिसका निर्माण पूरा हो चुका है और अगर हम उसे अर्द्ध निर्मित अस्तित्व कहें तो फिर हम गर्भस्थ भ्रूण के उन भागों का उदाहरण दे रहे होंगे जो अभी पूरी तरह से निर्मित नहीं हुए बल्कि निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि उस अवसर पर गर्भस्थ भ्रूण को क्या सम्बोधित करना चाहिये? सम्पूर्ण अस्तित्व या अर्द्ध निर्मित अस्तित्व गर्भस्थ, भु्रण के विकास की इस प्रक्रिया के बारे में जो व्याख्या हमें पवित्र क़ुरआन ने दी है उससे बेहतर कोई अन्य व्याख्या सम्भव नहीं है पवित्र क़ुरआन इस चरण को ‘अर्द्ध‘ निर्मित अर्द्ध अनिर्मित‘ की संज्ञा देता है। निम्न्लिखित आयतों का आशय देखिए:

‘‘लोगों! अगर तुम्हें जीवन के बाद मृत्यु के बारे में कुछ शक है तो तुम्हें मालूम हो कि हम ने तुमको मिट्ठी से पैदा किया है, फिर वीर्य से, फिर रक्त के थक्के से, फिर मांस की बोटी से जो स्वरूप वाली भी होती है और बेरूप भी, यह हम इसलिये बता रहे हैं ताकि तुम पर यर्थाथ स्पष्ट करें। हम जिस (वीर्य) को चाहते हैं एक विशेष अवधि तक गर्भाशय में ठहराए रखते हैं। फिर तुम को एक बच्चे के स्वरूप में निकाल लाते हैं (फिर तुम्हारी परवरिश करते हैं ) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुंचो‘‘ ।(अल-क़ुरआन: सूर 22 आयत .5 )

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम जानते हैं कि गर्भस्थ भ्रूण विकास के इस प्रारम्भिक चरण में कुछ वीर्य ऐसे होते हैं जो एक पृथक स्वरूप धारण कर चुके हैं, जबकि कुछ स्खलित वीर्य, विशेष तुलनात्मक स्वरूप में आए नहीं होते । यानि कुछ अंग बन चुके होते हैं और कुछ अभी अनिर्मित अवस्था में होते हैं।

सुनने और देखने की इंद्रिया

मां के गर्भाशय में विकसित हो रहे मानवीय अस्तित्व में सब से पहले जो इंद्रिय जन्म लेती है वह श्रवण इंद्रियां होती है। 24 सप्ताह के बाद परिपक्व भ्रूण Mature Foetus आवाजें सुनने के योग्य हो जाता है। फिर गर्भ के 28 वें सप्ताह तक दृष्टि इंद्रियां भी अस्तित्व में आ जाती हैं और दृष्टिपटलः Retina रौशनी के लिये अनुभूत हो जाता है। इस प्रक्रिया के बारे में पवित्र क़ुरआन यूं फ़रमाता है:

‘‘फिर उसको नक – सक से ठीक किया और उसके अंदर अपने प्राण डाल दिये और तुम को कान दिये, आंखें दी और दिल दिये, तुम लोग कम ही शुक्रगुज़ार होते हो।‘‘(अल-क़ुरआन: सूर: 32 आयत 9)

‘‘हम ने मानव को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया ताकि उसकी परीक्षा लें और इस उद्देश्य के लिये हम ने उसे सुनने और देखने वाला बनाया‘‘।(अल-क़ुरआन: सूर 76 आयत .2)

‘‘वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हें देखने और सुनने की शक्तियां दीं और सोचने को दिल दिये मगर तुम लोग कम ही शुक्रगुज़ार होते हो।‘‘(अल-क़ुरआन:सूरः23 आयत 78 )

ध्यान दीजिये कि तमाम पवित्र आयतों में श्रवण-इंद्रिय की चर्चा दृष्टि-इंद्रिय से पहले आयी हुई है इससे सिद्व हुआ कि पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त व्याख्याएं, आधुनिक प्रजनन विज्ञान में होने वाले शोध और खोजों से पूरी तरह मेल खाते हैं या समान है।


Courtesy:
www.ieroworld.net
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)